दोस्तों को समर्पित
बचपन के दोस्त
धुंधली आंखों से ...
बचपन की धूल से सनी दोस्ती ..
रगड़ खा रही...
ओझल हो गई...
कई बिछड़ गए जिंदगी के रेस में....
मृत्यु की गोद में यादों को तन्हा कर..
कभी था जिन्दगी के रेस में....
कभी जवानी की रौब में...
कभी जिंदगी की कश्मकश में....
कभी उफान मारती घमंड में......
अब याद आई जब कोई पूछता नहीं रेस में...
बचपन के दोस्त
धुंधली आंखों से ...
बचपन की धूल से सनी दोस्ती ..
रगड़ खा रही...
ओझल हो गई...
कई बिछड़ गए जिंदगी के रेस में....
मृत्यु की गोद में यादों को तन्हा कर..
कभी था जिन्दगी के रेस में....
कभी जवानी की रौब में...
कभी जिंदगी की कश्मकश में....
कभी उफान मारती घमंड में......
अब याद आई जब कोई पूछता नहीं रेस में...
मर्म को छूते हैं ये विचार।
ReplyDeleteगांव की बातें , बचपन की बातें , अभाव में जीये गए
पल मानों फिर बुला रहे हों , आवाज दे रहा हो ।
अच्छी अभिव्यक्ति ।