Thursday, December 26, 2013

नई दिल्ली की राजनीति


आज की राजनीति निश्चित रूप में नए तरीके से गढ़ी जा रही है . अगर कोई राजनीति के हिसाब से आदर्श विचार लेकर राजनीति कर रहा है तो हम सबको प्रशंशा करनी चाहिए . बैसे भारतीय राजनीति में कई विचारक हैं मसलन लोहिया , मधु दंडवते .........अगर केजरीवाल की राजनीति में कोई बड़ा खाका है तो उसे सराहनी चाहिए लेकिन अगर उसका कोई दूसरा उद्देश्य है तो उसे परखने का वक्त है . अगर समाज सेवा भावना है तो उद्देश्य सही है . विचारक के रूप में अगर भारतीय राजनीति में केजरीवाल के कुछ भी योजना धरा पर लहराने की है तो सार्थक प्रयास को हमलोगों को मदद करनी चाहिए.

डर इस बात का है की कहीं परोक्ष रूप से intelectual  सोंच तो नहीं है कुछ नौजवानों का फिर भी इसे विचार के रूप में भी हम भारतीय सदियो इसे याद करेगें . लेकिन अगर भार्तियूं की भावनाओं से क्रीडा करने की बात है तो यह सदी का सबसे बड़ा क्रूर मजाक होगा.

हम भगवन से प्रार्थना करते हैं की आने बाला समय भारतीय के लिए बहूत शुभ - शुभ सन्देश लेकर आएगा . 

Tuesday, November 5, 2013

27 अक्टूबर कि घटना

27 अक्टूबर कि घटना को माननीय मुख्यमन्त्री , बिहार को राजगीर कि jdu  की  अधिवेशन शिविर में कि गयी नमो पर प्रत्य़क्ष अभिव्यक्ति सही समय पर इतिहास से तुलना करने का नहीं था।
साथ ही साथ नमो द्वारा पुनः बिहार आकर आतंकी घटना को राजनितिक रंग देने के लिए पीड़ित परिवारों से मिलना एकदम अस्वस्थ परंपरा है।
देश / राज्य के सभी राजनीतिज्ञ दल को २७ अक्टूबर कि घटना पर मिलकर डटकर मुकाबला करने का वक्त है।
सुशील मोदी की घटना पर अबतक राजनीति स्वार्थ के लिए निहितार्थ निकलना एकदम अनुपयोगी है।
क्या भारत के रानीतिज्ञ इन सबसे कब सबक लेंगें। 

Sunday, October 27, 2013

27 october को भाजपा की रैली में बम बिस्फोट

यह बिहार के लिए शर्मनाक , चिंताजनक , अपमानजनक ...घटना है . इसके लिए किसी दुसाह्सी व्यक्ति की कृति की संज्ञा है . मैं हतप्रभ हूँ . सीता , कर्ण , बुद्ध , महावीर , चन्द्रगुप्त - चाणक्य, गाँधी , जयप्रकाश .... की पावन धरा को कलुषित करने की पुनः कोशिश की गयी है .इसमें किसी राजनीतिज्ञ ओछी हरकत की गुंजाईश नहीं है . परन्तु सरकारी नौकरशाहों का सही दयीत्वों का सही से नहीं निर्वहन का परिणाम है . अगर बोधगया की घटना से सबक लेकर पुलिश प्रशाशन कार्य करती तो समय रहते इस दुखद घटना से बचा जा सकता था या इतनी बड़ी घटना नहीं घटती .

हालांकि नीतीश कुमार द्वारा अपना पूर्व से नियोजित कार्यक्रम को रद्द कर शाम में प्रेस विज्ञप्ति से उनके धर्य एवम राजनीतिज्ञ विद्वेष की साजिश परकी   आशंका को विफल कर कुशल प्रशाशक की झलक मिलती है . साथ ही साथ नरेन्द्र मोदी की शान्ति की अपील भी राजनिती में साजिश को पूर्णतः विफल करता है .

हमलोगों को इस दुःख की घडी में मृत परिवार एवम घायल व्यक्ति को सान्तवना देते हुए पुनः नयी उर्जा के साथ बिहार का नाम स्वर्णिम इतिहास में जोड़ने का समय है .

आये हमलोग मिलजुलकर नया बिहार जो पूर्व से जाना जाता है उसमें कुछ कड़ी जोडें .

Saturday, September 21, 2013

उर्जा बिभाग में बिजली एवम नौकरशाह की आँख मिचौली




क्या बिहार सरकार के नौकरशाह अपनी सारी मर्यादायों को ताक पर रख दिया है ? बिहार सरकार की इस विषय पर बहुत फजीहत उठानी पड़ी .
माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी शाषण में आते ही बिहार सरकार के सभी कर्मी को मर्यादित आचरण का व्यवहार , अनुशाशन , संयम, कानून आदि में रहने का पाठ पढाया था .जिसका नाम कालांतर में सुशाशन पड़ा. यही मूल शब्द पुरे देश में फैली और बिहार का यह पहचान बना .बुद्ध के देश में जहाँ सारे राजनीतिज्ञ बिष- वमन कर नौकरशाहों के क्ष्दम बाजीगिरी से सता का स्वाद चख रहे थे उसी  समय एक राजनीतिज्ञ की यह सोंच वनी की सत्य , अहिन्षा, सयंमित आचरण, लोकतान्त्रिक मर्यादा  और सद्विचार से बिहार रुपी बिमारू प्रदेश को पहचान मिलेगी एवम देश में हो रही विकाश की मुख्या धारा से जुड़ेगा.इसमें कोई शक नहीं की इस अवधारणा से बिहार का नवनिर्माण हुआ.

नौकरशाह के चलते ही भारत जिस प्रकार संसार में विकाश , भ्रस्टाचार , लॉ and आर्डर में बिमारू देश की गणना में की जाती  है ठीक उसी प्रकार बिहार भी संजय अग्रवाल जैसे नौकरशाहों की वजह से बिमारू प्रदेश से कभी भी नहीं उबरेगा .


हमलोगों को इन नौकरशाहों को मर्यादित आचरण में रहकर कानून के सहारे सबक सिखाने की जरूरत है . जो बिधुत भवन में घटना घटी  यह सभ्य समाज को तार - तार कर रख देता है . अगर संजय अग्रवाल एवम कुछ भ्रष्ट पूलिसतन्त्र के चलते पूरे बिहार को अंधकार युग की याद आयी इसमें बिधुत कर्मी के दोष को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता है .परन्तु सबसे ज्यादा जिसे ठेंस लगी वह है बिहार के  सुशाशन के संकेत को .

यदपि  इस तरह के नौकरशाह के द्वारा गैर संसदीय / अलोकतान्त्रिक / अमर्यादित / अशोभनीय हरकत से उत्पन्न परिस्थिति से सरकार उबर चूकी . बिहार का नौकरशाह इसके लिए सांकेतिकरूप में बिहारवासी से माफी मांग कर पथप्रदर्शक का काम कर सकता था . परन्तु नौकरशाह तो अव्वल दर्जे का घमंडी / मिथ्याचारी / भ्रष्ट / अनुशाशंहीन है इससे इस तरह की मिसाल मिल ही नहीं सकती है .

बिहार के मुखिया को अब सचेत होकर इस घटना से सबक लेकर भविष्य में  संजय अग्रवाल जैसे नौकरशाह से निजात लेने का समय आ गया है . यह घटना की पुनरावृति न हो इसके लिए कुछ नौकरशाह को नाथने / सवक सिखाने का वक्त आ गया है . समय ही शिक्षा देता है और इस मुहावरे को चरितार्थ करने का समय आ गया है ..

Friday, June 7, 2013

पहली प्रोन्नति..शुकून या परेशानी

पहली प्रोन्नति..शुकून या परेशानी "महल्ले में बुढा की शादी पडोसी के घर में बंटी मिठाई ""दही के अगोरिया बिल्ली "उपर्युक्त दोनों मुहावरे मेरी सरकारी प्रोन्नति पर चरितार्थ हो रही है . कुछ दर्द ऐसे भी होते हैं जो परेशान कम और ख़ुशी ज्यादा देते हैं .जैसे खुजली ..नहीं खुजलाने पर अकबकाहट होगी और खुज्लाईये तो शुकून और  जन्नत महशूस होगा .कई दोस्तो ने मेरी सरकारी प्रोन्नति के बाद बधाईयाँ दी . सभी दोस्तो को मेरे तरफ से धन्यवाद .
लेकिन सचमुच में ५० वर्ष के बाद मिली पहली प्रोन्नति ने सोचने को मजबूर कर दिया .अब जरा सोचिये प्रोन्नति के बाद का पदनाम है कार्यपालक अभियंता .कार्यपालक शब्द का सन्धि विच्छेद है कार्य + पालक . कार्य अर्थात काम और पालक पालना अथवा कामकरने वाला व्यक्ति . मेरी उम्र जिस दहलीज़ पर कुलांचे मार रही है इस उम्र में प्रत्येक व्यक्ति की मनः एवम शारीरिक स्थिति निम्न प्रकार की होती है ...
१) ५० वर्ष के बाद कोई भी व्यक्ति श्रम के लायक शारीरिक रूप में क्षीण होना प्रारम्भ कर देता है साथ ही साथ ८० % आदमी कोई न कोई गम्भीर बिमारी का शिकार हो जाता है . स्वास्थ्य अगर साथ नहीं दिया तो आदमी काम क्या करेगा ?और पद का नाम है कामकरने वाला .
२) इस उम्र में सभी के माता - पिता वृद्ध हो जाते है .उनकी सेवा का दायित्व बेटे के कंधे पर सामान्य रूप में होना चाहिए . अब सोचिये जो खुद लाचार है उसको सेवा की मजबूरी भी है .
३) भारत में ८० वर्ष के माता पिता के साथ साथ खुद एवम अर्धंगिनी के ईलाज का खर्च का अनुमान लगा लें .
४) ५० वर्ष के आदमी के दो सन्तानों पर होने वाला आधुनिक शिक्षा का खर्च का अनुमान लगा लें .
५) इस उम्र में अगर बच्ची हो तो उसकी शादी पर होनेवाला खर्च का अनुमान लगा लें .
६) कार्यपालक अभियंता को सरकार द्वारा तिजौरी की चाभी गुच्छे सहित थमा दी जाती है .
७)शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति काम की सही रूप में देख रेख कर सकता है क्या ?
८) सुरसा की मुह की तरह बाए पैसों की आवश्यकता वाला व्यक्ति अगर सत्य हरिश्चन्द्र की औलाद होगा तो ही सरकारी खजाना सुरक्षित रह सकता है अन्यथा भ्रस्ट शाषण व्यवस्था में खुद चान्दी के चम्मच से पेटभर खायेगा .
९) सम्वेदकों को चान्दी ही चान्दी हो जाएगी .

Friday, May 31, 2013

अभियंताओं का राष्ट्र , सभ्यता और विकास में प्रासिंगकता

अभियंताओं का राष्ट्र , सभ्यता और विकास में अभूतपूर्व योगदान है . अभियंता सचमुच में प्रगति की रीढ़ है .सबसे पहले अभियंता के बेसिक ज्ञान पर प्रकाश डालूँगा .अभियंता विज्ञानं एवम गणित के जानकार होते हैं. विज्ञान का जानकार प्रकृति में उपलब्ध संसाधनों का वैज्ञानिक प्रयोग सैद्धान्तिक  एवम व्यवहारिक रूप में लाता है . क्रमवद्ध ज्ञान को विज्ञानं कहते हैं . सभ्यता का  क्रमवद्ध विकास इसी ज्ञान से सम्भब है . परन्तु आज के भारत के कई प्रान्तों में प्रगति की भागदौड़ में समाज के सभी वर्गों का सही प्रतिनिधित्व एवम सर्वागीण विकास में अभियंताओं को रोड़ा माना जा रहा है परन्तु ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि भारत में प्रशासनिक एवम राजनैतिक हस्तक्षेप हद से ज्यादा हो गया है .




सबसे पहले प्रशासनिक हस्तक्षेप को समझा जाय . भारत में आई ए स नाम की चिड़ियाँ को स्वतंत्रता के बाद ही ब्रिटेन उड़ जाना चाहिए था . परन्तु इसका घोसला इतना मजबूत था की दृढ़ राजनीति संकल्प के अभाव एवम सत्ता की लोलुपता ने इसके घोसले को और ताकतवर बना दिया है . भारत के विकास में आई ए स  के बारे में यही कहावत चरितार्थ होती है " पढ़े फारसी बेचे तेल ". आज भारत के राजनीति को भी इससे निकलने या नाथने की अकुलाहट है .


विकास में भारतीय जाति द्वार विभिन्न पेशा से जुड़े लोगों की भूमिका बेहद महत्तवपूर्ण है . इसे भी अकुशल अभियंता की संज्ञा दी जा सकती है . आज भारत / बिहार इन अकुशल अभियंताओं की वजह से विश्व के आधुनिक निर्माण में अपनी पहचान बनाये हुए है . परन्तु इसे ही आज के विकाश में उपहास के रूप में उद्धृत किया जाता है . बिहारी शब्द राष्ट्र में और भारतीय शब्द विश्ब में  गाली के रूप में प्रयुक्त किया जाता है. यही मिसाल अभियंताओं का राष्ट्र में है . सबसे न्यूनतम पगार पदाधिकारियों में इसकी है . सेवा सर्त तो एकदम खराब. अभियंताओं /अकुशल अभियंताओं के शोषण के देश में विकास की कोरी कल्पना ही की जा सकती है .

Sunday, May 26, 2013

कटहल




भारत में सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला फल कटहल विश्व में सबसे बड़ा होता है। कटहल की सब्जी, पकौडे़ या अचार आदि बनाए जाते है। जब यह पक जाता है तब इसके अंदर के मीठे फल को खाया जाता है जो कि बडा़ ही स्वादिष्ट लगता है। कटहल के अंदर कई पौष्टिक तत्व पाये जाते हैं जैसे, विटामिन ए, सी, थाइमिन, पोटैशियम, कैल्शियम, राइबोफ्लेविन, आयरन, नियासिन और जिंक आदि। इस फल में खूब सारा फाइबर पाया जाता है साथ ही इसमें बिल्कुल भी कैलोरी नहीं होती है। 
पके हुए कटहल के गूदे को अच्छी तरह से मैश करके पानी में उबाला जाए और इस मिश्रण को ठंडा कर एक गिलास पीने से जबरदस्त स्फ़ूर्ती आती है, यह हार्ट के रोगियों के लिये भी अच्छा माना जाता है।
कटहल के स्वास्थ्य लाभ---

                                                            

- कटहल में पोटैशियम पाया जाता है जो कि हार्ट की समस्या को दूर करता है क्योंकि यह ब्लड प्रेशर को लो कर देता है। 
- इस रेशेदार फल में काफी आयरन पाया जाता है जो कि एनीमिया को दूर करता है और शरीर में ब्लड सर्कुलेशन को बढाता है। 
- इसकी जड़ अस्थमा के रोगियो के लिये अच्छी मानी जाती है। इसकी जड़ को पानी के साथ उबाल कर बचा हुआ पानी छान कर पिये तो अस्थमा कंट्रोल हो जाएगा। 
- इसमें मौजूद सूक्ष्म खनिज और कॉपर थायराइड चयापचय के लिये प्रभावशाली होता है। खासतौर पर यह हार्मोन के उत्पादन और अवशोषण के लिये अच्छा माना जाता है। 
- हड्डियों के लिये भी यह फल बहुत अच्छा होता है। इसमें मौजूद मैग्नीशियम हड्डी में मजबूती लाता है तथा भविष्य में ऑस्टियोपुरोसिस की समस्या से निजात दिलाता है। 
- इसमें विटामिन सी और ए पाया जाता है जो कि रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है और बैक्टीरियल और वाइरल इंफेक्शन से बचाता है। 
- इसमें मौजूद शर्करा जैसे, फ्रक्टोज़ और सूकरोज़ तुरंत ऊर्जा देते हैं। इस शर्करा में बिल्कुल भी जमी हुई चर्बी और कोलेस्ट्रॉल नहीं होता। 
- यह फल अल्सर और पाचन सम्बंधी समस्या को दूर करते हैं। इसमें फाइबर होता है जो कि कब्ज की समस्या को दूर करते हैं।
- इसका स्वास्थ्य लाभ आंखों तथा त्वचा पर भी देखने को मिलता है। इस फल में विटामिन ए पाया जाता है जिससे आंखों की रौशनी बढती है और स्किन अच्छी होती है। यह रतौंधी को भी ठीक करता है।
सावधानी ---
पका कटहल का फल कफवर्धक है, अत: सर्दी-जुकाम, खांसी, अर्जीण आदि रोगों से प्रभावित व्यक्तियों एवं गर्भवती महिलाओं को कटहल का सेवन नहीं करना चाहिए।
कटहल खाने के बाद पान खान से पेट फूल जाता है और अफरा होने का डर रहता है अत: भूल कर भी कटहल के बाद पान न खाएं।दुबले-पतले पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति को पका कटहल दोपहर में खाकर कुछ देर आराम करना चाहिए।


                                 

सौजन्य  aurveda

खरबूजा



खरबूजा का पका हुआ फल बलवर्धक, वीर्यवर्धक, वात-पित्त और कब्ज नाशक तो होता ही है, इसके कच्चे फल की सब्जी बनाकर खाना भी स्वास्थ्य के लिये फायदेमंद माना गया है। 
                                                      
- खरबूजा में शर्करा के अलावा प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, लोहा, कैलोरी, विटामिन ‘ए’,बी और ‘सी’ भी पर्याप्त मात्रा में है, जो शरीर के पोषण के लिये बहुत जरूरी है।
- यह मूत्र सह-प्रजनन संस्थान के रोगों में भी फायदेमंद है।
- पथरी रोग से परेशान व्यक्ति को भोजन के उपरांत इसके सेवन करना चाहिये, अवश्य लाभ होगा।
- खरबूजे के बीज को पीसकर घी में भूनकर अल्प मात्रा में सुबह-शाम खाने से उन्माद, तन्द्रा, चक्कर आना तथा आलस्य आदि में बहुत लाभ होता है।
- खरबूजे के साथ खरबूजे के बीज भी खाना चाहिये, क्योंकि बीज स्मरण शक्ति बढ़ाने व शरीर का पोषण करने में रामबाण दवा है।
- खरबूजा नियमित खाने से रक्तचाप, हृदय नियमित खाने से रक्तचाप, हृदय रोग आदि में भी लाभ होता है और पेट भी ठीक रहता है। यह आंतों को भी साफ रखता है।
- पीलिया, सूजन व एक्जिमा के रोगी भी खरबूजा का नियमित सेवन कर लाभ उठा सकते हैं।
- मिर्गी एवं पागलपन में भी खरबूजा एक सहायक औषधि से कम नहीं है।
- खरबूजे के बीज मस्तिष्क को शीतलता को प्रदान करते ही है, बीजों में वसा, प्रोटीन जैसे पौष्टिक तत्व भी होते हैं।
- खरबूजा गर्मियों में शरीर को लू के प्रभाव से भी बचाता है, क्योंकि उसे खाने से शरीर में पानी की कमी दूर होती है।
- खरबूज की सब्जी पेट व स्वास्थ्य दोनों के लिये फायदेमंद है।
- खरबूजे में बड़ी मात्रा में आर्गेनिक पिगमेंट केरोटेन्वाइड पाया जाता है, जो कैंसर से बचाने के साथ ही लंग कैंसर की संभावना को भी कम करता है। यह शरीर में पनप रहे कैंसर के मूल को नष्ट कर देता है।
- खरबूजे में एडेनोसीन नामक एंटीकोएगुलेंट पाया जाता है, जो रक्त कोशिओं को जमने से रोकता है। रक्त कोशिकाओं के जमने से ही दौरा और दिल की बीमारी होती है। खरबूजा शरीर में रक्त के बहाव को बनाए रखने में सहायक होता है, जिससे दौरा और दिल की बीमारियों की संभावना कम हो जाती है।
- अगर आप पाचन की समस्या से जूझ रहे हैं, तो खरबूजा खाइए।इससे कब्ज़ दूर होती है. खरबूजे में मौजूद पानी की मात्रा पाचन में सहायक होती है। इसमें पाए जाने वाले मिनरल्स पेट की एसीडीटी को खत्म करते हैं, जिससे पाचन प्रक्रिया दुरुस्त रहती है।
- हमारी त्वचा में कनेक्टिव टिशू पाए जाते हैं। खरबूजे में पाए जाने वाले कोलाजन प्रोटीन इन कनेक्टिव टिशू में कोशिका की संरचना को बनाए रखता है। कोलाजन से जख्म भी जल्दी ठीक होते हैं और त्वचा को मजबूती मिलती है। अगर आप लगातार खरबूजा खाएंगे तो त्वचे में रुखापन नहीं आएगा।
- खूरबूजे में डाइयुरेटिक (मूत्रवर्धक) क्षमता काफी अच्छी होती है। इस कारण इससे किडनी की बीमारियां ठीक होती हैं और यह एकजिमा को कम करता है। अगर खरबूजे में नींबू मिलाकर इसका सेवन किया जाए तो इससे गठिया की बीमारी भी ठीक हो सकती है।




- अधिकतर खरबूज में विटामिन ‘बी' पाया जाता है। विटामिन 'बी' शरीर में ऊर्जा के निर्माण में सहायक होता है। सूगर और कार्बोहाइड्रेट को संसाधित करने में यह ऊर्जा शरीर के लिए आवश्यक होती है।
- अगर आप अपना वजन कम करना चाहते हैं, तो खरबूजा इसके लिए आदर्श जरिया हो सकता है। इसमें काफी कम मात्रा में सोडियम पाया जाता है। साथ ही यह फैट और कोलेस्ट्रोल से भी मुक्त होता है। वहीं इससे काफी कम कैलोरी मिलती है। एक कप खरबूजे में सिर्फ 48 कैलोरी ऊर्जा होती है। खरबूजे में पाए जाने वाले प्रकृतिक मीठेपन से आप उच्च कैलोरी वाली मिठाईयों से भी दूर रहेंगे।
- आंखों को स्वस्थ रखने के लिए विटामिन ‘ए' की आवश्यकता होती है। खरबूजा यह विटामिन बीटा-कारोटीन के रूप में उपलब्ध कराता है। डब्ल्यूएचएफ के अनुसार रोज तीन बार उच्च बीटा-कारोटीन फल खाने से मैकुलर डीजेनेरेशन का खतरा 1.5 बार खाने वालों की तुलना में 36 प्रतिशत कम हो जाता है। मैकुलर डीजेनेरेशन ढलती उम्र के साथ होने वाली समस्या है, जिससे आंखों की रोशनी भी जा सकती है।
- जब आप तनावग्रस्त होते हैं तो खरबूजे में मौजूद पोटेशियम इससे उबरने में सहायक होता है। पोटेशियम दिल को सामान्य रूप से धड़कने में मदद करता है, जिससे मस्तिष्क में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन पहुंचती है और यह सुचारू रूप से कार्य करता है।
- मधुमेह के रोगी को अक्सर भूख लगती रहती है, क्योंकि उनके आहार में शुगर और ऊर्जा की मात्रा कम होती है। ऐसे रोगी के लिए खरबूजे का जूस अच्छा आहार हो सकता है। विशेषज्ञ हमेशा मधुमेह के रोगी को खरबूजे का जूस लेने की सलाह देते हैं, क्योंकि यह रक्त में सूगर के स्तर को कम करता है।
- खरबूजे को कद्दूकस कर के उसमे थोड़ी शकर और निम्बू का रस , इलायची आदि मिलाकर स्वादिष्ट पेय तैयार होता है. इसे बच्चें भी पसंद करते है.
- सावधानी -- इसके अधिक सेवन से पेट और आँतें कमजोर होती हैं। इसे खाने के कम से कम १ से २ घंटे तक पानी और दूध नहीं पीना चाहिए।

सौजन्य - aurveda

Saturday, May 18, 2013

शाकाहार v/s मांसाहार


क्या वृक्षों में जीवन हैं और क्या वृक्ष आदि खाने में पाप
हैं?
आधुनिक समाज में खान पान को लेकर एक विशेष

दुविधा आज
भी बनी हुई हैं जिसमें सभी व्यक्तियों के अलग अलग दृष्टीकौन हैं . इस्लाम और ईसाइयत को मानने
वालों का कहना हैं की ईश्वर ने पेड़ पौधे पशु आदि सब खाने
के लिए ही उत्पन्न किये हैं,नास्तिक
लोगों का मानना हैं
की ईश्वर जीवात्मा आदि कुछ भी नहीं होता इसलिए
चाहे शाक खाओ ,चाहे मांस खाओ, कोई पाप नहीं लगता. अहिंसा का समर्थन करने वाले लोगों का एक मत यह भी हैं
की केवल पशु ही नहीं अपितु पेड़ पौधे में
भी जीवात्मा होने के कारण उनको खाने में हिंसा हैं और
वृक्ष को काटकर खाने से हम भी मांसाहारी हैं क्यूंकि हम
उनके शरीर के अवयवों को खाते हैं.यह भी एक प्रकार
की जीव हत्या हैं.निष्पक्ष होकर हम धर्म शास्त्रों पर विचार करे हमे इस समस्या का समाधान आसानी से मिल
सकता हैं. संसार में दो प्रकार के जगत हैं जड़ और चेतन.
चेतन
जगत में दो विभाग हैं एक चर और एक अचर. वृक्ष
आदि अचर
कोटि में आते हैं जबकि मानव पशु आदि चर कोटि में आते हैं.
मनु स्मृति के अनुसार जो मनुष्य अत्यंत
तमोगुणी आचरण
करते हैं या अत्यंत तमोगुणी प्रवृति के होते हैं तो उसके
फल
स्वरुप वे अगले जन्म में स्थावर = वृक्ष, पतंग, कीट ,मत्स्य ,
सर्प, कछुआ, पशु और मृग के जन्म को प्राप्त होते हैं.
(सन्दर्भ- १२.४२) आगे मनु महाराज स्पष्ट रूप में
घोषणा करते हैं की पूर्वजन्मों के अधम कर्मों के कारण
वृक्ष
आदि स्थावर जीव अत्यंत तमोगुण से अवेषटित होते हैं. इस
कारण ये अंत: चेतना वाले होते हुए आन्तरिक रूप से
ही कर्म
फल रूप सुख दुःख की अनुभूति करते हैं.वाह्य सुख सुख
की अनुभूति इनको नगण्य रूप से होती हैं
अथवा बिलकुल नहीं होती. आधुनिक विज्ञान में वृक्षों में जीव
विषयक मत
की पुष्टि डॉ जगदीश चन्द्र बसु जीवात्मा के रूप में न
करके चेतनता के रूप में करते हैं. देखा जाये तो दोनों में
मूलभूत रूप से कोई अंतर नहीं होता क्यूंकि चेतनता जीव
का लक्षण हैं. भारतीय दर्शन सिद्धांत के अनुसार जहाँ चेतनता हैं वही जीव हैं और जहाँ जीव हैं
वही चेतनता हैं. आधुनिक विज्ञान वृक्षों में जीव
इसलिए
नहीं मानता हैं क्यूंकि वो केवल उसी बात को मानता हैं
जिसे प्रयोगशाला में सिद्ध किया गया हैं और
जीवात्मा को कभी भी प्रयोगशाला में सिद्ध नहीं किया जा सकता. डॉ जगदिश चन्द्र बसु पहले
वैज्ञानिक थे जिन्होंने ऐसे यंत्रों का अविष्कार
किया वृक्षों पौधों में वायु, निद्रा,भोजन, स्पर्श
आदि के
जैविक प्रभावों का अध्यनन किया जा सकता हैं. यहाँ तक
शास्त्रों के आधार पर यह सिद्ध किया गया हैं की वृक्ष आदि में आत्मा होती हैं.अब शास्त्रों के आधार पर यह
सिद्ध करेंगे की वृक्ष आदि के काटने में
अथवा पौधों आदि को जड़ से उखारने में
हिंसा नहीं होती हैं. संख्या दर्शन ५.२७ में लिखा हैं
की पीड़ा उसी जीव को पहुँचती हैं जिसकी वृति सब
अवयवों के साथ विद्यमान हो अर्थात सुख दुःख की अनुभूति इन्द्रियों के माध्यम से होती हैं. जैसे अंधे
को कितना भी चांटा दिखाए , बहरे को कितने
भी अपशब्द बोले तो उन्हें दुःख नहीं पहुँचता वैसे ही वृक्ष
आदि भी इन्द्रियों से रहित हैं अत: उन्हें दुःख
की अनुभूति नहीं होती. इसी प्रकार
बेहोशी की अवस्था में दुःख का अनुभव नहीं होता उसी प्रकार वृक्ष आदि में
भी आत्मा को मूर्च्छा अवस्था के कारण दर्द अथवा कष्ट
नहीं होता हैं. और यहीं कारण हैं की दुःख
की अनुभूति नहीं होने से वृक्ष आदि को काटने, छिलने,
खाने
से कोई पाप नहीं होता और इससे जीव हत्या का कोई भी सम्बन्ध नहीं बनता. भोजन का ईश्वर कृत विकल्प
केवल
और केवल शाकाहार हैं और इस व्यस्था में कोई पाप
नहीं होता. जबकि मांसाहार पाप का कारण हैं.
प्राणियों के वध से मांस उपलब्ध होता हैं,
बिना प्राणिवध किये मांस नहीं मिलता और प्राणियों का वध करना दुःख भोग का कारण हैं, अत: मांस
का सेवन नहीं करना चाहिए.

courtsry by - aurveda Admin-anshuman

Thursday, May 16, 2013

चाय



नाम सुनत बहुत मस्त लागेला लेकिन आपके पता बा गुरु की चाय अपने देश में कभी केहू नाही पियलेस राजा महाराजा, ऋषि मुनि, जब हमार भारत परतंत्र रहल त ओहि टाइम भारत में अंग्रेज लोग लेके अयिलन अपने बदे
क्योकि वो रक्त दबाव (ब्लड प्रेशर ) के बढ़वेला रक्त बढ़ने के कारन से कभी कभी जब खून तेज़ी से चले शुरू हो जाला त हार्ट अटैक (ह्रदय घात) के खतरा भी आम हो जला चाय में चीनी जो है सबसे खतरनाक हाउ चीनी से मधुमेह होला और जेकरे एक बार हो गयल ओकर कल्याल हो जाई इसलिए चीनी छोड़कर गुड लेई 

और चाय के का का नुक्सान बा
ज्यादा दिन तक चक्कर चलल
१. खून में मिलकर खून के अम्लता बढ़ाई त खून ख़राब होने से रोग से लड़ने की क्षमता ख़त्म
२. पेट की एसिडिटी बढ़ाएगा क्योकि पेट में पहले से ही अम्ल रहता है चाय से वो और अम्लीय होता है तो रोग :- कच्ची डकार, मिचली, पेट दर्द, ज्यादा अगर हुआ तो गैस,कब्ज, गैस के कारन मल बांध, बवासीर, भगन्दर, लास्ट में कैंसर,
३. आँखों पर असर करेगा तो अखो से कम दिखाना, धुधला दिखना, आंखें लाल होना,

और भी बहुत कुछ तो आप क्यों पिटे है

यह उपयोग करें घर में बनाएं जो घर में बनेगा लाभ देगा आप लोगन के
दालचीनी + हल्दी+ सोंठ + तेजपत्ता + तुलसी के पत्ते (सूखे) + पुदीने के पत्ते (सूखे) +इलायची

इन सबको आपस में मिलायिके डिब्बा में रख ला जब चाय पीये के मन करे त चाय के जगह इसे डाले और चीनी के जगह गुड या मिश्री का उपयोग करें

फायदा : शारीर से हानिकारक तत्व बहार निकाली और जवन पुराना रोग रही ओहू के ठीक करी

त बतावा
चाय ठीक बा की अपने ऋषि मुनि के जड़ी बूटी बस हमने के भटकल दिमाग पहले के भारत में पहुच जाय त हम सब स्वस्थ हो सकेली बतावा के के इ 
 इस्तेमाल करी

COURTSEY BY  बिहारी का चौपाल

Wednesday, May 8, 2013

रासायनिक दावा कम्पनियां और कमीशन-खोर व उसके दुष्प्रभाव





मौत का खुला व्यापार
हमारे भारत सरकार में एक मंत्रालय है जो परिवार कल्याण एवं स्वास्थ्य मंत्रालय कहलाता है। हमारी भारत सरकार प्रति वर्ष करीब 23700 करोड़ रुपये लोगों के स्वस्थ्य पर खर्च करती है। फिर भी हमारे देश में ये बीमारियाँ बढ़ रही है। आइये कुछ आंकड़ों पर नजर डालते है -

01 आबादी (जनसँख्या) - भारत सरकार के आंकड़े बताते है कि सन 1951 में भारत की आबादी करीब 33 करोड़ थी जो सन 2010 तक 118 करोड़ हो गई।
02 सन 1951 में पूरे भारत में 4780 डॉक्टर थे, जो सन 2010 तक बढ़कर करीब 18,00,000 (18 लाख) हो गए।
03 सन 1947 में भारत में एलोपेथी दवा बनाने वाली कम्पनियाँ करीब 10-12 कंपनिया थी जो आज बढ़कर करीब 20 हजार हो गई है।
04 सन 1951 में पूरे भारत में करीब 70 प्रकार की दवाइयां बिका करती थी और आज ये दवाइयां बढ़कर करीब 84000 (84 हजार) हो गई है।
05 सन 1951 में भारत में बीमार लोगों की संख्या करीब 5 करोड़ थी आज बीमार लोगों की तादाद करीब 100 करोड़ हो गई है।

हमारी भारत सरकार ने पिछले 64 सालों में अस्पताल पर, दवाओ पर, डॉक्टर और नर्सों पर, ट्रेनिंग आदि में सरकार ने जितना खर्च किया उसका 5 गुना यानी करीब 50 लाख करोड़ रूपया खर्च कर चुकी है। आम आदमी जो अपने इलाज के लिए पैसे खर्च करता है वो अलग है। इलाज के नाम पर पिछलें 64 वर्षों में आदमी की खून पासीनें की कमाई का लगभग 50 लाख करोड़ रूपया बर्बाद हुवा। इतनी बड़ी रकम खर्च करने के बाद भी भारत में रोग और बीमारियाँ बढ़ रही है।

01) हमारे देश में आज करीब 5 करोड़ 70 लाख लोग Diabeties (मधुमेह) के मरीज है। (भारत सरकार के आंकड़े बताते है कि करीब 3 करोड़ लोगों को Diabeties (मधुमेह) होने वाली है।
02) हमारे देश में आज करीब 4 करोड़ 80 लाख लोग हृदय रोग की विभिन्न रोगों से ग्रसित है।
03) करीब 8 करोड़ लोग केंसर जैसी खतरनाक बीमारी रोगी है। भारत सरकार के अनुसार 25 लाख लोग हर साल केंसर से मरते है।
04) 12 करोड़ लोगों को आँखों की विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ है।
05) 14 करोड़ लोगों को छाती की बीमारियाँ है।
06) 14 करोड़ लोग गठिया रोग से पीड़ित है।
07) 20 करोड़ लोग उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure) और निम्न रक्तचाप (Low
Blood Pressure ) से पीड़ित है।
08) 27 करोड़ लोगों को हर समय 12 महीने सर्दी, खांसी, झुकाम, कोलेरा, हेजा आदि सामान्य बीमारियाँ लगी ही रहती है।
09) 30 करोड़ भारतीय महिलाएं अनीमिया की शिकार है। एनीमिया यानी शरीर में खून की कमी। महिलाओं में खून की कमी के कारण पैदा होने वाले करीब 56 लाख बच्चे जन्म लेने के पहले साल में ही मर जाते है। यानी पैदा होने के एक साल के अन्दर-अन्दर उनकी मृत्यु हो जाती है। क्यों कि खून की कमी के कारण महिलाओं में दूध प्रयाप्त मात्र में नहीं बन पाता। प्रति वर्ष 70 लाख बच्चे कुपोषण के शिकार होते है। कुपोषण के मायने उनमे खून की कमी, फास्फोरस की कमी, प्रोटीन की कमी, वसा की कमी आदि आदि.......

ऊपर बताये गए सारे आंकड़ों से एक बात साफ तौर पर साबित होती है कि भारत में एलोपेथी का इलाज कारगर नहीं हुवा है। एलोपेथी का इलाज सफल नहीं हो पाया है। इतना पैसा खर्च करने के बाद भी बीमारियाँ कम नहीं हुई बल्कि और बढ़ गई है। यानी हम बीमारी को ठीक करने के लिए जो एलोपेथी दवा खाते है उससे और नई तरह की
बीमारियाँ सामने आने लगी है।
पहले मलेरिया हुवा करता था। मलेरिया को ठीक करने के लिए हमने जिन दवाओ का इस्तेमाल किया उनसे डेंगू, चिकनगुनिया और न जाने क्या क्या नई नई तरह की बिमारियों पैदा हो गई है। किसी जमाने में सरकार दावा करती थी की हमने चिकंपोक्ष (छोटी माता और बड़ी माता) और टी बी जैसी घातक बिमारियों पर विजय प्राप्त कर ली है लेकिन हाल ही में ये बीमारियाँ फिर से अस्तित्व में आ गई है, फिर से लौट आई है। यानी एलोपेथी दवाओं ने बीमारियाँ कम नहीं की और ज्यादा बड़ाई
है।

एक खास बात आपको बतानी है की ये एलोपेथी दवाइयां पहले पूरे संसार में चलती थी जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, जर्मनी, फ्रांस, आदि हमारे देश में ये एलोपेथी इलाज अंग्रेज लाये थे। हम लोगों पर जबरदस्ती अंग्रेजो द्वारा ये इलाज थोपा गया। द्वितीय विश्व युद्ध जब हुवा था तक रसायनों का इस्तेमाल घोला बारूद बनाने में और रासायनिक हथियार बनाने में हुवा करता था। जब द्वितीय विश्वयुध में जापान
पर परमाणु बम गिराया गया तो उसके दुष्प्रभाव को देख कर विश्व के कई प्रमुख देशों में रासायनिक हथियार बनाने वाली कम्पनियाँ को बंद करवा दी गई। बंद होने के कगार पर खड़ी इन कंपनियों ने देखा की अब तो युद्ध खत्म हो गया है। अब इनके हथियार कौन खरीदेगा। तो इनको किसी बाजार की तलाश थी। उस समय सन 1947 में भारत को नई नई आजादी मिली थी और नई नई सरकार बनी थी। यहाँ उनको मौका मिल गया और आप जानते है की हमारे देश को आजाद हुवे एक साल ही गुजरा था की भारत का सबसे पहला घोटाला सन 1948 में हुवा था सेना की लिए जीपे खरीदी जानी थी। उस समय घोटाला हुवा था 80 लाख का। यांनी धीरे धीरे ये दावा कम्पनियां भारत में व्यापार बढाने लगी और इनके व्यापार को बढ़ावा दिया हमारी सरकारों ने। ऐसा इसलिए हुवा क्यों की हमारे नेताओं को इन दावा कंपनियों ने खरीद लिया। हमारे नेता लालच में आ गए और अपना व्यापार धड़ल्ले से शुरू करवा दिया। इसी के चलते जहाँ हमारे देश में सन 1951 में 10 -12 दवा कंपनिया हुवा करती थी वो आज बढ़कर 20000 से ज्यादा हो गई है। 1951 में जहाँ लगभग 70 कुल दवाइयां हुवा करती थी आज की तारीख में ये 84000 से भी ज्यादा है। फिर भी रोग कम नहीं हो रहे है, बीमारियों से पीछा नहीं छूट रहा है।
आखिर सवाल खड़ा होता है कि इतनी सारे जतन करने के बाद भी बीमारियाँ कम क्यों नहीं हो रही है। इसकी गहराई में जाए तो हमे पता लगेगा कि मानव के द्वारा निर्मित ये दवाए किसी भी बीमारी को जड़ से समाप्त नहीं करती बल्कि उसे कुछ समय के लिए रोके रखती है। जब तक दवा का असर रहता है तब तक ठीक, दवा का असर खत्म बीमारियाँ फिर से हावी हो जाती है। दूसरी बात इन दवाओं के साइड एफ्फेक्ट बहुत ज्यादा हैै। यानी एक बीमारी को ठीक करने के लिए दवा खाओ तो एक दूसरी बीमारी पैदा हो जाती है। एलोपैथ में एक भी ऐसी दवा नही बनी हैं जिसका कोई साइड एफ्फेक्ट ना हों।
आपको कुछ उदहारण दे के समझाता हु -
01) Entipiratic बुखार को ठीक करने के लिए हम एन्तिपैरेतिक दवाएं खाते है
जैसे - पेरासिटामोल, आदि द्य बुखार की ऐसी सेकड़ो दवाएं बाजार में बिकती है। ये
एन्तिपिरेटिक दवाएं हमारे गुर्दे खराब करती है। गुर्दा खराब होने का सीधा मतलब है की पेशाब से सम्बंधित कई बीमारियाँ पैदा होना लगाती जैसे पथरी, मधुमेह, और न जाने क्या क्या। एक गुर्दा खराब होता है उसके बदले में नया गुर्दा लगाया जाता है तो ऑपरेशन का खर्चा करीब 3.50 लाख रुपये का होता है।
02 ) Antidirial इसी तरह से हम लोग दस्त की बीमारी में Antidirial दवाए खाते है। ये एन्तिदिरल दवाएं हमारी आँतों में घाव करती है जिससे केंसर, अल्सर, आदि भयंकर बीमारियाँ पैदा होती है।
03) Enaljesic इसी तरह हमें सरदर्द होता है तो हम एनाल्जेसिक दवाए खाते है जैसे एस्प्रिन , डिस्प्रिन , कोल्द्रिन और भी सेकड़ों दवाए है। ये एनाल्जेसिक दवाए हमारे खून को पतला करती है। आप जानते है की खून पतला हो जाये तो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और कोई भी बीमारी आसानी से हमारे ऊपर हमला बोल सकती है।

आप आये दिन अखबारों में या टी वी पर सुना होगा की किसी का एक्सिडेंट हो जाता है तो उसे अस्पताल ले जाते ले जाते रस्ते में ही उसकी मौत हो जाती है द्य समझ में नहीं आता कि अस्पताल ले जाते ले जाते मौत कैसे हो जाती है ? होता क्या है कि जब एक्सिडेंट होता है तो जरा सी चोट से ही खून शरीर से बहार आने लगता है और क्योंकि खून पतला हो जाता है तो खून का थक्का नहीं बनता जिससे खून का बहाव रुकता नहीं है और खून की कमी लगातार होती जाती है और कुछ ही देर में उसकी मौत हो जाती है।

पिछले करीब 30 से 40 सालों में कई सारे देश है जहाँ पे ऊपर बताई गई लगभग सारी दवाएं बंद हो चुकी है। जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, और भी कई देश में जहा ये दवाए न तो बनती और न ही बिकती है। लेकिन हमारे देश में ऐसी दवाएं धड़ल्ले से बन रही है, बिक रही है। इन 84000 दवाओं में अधिकतर तो ऐसी है जिनकी हमारे शरीर को जरुरत ही नहीं है। आपने विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO का नाम सुना होगा। ये दुनिया कि सबसे बड़ी स्वास्थ्य संस्था है। WHO कहता है कि भारत में ज्यादा से ज्यादा केवल 350 दवाओं की आवश्यकता है। अधितम केवल 350 दवाओं की जरुरत है, और हमारे देश में बिक रही है 84000 दवाएं। यानी जिन दवाओं कि जरूरत ही नहीं है वो डॉक्टर हमे खिलते है क्यों कि दवाए जितनी ज्यादा बिकेगी डॉक्टर का कमीशन उतना ही बढेगा।

इसीलिए डॉक्टर इस तरह की दवाए खिलते है। मजेदार बात ये है की डॉक्टर कभी भी इन दवाओं का खुद इस्तेमाल नहीं करता और न अपने बच्चो को खिलाता है। ये सारी दवाएं आम लोगों को खिलाई जाती है। वो ऐसा इसलिए करते है क्यों कि उनको इन दवाओं के साइड एफ्फेक्ट पता होता है। और कोई भी डॉक्टर इन दवाओं के साइड एफ्फेक्ट के बारे में कभी किसी मरीज को नहीं बताता। अगर भूल से पूछ बैठो तो डॉक्टर कहता है कि तुम ज्यादा जानते हो या मैं?
दूसरी और चैकाने वाली बात ये है कि ये दवा कंपनिया बहुत बड़ा कमीशन देती है डॉक्टर को। इसी कारण से डॉक्टर कमीशनखोर हो गए है या यूँ कहे की डॉक्टर दवा कम्पनियों के एजेंट हो गए है तो गलत ना होगा।

आपने एक नाम सुना होगा M.R. यानि मेडिकल Represetative ये नाम अभी हाल ही के कुछ वर्षो से ही अस्तित्व में आया है। ये M.R. नाम का बड़ा विचित्र प्राणी है। ये दवा कम्पनी की कई तरह की दवाएं डॉक्टर के पास ले जाते है और इन दवाओं को बिकवाते है। ये दवा कंपनिया 40 40% तक कमीशन डॉक्टर को सीधे तौर पर देती है। जो बड़े बड़े शहरों में दवा कंपनिया है नकद में डॉक्टर को कमीशन देती है। ऑपरेशन करते है तो उसमे कमीशन खाते है, एक्सरे में कमीशन, विभिन्न प्रकार की जांचे करवाते है डॉक्टर उमने कमीशन। सबमे इनका कमीशन फिक्स रहता है। जिन बिमारियों में जांचों की कोई जरुरत ही नहीं होती उनमे भी डॉक्टर जाँच करवाने के लिए लिख देते है ये जाँच कराओ वो जाँच करो आदि आदि। कई बीमारियाँ ऐसी है जिसमे दवाएं जिंदगी भर खिलाई जाती है। जैसे हाईब्लड प्रेसर या लोब्लड प्रेसर, Dibities (मधुमेह) आदि। यानी जब तक दवा खाओगे आपकी धड़कन चलेगी दवाएं बंद तो धड़कन बंद। जितने भी डॉक्टर है उनमे से 99: डॉक्टर कमीशखोर है। केवल 1: ईमानदार डॉक्टर है जो सही मायने में मरीजो का सही इलाज करते है।

पूरी दुनिया में केवल 2 देश है जहाँ आयुर्वेदिक दवाएं भरपूर मात्र में मिलती है
(1) भारत (2) चीन




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