Saturday, October 31, 2015

प्रधानमंत्री के वक्तव्य सतही या अवसरवादिता

प्रधानमंत्री श्री नमो का वक्तव्य अवसरवादिता या सतही-----+++++++

भारत में कई प्रधानमंत्री हुये । राजनीतिक रूप में आजादी में सक्रियता एवं भागीदारी महात्मा गांधी जी, लौह पुरूष सरदार पटेल जी , चाचा पंडित जवाहरलाल नेहरु, श्री लाल बहादुर शास्त्री से जुड़े राजनीतिक संगठन कोंग्रेस को देश की आजादी के बाद सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री पद को विभिन्न नेताओ द्वारा देश की सेवा करने का अवसर दिया । गैर कांग्रेसवाद की राजनीति के बाद कई दूसरे राजनीतिक दल के नेता को भी प्रधानमंत्री बनने का अवसर प्राप्त हुआ । वर्तमान राजनीतिक कालखंड में गैर बीजेपी बाद की राजनीति की पदचाप सुनायी पड़ती है ।

देश की आज़ादी के समय जो व्यक्ति आर्थिक रुप में जितना अमीर और शैक्षणिक योग्य रहने के वाबजूद सारी भौतिकतावादी सुख को त्याग कर देश की सवतंत्रता के लिए अपना समर्पण किया तब जनता उसके त्याग और बलिदान को आदर्श मानकर उसका अनुकरण करते हुए उसका नेतृत्व में पूर्ण आस्था प्रकट करते थे । इसी कड़ी में महात्मागांधी, पटेल,चाचा नेहरु, राजेन्द्र प्रसाद, शास्त्री जी....आदि नेताओं की गिनती होती है ।

बाद के कालखंड में भी कई नेता अपने विलक्षण राजनीतिक सोंच, ज्ञान, समाज में समर्पण, सौम्यता, सहिष्णुता, तार्किक शक्ति, नेतृत्व क्षमता....आदि गुणों के कारण भी राजनैतिक क्षितिज के शीर्ष तक पहुँच पाये जैसे इन्दिरा गांधीजी, अटल बिहारी वाजपेयी जी, वी पी सिंह, चंद्रशेखर सिंह....। इसी कड़ी में कई और नेता भी हैं जो राजनीतिक क्षितिज पर देश के योगदान एवं सर्वांगीण विकाश में अहम् भूमिका अदा किये ।

उपरोक्त वर्णित सभी राजनेताओं के द्वारा अपने भाषणों में आत्मप्रशंसा के शब्दों का कहीं उल्लेख नहीं मिलता है, मसलन महात्मा गांधीजी , चाचा नेहरू, पटेल...... द्वारा अपनी शैक्षणिक और आर्थिक बलिदानों को जनता के सामने नहीं परोसते थे । कभी किसी ने शास्त्री जी द्वारा स्ट्रीट लैम्प पोस्ट में अपनी पढ़ाई पूरी किये जाने का दृष्टान्त नहीं मिलता है ।ऐसा ही उदहारण बाद के नेताओं जैसे आडवाणी के भाषणों में अपने को शरणार्थी कहते हुए कोई उदहारण नहीं है ।

वर्तमान में बीजेपी के कई नेता तो नेता स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने को चाय बेचनेवाला, कभी ट्रेन में चाय बेचने का जिक्र करना, कभी अपने को पिछड़ा का रहनुमा घोषित करना, कभी सवयं को अति पिछड़ा कहकर जनता की संवेदना के साथ जुड़ना को समाज के कई वर्गों में चुनाव के समय दिया गया वक्तव्य प्रधानमंत्री के पद की मर्यादा के विपरीत मानते हैं ।मेरे मतानुसार इस तरह का वक्तव्य पूर्णतः राजनैतिक स्वार्थ सिद्धि साधने का शार्ट कर्ट जरिया है ।

वर्तमान प्रधानमंत्री नमो के उदबोधन की उपर्युक्त तथ्य पूर्णतः अवसरवादिता एवं सतही सोंच का परिचायक है ।
Ashutosh Atharv :-आग के साथ आग बन मिलो पानी के संग पानी, गरल का उतर है प्रतिगरल यही कहते जग के ग्यानी
  आपके प्रस्तुति से शिकायत नही पर तार्किक परिणति तक पहूचने के लिए सभी रथियो के सिद्धान्त. मन कर्म वचन पर तुलनात्मक विचार होता तो अच्छा होता
लेखक :- विचार तो सिर्फ एक ही संगठन के पास है आर एस एस उसके इतर लिखने बोलने पर मैं देशद्रोही या पाकिस्तानी हो जाऊंगा । मेरी भी संविधान में आस्था है परंतु लगता है या मह्शूश होता है क़ि मैं भी क्या बोलूं क्या लिखूँ क्या खाऊँ लिखने/बोलने/खाने के पहले मेरे चारों ओर कुछ अदृश्य शक्तियाँ हैं उनसे सहमति ले लेनी चाहिए । आज से 18 माह पहले ऐसा वातावरण नहीं था । एक बात और तुमसे( छोटा होने के कारण)  ताकीद करता हूँ, क्या तुमने कभी कुछ लिखने के पहले किसी दूसरे से रॉय या इतिफाक रखते हो क्या ? तुम तो नौजवान हो तुममें कब से फाँसीवाद का गुण आ गया ? चिन्तनीय!

अडाणी अरहर मोदी के लिये तुरुप का पत्ता

अडानी अरहर मोदी के लिए तुरूप का पत्ता-+++++

देश में अना वृष्टि के कारण दलहनी फसल के उत्पादन में कमी के आकलन को ससमय केंद्र सरकार द्वारा नहीं किये जाने एवं दाल की कमी के आयात के लिए एकमात्र व्यवसायी अडानी ग्रुप को सौंपने एवम् आयात के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में अडानी के नजदीक के व्यवसायी द्वारा जमाखोरी कर दाल की किल्लत कर आम जनता से अधिक मूल्य में दाल की कालाबाज़ारी का सत्य श्री अरहर मोदी को स्पष्ट करना चाहिए और न खाऊँगा न खाने दूँगा का सत्य देश को बतलाना चाहिए ।

मित्रों की समीक्षा
दीपक जयसवालजी:- Sir Price rise of Pulses is failure of Governance... it was already predicted about 10 % fall in production due to scanty rainfall this year.. how could price rise 200%???... Hoarders mostly from BJP ruled states took it as opportunity due to softness of state governments towards them....
जीतेन्द्र कुमारजी :- इंडिया पल्सेज ग्रेंस एसोसिएशन के साथ अदाणी ग्रुप ने अपने पोर्ट्स पर दाल और दलहन के रखरखाव के लिये एक समझौता किया है। दरअसल यह समझौता जब दालों में तेजी का दौर चल रहा है और इस समझौते की वजह से देश भर में दालों की लागत के अनुसार प्रभावी आपूर्ति सुनिश्चित करना है।

यह समझौता आदाणी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनामिक जोन यानि एपीएसईजेड ने आईपीजीए के साथ समझौता कर लिया है। इसके साथ ही अदाणी के पोर्ट्स पर दाल दलहन के रखरखाव के लिये ही यह समझौता हुआ है। वास्तव में यह समझौता हो जाने के बाद पोर्ट्स की सुविधाओं के इस्तेमाल से दाल दलहन की आपूर्ति को विकसित किये जाने में और सहायता हो सकेगी और इससे दाल व दलहनों की आपूर्ति में बढोत्तरी सुविधाजनक तरीके से हो सकेगी।
(भलाई का जमाना ही नहीं रहा।डूबते को बचाना भी गुनाह है)
लेखक:- भलाई के लिए देश में अडानी हीं एकदेश भक्त नज़र आते हैं । आयातित दाल में विलम्ब या देश में कालाबाज़ारी के लिए कौन जवाबदेह है क़ि यह कालाबाज़ारी भी जनता की भलाई में किया गया है । अच्छी कहावत आपने बताई डूबते को बचाना.... डूबते को बचाने के नाम पर डूबने वाले व्यक्ति की पूरी जमीन रजिस्ट्री करवा डाली और देश भक्त होने का प्रमाण भी ठोकवा लिया ।
जीतेन्द्र कुमार :- अपना सब समस्या अडानी अम्बानी पर! उद्योगपत्तियों और व्यवसयायियों पर कम्युनिस्टि सोंच से बिहार का विकास होगा क्या ?
लेखक :- अडानी सोंच से विकास होगा ? देश के सबसे शुभचिंतक 125 करोड़ में अडानी हीं हैं । मैं जन्म से व्यवसायी के यहाँ रोजमर्रा के सामानों की आपुर्ति हेतु पन्सारी की दूकान में जाता था । तौल में पन्सारी आँख बंद डिब्बा गायब कर देते थे ।फेरीवाला/ समानो की अदलाबदली वाला ....किस किस का नाम गिनाऊँ । अरे भाई बिहार में एक कहावत है दही के अगोरिया बिलाई ।
जीतेन्द्र कुमार :- जी ! 60 साल के रूल में यही दो-चार बना पाये हैं...क्या करें! हम पर भरोसा न हो तो पप्पू से पूछ लीजिए..साथ ही बैठा होगा।
लेखक:- पप्पू से क्यों पूंछे? हर बात में पप्पू जुमला कब तक? जवाबदेही लेना सिखो भाई । कल बच्चा पैदा होगा उसके लिए भी पप्पू ।बहस को सार्थक तर्क के साथ । 60 साल तक जनता पप्पू के साथ थी इस बार जनादेश आपकी है । आप तो पूर्व में आपके वंशज जो जनादेश दिए उसको भी गाली दे रहे हैं ।
जनक कुमार सिंह जी :- किन्तु कृषि राज्य का विषय है। फसलों के उत्पादन का आकलन राज्य सरकारों का दायित्व है।
लेखक :-क्या कांग्रेस के ज़माने में सामानों की किल्लत और उसका आकलन राज्य सरकारों का नहों था ? दूसरा देश के कितने प्रदेशों में बीजेपी शाषित राज्य हैं । उन राज्यों के आकलन से औसत निष्कर्ष के आधार पर मांग आपूर्ति के सिद्धान्त पर ससमय यथोचित कारवाई करनी चाहिये थी । कार्यवाई भी की गयी परंतु चहेते अडानी ग्रुप के साथ जो दाल लाकर भी सरकार के मुफीद  जमाखोरों को कलवाज़री में प्रत्यक्ष रूप में मदद तो नहीं कहूँगा लेकिन सरकार के सांठगाठ या संलिप्तता के बिना मात्र 10% उत्पादन में कमी के नाम पर दाल की कीमत 200% ऐतिहासिक मूल्य तक नहीं पहुँचता ।

Friday, October 30, 2015

ब्यूरोक्रेसी का सत्य

Rakesh Gupta 80 batchBCE Patna की मर्मस्पर्शी प्रस्तुति.......-----------+
ब्यूरोक्रेसी का सत्य

एक बड़े मुल्क के राष्ट्रपति के बैडरूम की खिड़की सड़क की ओर खुलती थी। रोज़ाना हज़ारों आदमी और वाहन उस सड़क से गुज़रतेथे। राष्ट्रपति इस बहाने जनता की परेशानी और दुःख-दर्द को निकट से जान लेते।राष्ट्रपति ने एक सुबह खिड़की का परदा हटाया। भयंकर सर्दी। आसमान से गिरते रुई के फाहे। दूर-दूर तक फैली सफ़ेद चादर। अचानक उन्हें दिखा कि बेंच पर एक आदमी बैठा है। ठंड से सिकुड़ कर गठरी सा होता।
राष्ट्रपति ने पीए को कहा -उस आदमी के बारे में जानकारी लो और उसकी ज़रूरत पूछो।
दो घंटे बाद।
पीए ने राष्ट्रपति को बताया - सर, वो एक भिखारी है। उसे ठंड से बचने के लिए एक अदद कंबल की ज़रूरत है।राष्ट्रपति ने कहा -ठीक है, उसे कंबल दे दो।अगली सुबह राष्ट्रपति ने खिड़की से पर्दा हटाया। उन्हें घोर हैरानी हुई। वो भिखारी अभी भी वहां जमा है। उसके पास ओढ़ने का कंबल अभी तक नहीं है।
राष्ट्रपति गुस्सा हुए और पीए पूछा -यह क्या है? उस भिखारी को अभी तक कंबल क्यों नहीं दिया गया?
पीए ने कहा -मैंने आपका आदेश सेक्रेटरी होम को बढ़ा दिया था। मैं अभी देखता हूं कि आदेश का पालन क्यों नहीं हुआ।थोड़ी देर बाद सेक्रेटरी होम राष्ट्रपति के सामने पेश हुए और सफाई देते हुए बोले - सर, हमारे शहर में हज़ारों भिखारी हैं। अगर एक भिखारी को कंबल दिया तो शहर के बाकी भिखारियों को भी देना पड़ेगा। और शायद पूरे मुल्क में भी। अगर न दिया तोआम आदमी और मीडिया हम पर भेदभाव का इल्ज़ाम लगायेगा।
राष्ट्रपति को गुस्सा आया -तो फिर ऐसा क्या होना चाहिए कि उस ज़रूरतमंद भिखारी को कंबल मिल जाए।सेक्रेटरी होम ने सुझाव दिया -सर, ज़रूरतमंद तो हर भिखारी है। आपके नाम से एक 'कंबल ओढ़ाओ, भिखारी बचाओ' योजना शुरू की जाये। उसके अंतर्गत मुल्क के सारे भिखारियों को कंबल बांट दिया जाए।
राष्ट्रपति खुश हुए। अगली सुबह राष्ट्रपति ने खिड़की से परदा हटाया तो देखा कि वो भिखारी अभी तक बेंच पर बैठा है।
राष्ट्रपति आग-बबूला हुए।
सेक्रेटरी होम तलब हुए। उन्होंने स्पष्टीकरण दिया -सर, भिखारियों की गिनती की जा रही है ताकि उतने ही कंबल की खरीद हो सके।
राष्ट्रपति दांत पीस कर रह गए। अगली सुबह राष्ट्रपति को फिर वही भिखारी दिखा वहां। खून का घूंट पीकर रहे गए वो।सेक्रेटरी होम की फ़ौरन पेशी हुई। विनम्र सेक्रेटरी ने बताया -सर, ऑडिट ऑब्जेक्शन से बचने के लिए कंबल ख़रीद का शार्ट-टर्म कोटेशन डाला गया है। आज शाम तक कंबल ख़रीद हो जायेगी और रात में बांट भी दिए जाएंगे।राष्ट्रपति ने कहा -यह आख़िरी चेतावनी है।अगली सुबह राष्ट्रपति ने खिड़की पर से परदा हटाया तो देखा बेंच के इर्द-गिर्द भीड़ जमा है। राष्ट्रपति ने पीए को भेज कर पता लगाया। पीए ने लौट कर बताया -कंबल नहीं होने के कारण उस भिखारी की ठंड से मौत हो गयी है।गुस्से से लाल-पीले राष्ट्रपति ने फौरन से पेश्तर सेक्रेटरी होम को तलब किया। सेक्रेटरी होम ने बड़े अदब से सफाई दी -सर,खरीद की कार्यवाही पूरी हो गई थी। आनन-फानन हमने सारे कंबल बांट भी दिए। मगर अफ़सोस कंबल कम पड़ गये।राष्ट्रपति ने पैर पटके -आख़िर क्यों? मुझे अभी जवाब चाहिये।सेक्रेटरी होम ने नज़रें झुका कर कहा -सर, भेदभाव के इलज़ाम से बचने के लिए हमने अल्फाबेटिकल आर्डर से कंबल बांटे। बीच में कुछ फ़र्ज़ी भिखारी आ गए। आख़िर में जब उस भिखारी नंबर आया तो कंबल ख़त्म हो गए।राष्ट्रपति चिंघाड़े -आखिर में ही क्यों?
सेक्रेटरी होम ने भोलेपन से कहा -सर, इसलिये कि उस भिखारी का नाम 'जेड' से शुरू होता था।
Ye he aaj ka system

Thursday, October 29, 2015

राष्ट्रवाद की वर्तमान में राष्ट्रीय अवार्ड के संदर्भ में व्याख्या

अवार्ड INC या BJP के नहीं होते राष्ट्रीय अवार्ड देश के प्रतीक होते हैं । क्या बिहार में विकाश नहीं होने के लिए लोग INC विरोध के कारण श्री बाबू को भी कोसेगें । आर एस एस की कुछ सोचने के तरीके से देश में विघटनकारी तत्वों को बल मिल रहा है । जिस संगठन ने देश की गुलामी के समय अंग्रेजों का साथ दिया, जिसने राजीव गांधी के काल में कम्प्यूटरीकरण एवं FDI का विरोध किया, सत्ता में आने पर Digital India और FDI में % की बढ़ोतरी कर दी । FDI में % बढ़ोत्तरी एवं Digital India का विरोध के रूप में उल्लेख नहीं किया गया है । बीजेपी का दोहरा चरित्र उजागर हो रहा है । सरकार में बैठे लोगों  एवं उनसे जुड़े संगठनों का अर्थात मालिक का दायित्व घर में सभी लीगों को साथ लेकर चलने का दायित्व अधिक होता है और ठीक वैसे समय जब सरकार प्रचंड बहुमत से जीती हो । BJP headed वाजपेयी जी की सरकार के काल में देश में इस तरह की घटना दृष्टिगोचर नहीं हुई थी । बीजेपी के लोगों द्वारा और वह व्यक्ति जिसने पार्टी का निर्माण किया उन्होंने इशारों में देश में इमरजेंसी की आहट की बात कही है, वह तो INC के नहीं थे ।
जब देश में कांग्रेस मुक्त भारत की बात की जाती है तो निश्चित लोग सत्ता में बैठे लोग से अपेक्षा या सत्ता के बारे में आलोचना ज्यादा करेगें । आलोचना रचनात्मक भी हो सकता है और गैररचनात्मक भी । इसमें सत्ता में बैठे लोगों को साहिष्णुता दीखानी होगी लेकिन किसी भी मुद्दों को आर एस एस और इससे जुड़े संगठन और बीजेपी के प्रवक्ता ऐसे react करते हैं कि संप्रदाय या प्रगतिशील विचार के विपरीत की जल्दबाज़ी या समाज में कड़वाहट घोलनेवाला संवाद बन जाता है । बहुत से मुद्दों पर घर के मालिक को चुप्पी साधनी पड़ती है । अरे भाई राजधर्म वाजपेयी से अच्छा किसी ने नहीं निभाया और वह भी देश के बीजेपी के प्रधानमंत्री के रूप में ।
मैं RSS पर आलोचना किये और  कुछ लोग/ संगठन तमतमा जायेगें। मुझे फिरकापरस्त या देशद्रोही बतलाया जायेगा । विचारों की अभिवयक्ति स्वच्छंदता यही तो प्रजातंत्र की खूबसूरती है । देश की आज़ादी के समय यह संगठन कहाँ था । बहुत सारे संगठन देशहित में कार्य कर रहे हैं । थोड़े देर के लिए लोग /संगठन की बात मान भी लें तो यह भी एक संगठन है ।फिर मेरी आलोचना से उद्वेलित क्यों होते हैं । मैं पूरी तरह से RSS को नाकारा है क्या? मैंने कुछ बानगी प्रस्तुत की और आपलोग उद्वेलित हो जायेगें। यही है फाँसीवाद । सहिष्णुन्ता और धैर्य बनाना पड़ेगा ।  मैं आपलोग के किसी भी शब्दों को बुरा नहीं मानता । मैं तो अपना नज़रिया रख रहा हूँ ।
बिहार चुनाव के बाद आपलोग मेरी बात मान लेंगे कि पूरे भारत में बीजेपी बनाम गैर बीजेपी बाद की राजनीति में गैर बीजेपी बाद की राजनीति का केंद्र बिंदु बिहारी नीतीश कुमार होंगे ।
आप अगर बिहार में किसी खास जाति बिशेष के होंगे तब INC की प्रसिंगकता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा नहीं कर देगें । मैं आपके साथ श्री बाबू जी का उदहारण पॉजिटिव रूप में दिए और  मुझे/ बिहार में जाति वाद का मुलम्म्मा मुझ पर मढ़ दिया जायेगा। मांझी बाद/ पासवान बाद/कुश्वाहाबाद/ बीफ बाद / आरक्षणबाद क्या है ? खैर चुनाव बाद आप स्वयं देखेगें । चुनाव में कौन क्या तिकड़म या गठबंधन बनता है यह शुद्ध राजनीतिक विषय है । युद्ध में सब कुछ जायज माना गया है ।

Tuesday, October 27, 2015

भारत का चुनाव आयोग या दंतहीन बिषरहित सांप

बुरा मत मानियेगा, आपलोगों को मेरे शीर्षक में बहुत आस्था है । भारत के चुनाव आयोग को भारत के प्रजातंत्र के प्रहरी के रूप में संविधान में शक्ति प्रदत्त है जो एक निष्पक्ष और स्वतंत्र संस्था है । अब इसके गठन के बारे में जान लें , इसके गठन के लिए मुख्यतः सत्ताधारी जवाबदेह होता है जिसमें तीन सदस्य होते हैं और रोटेशन और वरीयता के आधार पर मुख्य चुनाव आयुक्त का चयन किया जाता है । इसका मुख़्य कार्य निष्पक्ष ढंग से संसदीय और विधानसभा का चुनाब का दायित्व है । चुनाव पूर्व आदर्श चुनाव आचार संघिता के प्रतिपादित सिदांतों पर चुनाव संपन्न कराया जाता है ।

भारत राष्ट्र के 15 अगस्त 1947 में निर्माण और 26 जनबरी 1952 संविधान के लागू होने के तत्पश्चात् भारत में आई ए एस अर्थात प्रशासनिक पद या कर्मी नाम की चिङिया को अंग्रेजों के साथ सात समन्दर पार फुर्र उड़ जाना चाहिए था , परंतु राजनीतिक दृढ ईच्छा शक्ति की कमी ने इसकी जडें और मजबूत कर दिया है ।इसकी जड़ के मजबूत होने का प्रमुख कारण चुनाव रुपी पर्व में जनता रुपी मतदाताओं के मताधिकार का निष्पक्ष होने नहीं देना ।राज्य से लेकर देश तक प्रजातंत्र के पालक के रूप में प्रशासनिक पदाधिकारी को अमोघ अस्त्र दे दिए जाते हैं । इनकी विश्वसनीयता कितनी निष्पक्ष है इसकी वानगी चुनाव पूर्व इनके स्थानांतरण/पदस्थापन से स्पष्ट परिलक्षित हो जाता है । चुनाव पूर्व बोली लगती है और दैनिक समाचार पत्र के प्रत्येक पृष्ठ पर स्थानांतरण पदस्थापन का समाचार प्रकाशित रहता है । प्रत्येक  जिला में जिला निर्वाचन पदाधिकारी सह जिला दंडाधिकारी की नियुक्ति के साथ गुंडा तंत्र के रूप में डंडे की चोट से जिससे आम आदमी घबराता है चुनाव का क्लिष्ट कार्य जिसमें अगर शिक्षक , तकनीकी और अभियंत्रण संवर्ग के पदाधिकारी को नहीं सलंग्न किया जाये तो धन्य हो इस चुनाव और इसकी निष्पक्षता ।तकनीकी में प्रगति के उपकरण इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की चर्चा और इसकी प्रासंगिकता का जिक्र किये बिना तो चुनाव कराने की कल्पना भी बेमानी होगी । इन सभी कार्यों में प्रशासनिक पदाधिकारी तमाशबीन बने रहते हैं।

चुनाव कार्य के संपादन में दंडाधिकारी के रूप में किसी भी प्रशासनिक पदाधिकारी की सामान्यतः प्रतिनियुक्ति  नहीं की जाती है इन्हें अनुश्रवण का खानापूर्ति कार्य सौंपा जाता है । ग्रेड पे या पे बैंड या किस श्रेणी के पदाधिकारी हैं इन मापदंडों के आधार पर प्रतिनुक्ति चुनाव कार्य में करना जिला निर्वाचन पदाधिकारी तौहिनी समझते हैं । नया नया SDC हुकुम फरमाता है । सबसे पहले यह समझ लें JDC नाम का प्रशासनिक पद हैं हीं नहीं, लेकिन  SDC नाम से जन्म के साथ पद पर आ जाता है ।नए नए जिन्हें IPC की धारा का सामान्य ज्ञान और प्रशिक्षण नहीं प्राप्त होता है उन्हें अमोघ शस्त्रों के साथ बिना इस्तेमाल की जानकारी  के साथ चुनाव रुपी कुरुक्षेत्र में अस्त्र शस्त्र भांजने भेज दिया जाता है ।लेकिन प्रशासनिक पदाधिकारी एक कार्य बहुत निपुणता से करते हैं कि किसी भी संवर्ग या कार्यालय का कोई पदाधिकारी या कर्मचारी को आकस्मिक रूप में किसी भी अवकाश या मुख्यालय छोड़ने की आवश्यकता मह्शूश हो तो वह प्रशासनिक नियमके हवाले से अनुशासनहीनता समझा जाएगा ।अमूमन तो जिला निर्वाचन पदाधिकारी अर्थात जिला का प्रशासनिक पद का मुखिया ऐसे गैर पत्रों को प्राप्त ही न करेगा।

आजकल आदर्श चुनाव आचार संहिता के नाम पर 50000रू से अधिक कैश  साक्ष्य के आभाव में ले जाने  पर रोक है । RBI के नियमानुसार यह 365 दिन सामान्य दिवस में बिना साक्ष्य के गैर कानूनी है । लेकिन 365 दिन सामान्यतः अपने कार्यों को सही रूप में सम्पादित नहीं करने के कारण अपराधियों का धर पकड़ भी दिखावे के स्वरुप इसी समय किया जाता है ।सामान्य या आम जनता में भय का वातावरण पैदा कर देना सबसे उत्तम चुनाव कराने का मापदंड है । जनप्रतिनिधि नियमों के हवाले से किसी भी प्रकार के वाहन को चुनाव कार्य में seize किये जाने की परंपरा है और जिले के कुख्यात पेट्रोल पंप के मालिक जो तेल में मिलावट के साथ साथ मीटर में छेड़ छाड़ किये रहता है वहीं से फ्यूल दिए जाने की परंपरा है ।सड़क पर कोई भी वाहन को पकड़कर भ्रष्टाचार की गंगोत्री में जापानी पुलिस पदाधिकारी अधिक वाहन क्षमता तक माल ढुलाई के नाम पर छक के पीता है । इसलिए राजमार्गों पर वाहन का परिचालन ठप हो जाता है । जबकि अधिक वाहन क्षमता से अधिक सामान ढ़ुलाई सब दिन गैर कानूनी है ।चुनाव में सामान्यतः प्रयोग के सभी स्टेशनरी, कैंडल, सुतली, कागज, pen, इंडिबले इंक ,छुरी, पॉलिथीन शीट , मेडिकल कीट, लाह, एनवलप.... आदि सामग्री की गुणवत्ता की जाँच कर दी जाय तो सामग्री के उत्पादनकर्ता / सप्लायर भी यह कह बैठेगा कि ऐसी सामग्री मैं बनाता हीं नहीँ हूँ, अगर विश्वास न हो तो मेरे फैक्ट्री का स्वयं निरीक्षण कर लीजिये । जिला में पदस्थापित सभी कर्मी चुनाव में प्रशिक्षण के दिन सुबह सुबह ब्रह्म मुहुर्त में स्नान ध्यान कर प्रशिक्षण शिविर में हस्ताक्षरवाली पंजी पर अपनी उपस्थिती दर्ज़ कर देना उस दिन का सबसे बड़ा कार्य पुनीत कार्य समझते  है । प्रशिक्षु भी लचर, लाचार आम कर्मी समय काटता है । प्रशिक्षण शिविर की सामान्यतः व्यवस्था का जिक्र कर दूं तो आप को व्यवस्था से घिन्न आ जायेगी ।आदर्श चुनाव आचार संहिता के एक माह पूर्व से स्थानान्तरण/ पदस्थापन से लेकर सरकार गठन के एक सप्ताह तक जिले के सारे विकास कार्य पूर्णतः ठप्प कर देना चुनाव की सफलता का मापदंड है ।

सबसे कड़वा सत्य यह है कि किसी भी जिला निर्वाचन पदाधिकारी को आदर्श चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप में उसे कठोर प्रशासनिक दंड मसलन् निलंबन/ वर्खास्तगी.... बेतन से कटौती, बेतन के न्यूनतम प्रकरम  पर ला देने जैसे या अपराधिक मुकदमा  जैसे कठोर प्शाशास  दंड का प्रावधान है भी है या अब तक नहीं देने की   परम्परा है । हाँ आरोपित प्रशासनिक पदाधिकारियों को एक बात जरूर है भविष्य में किसी चुनाव कार्य में संलग्न या दायित्व नहीं सौंपा जाता  है, यही सबसे बड़ा दंड है   या दिये जाने की अब तक परंपरा है ।

अरे भाई मैं तो राज्य निर्वाचन आयोग के कार्यालय में पदस्थापित कर्मी / प्रशासनिक पदाधिकारी का जिक्र ही नहीं किया । ये महान आत्मा हैँ ये सभी येन केन प्रकारेण प्रतिनियुक्ति पर यहीं कार्यरत रहते हैं ।असल इनके बिना चुनाव संपादन कार्य  जो संभव नहीं है । They are indispensable.








Monday, October 26, 2015

#निगरानी/विजिलेंस सप्ताह

#vigilence_week 

ख़ुदा झूठ न बुलबाये कुछ अंश जीतेन्द्र भाई के चुराए हुए-----

सरकार भी हद करती है।साल में एक बार विजिलेन्स के नाम पर अपने कर्मचारियों को कसम खिलाती है कि अब से ईमानदार हो जायेंगे ! एक बड़ा वाला अफसर अपने छोटे-छोटे अफसरों-कर्मचारियों को शपथ दिलाता है कि अब से शुद्ध तरीके से ‘सत्यनिष्ठा’रखेंगे।
        ऊपर से पर्व-त्यौहार के इस खर्चे वाले मौसम में ऐसा धर्म का किस्सा सुनाना ठीक है क्या !वैसे शपथ की भाषा इतनी क्लिष्ट होती है कि समझने में दिल खपाने से अच्छा है बुदबुदा लें । काम भी शपथ का हो जायेगा और शपथ नहीं खाये रहने के कारण साल भर ईमानदारी से चांदी के चम्मच से चाँदी काटते रहेगें
    अरे भाई !ये तो देखो कि जिसको शपथ दिला रहे हो,वो शपथ लेने के लिए अधिकृत भी है कि नही।कोई भला आदमी अगर शपथ को सीरियसली ले ले तो पता नही बीबी-बच्चे क्या करें उसका...सोंच के ही दिल दहल जाता है..

नौकर शपथ हमेशा गंगा माँ की कसमें खाकर लेता है लेकिन मालिक से ओझल होते हीं नौकर हेराफ़ेरी, तुमाफेरि, चोरी, डकैती.... तक की फिराक में रहता है ।
 सरकारी नौकरी में सभी सेवक हैं। दुर्भाग्य तो यह है कि सेवक का असल मालिक पूरी सेवा में मिलता हीं नहीं है । यहाँ नौकर नौकर को शपथ दिलाता है । जिस दिन नौकर को मालिक शपथ दिला दिया, माँ कसम बीबी तालाक ले लेगी, साली तो रहेगी लेकिन रोज़ नया पति ढूंढते फिरेगी ।माँ आधा निवाला खिला देगी ।

Sunday, October 25, 2015

धर्म युद्ध

2014 का भारत का कुरुक्षेत्र धर्मयुद्ध नहीं था ।2014 का संसदीय चुनाव कोंग्रेस की जड़ता ,लगातार 10 वर्षों के शासनकाल में हुयी गलतियों के आधार पर नयी संचार क्रांति के वाहन पर सवार भारत के नवयुवक अपना अक्श विश्व के रूप में सजाने केउद्देश्य एवं केजरीवाल द्वारा पनपाया गया केंद्र के प्रति असंतोष के साथ साथ अन्ना हज़ारे एवं रामदेव द्वारा जनता में सरकार के विपक्ष में बनाये गए माहौल पर स्वर्णिम किरण धवल ओज के साथ बीजेपी द्वारा नमो की अगुवाई में सारे असन्तोष के परिणाम को मुट्ठी में कैद करने की चाहत ने बीजेपी/ आर एस एस  द्वारा छोड़ा गया नरेंद्र मोदी का अश्वमेघ यज्ञ का घोडा सरपट दौड़ता हस्तिनापुर फतह कर डाला ।

अब शुरू होती है चुनौती ।आर एस एस का देश स्वतंत्रता के समय के इतिहास से तो आपलोग वाकिफ होंगे । सभी प्रवुद्ध राजनैतिक दल अपनी विचारधारा में सतत् परिवर्तन करती है और यही संसार रुपी जीवन का मूल मन्त्र है ।हमलोग भी आशान्वित थे की प्रचंड बहुमत पर विराजमान केंद्रीय सरकार राजधर्म निभाकर भारत की नयी कहानी गढेगें ।अब तक सरकार आत्मविभोर होकर self appriasal एवं पूर्ववर्ती सरकारों की प्रत्येक पालिसी पर आक्रोश उगलने के अलावा कुछ नहीं कर रही है ।घर के मुखिया की जवाबदेही सामान्य लोगों से हज़ारों गुणा अधिक होता है । यह सरकार देश के विकास को छोड़कर राज्यों के चुनाव में अपना ध्यान राष्ट्रवाद पनपाने में केंद्रित कर दिया है । षडयंत्र/ सत्ता की लोलुपता ने इसे देश के राज्यों में किसी प्रकार से सरकार बनाने में अपनी ऊर्जा को नष्ट करना शुरू कर दिया है मसलन जम्मू कश्मीर और महाराष्ट्र की सरकार ।

इस सरकार के शासनकाल में गिरते पेट्रोडॉलर ने देश की अर्थव्यवस्था में दैवी योगदान दिया है ।वर्तमान में देश के प्रणेता को Controversy policies क़ो छोड़कर या  विवादित विषयों पर पारिचर्चा   कर देश की अर्थव्यवस्था को समतल जमीन पर सरपट दौड़ाने का वक़्त है ।लेकिन यहाँ पर खड़ा है आर एस एस जिसकी देश स्वतंत्रता में देश भक्ति से तो राष्ट्र वाकिफ हैं ही , वर्तमान में प्रथम पंचवर्षीय योजना से लेकर अब तक राष्ट्र द्वारा बनाये गए हर नियम कानून को विवादित विषय कर उसमें या तो संशोधन करना या उसका आर एस एस करण करना यही वर्तमान सरकार का लक्ष्य है । याद करे दोस्तों श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी का काल , उनके द्वारा बिना विवाद के देश की प्रगति में राजधर्म और शालीनता से जो विकास के कार्य किये गए हैं उसे राष्ट्र का बहुभाषी, बहुधर्मी, बहुसंप्रदाय, विविधविचार, विविध व्यंजन.........वाले जनमानस भी कायल हैं ।

विविध विचारों/ जातियों/ अर्थव्यवस्था/प्रजातंत्र की जननी/गरीबी/भूखमरी/बाढ़/ सुखाड़/जमातवाद/सम्प्रदायवाद/ सामंतवाद आदि से ग्रसित
बिहार में आर एस एस/बीजेपी द्वारा राज्य के चुनाव में प्रारम्भ से चुनाव प्रपंच से जीतने में केंद्र की पूरी हूकूमत गत 4 माह से हस्तिनापुर छोड़कर
पाटलिपुत्र केसम्राट चन्द्रगुप्त के साथ दो दो हाथ करने मगध पहुँची  है ।वाल्मीकि/ लव-कुश/कर्ण/बुद्ध /महावीर/अशोक/चन्द्रगुप्त/चाणक्य/लिच्छवि/मुंडन मिश्र /बिन्दुसार/विम्विसार/शेरशाह/विद्यापति/गुरु गोविन्द सिंह/ बीर कुंवर सिंह//बटुकेश्वर दत्त/ दिनकर / राजेंद्र प्रसाद / जय प्रकाश नारायण जैसे महान सपूतों वाले राज्य में हस्तिनापुर में अपनाये गए जुआ के सभी अमर्यादित प्रपंच जैसे  दलित कार्ड रामविलास पासवान/ महादलित कार्ड जीतन मांझी/ देश में सबसे ज्यादा OBC मुख्यमंत्री बनाये जाने का कार्ड/प्रधानमंत्री को पिछड़ा जाति का बताया जाना /देश में दलित कार्ड का हरियाणा में व्याख्या/बीफ के रूप में संप्रदाय कार्ड आदि आदि का प्रयोग कर बीजेपी भारत में देशभक्ति का कौन सा रष्ट्र वाद अपनाना चाहती है ।

वर्तमान में  बीजेपी के दो प्रवक्ता अपनी विचारधारा को जिस असहिष्णुता से शब्दों को मीडिया में रखते हैं उससे उग्रता फैलने का भय है ।विचारक की बात से मतभिन्नता या मनभिन्नता होने पर वाचक की वाणी और सयंमित और मर्यादित होनी चाहिए । बाजपेयी जी के ज़माने में जो प्रवक्ता थे उनकी भाषा शालीन थी । हमें सदैव याद रखनी चाहिए कि भारत में सनातन काल से अनेकता में एकता है । विविधता हमारे देश की तिजौरी है जिसे बीजेपी के कुछ प्रवक्ता और आर एस एस के अनुयायी दोनों हाथों से गंगा यमुनी तहजीब को लुटाने पर पड़ी है ।

Friday, October 23, 2015

कर्म का मर्म

प्रो . आशुतोष कुमार सिन्हा, भौतिकी, कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स, पटना के सौजन्य से :-----
कर्म का मर्म

कर्म की नारन-जोति
कर्म के बैल
कर्म के हल से
जीवन के खेत को जोता
बोआ उसमे कर्म के बीज।
कर्म ऊगा,कर्म फला।
कर्म का पका अन्न
कर्म का कपास पाया।
कर्म खाया खिलाया
पहना पहनाया।
कर्म से ही जीवन
की बगिया सजाया।
कर्म ही बिछाया
कर्म ही पहना
कर्म ही ओढ़ा।
कर्म ही जिया
कर्म ही पिया।
कर्म के झील में
डूब-डूब छककर नहाया।
खुद और खुदा
दोनों को ही कर्म समझा
कर्म ही जीवन है
कर्म ही है दर्शन
जीवन का।
कर्म का मर्म समझा
तो जीवन में रस आया।
न कोई दुबिधा
न कोई द्वेष
न कोई लोभ
न कोई माया
न कोई ईर्ष्या
न कोई डर
नहीं किसी से घृणा
बस प्यार ही प्यार ।
न कर्म के आगे
न कर्म के पीछे
हरदम कर्म के साथ।
न कही खिंचाव
न कही तनाव।

बिहार का चुनाव 2015 और चुनाव के बाद का परिदृष्य

बिहार का चुनाव 2015 यौवन अवस्था से बुढ़ापे की और दस्तक दे रहा है । अगर चुनाव की आगाज़ का विश्लेषण करेगें तो आप हीं क्यों  दुनिया का प्रत्येक व्यक्ति यह मानने को मजबूर हो जायेगा कि सारी अमर्यादित आचरणों, व्यक्तव्यों का प्रयोग विशेषकर भारत के नव निर्माता अच्छे दिन लायेगें के प्रणेता  के सदस्यों द्वारा किया गया । बिहार की राजनीति की उर्वरा मिटटी को अमित शाह की नियत, नेतागिरी, विश्वशनियता और भाषा प्रयोग जो उनके द्वारा बिहारी अस्मिता पर उठाई गयी सभी गले की हड्डी ही नहीं बल्कि दिन रात नश्तर की भांति चुभोता होगा ।संयम तो भारत के नए प्रशासक में भी नहीं दिखी । भाषा की शालीनता और डी न ए, दलित, पिछड़ा, बीफ, बीमारू राज्य, इंफ्रास्ट्रक्चर , सम्प्रदाय, आरक्षण में कमी को उजागर करना और बिहार हीं क्यों पूरे भारत वर्ष मेंबिहार को विकाश की पटरी पर लाने वाले नेता का नाम घोषित न करना इस  समर बदरंग दिक्गदीखने लगा ।लेकिन अब तो media पत्रकारिता सभी दो मजबूर गुजराती की स्पस्ट हार देख रहे  हैं ।

बिहार के दुसरे गठवन्धन के नेता के रूप में नितीश का चयन, उनकी प्रसिंगकता, भाषा का उच्चारण, वर्गों के बीच अपनापन, विकाश की सोंच और खाका, बिहार को राष्ट्र के कई मापदंडों पर नयी ईवारत का सफल प्रयोग उनके विरोधियों को भी विस्मित करता है और जनता के चहेता तो हैं हीं ।10 साल के शासन में इन्होंने वर्ग विहीन जमात पैदा किया जिसके कारण चुनाव पूर्व संगठित बीजेपी से लड़ने के लिए लालू जी के संगठन वाली जमात के साथ महागठवन्धन बनाकर चुनाव के कुरुक्षेत्र में धैर्य के साथ भारत के पूरे मंत्रिपरिषद, बीजेपी के भारत के नेता एवं आरएसएस के कुटिल क्षद्म भारतीयता का आवरण वाले नेताओं के साथ शालीन भाषा से बचाव करते रहे । इस गठवंधन के  नेता लालूजी जनता जमात के बिहार हीं नहीं भारत में अपनी वाकपटुता और शैली से मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के माहिर खिलाडी को बीजेपी /आरस स  ने पिछड़ा, अभद्र भाषा, बीफ, दलित, आरक्षण, संप्रदाय जैसे मुद्दे देकर लालू जी के अमोघ अस्त्रों में शान चढ़ा दिया । सचमुच में बीजेपी में कोई भी नेता में भाषाई वाकपटुता लालू जी से अच्छी नहीं है ।लालू जी अपनी शैली में बीजेपी की नाकारा राजनीति पर शब्दभेदी बाण चलाये ।

अभी चुनाव का तीन चरण अवशेष है । सरकार बनने के कयास हीं लगाये जा सकते हैं । भारत के प्रधानमंत्री को चुनाव प्रचार में बिहार की अस्मिता, दुर्गति, पिछड़ापन, अशिक्षा, रोजगार में कमी, इंफ्रास्ट्रक्चर में कमी, बिहार को बीमारू राज्य की उपाधि देने आदि विभूषणों से अलंकृत करने के बाद कोई व्यवसायी बिहार में पूँजी लगाएगा क्या? मोदीजी गला फाड़ फाड़ कर भारत में निवेश की बात करते हैं, विदेशी कहाँ निवेश करे? बीजेपी भारत को अमीर और गरीब राज्य की दलदल में धकेलकर कौन सी नयी संस्कृति पैदा करना चाहता है ।अब तो संदेह हो रहा है कि न बिहार को विशेष राज्य का दर्ज़ा मिलेगा और ना हीं...