Friday, December 28, 2012

नई दिल्ली की दुशसनो पर अनिर्णय


दुशासन और दुर्योंधन से घृणित व्यक्ति को हमारे धर्मशास्त्र मे भी

 श्री कृष्ण द्वारा महाभारत मे समाज को नसीहत हेतु क्रुरतम दंड देकर 

सबको अनुपालन का नजीर पेश किया है . फिरभी आज के तथाकथित राजा और नयायाधीश क्यों असमंजश

में हैं .

                        कही मिलीभगत या खुद भी लिप्त होने के कारण ऐसा करके खुद को बचाने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं ?


Saturday, November 24, 2012

महापर्व छठ पूजा / आस्था का चार दिन

 महापर्व छठ पूजा /   आस्था का चार दिन


न कोई पंडित न पुरोहित। न पोथी न मंत्रोजाप। न ही कोई आडंबर। सिर्फ और सिर्फ आस्था। आस्था का चार दिनी यह महापर्व छठ खास मायने रखता है। सूर्य की उपासना के इस पर्व के दौरान क्राइम नहीं होता। महिलाएं खुद को कहीं ज्यादा महफूज मानती हैं। मुहल्लों की साफ-सफाई में सार्वजनिक योगदान सामाजिक जीवन में रिश्तों की गरमाहट बिखेर देता है। लोक आस्था का यह अद्भुत नजारा रूढ़ियों पर चोट करता हुआ लगता है।

शनिवार को नहाय-खाय के साथ ही इस महापर्व की शुरुआत हो जाएगी। ऐसी मान्यता थी कि इस पर्व को केवल महिलाएं ही करती हैं पर अब पुरूष भी  करने लगे हैं। हालांकि पौराणिक मान्यता यह भी है कि भगवान सूर्य के पुत्र कर्ण ने सूर्योपासना की थी। वह अंग प्रदेश के राजा था। अंग प्रदेश बिहार के मुंगेर में माना जाता है। इस पर्व को लेकर अनेक तरह की मान्यताएं हैं। सूर्य की उपासना कर उनसे विनती की जाती है कि वे धरती को हमेशा ऊर्जावान व गतिशील बनाये रखें। पेड़-पौधों और सभी तरह के जीव-जंतुओं पर उनकी ऊर्जा का प्रवाह बना रहे। यह भी मान्यता है कि छठ करने वाले सभी प्रकार खासकर सफेद दाग जैसी बीमारियों से मुक्त हो जाते हैं।

चचरी पुल 






छठ पूजा के दौरान मची भगदड़ में मारे गये 14 लोगों की पहचान हो गयी और उनका पोस्टमार्टम भी। एक शव अज्ञात है। शवों को उनके परिजन अपने साथ ले गये। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस बांस के अस्थायी पुल को बनाया गया था, उसे किसने बनवाया था? क्या निर्माण के दौरान उसे अधिकारियों ने उसे देखना भी मुनासिब नहीं समझा? दरअसल, यह पुल सरकार के काम करने के तरीके पर सवाल है।
 
यह जहां हादसा हुआ, उसके अगल-अगल है पीबहोर थाना, बांकीपुर पोस्ट ऑफिस, डेंटल कॉलेज, सिविल कोर्ट, समाहरणालय औैर रेलवे का एक कार्यालय। इन सभी कार्यालयों के ठीक पीछे फिलहाल शहर का गंदा पानी बहता है। करीब सौ फुट की चौड़ाई में। वहीं सीढ़ी बनी हुई है। पर अब चूंकि नाले का गंदा पानी बहता है तो इन सीढिय़ों का कोई मतलब नहीं। नाले के उस पार रेत है और उसके बाद गंगा घाट हैै। रेलवे कार्यालय के ठीक पीछे बांस के दो पुल बने हैं। एक बड़ा है। करीब 15 फुट चौड़ा और दूसरा करीब 5-7 फुट चौड़ा। छोटा वाला पुल ही पूरी तरह पानी में डूब गया है।
 
छठ पूजा को देखते हुए जिला प्रशासन ने दोनों पुल बनवाया था। पुल की बनावट देखने से ही अत्यंत कमजोर लग रही है। हादसे के बाद उसके बांस खोले जा रहे हैं। स्थानीय जुबान में बांस के इसी पुल को चचरी पुल कहा जाता है। शहर हो या गांव एक भाग से दूसरे भाग पर जाने के लिए चचरी पुल का खूब प्रचलन है।

महज बारह घंटे में कितना कुछ बदल गया। कल शाम यहां जिंदगी के गीत गाये जा रहे थे। आज सुबह यहां मातम है। छठ के गीत लोग गाएं तो कैसे? उनका गला रह-रह कर रूंध जा रहा है। महिलाएं छठ मइया से अर्ज करती हैं: हमसे क्या भूल हो गयी?
अदालतगंज घाट हो या इंजीनियरिंग कॉलेज का घाट सब जगह दुख है और संताप है। कोई उत्साह नहीं। कल शाम जितनी भीड़ थी, आज वह कम हो गयी। कई लोगों ने हादसे के बाद अपने घर से ही सूर्य देवता को दूसरा अर्ध्‍य दिया। उन्हें घाट पर आने की हिम्मत नहीं हुई। हालांकि लोगों के इन घाटों पर आने का सिलसिला सुबह चार बजे से ही शुरू हो गया था।

Saturday, November 3, 2012


 मातृभूमि  में  विविधता उत्कृष्ट आध्यात्मिक और उन्नत 

सांस्कृतिक 



भारत का समाज अत्यंत प्रारम्भिक काल से ही अपने अपने स्थान भेद, वातावरण भेद, आशा भेद वस्त्र भेद, भोजन भेद आदि विभिन्न कारणों से बहुलवादी रहा है। यह तो लगभग वैदिक काल में भी ऐसा ही रहा है अथर्ववेद के 12वें मण्डल के प्रथम अध्याय में इस पर बड़ी विस्तृत चर्चा हुई है एक प्रश्न के उत्तर में ऋषि यह घोषणा करते हैं कि

जनं विभ्रति बहुधा, विवाचसम्, नाना धर्माणंम् पृथ्वी यथौकसम्।
सहस्र धारा द्रवीणस्यमेदूहाम, ध्रिवेन धेनुंरनप्रस्फरत्नी।।


अर्थात विभिन्न भाषा, धर्म, मत आदि जनों को परिवार के समान धारण करने वली यह हमारी मातृभूमि कामधेनु के समान धन की हजारों धारायें हमें प्रदान करें। विभिन्नता का यह स्तर इतना गहरा रहा कि केवल मनुष्य ही नहीं अपितु प्रकृति में इसके प्रवाह में चलती रही तभी तो हमारे यहां यह लोक मान्यता बन गयी कि 

कोस-कोस पर बदले पानी चार कोस पर वाणी।

यहां वाणी दो अर्थों में प्रयोग होता है। वाणी एक बोली के अर्थ में और पहनावे के अर्थ पानी भी दो अर्थी प्रयोग एक सामाजिक प्रतिष्ठा के अर्थ में दूसरा जल के।

इस विविधता में वैचारिक विविधता तो और भी महत्वपूर्ण है। संसार में पढ़ाये जाने वाले छः प्रकार के दर्षन का विकास भारत में ही हुआ कपिल, कणाद, जैमिनी, गौतम, प्रभाकर, वैशेषिक आदि अनेक प्रकार की परस्पर विरोधी विचार तरणियां (शृंखला) इसी पवित्र भूमि पर पली बढ़ी और फली फूली वैदिक मान्यताओं का अद्वैत जब कर्मकाण्डो के आडम्बर से घिर गया तो साक्य मूनि गौतम अपने बौद्ध दर्शन से समाज को एक नयी दिशा देने का प्रयास किया।

उनके कुछ वर्षों बाद केरल एक विचारक और दार्शनिक जगत्गुरु शंकराचार्य ने अपने अद्वैत दर्शन के प्रबल वेग में बुद्धवाद को भी बहा दिया। और इतना ही नहीं वरन पूरे भारत में वैदिक मत की पुर्नप्रतिष्ठा कर दी। लेकिन जगत गुरु शंकर का यह अद्वैत की विभिन्न रूपों में खण्डित होता रहा। इस अद्वैत दर्शन को आचार्य रामानुज ने विशिष्ट अद्वैत के रूप में खण्डित कर दिया महावाचार्य ने द्वैत वाद के रूप में खण्डित कर दिया, वल्लभाचार्य ने द्वैत अद्वैत के रूप में खण्डित कर दिया तिम्वाकाचार्य ने द्वैतवाद के रूप में खण्डित कर दिया और अन्त में चैतन्य महाप्रभु ने अचिन्त्य भेदा भेद के रूप में खण्डित कर दिया। इस खण्डन-मण्डन और प्रतिष्ठापन की परम्परा को पूरा देश सम्मान के साथ स्वीकारता रहा। यहां तक कि हमने चार्वाक को भी दार्शनिको की श्रेणी में खड़ा कर लिया लेकिन वैदिकता के विरोध में कोई फतवा नहीं जारी किया गया।
यहां तो संसार ने अभी-अभी देखा है कि शैटनिक वरसेज के साथ क्या हुआ बलासफेमी की लेखिका डॉ. तहमीना दुरार्ती को देश छोड़ कर भागना पड़ा, तसलीमा नसरीन की पुस्तक लज्जा से उन लोगों को लज्जा भी नहीं आती और नसरीन के लिए उसकी मातृभूमि दूर हो गयी है। लेकिन भारत की विविधता हरदम आदरणीय रही है। इसी का परिणाम रहा है कि यहां 33 करोड़ देवी-देवता बने सच में इससे बड़ा लोकतांत्रिक अभियान और क्या हो सकता है हर स्थिति का इसके स्वभाव के अनुरूप उसे पूजा करने के लिए उसका एक आदर्श देवता तो होना ही चाहिए। यही तो लोकतंत्र है।

लेकिन इस विविधता में भी चिरन्तन सत्य के प्रति समर्पण सबके चित्त में सदैव बना रहा। तभी तो भारत जैसे देश में जहां छः हजार से ज्यादा बोलियां बोली जाती हैं वहां गंगा, गीता, गायत्री, गाय और गोविन्द के प्रति श्रद्धा समान रूप से बनी हुई है। केरल में पैदा होने वाला नारियल जब तक वैष्णो देवी के चरण में चढ़ नहीं जाता है तब तक पूजा अधूरी मानी जाती है। आखिर काशी के गंगाजल से रामेश्वरम् महादेव का अभिषेक करने पर ही भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। भारत के अन्तिम छोर कन्याकुमारी अन्तद्वीप में तपस्या कर रही भगवती तृप सुंदरी का लक्ष्य उत्त में कैलाश पर विराजमान भगवान चन्द्रमौलीस्वर तो ही है।

भारत में जो भी आया, वह उसके भौगोलिक सौन्दर्य और भौतिक सम्पन्न्ता से तो अभिभूत हुआ ही, बौद्धिक दृष्टि से वह भारत का गुलाम होकर रह गया। वह भारत को क्या दे सकता था? भौतिक भारत को उसने लूटा लेकिन वैचारिक भारत के आगे उसने आत्म-समर्पण कर दिया। ह्वेन-सांग, फाह्यान, इब्न-बतूता, अल-बेरूनी, बर्नियर जैसे असंख्य प्रत्यक्षदर्शियों के विवरण इस सत्य को प्रमाणित करते हैं। जिस देश के हाथों में वेद हों, सांख्य और वैशेषिक दर्शन हो, उपनिषदें हों, त्रिपिटक हो, अर्थशास्त्र हो, अभिज्ञानशाकुंतलम् हो, रामायण और महाभारत हो, उसके आगे बाइबिल और कुरान, मेकबेथ और प्रिन्स, ओरिजिन आॅफ स्पेसीज या दास कैपिटल आदि की क्या बिसात है? दूसरे शब्दों में भारत की बौद्धिक क्षमता ने उसकी हस्ती को कायम रखा।
भारत के इस अखंड बौद्धिक आत्मविश्वास ने उसके जठरानल को अत्यंत प्रबल बना दिया। उसकी पाचन शक्ति इतनी प्रबल हो गई कि इस्लाम और ईसाइयत जैसे एकचालकानुवर्तित्ववाले मजहबों को भी भारत आकर उदारमना बनना पड़ा। भारत ने इन अभारतीय धाराओं को आत्मसात कर लिया और इन धाराओं का भी भारतीयकरण हो गया। मैं तो यहां तक कहता हूं कि इस्लाम और ईसाइयत भारत आकर उच्चतर इस्लाम और उच्चतर ईसाइयत में परिणत हो गए। धर्मध्वजाओं और धर्मग्रंथों पर आधारित इन मजहबों में कर्मफल और पुनर्जन्म का प्रावधान कहीं नहीं है लेकिन इनके भारतीय संस्करण इन बद्धमूल भारतीय धारणाओं से मुक्त नहीं हैं। भक्ति रस में डूबे भारतीयों के मुकाबले इन मजहबों के अभारतीय अनुयायी काफी फीके दिखाई पड़ते हैं। भारतीय मुसलमान और भारतीय ईसाई दुनिया के किसी भी मुसलमान और ईसाई से बेहतर क्यों दिखाई पड़ता है? इसीलिए कि वह पहले से उत्कृष्ट आध्यात्मिक और उन्नत सांस्कृतिक भूमि पर खड़ा है। यह धरोहर उसके लिए अयत्नसिद्ध है। उसे सेत-मेंत में मिली है। यही भारत का रिक्थ है।

सनातन संस्कृति के कारण इस पावन धरा पर एक अत्यंत दिव्य विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र निर्मित हुआ। प्राकृतिक पर्यावरण कठिन तप, ज्ञान, योग, ध्यान, सत्संग, यज्ञ, भजन, कीर्तन, कुम्भ तीर्थ, देवालय और विश्व मंगल के शुभ मानवीय कर्म एवं भावों से निर्मित इस दिव्य इलेक्ट्रो-मैगनेटिक फील्ड से अत्यंत प्रभावकारी विद्युत चुम्बकीय तरंगों का विकिरण जारी है, इसी से समग्र भू-मण्डल भारत की ओर आकर्षित होता रहा है और होता रहेगा। भारतीय संस्कृति की यही विकिरण ऊर्जा ही हमारी चिरंतन परम्परा की थाती है। भूगोल, इतिहास और राज्य व्यवस्थाओं की क्षुद्र संकीर्णताओं के इतर प्रत्येक मानव का अभ्युदय और निःश्रेयस ही भारत का अभीष्ट है। साम्राज्य भारत का साध्य नहीं वरन् साधन है।यहां तो सृष्टि का कण-कण अपनी पूर्णता और दिव्यता के साथ खिले, इसका सतत् प्रयत्न किया जाता है।

विश्व सभ्यता और विचार-चिन्तन का इतिहास काफी पुराना है। लेकिन इस समूची पृथ्वी पर पहली बार भारत में ही मनुष्य की विराट रहस्यमयता पर जिज्ञासा का जन्म हुआ। सृष्टि अनन्त रहस्य वाली है ही। भारत ने दोनों चुनौतियों को निकट नजदीक से देखा। छोटा-सा मनुष्य विराट सम्भावनाआंे से युक्त है। विराट सृष्टि में अनंत सम्भावनाएं और अनंत रहस्य हैं। जितना भी जाना जाता है उससे भी ज्यादा बिना जाने रह जाता है। सो भारत के मनुष्य ने सम्पूर्ण मनुष्य के अध्ययन के लिए स्वयं (मैं) को प्रयोगशाला बनाया। भारत ने समूची सृष्टि को भी अध्ययन का विषय बनाया। यहां बुद्धि के विकास से ‘ज्ञान’ आया। हृदय के विकास से भक्ति। भक्त और ज्ञानी अन्ततः एक ही निष्कर्ष पर पहुंचे। भक्त अंत में ज्ञानी बना। भक्त को अन्ततः व्यक्ति और समष्टि का एकात्म मिला। द्वैत मिटा। अद्वैत का ज्ञान हो गया। ज्ञानी को अंत में बूंद और समुद्र के एक होने का साक्षात्कार हुआ। व्यक्ति और परमात्मा, व्यष्टि और समष्टि की एक एकात्मक प्रतीति मिली। ज्ञानी आखिरकार भक्त बना।

हजारों वर्षों से यह परम्परा रही है कि बद्रीधाम और काठमाण्डू के पशुपतिनाथ का प्रधान पुजारी केरल का होगा और रामेश्वरम् और श्रृंगेरीमठ का प्रधान पुजारी काशी का होगा यही तो विविधता में एकता का वह जीवन्त सूत्र है जो पूरे भारत को अपने में जोड़े हुए है। पाकिस्तान स्थित स्वातघाटी के हिंगलाज शक्तिपीठ के प्रति पूरे भारत में समान रूप आस्था और आदर है। तो समग्र हिमालय को पूरा भारत देवताओं की आत्मा कहता है इसी कारण हमारे ऋषियों ने पूरे भारत के पहाड़ों, नदियों और वनों को सम्मान में वेदों में गीत गाये। कैसे कोई भारतीय भूल सकता है उस सिन्धु नदी को जिसके तट पर वेदों की रचना हुई।
विविधता और अनेकता भारतीय समाज की पहचान है। विविधता के कारण ही भारत देष में बहुरूपता के दर्षन होते हैं। लेकिन यही गुण भारतीय समाज को समृ़द्ध कर एक सूत्र में बांधने का कार्य करता है। हो भी क्यों न? क्योंकि हम उस सम्पन्न परपंरा के वाहक हैं जिसमें वसुधैव कुटुम्बकम की भावना निहित है।

डॉ. सौरभ मालवीय

Friday, November 2, 2012

एक चिकना मौन / अज्ञेय


एक चिकना मौन
जिस में मुखर-तपती वासनाएँ
दाह खोती
लीन होती हैं ।
     उसी में रवहीन
     तेरा
     गूँजता है छंद :
     ऋत विज्ञप्त होता है ।

एक काले घोल की-सी रात
जिस में रूप, प्रतिमा, मूर्त्तियाँ
सब पिघल जातीं
ओट पातीं
एक स्वप्नातीत, रूपातीत
पुनीत
गहरी नींद की ।
     उसी में से तू
     बढ़ा कर हाथ
     सहसा खींच लेता-
     गले मिलता है ।

Thursday, November 1, 2012


एक उदास साँझ / अज्ञेय


सूने गलियारों की उदासी ।
गोखों में पीली मन्द उजास
स्वयं मूर्च्छा-सी ।
थकी हारी साँसे, बासी ।

चिमटी से जकड़ी-सी नभ की थिगली में
तारों की बिसरी सुइयाँ-सी
यादें : अपने को टटोलतीं
सहमीं, ठिठकी, प्यासी ।

हाँ, कोई आकर निश्चय दिया जलाएगा
दिपता-झपता लुब्धक सूने में कभी उभर आएगा ।
नंगी काली डाली पर नीरव
धुँधला उजला पंछी मँडराएगा ।
हाँ, साँसों ही साँसों में रीत गया
अंतर भी भर आएगा ।
पर वह जो बीत गया- जो नही रहा-
वह कैसे फिर आएगा ?

Friday, October 26, 2012

KAKOLAT fALL


Kakolat


Kakolat Falls
LocationNawadaBiharIndia
Coordinates24°41′59″N 85°37′42″E
TypeCataract, Segmented
Elevation160 feet (50 m)
Total height150 feet
Number of drops1
Longest drop163 feet
Kakolat is the name of a waterfall located in the Nawada district of BiharIndia.

[edit]Overview

Kakolat waterfall a stunning little hidden wonder of nature, situated on the beautiful Kakolat hill, located on the border of Bihar and Jharkhand, just 33 km from Nawada. This is one of the most visited and renowned Bihar getaway, where tourists come from all over the state and adjoining areas to witness the sheer beauty of Mother Nature cascading marvelously. The Kakolat waterfall of Bihar cascades down from a height of between 150 to 160 feet and forms a natural reservoir at the base of the waterfall.
Legends are also associated with the Kakolat waterfall such as, a Treta Yug king was cursed to take the shape of a python and live at the falls here, by a Hindu spiritualist. The place was then visited by the Pandavas during their exile and it was during that time that the python king got rid of the curse, and he proclaimed that any person who bathed in the waterfall would never be reborn as a snake.
Kakolat waterfall has become an increasingly popular tourist attraction in Bihar, where huge crowds can be seen during summers for weekend picnics. This waterfall also boats a wide variety of watersports and fun in the water. Apart of its significance as a tourist destination, the Kakolat waterfall is also widely visited at the time when a big fair is held on an occasion of bishua or chait Sankranti. This is basically a religious event accompanied with a three day mela, where many devotees take their bath in the waterfall. The Kakolat waterfall has great historical and mythological significance. The waterfall is located near Govindpur police station, about 33 km away from Nawada, on Kakolat Hill. Below the falls there is a deep natural reservoir.
The fall is approximately 160 feet (49 m) in height. The scene is panoramic due to all-round green forest area. Kakolat Fall is a popular tourist spot in Bihar. During the summer, people from all over India come to the falls for picnics.

[edit]Role in Indian mythology

According to legend, during the Treta Yuga epoch a king was cursed by a rishi and had to take the shape of a python and lived in Kakolat. The place was visited by the greatPandavas during their exile and the accursed king got salvation from damnation. The king after getting rid of the curse proclaimed that one who would bath in the waterfall will not take the yoni of snake, and that is why a large number of people from far and near bathe in the falls.
A large festival is held at Kakolat on the occasion of Baisakhi or Chait Shankranti.







[edit]References- WIKEPEDIA