Monday, April 7, 2014

भीष्मपितामह की मृत्यु शैया पर बेदना/ पीड़ा और 2014 का लोक सभा चुनाव

मैं पुनः आज दांत निपोरे हाथ खींचकर निर्लज्जों की तरह खड़ा हूँ .मैं तुम्हारा भाग्य विधाता अपनी निर्लजता पर अट्टाहस कर रहा हूँ . तुम नपुंसकों में कोई दम है . आजमा लो . तुम क्या चाहते हो ....आज मैं सब कसमें खा रहा हूँ . लेकिन मेरी भी जात है जमात है . देखा है तुमने किसी भी मेरी जात जमात वालों को की कोई भी तुम्हारी बेहतरी के कोई कसम खाने की बाकी राखी है क्या ?  आज तुमलोगों ने मेरी जमातवाले लोगों से कौन कौन कसमें नहीं खिला रहे हो . मेरा वक़्त घूमेगा बहुत दिन नहीं है बाकी ..फिर दिखा दूंगा असल में मैं कौन हूँ ? हर वार मैं तुमलोगों को सबक सिखाता रहा हूँ ...कसमें खता रहा हूँ ..फिर बाद में देख लूँगा . क्या कर सकते हो तुम नपुंसकों . हमको चिढाते हो ..मैं वही करूंगा जो करता आया हूँ .

आज की बेटियां

बेटी निकलती है तो कोंख़ से ही न , फिर क्यों कहते हो कि न निकलो छोटे  कपडे पहन कर मत जाओ इधर उधर ...
पर .
बेटी को क्यों नहीं कहते की तुम ही मेरी नाज़ हो निकलो बाहर शान से,
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बेटी को कहते हो कि घर की इज्ज़त खराब मत करना पर बेटे  को क्यों नहीं ?
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इज्ज़त से खिलवाड़ बेटा करता है न की बेटी , फिर भी घर की चौखट लांघने से बेटी को क्यों मना  करते हो ?
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हर घर में बेटा गर्ल फ्रेंड की बात करता है शान से, पर अगर कोई बेटी गलती से किसी लड़के का मुहं से नाम उच्चारण कर दी, तो उसकी उसी समय शामत आ जाती है क्यों ?.
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बेटे की गर्ल फ्रेंड की बात हंस के सुनते हो , बेटी की क्यों नहीं ?.
बेटा घुमे गर्ल फ्रेंड के साथ तो नौज़वान, और बेटी अकेले घर से भी न निकले, यह कैसा है न्याय ?
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बेटी अगर अपनी सहेली से सेल फ़ोन पर बात करती है; तो कहते हो बेशर्म,
बेटे को सेल फ़ोन और इंटरनेट पर सर्फ करने में क्यों समझते हो आधुनिक .
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अब भी जागो समय अब शेष है कम से कम बेटी बेटा का फर्क तो मत करो, . दो आज़ादी सामान रूप से दोनों को,
..................... क्यों करते हो फर्क दोनों में ?