Sunday, September 2, 2018

भारत में वर्तमान आरक्षण, विसंगति और निराकरण



1) भारतीय संविधान में सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक रुप से पिछड़ेपन को समाप्त करने के लिए देश की सार्वभौमिकता और अखंडता को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए संख्यानुपात सभी वर्गों की सहभागिता और सर्वांगीण विकास के कारण आरक्षण का प्रावधान किया गया है ।

2) आरक्षण को लागू किये जाने के पूर्व सामाजिक पिछड़ेपन के मापदंड में भारत में वर्ण व्यबस्था (ब्राह्मण/ क्षत्रिय/वैश्य/ शुद्र) के कारण विभक्त जातिगत समाज को  क्रमशः SC/ST/OBC/FC के रुप में चार समूहों में जातियों का वर्गीकरण किया गया है ।

3) SC और ST को सामाजिक रूप से पिछड़ेपन के आधार के कारण दो अन्य कारकों यथा आर्थिक और शैक्षणिक को आरक्षण के आधार में शामिल नहीं किया गया है । इसका मौलिक कारण यह है कि  आरक्षण के लिए देश मे सामाजिक पिछड़ेपन अर्थात छुआछूत को सबसे बड़ा आधार माना गया है और SC/ST की जनसंख्या के अनुपात में  7.5+15= 22.5 % आरक्षण का प्रावधान है ।

4) OBC के आरक्षण के लिये सामाजिक , आर्थिक, शैक्षणिक  तीनों  कारकों को आधार माना गया है । OBC को संख्यानुपात में आरक्षण के स्थान पर मात्र 54 % जनसंख्या के स्थान पर 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है और यह मान लिया गया है कि 27% ओबीसी सामाजिक , आर्थिक, शैक्षणिक रुप में समृद्ध हैं । सचमुच में 27% ओबीसी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप में समृद्ध नहीं है ।

5) FC को सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक रुप मे सम्पन्न मानकर इनको आरक्षण नहीं दिया गया है ।

6) वास्तविकता में 50 % अनारक्षित स्थान मात्र 14 % सवर्ण और आर्थिक रूप से सम्पन्न कुछ पिछड़े लोगों के लिए अपनेआप आरक्षित हो गया ।

7) विसंगति :-  इस आरक्षण के सिद्धांत से कई सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक रूप में पिछड़े और आर्थिक रूप में पिछड़े सवर्ण को इसका लाभ नहीं मिलता है ।

8) आरक्षण का फॉर्मूला :-- सभी जातियों , वर्गों, समूहों को एक matrix के साथ संख्यानुपात जनसंख्या के हिसाब से आरक्षण में परिवर्त्तन की आवश्यकता है ।