Sunday, December 30, 2018

नाम परिवर्तन बादशाहत की पहचान

नाम में परिवर्तन से बादशाहत की पहचान

आप सभी भिज्ञ हैं कि जो देश या राजा ताकतवर होता है वह अन्य सभी देशों या जनताओं को अपने उसूल अपनी बादशाहत कायम रखने के लिए भय/ प्रेम से अपनी बात / नियम मनवाया जाता रहा है । सदियों से ऐसा मनोवैज्ञानिक या आतातायी या कम अवधि में अपनी अमिट छाप के रुप में पहचान बनाये रखने के उद्देश्य से भी किया जाता रहा है । ऐसे में सबसे आसान काम शहर/ धरोहर/ संस्थान के नाम में परिवर्तन कर जनता के दिल में अमिट छाप या पहचान बनाने की बेचैनी ।

आज के प्रसंग में अमेरिका अपनी ताकत का अहसास इसी स्वरुप में सारे विश्व को करा रहा है । पूर्व में सिकन्दर, तैमूरलंग, बख्तियार खिलजी, लोदी वंश, मुगल वंश, अंग्रेज आदि के कई मिसालें भारत मे है जिसमे शहर, स्टेचू, धरोहर, संस्थान,रोड आदि के नाम उस समय अपनी बादशाहत / ख़ौफ़/ पहचान बनाये रखने के उद्देश्य से किया गया उदाहरण मिलेगा ।

इसे गलत माना भी नहीं जाना चाहिए । यही ताकत की पहचान भी है । जब सत्ता में कोई दूसरा आता है तो परिवर्तन अपने अनुसार कर सकता है ।

सिख धर्म के लंगर प्रथा से हिन्दू/ मुस्लिम के लिए पाठ



सिख धर्म के सभी अनुयायी निर्धन/आर्थिक  विपन्न/ असहाय /भूखे को एक समान मानकर जाति/धर्म/गोत्र/सम्प्रदाय को भूलकर एक साथ एक पंगत में एक साथ भूखों को निवाला के रुप में प्रतिदिन लंगर  देने की प्रथा अर्थात खाना खिलाने की प्रथा है जिसमें अमीर भी प्रसाद के रुप में उसी पंगत में सामान रुप में सम्मिलित होता है ।

यदि हिन्दू के सभी मंदिरों/ मठों और मुसलमानों के सभी मस्जिदों या धार्मिक संस्थानों में सिख धर्म के उसूल की तरह सभी जरुरतमंद भूखों को धर्म/जाति/ सम्प्रदाय बिना पूछे खाना अर्थात निवाला दिए जाने की प्रथा प्रारम्भ कर दी जाय तब भारत मे कुपोषण/ भूख की समस्या से होनेवाली मौतों/ बीमारियों पर एक ही दिन में निजात पा लिया जाएगा ।

Monday, December 24, 2018

फुरसत


आज फुरसत में हूँ,
क्रिसमश का दिन है और आफ़िस से छुट्टी,
सुबह सवेरे दिनचर्या के बाद थोड़ी कपकपी महशूस हुई,
आज फुरसत में हूँ ।।

आफिस जाने का भय नहीं और संयोग से कोई इंगेजमेंट नहीं ,
इत्मीनान और शुकून,
सुबह बेरासी वर्ष के पिताजी के लिये,
अनार का जूस निचोड़ने लगा,
आज फुरसत में हूँ ।

जूस निकालकर ठंडा ड्रेस लबादकर सुबह (6.45 ) नीचे उतरा ,
पेपर पड़ा था सो निचोड़ने लगा,
एनरोइड हाथ में हो तो न्यूज बासी लगती है,
वैसे आज न्यूज भी फीकी थी,
तीन हिंदी पेपर निचोड़ डाला,
आज फुरसत में हूँ ।

7.30 में हाथ में झोला लटकाए सैर को निकला,
उद्देश्य सैर के साथ छुट्टी के दिन पेट के माशा की तृप्ति बुझानी भी थी,
तीस मिनट टहल कर झट से सब्जी मंडी मोल करने लगा,
सोंचा था आज बजका बीरी से क्षुधा को तृप्त करुँगा ,
आज फुरसत में हूँ ।

हरा चना, सग्गा प्याज, बतिया कद्दू, गोभी, बैगन मोलभाव कर उठा लिया,
छोटा झोला सरिया कर पैजामा के पॉकेट में कसे हुए थे,
पॉलीथिन पर गाज गिरल देखकर पॉलीथिन लेने की जिद किया,
संयोग से कोई पॉलीथिन नहीं दिया,
अलबत्ता हरा चना वाला एक छोटा कपडे का थैला में अहसान जताते बोला दू रुपया का है ,
आज फुरसत में हूँ  ।

हार पार के जेबी में से झोला निकालना पड़ा,
मुझे अनदिनों झोला रखने के चलते बीबी की झिड़की सुननी पड़ती है,
कहती है देहाती,
लेकिन हम ठहरे निरा मूर्ख और देहाती अपनचाल नहीं छोड़े,
आज तो पॉलीथिन बन्द का टेस्ट कर रहा था,
एक बात और मेरी बीबी के सामने हमको देहाती मत कहिएगा,
अरे भाई हम देहाती रहकर कुछ तो प्रकृति की सेवा किये,
हमर मेम साहब की इसब बात न बतावेके,
आज फुरसत में हूँ ।

डर के मारे सब्जी घर मे मेम साहब को दिखाकर डाईनिंग चेयर पर सजा के निकाल दिए,
पर बीबी की झिड़की के जगह मद्धिम मुस्कान मिली,
अहो भाग्य घर में कढ़ी बड़ी की तैयारी जो थी,
निरामिष घर का तो ई भोजे हो गया,
आज बड़ी अच्छा दिन निकला,
भगवान करे हिन्दू के पर्व क्रिसमश अईसन हो,
आज फुरसत में हूँ ।।

पहला प्यार

ख़ुशनुमा अहसास
तमन्नाओं के सफर की बेशब्री से इंतजार था,
वो पल,
वो क्षण,
वो सिसकी,
वो दर्द,
वो सिहरन,
वो शर्माना,
वो मुड़कर निहारना,
अपलक ताकना,
टकटकी लगाकर देखना,
शर्म से लाल होना,
इजहार न करना,
मुस्कुराना पर क्यों यह पता न लगना,
भूख न लगना,
नींद उड़ जाना,
समय का अहसास न होना,
ऐनक निहारना,
जुल्फ़ी सिटना,
सजना - सँवरना,

क्या यही पहला प्यार है ?

Saturday, December 22, 2018

सुबह के भोर भिनसरे

बचपन के सुबह भोर भिनसारे

काश कोई लाता बचपन के वो दिन,
सुबह कड़कती ठंड में,
दालान के पुआल पर,
इम्तहान के भय का बोझ,
और इस इम्तहान में पायदान बरकरार रखने का भय,
मां के भय से कोई आकाश में शुक्र तारे की आहट की जिक्र करता,
पुआल पर मेरे करवट से खर्र सुनाई देती,
अलसाई,मलती कुम्हलाई, अधखुली,
बन्द होने को आतुर मेरे नयन कोसती मुझको,
बैलों की घंटियों और पुआल काटने की मशीन की आवाज,
कुआँ की लट्ठा की कर्र की आवाज,
रोज रोज की घर्र घर्र कर्कशा सी लगती,
लगता कि रात के बाद, बिन आधी रात के भोर, भिनसारे आ जाती है,
मेरे चीनदादा, मां की पुकार ई कोढ़िया उठेगा, सुनकर जोर से बोलते,
कखनिये उठा था अभी तो पेशाब करके सोया है,
शुकून देती शब्द, फिर सोने की जुगाड़ में रजाई खींचते,
चीनदादा की आवाज आती उठलें रे,
ई छौंड़ा लात के देउता है ,
रोज रोज एके बात, झट उठ!
उठ हियई न की मद्धिम आवाज से शुरु होती दिनचर्या ।

बचपन के दोस्त

दोस्तों को समर्पित

बचपन के दोस्त

धुंधली आंखों से ...
बचपन की धूल से सनी दोस्ती ..
 रगड़ खा रही...
ओझल हो गई...
कई बिछड़ गए जिंदगी के रेस में....
मृत्यु की गोद में यादों को तन्हा कर..
कभी था जिन्दगी के रेस में....
कभी जवानी की रौब में...
कभी जिंदगी की कश्मकश में....
कभी उफान मारती घमंड में......
अब याद आई जब कोई पूछता नहीं रेस में...

Monday, November 12, 2018

हिन्दू - धर्म - परम्परा

हिन्दू - धर्म -  परम्परा

हिंदुस्तान में सभी धर्मों के प्रचलन को गंगा यमुना तहज़ीब या हिन्दुत्व या बिभिन्न पंथ सम्प्रदाय, धर्म, संस्कार , संस्कृति के रुप में माना जा सकता है ।

सनातन धर्म की कोंख से हिंदुस्तान में मूल हिन्दू धर्म की उतपत्ति है जिसके आरम्भिक दौर में सभी पद्वति उस कालखंड, समय की आवश्यकतानुसार ज्ञान अर्थात वैज्ञानिक सोंच और प्रकृति पर आधारित था ।

किसी भी पद्धति में परम्पराओं के बार बार दुहराए जाने पर उसमें विसंगतियों का आना स्वाभाविक है । यही विसंगति समय के कालचक्र के साथ सनातन धर्म पर आधरित हिन्दू धर्म में भी हुआ । फलतः इस धर्म की जातिगत वर्ण व्यवस्था और परम्पराओं में जड़ता (जो समय के अनुसार ज्ञान , वैज्ञानिक सोंच) के कारण बौद्ध और जैन धर्म का उद्भव हुआ ।

बौद्ध धर्म और जैन धर्म समयानुसार अधिक वैज्ञानिक सोंच पर आधारित होने के कारण इन धर्मो को तीव्र गति से विकास हुआ ।परन्तु कालचक्र और परम्परा के कारण कुछ समय के पश्चात यह भी अपने मूलभूत सिद्धांत से भटक गया । नतीजा हिन्दुस्तान में बौद्ध और जैन धर्म के मानने वाले लोगों में कमी आयी और भारत में अनेक प्रकार के धर्म , पंथ, सम्प्रदाय का प्रचलन इन धर्मो की विसंगतियों , अंधविश्वास, वैज्ञानिक सोंच में परिवर्तन के कारण हुआ ।

आज भी भारतवर्ष में प्रचलित अनेक धर्म , सम्प्रदाय, पंथ में परम्परा, संस्कृति, तहज़ीब, तमीज़, अंधविश्वास, रुढ़िवादिता, ढकोसला, पहनावा, खान पीन आदि वर्तमान सोंच, ज्ञान, विज्ञान पर आधारित नहीं रहने के कारण प्रायः सभी धर्मों , पंथों, संप्रदायों में विसंगतियाँ आने से इनमे जड़ता आ गयी है जिसमें उत्तरोत्तर सुधार आवश्यक हो गया है  ।

एक खास तथ्य सनातन से गंगा यमुना तहज़ीब तक हिंदुस्तान की मिट्टी में एक खासियत है कि यहाँ पर फलने फूलने वाला धर्म अपनी विसंगतियों का निराकरण सदैव आधुनिक ज्ञान से करता आया है । आशा है पुनः आज का भारत ऐसा करने में सक्षम साबित होगा अन्यथा अपनी प्रासंगिकता खो देगा ।

Sunday, September 2, 2018

भारत में वर्तमान आरक्षण, विसंगति और निराकरण



1) भारतीय संविधान में सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक रुप से पिछड़ेपन को समाप्त करने के लिए देश की सार्वभौमिकता और अखंडता को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए संख्यानुपात सभी वर्गों की सहभागिता और सर्वांगीण विकास के कारण आरक्षण का प्रावधान किया गया है ।

2) आरक्षण को लागू किये जाने के पूर्व सामाजिक पिछड़ेपन के मापदंड में भारत में वर्ण व्यबस्था (ब्राह्मण/ क्षत्रिय/वैश्य/ शुद्र) के कारण विभक्त जातिगत समाज को  क्रमशः SC/ST/OBC/FC के रुप में चार समूहों में जातियों का वर्गीकरण किया गया है ।

3) SC और ST को सामाजिक रूप से पिछड़ेपन के आधार के कारण दो अन्य कारकों यथा आर्थिक और शैक्षणिक को आरक्षण के आधार में शामिल नहीं किया गया है । इसका मौलिक कारण यह है कि  आरक्षण के लिए देश मे सामाजिक पिछड़ेपन अर्थात छुआछूत को सबसे बड़ा आधार माना गया है और SC/ST की जनसंख्या के अनुपात में  7.5+15= 22.5 % आरक्षण का प्रावधान है ।

4) OBC के आरक्षण के लिये सामाजिक , आर्थिक, शैक्षणिक  तीनों  कारकों को आधार माना गया है । OBC को संख्यानुपात में आरक्षण के स्थान पर मात्र 54 % जनसंख्या के स्थान पर 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है और यह मान लिया गया है कि 27% ओबीसी सामाजिक , आर्थिक, शैक्षणिक रुप में समृद्ध हैं । सचमुच में 27% ओबीसी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप में समृद्ध नहीं है ।

5) FC को सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक रुप मे सम्पन्न मानकर इनको आरक्षण नहीं दिया गया है ।

6) वास्तविकता में 50 % अनारक्षित स्थान मात्र 14 % सवर्ण और आर्थिक रूप से सम्पन्न कुछ पिछड़े लोगों के लिए अपनेआप आरक्षित हो गया ।

7) विसंगति :-  इस आरक्षण के सिद्धांत से कई सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक रूप में पिछड़े और आर्थिक रूप में पिछड़े सवर्ण को इसका लाभ नहीं मिलता है ।

8) आरक्षण का फॉर्मूला :-- सभी जातियों , वर्गों, समूहों को एक matrix के साथ संख्यानुपात जनसंख्या के हिसाब से आरक्षण में परिवर्त्तन की आवश्यकता है ।

Thursday, March 15, 2018

शराबनिषेध कानून में परिवर्तन


भारतीय वातावरण में जहाँ प्राकृतिक ने सभी ऋतुओं के आगमन और प्रस्थान का एक नियत समय निर्धारित है जिसमे मात्र 2 से ढाई माह ही शरद ऋतु के लिए अनुकूल हो, वैसे स्थान पर मौसम, चिकित्सा, आयुर्वेद, यूनानी,.... आदि ज्ञानों के आधार पर शराब को उपयुक्त नहीं कहा जा सकता है । धार्मिक मान्यताओं के आधार पर शराब सेवन एक बुरा व्यसन हीं नहीं अपितू गंभीर सामाजिक बुराई भी है । अतएव शराब को एक प्रथा के रुप में भारत में प्रचलित करना किसी भी रुप में जायज़ न था , न है और न होगा ।

अतएव मद्दनिषेध एक अच्छी शुरुआत हीं नहीं अपितू अच्छा संदेश भी है ।

अब बिहार में मद्दनिषेध के पश्चात के परिणाम पर नज़र डालें :--- 

1)बिहार राज्य में एक कड़े कानून के प्रावधानों एवम व्यापक प्रचार-प्रसार के पश्चात मद्दनिषेध को 100% लागू किया गया है ।

2) इस बात से सभी इत्तिफाक रखते होंगें कि मद्दनिषेध से हर वर्ग के लोगों को आर्थिक रुप से सम्पन्नता आएगी, विशेषकर अशिक्षित, अनपढ़, अकुशल मज़दूर वर्ग में ।

3) लगातार शराब सेवन  के कुप्रभावों से स्वास्थ्य की दृष्टिकोण से अधिक दुर्घटना, लीवर, हृदय रोग, डायबीटीज़, किडनी, चक्षु, गैस्ट्रिक, पेट की समस्याओं आदि असाध्य रोग के कारण या तो जीवन नरक तुल्य हो जाता है अन्यथा विवश होकर काल के गाल में समाना पड़ता है ।

4)किसी भी निषेधात्मक कार्य को प्रशासन के द्वारा शत प्रतिशत लागू करने से इंस्पेक्टर राज की मदद से भ्रष्टाचार में बढ़ोत्तरी अवश्यम्भावी है ।

5) जिसका भय था वही बिहार में हो रहा है । भय के वातावरण के कारण पुलिस, प्रशासन, इंस्पेक्टर की चांदी ही चांदी है ।

6) प्रश्न है कि अशिक्षित या लत के कारण कुछ व्यक्ति कभी कभार शराब सेवन कर ही रहे हैं । शराब की आपूर्ति व्यवसाय कालाबाज़ारी के रुप में फलने फूलना लगा है जिसमें प्रशासन की सहभागिता भी परिलक्षित हो रहा है । कारण कि अगर पूर्ण शराबबन्दी में शराब मिलता क्यों है । अगर मिलता है , तो उसके लिए उत्तरदायी कौन है । निश्चित रुप में प्रशासन या कालाबाज़ारी करने वाला, अन्यथा कोई शराब पीता ही नहीं ।

7) शराब पीने के पश्चात अगर प्रशासन किसी को कानूनी रुप मे दोषी मान लिया तो सजा अर्थात जेल । पर हो यह रहा है कि सामर्थ्यवान अधिक खर्च कर कालाबाज़ारी से शराब प्राप्त कर सेवन करते हैं और पकड़े जाने पर पैसे के बल पर प्रशासन से बरी हो जा रहे हैं ।
परन्तु गरीब कम पैसे रहने के कारण उच्च भ्रस्टाचार की आपूर्ति करने की अवस्था के कारण जेलों में बन्द हो रहे हैं ।
कई कारागार में 45000 कैदियों में से 44000 कैदी मात्र शराब सेवन के दोषी के कारण बन्द हैं ।

8) अर्थात रोजगार करने वाला असंगठित गरीब मज़दूर जेलों में बंद है । इसके लिए दोषी कौन है ?

9) अगर शराब बिहार में नहीं बिकती तो ये लोग नहीं पीते । कोई माफिया है जो प्रशासन की साँठ गाँठ से शराब लाता है ।  बाहर से कालाबाज़ारी न रोकने से भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है और उसके बाद पीने पर भ्रष्टाचारी के सौदेबाज़ी में जो फंस गए , वह जेल की शरण में है । कुल मिलाकर अभी के नियम से भ्रष्टाचार में बढ़ोत्तरी हो रही है ।

10) अतएव राज्य सरकार से निवेदन है कि मानव शक्ति में कारागार के कारण जो ह्रास हो रहा है और जमानत में न्यायालयों में राशि व्यय होने के बाद भी ट्रायल में गरीब की परेशानी को ध्यान में रखकर साथ ही भ्रष्टाचार में कमी लाने के उद्देश्य को देखते हुए पुनः मद्दनिषेध कानून में परिवर्तन की जाय ।

Tuesday, January 2, 2018

मेरा खोया 55 बसन्त

मैंने अपने जीवन के 55 वसंत पूरे कर लिया हूँ और आज हीं की तारीख को रात 11:25 बजे 56 वें वर्ष में प्रवेश करूँगा ।

जिन्दगी अनमोल है जो बहुत कुछ आज तक दिया है परंतु  मैं इस वेला में माँ जो मुझे इस धरा पर अवतरित की उसको खो देने के दुःख से मन और शरीर दोनों बोझिल है । माँ के दूध का कर्ज चुका न सका ।

53 वसन्त तक मेरे जन्मदिन के शुभ अवसर पर पौष मास में जन्म के कारण पुसही खीर, दाल पीठा , गुड़ पीठा , आलू दम व्यंजन के रूप में बनना तय था । बाद के वर्षों में मेरी पत्नी को इसी प्रकार का व्यंजन बनाने हेतु याद दिलाती थी । खैर माँ की परम्परा का अनुपालन हो रहा है । आज के दिन मेरी माँ की खुशी देखते बनती थी ।

मैं इधर कोई भी विशेष दिवस को  माँ की याद में भाव विह्वल होकर उनकी यादों में खोकर शक्तिहीन होने लगता हूँ ।

पिताजी/बहनें/अग्रजों/ अनुजों आपकी शुभकामनाएं का बोझ भी कम नहीं है । मैं अपने सभी अजीज बड़ों एवम छोटों की शुभकामनाओं के लिए व्यथित हूँ क्योंकि मेरे पास मां नहीं है । शायद आपकी दुआएं मां की कमी को पूरा कर दे ।

लगातार की गई मेरी गलती को फिर मेरी माँ की तरह माफ कीजियेगा । सभी बड़ों को प्रणाम और अनुजों को शुभस्नेह ।

माँ!तुझे नमन ।