Tuesday, October 27, 2015

भारत का चुनाव आयोग या दंतहीन बिषरहित सांप

बुरा मत मानियेगा, आपलोगों को मेरे शीर्षक में बहुत आस्था है । भारत के चुनाव आयोग को भारत के प्रजातंत्र के प्रहरी के रूप में संविधान में शक्ति प्रदत्त है जो एक निष्पक्ष और स्वतंत्र संस्था है । अब इसके गठन के बारे में जान लें , इसके गठन के लिए मुख्यतः सत्ताधारी जवाबदेह होता है जिसमें तीन सदस्य होते हैं और रोटेशन और वरीयता के आधार पर मुख्य चुनाव आयुक्त का चयन किया जाता है । इसका मुख़्य कार्य निष्पक्ष ढंग से संसदीय और विधानसभा का चुनाब का दायित्व है । चुनाव पूर्व आदर्श चुनाव आचार संघिता के प्रतिपादित सिदांतों पर चुनाव संपन्न कराया जाता है ।

भारत राष्ट्र के 15 अगस्त 1947 में निर्माण और 26 जनबरी 1952 संविधान के लागू होने के तत्पश्चात् भारत में आई ए एस अर्थात प्रशासनिक पद या कर्मी नाम की चिङिया को अंग्रेजों के साथ सात समन्दर पार फुर्र उड़ जाना चाहिए था , परंतु राजनीतिक दृढ ईच्छा शक्ति की कमी ने इसकी जडें और मजबूत कर दिया है ।इसकी जड़ के मजबूत होने का प्रमुख कारण चुनाव रुपी पर्व में जनता रुपी मतदाताओं के मताधिकार का निष्पक्ष होने नहीं देना ।राज्य से लेकर देश तक प्रजातंत्र के पालक के रूप में प्रशासनिक पदाधिकारी को अमोघ अस्त्र दे दिए जाते हैं । इनकी विश्वसनीयता कितनी निष्पक्ष है इसकी वानगी चुनाव पूर्व इनके स्थानांतरण/पदस्थापन से स्पष्ट परिलक्षित हो जाता है । चुनाव पूर्व बोली लगती है और दैनिक समाचार पत्र के प्रत्येक पृष्ठ पर स्थानांतरण पदस्थापन का समाचार प्रकाशित रहता है । प्रत्येक  जिला में जिला निर्वाचन पदाधिकारी सह जिला दंडाधिकारी की नियुक्ति के साथ गुंडा तंत्र के रूप में डंडे की चोट से जिससे आम आदमी घबराता है चुनाव का क्लिष्ट कार्य जिसमें अगर शिक्षक , तकनीकी और अभियंत्रण संवर्ग के पदाधिकारी को नहीं सलंग्न किया जाये तो धन्य हो इस चुनाव और इसकी निष्पक्षता ।तकनीकी में प्रगति के उपकरण इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की चर्चा और इसकी प्रासंगिकता का जिक्र किये बिना तो चुनाव कराने की कल्पना भी बेमानी होगी । इन सभी कार्यों में प्रशासनिक पदाधिकारी तमाशबीन बने रहते हैं।

चुनाव कार्य के संपादन में दंडाधिकारी के रूप में किसी भी प्रशासनिक पदाधिकारी की सामान्यतः प्रतिनियुक्ति  नहीं की जाती है इन्हें अनुश्रवण का खानापूर्ति कार्य सौंपा जाता है । ग्रेड पे या पे बैंड या किस श्रेणी के पदाधिकारी हैं इन मापदंडों के आधार पर प्रतिनुक्ति चुनाव कार्य में करना जिला निर्वाचन पदाधिकारी तौहिनी समझते हैं । नया नया SDC हुकुम फरमाता है । सबसे पहले यह समझ लें JDC नाम का प्रशासनिक पद हैं हीं नहीं, लेकिन  SDC नाम से जन्म के साथ पद पर आ जाता है ।नए नए जिन्हें IPC की धारा का सामान्य ज्ञान और प्रशिक्षण नहीं प्राप्त होता है उन्हें अमोघ शस्त्रों के साथ बिना इस्तेमाल की जानकारी  के साथ चुनाव रुपी कुरुक्षेत्र में अस्त्र शस्त्र भांजने भेज दिया जाता है ।लेकिन प्रशासनिक पदाधिकारी एक कार्य बहुत निपुणता से करते हैं कि किसी भी संवर्ग या कार्यालय का कोई पदाधिकारी या कर्मचारी को आकस्मिक रूप में किसी भी अवकाश या मुख्यालय छोड़ने की आवश्यकता मह्शूश हो तो वह प्रशासनिक नियमके हवाले से अनुशासनहीनता समझा जाएगा ।अमूमन तो जिला निर्वाचन पदाधिकारी अर्थात जिला का प्रशासनिक पद का मुखिया ऐसे गैर पत्रों को प्राप्त ही न करेगा।

आजकल आदर्श चुनाव आचार संहिता के नाम पर 50000रू से अधिक कैश  साक्ष्य के आभाव में ले जाने  पर रोक है । RBI के नियमानुसार यह 365 दिन सामान्य दिवस में बिना साक्ष्य के गैर कानूनी है । लेकिन 365 दिन सामान्यतः अपने कार्यों को सही रूप में सम्पादित नहीं करने के कारण अपराधियों का धर पकड़ भी दिखावे के स्वरुप इसी समय किया जाता है ।सामान्य या आम जनता में भय का वातावरण पैदा कर देना सबसे उत्तम चुनाव कराने का मापदंड है । जनप्रतिनिधि नियमों के हवाले से किसी भी प्रकार के वाहन को चुनाव कार्य में seize किये जाने की परंपरा है और जिले के कुख्यात पेट्रोल पंप के मालिक जो तेल में मिलावट के साथ साथ मीटर में छेड़ छाड़ किये रहता है वहीं से फ्यूल दिए जाने की परंपरा है ।सड़क पर कोई भी वाहन को पकड़कर भ्रष्टाचार की गंगोत्री में जापानी पुलिस पदाधिकारी अधिक वाहन क्षमता तक माल ढुलाई के नाम पर छक के पीता है । इसलिए राजमार्गों पर वाहन का परिचालन ठप हो जाता है । जबकि अधिक वाहन क्षमता से अधिक सामान ढ़ुलाई सब दिन गैर कानूनी है ।चुनाव में सामान्यतः प्रयोग के सभी स्टेशनरी, कैंडल, सुतली, कागज, pen, इंडिबले इंक ,छुरी, पॉलिथीन शीट , मेडिकल कीट, लाह, एनवलप.... आदि सामग्री की गुणवत्ता की जाँच कर दी जाय तो सामग्री के उत्पादनकर्ता / सप्लायर भी यह कह बैठेगा कि ऐसी सामग्री मैं बनाता हीं नहीँ हूँ, अगर विश्वास न हो तो मेरे फैक्ट्री का स्वयं निरीक्षण कर लीजिये । जिला में पदस्थापित सभी कर्मी चुनाव में प्रशिक्षण के दिन सुबह सुबह ब्रह्म मुहुर्त में स्नान ध्यान कर प्रशिक्षण शिविर में हस्ताक्षरवाली पंजी पर अपनी उपस्थिती दर्ज़ कर देना उस दिन का सबसे बड़ा कार्य पुनीत कार्य समझते  है । प्रशिक्षु भी लचर, लाचार आम कर्मी समय काटता है । प्रशिक्षण शिविर की सामान्यतः व्यवस्था का जिक्र कर दूं तो आप को व्यवस्था से घिन्न आ जायेगी ।आदर्श चुनाव आचार संहिता के एक माह पूर्व से स्थानान्तरण/ पदस्थापन से लेकर सरकार गठन के एक सप्ताह तक जिले के सारे विकास कार्य पूर्णतः ठप्प कर देना चुनाव की सफलता का मापदंड है ।

सबसे कड़वा सत्य यह है कि किसी भी जिला निर्वाचन पदाधिकारी को आदर्श चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप में उसे कठोर प्रशासनिक दंड मसलन् निलंबन/ वर्खास्तगी.... बेतन से कटौती, बेतन के न्यूनतम प्रकरम  पर ला देने जैसे या अपराधिक मुकदमा  जैसे कठोर प्शाशास  दंड का प्रावधान है भी है या अब तक नहीं देने की   परम्परा है । हाँ आरोपित प्रशासनिक पदाधिकारियों को एक बात जरूर है भविष्य में किसी चुनाव कार्य में संलग्न या दायित्व नहीं सौंपा जाता  है, यही सबसे बड़ा दंड है   या दिये जाने की अब तक परंपरा है ।

अरे भाई मैं तो राज्य निर्वाचन आयोग के कार्यालय में पदस्थापित कर्मी / प्रशासनिक पदाधिकारी का जिक्र ही नहीं किया । ये महान आत्मा हैँ ये सभी येन केन प्रकारेण प्रतिनियुक्ति पर यहीं कार्यरत रहते हैं ।असल इनके बिना चुनाव संपादन कार्य  जो संभव नहीं है । They are indispensable.








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