Friday, October 23, 2015

कर्म का मर्म

प्रो . आशुतोष कुमार सिन्हा, भौतिकी, कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स, पटना के सौजन्य से :-----
कर्म का मर्म

कर्म की नारन-जोति
कर्म के बैल
कर्म के हल से
जीवन के खेत को जोता
बोआ उसमे कर्म के बीज।
कर्म ऊगा,कर्म फला।
कर्म का पका अन्न
कर्म का कपास पाया।
कर्म खाया खिलाया
पहना पहनाया।
कर्म से ही जीवन
की बगिया सजाया।
कर्म ही बिछाया
कर्म ही पहना
कर्म ही ओढ़ा।
कर्म ही जिया
कर्म ही पिया।
कर्म के झील में
डूब-डूब छककर नहाया।
खुद और खुदा
दोनों को ही कर्म समझा
कर्म ही जीवन है
कर्म ही है दर्शन
जीवन का।
कर्म का मर्म समझा
तो जीवन में रस आया।
न कोई दुबिधा
न कोई द्वेष
न कोई लोभ
न कोई माया
न कोई ईर्ष्या
न कोई डर
नहीं किसी से घृणा
बस प्यार ही प्यार ।
न कर्म के आगे
न कर्म के पीछे
हरदम कर्म के साथ।
न कही खिंचाव
न कही तनाव।

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