Thursday, August 17, 2017

बिहार में वर्ष 2017 की बाढ़ की विभीषिका

बिहार में इस वर्ष प्राकृतिक आपदा के नाम सेआई बाढ़ का प्रलय बिहार में सुशासन की सरकार की कई परतों की तह पर प्रकाश डालता है ।
1) राज्य में जल को संसाधन मानकर केन्द्र की भांति जलसंसाधन विभाग दशकों से अभियंत्रण बिभाग के रुप में सबसे बड़ा बिभाग कार्यरत है ।इस बिभाग की प्रधानता इसीसे परिलक्षित है कि इस बिभाग में एक काबीना मंत्री के मातहत प्रधान सचिव सहित दशकों अन्य प्रशासनिक पदाधिकारी के साथ साथ 3 अभियंता प्रमुख, 20 मुख्य अभियंता, 106 अधीक्षण अभियंता, 370 कार्यपालक अभियंता के अतिरिक्त हज़ारों सहायक अभियंता / कनीय अभियंता कार्यरत है । जल संसाधन विभाग की संरचना हीं इसकी प्रमाणिकता और प्रधानता बयान करता है जो इसे अन्य अभियंत्रण बिभाग से मीलों आगे होना सिद्ध करता है ।
2) इस वर्ष आई बाढ़ की विनाशलीला बिहार के 11 करोड़ जनता को रोंगटे खड़ा कर रहा  है । उत्तर बिहार के 17 जिलों में आई बाढ़ की त्रासदी सैकड़ों मनुष्य को काल के गाल में निगल लिया है । हास्यास्पद तो यह है कि इस वर्ष मौसम विभाग द्वारा सही पूर्वानुमान के साथ साथ कई नदियों में अधिकतम जलप्रवाह से कम जलश्राव के वावजूद भी नदियों के रिकार्ड तटवन्ध ध्वस्त हो गए हैं । इसके लिए सरकार चूहों को उत्तरदायी बनाकर अपने ऊपर से पल्ला हटाने का षड्यंत्र करना प्रारम्भ कर दी है ।
आजादी के बाद बिहार राज्य के नदियों के इतने तटबन्धों का टूटना कहीं सरकार की प्रशासनिक विफलता का नमूना तो नहीं है या प्राकृतिक आपदा जिस पर तकनीकी ज्ञान के वाबजूद भी मानव आज बेवस है ।

3) जल संसाधन विभाग द्वारा गत वर्ष बाढ़ संसाधन के नाम पर विभाग का पुनर्गठन कर सिंचाई सृजन एवम बाढ़ प्रक्षेत्र के नाम पर दशकों से चल रहे जलसंसाधन विभाग को क्षिन्न भिन्न कर दिया है । जल या नदियों के नियंत्रण हेतु भौगोलिक सीमा को ध्यान के साथ साथ अल्प समय मे नियंत्रण पदाधिकारी के निरीक्षण को ध्यान में रखना अनिवार्य है । इसका उदाहरण इस प्रकार है कि एक मुख्य अभियंता दरभंगा जिला की सीमा से सीतामढ़ी, शिवहर, मुजफ्फरपुर, वैशाली, पूर्वी एवम पश्चिमी चंपारण जिलों तक प्रवाहित सभी प्राकृतिक नदियों का किस प्रकार से निरीक्षण कर सकता है । पूर्व से वैज्ञानिक दृष्टिकोण से किये गए कार्यक्षेत्र के पुनर्गठन की प्रशासनिक विफलता का परिणाम तो रेकॉर्ड ध्वस्त बांधों की कहानी बयान तो नहीं करता है ।
4) राज्य में नदियों के बांधों की सुरक्षा हेतु एक वार्षिक बाढ़ कैलेन्डर बनाया हुआ है जिसे बाढ़ के बाद एक निर्धारित अवधि में TAC/ SRC/ TENDER की प्रक्रिया पूरा कर कार्य 15 जून के पूर्व पूरा कर लिया जाना है । इस वर्ष कई निविदाओं को प्रकाशन 3 से 4 बार इसलिए किया गया था कि चहेते संवेदकों को कार्य आवंटित किया जाय जिसमें सबको भ्रष्टाचार रुपी गंगा में  वैतरणी पार करने का समुचित अवसर मिले । यह सरकार की भ्रष्टाचार पर प्रशासनिक गहरी साजिश की तरफ इशारा करता है ।
5) कमला बलान नदी में स्पेशल रिंगवान्ध की स्वीकृति जिसमें good earth के साथ ढुलाई की मिट्टी का प्रावधान होने के वावजूद नदी में आई जलप्रवाह ने अनेकों स्थानों पर नदी के तटवन्ध को ध्वस्त कर दिया । क्या यह सरकारी प्रशासनिक , तकनीकी विफलता का परिणाम तो नहीं है ?
6) गंडक नदी में अधिकतम जलश्राव 6.75 लाख क्यूसेक के लिए बांधों का निर्माण कराया गया है । परन्तु विडम्बना यह है कि मात्र 5.25 लाख क्यूसेक डिस्चार्ज पर गोपालगंज जिला अवस्थित पिपरा पिपरासी एम्बनकमेन्ट भरभरा कर ध्वस्त हो गया । इसकी निविदा मे भी बंदरबांट या निविदा की अनियमितता एक अलग रोशनी देगा । इसमें भी कई बार निविदा प्रकाशित कर मनमाफिक संवेदक को कार्य आवंटित की गई है । इसी प्रकार पतराही छरकी के साथ भी समरुप निर्णय लिए गए हैं ।
7) महानंदा नदी के सुरक्षा के लिए भी चार बार निविदा आमंत्रित कर निविदा में अनियमितता कर मनमाफिक संवेदक को कार्य आवंटित की गई है और निविदा के निष्पादन में अधिक समय लगने के कारण कार्यकारी समय मात्र एक माह मिलना तटवन्ध के टूटने का कारण तो नहीं है  ।
8) असलियत में एक गहरी साजिश रची गई थी कि काम न करने के बाद बची हुई राशि का बंदरबाँट कर ली जाय । ऐसे भी नदियों में वर्षा ऋतु के बाद यह पता लगाना असम्भव है कि सचमुच में बाढ़ पूर्व कितना काम सम्पादित हुआ था ।
9) बागमती नदी के बांधों की सुरक्षा पर प्रकाश डालना ही भ्रष्टाचार की परत खोलना है । Single श्रोत पर एक संवेदक को प्राकलन बनाने से लेकर कार्य करने का दायित्व है जिसे एस्टीमेट घोटाला से भुगतान घोटाला भी कह सकते हैं ।
10) इस वर्ष कनकई , महानंदा, गंडक, बूढी गंडक, पाण्डुई,अधवारा समूह की नदियों, बागमती,आदि नदियों में आई प्रलयंकारी बाढ़ की विभीषिका का इसी तथ्य से एक गहरी सरकारी प्रशासनिक विफलता का प्रमाण है कि गंगा और कोशी नदी मुख्य बेसिन की तलहट में पानी रहने के बावजूद भी बिहार राज्य के पूर्वी - पश्चिमी चंपारण, मुज़फ़्फ़रपुर, गोपालगंज, सिवान, सारण, शिवहर, सीतामढ़ी, मधुबनी, दरभंगा, मधेपुरा, सुपौल, सहरसा, कटिहार, पूर्णिया, अररिया, किशनगंज आदि जिलों के कई शहरों में 20 दिनों के बाद पानी का निकास सम्भव हो सकेगा ।
11) सरकारी प्रशासनिक विफलता के कारण सदी की सबसे बड़ी नरसंहार जो प्राकृतिक आपदा के नाम पर करने की संलिप्तता के कारण बाढ़ के बाद खाद्यान - स्वच्छ जल आपूर्ति , यातायात बहाली, दूरसंचार व्यवस्था चालू करने के साथ साथ बाढ़ के पश्चात महामारी की रोकथाम एवम पुनर्वास के लिए सरकार को कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा । यह चुनौती जल संसाधन विभाग की निष्फलता एवम कदाचार का दुष्परिणाम है ।
12) जल संसाधन विभाग की कदाचार एवम सरकारी प्रशासनिक अक्षमता इस तथ्य से भी परिलक्षित है कि क्या कार्मिक विभाग के द्वारा निर्गत निर्देशों के वावजूद अभियंता प्रमुख एवम मुख्य अभियंता के पद पर वरीयता में जूनियर पदाधिकारी को चालू प्रभार या प्रतिनियुक्ति कर सीनियर योग्य अभियंता को नियमित प्रोन्नति नहीं देकर भ्रष्टाचार में लिप्त अभियंता को पद एवम पैसे का लालच/ भय/ प्रलोभन देकर लूट को नियमानुकूल परिभाषित किये जाने का परिणाम ही हज़ारों जन मानस एवम लाखों मवेशियों  की मृत्यु का कारण तो नहीं है ।
13) राज्य के  मुख्य मंत्री जो देश में Good Governance के रुप मे प्रख्यात है उनसे राज्य की जनता यह अपेक्षा करती है कि  सरकार की इस प्रशासनिक विफलता  की सत्यता उजागर कर अपने स्वच्छ छवि को Man Made आपदा के खून के छीटे से दागदार साबित होने से बचाएं।
14) अतएव माननीय मुख्यमंत्री से यह अनुरोध है कि प्राकृतिक आपदा के षड्यंत्रों के दोषी पदाधिकारियों , मंत्री, जो एक आपराधिक दंड की श्रेणी में है, की अनियमितता की जांच हेतु रिटायर्ड उच्च न्यायालय के जज की अध्यक्षता में एक निष्पक्ष स्वतंत्र आयोग का गठन की जाय एवम Man made प्राकृतिक आपदा के दोषी की पहचान जिसके कारण उत्तर बिहार के करोड़ों नागरिकों को जान माल का नुकसान पहुंचाया गया है, का पर्दाफाश कर बिहार वासी के साथ ऐसे कुकृत्य करनेवालों के विरुद्ध करवाई कर अपने नाम के अनुरुप न्याय निर्णय दिलाने की कृपा करें ।