Saturday, December 12, 2015

माँ मुंडेश्वरी (भवानी मंदिर) कैमूर , भभुआ, बिहार

मुण्डेश्वरी भवानी मंदिर-एक संक्षिप्त परिचय

ऐतिहासिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक विशिष्टता के लिए विख्यात मुण्डेश्वरी शक्तिपीठ देश की प्रागैतिहासिक धरोहर है। मंदिर परिसर से प्राप्त शिलालेख (108) ई0 एवं चतुर्दिक बिखरे पुरावशेषों के आधार पर यह निर्विवाद रुप से प्रमाणित हो चुका है कि यह देश का प्राचीनतम हिन्दू मंदिर है। जहाँ दो हजार वर्षों से पूजन की प्रक्रिया लगातार जारी है।

ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी द्वारा कराये गये सर्वेक्षण के दौरान सन् 1891-92 ई0 में यहाँ से प्राप्त एक शिलालेख खण्ड ने सर्वप्रथम मंदिर की ओर इतिहासकारों का ध्यान आकृष्ट किया। शिलालेख का दूसरा खण्ड सन् 1902 ई0 में प्राप्त हुआ जिस पर शिलालेख की तिथि खुदी है। शिलालेख के दोनों खण्डों को जोड़ने पर संस्कृत भाषा और ब्राहमी लिपि में उत्र्कीण 18 पंक्तियाँ मिलीं। शिलालेख का वाचन प्रसिद्ध इतिहासकार आ0डी0 बनर्जी एवं एन0जी0 मजूमदार द्वारा किया गया। जिससे पता चला कि यहाँ नारायणदेवकुल (विष्णु) के मंदिर का एक समूह था। उस समय महाराज उदयसेन का शासन था। दण्डनायक गोमीभट्ट ने कुलपति भागुदलन की आज्ञा से विनितेश्वर मठ का निर्माण कराया। विभिन्न विद्धानों द्वारा शिलालेख की तिथि 635-36 ई0 से 350 ई0 तक बतायी गयी किन्तु वर्ष 2003 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा मंदिर परिसर से महान श्रीलंकाई सम्राट महाराजु दुतिगामिनी (101-77 ईसा पूर्व) की राजमुद्रा प्राप्त करने के बाद स्थिति बदल गयी। बिहार राज्य धार्मिक न्यास पर्षद द्वारा 2008 ई0 में पटना में देश भर के इतिहासकारों एवं पुरातत्वविदों का सम्मेलन कराया गया। जिन्होनें गहन शोध एवं विमर्श के बाद शिलालेख की तिथि 108 ई0 निर्धारित की। उन्होनें यह भी घोषित किया कि मुण्डेश्वरी भवानी मंदिर देश का प्राचीनतम हिन्दू मंदिर है। वर्तमान में मुण्डेश्वरी शिलालेख नेशनल म्यूजियम कोलकाता में संरक्षित है।

प्राकृतिक परिवेश

बिहार प्रदेश के कैमूर जिलान्तर्गत भगवानपुर प्रखण्ड में 182.8 मीटर उँची प्रवरा पहाड़ी के शिखर पर मुण्डेश्वरी भवानी का मनोहारी मंदिर स्थित है। शिखर से देखने पर दक्षिण तथा पश्चिम में कैमूर पहाड़ी श्रृंखला लता- गुल्मों से पूरित, वन्य पुष्पों से अलंकृत एवं शीतल सुगंधित वायु के झोकों से प्रकंपित अपनी दूरस्थ बाहें फैलाये देवी के चरणों में सर्वस्व समर्पण के भाव में प्रतिश्रुत दिखायी देती है। वहीं उत्तर और पूर्व के खुले मैदानों में नहरों की पंक्तियाँ, लहलहाती हरी -सुनहली फसल,ें सुरभित आम्रकुंज, बगीचे एवं कूप श्रद्धालुओं पर्यटकों की सारी थकान दूर कर उन्हें तृप्त कर देते हैं। लगता है प्रकृति ने पूरे मनोयोग से जगद्जननी के लिए इस अप्रतिम परिवेश की रचना की है।

बगल की पहाडि़यों में स्थित तेल्हाड़ कुंड, करकटगढ़ आदि जल प्रपात (झरने), अद्भुत जंगल, वन्य-पशु पक्षी एवं तमाम रमणीय प्राकृतिक सुषमा से परिपूर्ण स्थल हैं, जिनका भ्रमण एवं दर्शन अलौकिक आनंद से भर देता है।

धार्मिक न्यास पर्षद द्वारा धाम परिसर में एक सुसज्जित उपवन (पार्क) लाल पत्थरों वाला अतिथि गृह, धर्मशाला, पुष्करणी (तालाब) सहित स्तरीय पर्यटक सुविधाएँ उपलब्ध करायी गयी हैं। प्रबन्ध समिति श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों की सेवा में सदैव तत्पर रहती है।

अहिंसक/रक्तहीन बलि

मुण्डेश्वरी भवानी सात्विक श्रद्धा का पुंज हैं। जगद्जननी की ऐसा वात्सल्यपूर्ण मूर्ति अन्यत्र कहीं नहीं है। इस बात का प्रमाण यहाँ संपन्न होने वाली अनूठी बलि प्रक्रिया है। अनेक लोग इसे आश्चर्यपूर्ण एवं रहस्यात्मक भी मानते हैं। बलि के लिए माँ की मूर्ति के समक्ष लाए गए बकरे पर पुजारी मंत्रपूत अक्षत-पुष्प छिड़कते हैं और बकरा बेहोश सा होकर शांत पड़ जाता है। पुनः पुजारी द्वारा अक्षत पुष्प छिड़कते हीं जागृत होकर बकरा डगमगाते कदमों से स्वयं मुख्य द्वार से बाहर चला जाता है। इस प्रकार रक्तहीन बलि संपूर्ण होती है। सचमुच यहाँ जगद्माता साक्षात विराजती हैं तभी तो अपनी संतान का वध नहीं चाहती बल्कि उसके सर्वस्व समर्पण से पुलकित होकर चिरजीवन का वरदान देती हंै। ब्रहमांड नियंता एवं सर्जक मातृशक्ति के इस अपूर्व विग्रह के दर्शन मात्र से हीं मनुष्य के सारे कष्ट समाप्त हो जाते हैं और उसे दीर्घ जीवन प्राप्त होता है।

रंग बदलता शिवलिंग

मुण्डेश्वरी भवानी मंदिर के गर्भगृह के मध्य में स्थित काले पत्थर का पंचमुखी शिव लिंग भी अत्यंत प्रभावकारी एवं अद्वितीय है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार यह सुबह, दोपहर एवं शाम को सूर्य की स्थिति परिवर्तन के साथ विभिन्न आभाओं में दिखायी देता है। यह अनंत जागृत शिव लिंग इस स्थान की रहस्यात्मकता एवं पारलौकिक प्रभाव का अद्भुत नमूना है।

                                                                                                                                           

श्री यन्त्र के स्वरुप में निर्मित

माँ मुण्डेश्वरी का मंदिर पूर्णतः श्री यन्त्र पर निर्मित है। इसके अष्टकोणीय आधार एवं चतुर्दिक अवस्थित भग्नावशेषों के पुरातात्विक अध्ययन के पश्चात् यह तथ्य प्रमाणित हो चुका है। प्राचीन भारतीय वास्तु शिल्प की चरम उपलब्धि है- श्री यन्त्र। श्री यन्त्र पर निर्मित मंदिर अष्टकोणीय आधार पर स्थित त्रिविमीय(Three Dimensional) होता है। जो मुण्डेश्वरी मंदिर के देखने से स्पष्ट है। धार्मिक आध्यात्मिक दृष्टिकोण से श्री यन्त्र आधारित मंदिर में अष्ट सिद्धियाँ तथा संपूर्ण देवी देवता विराजमान होते हैं। इस मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करते हीं व्यक्ति तनाव, थकान तथा विभिन्न मनोविकारों से तत्काल मुक्ति प्राप्त करता है। चित शांत एवं एकाग्र हो जाता है। शास्त्रों में उल्लिखित है कि श्री यन्त्र के प्रभाव से मनुष्य के सारे दुखः समाप्त हो जाते हंै एवं उसे सुख, समृद्धि, आरोग्य एवं दीर्घ जीवन प्राप्त होता है। साधकों के लिए यह स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है जहाँ आसनस्थ होने पर ध्यान तत्काल ईष्ट की ओर उन्मुख होता है और यहाँ स्थित विशिष्ट उर्जा उन्हें विभिन्न बाधाओं से मुक्त कर शीघ्र वांछित फल प्रदान करती है। यही कारण है कि नवरात्र काल ,श्रावण एवं माघ महीनों में लाखों श्रद्धालुओं के साथ-साथ सैंकड़ों साधक देश के विभिन्न क्षेत्रों से यहाँ साधना हेतु पहँुचते हंै। श्री यंत्र पर निर्मित मुण्डेश्वरी मंदिर पहुँचकर कोई व्यक्ति इस विशिष्ट प्रभाव को सहजता से अनुभव कर सकता है।

तांत्रिक महत्व

प्राचीन मनीषी तथा आधुनिक वैज्ञानिक भी यह मानते हैं कि प्रत्येक भूखण्ड (स्थान) की एक विशिष्ट चुम्बकीय शक्ति होती है। इसी शक्ति के अनुपात से वास्तुशास्त्री किसी भूखण्ड की विशिष्ट अवस्थाओं का निरुपण एवं निर्धारण करते हैं। इसी शक्ति से संपन्न वारामूला त्रिकोण आज भी विज्ञान के लिए एक रहस्य बना हुआ है। प्रवरा पहाड़ी के उपर स्थित श्री यन्त्र पर निर्मित मुण्डेश्वरी भवानी मंदिर भी अपनी अनंत उर्जा प्रवाहिनी शक्ति के कारण श्रद्धालुओं एवं साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। अधोमुख त्रिकोणीय प्रवरा पहाड़ी पर स्थित अष्टकोणीय आधार वाला मंदिर तथा गर्भगृह में स्थापित मूर्तियां विशिष्ट भू-चुम्बकीय एवं तांत्रिक स्थिति का सृजन करती हैं। जहाँ सकारात्मक उर्जा का अजस्त्र प्रवाह निरंतर जारी रहता है। इस प्रवाह में व्यक्ति के समस्त भौतिक-शारीरिक दुखों का समाधान करने की शक्ति है। साथ हीं उसकी आध्यात्मिक उन्नति होती है। जीवन संपूर्णता को प्राप्त होता है। अनंत उर्जा प्रवाह से परिपूरित मुण्डेश्वरी भवानी मंदिर बाह्य रुप से जड़ दिखायी देने के बावजूद स्पंदित-सजीव है और यही कारण है कि यहाँ हजारों वर्षों से पूजन एवं साधना की प्रक्रिया लगातार जीवंत है। यहाँ एक अपूर्व शांति है, श्मशान की नहीं, उल्लासपूर्ण, अवसादहीन तपोवन की शांति। सात्विक सरलता से पूरित यह परिवेश चिंतन , मनन एवं आध्यात्मिक उत्थान की प्रेरक भूमि है।

                                                                                                                                             

धार्मिक एवं सामुदायिक समन्वय का प्रतीक

बिहार धार्मिक न्यास पर्षद द्वारा प्राप्त ऐतिहासिक पुरातात्विक प्रमाणों से यह सिद्ध हो चुका है कि पहली सदी ईसा पूर्व तक यह मंदिर अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुका था। सन् 2003 ई0 में शोधकर्ताओं द्वारा मंदिर परिसर से प्राप्त महान श्री लंकाई सम्राट महाराजु दुतिगामिनी की राजमुद्रा से इस तथ्य की पुष्टि हुयी है।

मंदिर परिसर से प्राप्त शिलालेख (108 ई0) के अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि यहाँ नारायणकुल (विष्णु) के मंदिरों का समूह था। जिसके प्रधान देवता मण्डलेश्वर स्वामी थे। बाद में शैव मत की प्रधानता के काल में विनितेश्वर (शिव) यहाँ प्रधान देवता के रुप में पूजित हुए। कालांतर में शाक्त मत की प्रबलता होने पर मण्डलेश्वर की अद्र्धांगिनी मण्डलेश्वरी (मुण्डेश्वरी अपभ्रंश ) प्रमुखता से सुपूजित हुयीं। संभवतः यह परिवर्तन मातृ्पूजक चेरों राजाओं के शासन काल में हुआ। एक हीं गर्भगृह में सूर्य (विष्णु), शिव एवं वैष्णवी देवी की उपासना अद्भुत एवं समन्वयकारी है। जो निर्माताओं के धर्म के शास्वत स्वरुप से निकटता का परिचायक है और तत्कालीन परिस्थतियों में अद्भुत है।

आज जब धार्मिक एवं सांप्रदायिक विवाद देश और समाज के लिए गहन चिन्ता के कारण बने हुए हंै, मुण्डेश्वरी के निर्माताओं ने हजारो वर्ष पूर्व हीं शांति और सहिष्णुता का मार्ग दिखा दिया था। यहाँ प्राप्ति की नहीं त्याग की शास्वत परंपरा है जो मनुष्यता का आधार है।

                                                                                                                                                     

व्यवस्था

मंदिर एवं परिसर के संरक्षण, विकास एवं पर्यटक सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए बिहार सरकार के अधीन धार्मिक न्यास पर्षद द्वारा समुचित व्यवस्था की गयी है। प्रबंध समिति के पदेन अध्यक्ष जिला पदाधिकारी, कैमूर, सह-सचिव प्रखण्ड विकास पदाधिकारी, भगवानपुर तथा समिति के सदस्यगण निरंतर पर्यटकों की सुविधाओं का ख्याल रखते हैं। पर्यटक उनसे संपर्क कर अपनी किसी प्रकार की कठिनाई से अवगत कराकर तत्काल निदान पा सकते है।

संपर्क हेतु फोन नम्बर-

1. जिला पदाधिकारी - 06189-223250-223241

2. प्रखण्ड विकास पदाधिकारी - 06189-264237

3. केयर टेकर, पर्यटक भवन ,मुण्डेश्वरी धाम - 09955237430

कैसे पहुँचें----

निकटतम हवाई अड्डा- वाराणसी, गया तथा पटना

रेलमार्ग- ग्रैण्ड कार्ड रेल लाईन पर मुगलसराय एवं सासाराम रेलवे स्टेशन के बीच स्थित भभुआ रोड रेलवे स्टेशन से उतरकर वहाँ से सड़क मार्ग द्वारा मुण्डेश्वरी मंदिर पहुँचा जा सकता है।

वाराणसी से गया रेल मार्ग पर भभुआ रोड रेलवे स्टेशन से उतरकर सड़क मार्ग से मंदिर पहुँच सकते हैं।

वाराणसी से गया सड़क मार्ग से जानेवाले पर्यटक मोहनियाँ होते हुए मुण्डेश्वरी मंदिर का भ्रमण कर सकते हैं।

सौजन्य:- माँ मुंडेश्वरी फेसबुक पेज द्वारा

Sunday, November 29, 2015

भारत में धर्म/पंथ की व्याख्या

भारत में धर्म /पंथ की व्याख्या

वर्णवादी या हिन्दूवादी धर्म व्यवस्था भारत में सहिष्णुन्ता के रूप में सनातन काल से जिस जीवनपद्धति से जीवन यापन की पद्धति अपनाई है वह वर्ण व्यवस्था भारत में समूहों को जन्म दिया जिसमे एक समूह हरिजन और दलित को आज तक छुआछूत के दंश से अभिशप्त जीवन यापन करने को मजबूर है जिसके चलते आधुनिक भारत के निर्माता डॉ भीम राव अम्बेडकर तक को हिन्दू धर्म को छोड़ना पड़ा था और विडम्बना यह है कि इस कुचक्र में हिन्दू धर्म के बहुसंख्यक वैश्य वर्ण भी सम्मिलित था जबकि वह भी कई सामाजिक कुरीतियों का शिकार था । आजाद भारत में देश की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखने हेतु हिन्दू धर्म की इस वर्ण कुरीति के कारण संविधान में सामाजिक , आर्थिक एवं राजनीतिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए आरक्षण की व्यवस्था करनी पड़ी । पता नहीं इस आरक्षण की व्यवस्था कितनी सदियों तक लागू किया जायेगा तब हिन्दू वादी वर्ण व्यवस्था द्वारा उपजा असमानता का शिकार वर्ण समानता का अधिकार प्राप्त करेगा ।

पुनः संसद भवन में हिन्दू जीवन पद्धति का हवाला देकर एक सम्प्रदाय बिशेष को देश के सर्व धर्म समभाव की परिभाषा के विपरीत धर्म निरपेक्ष की सुविधानसुसार व्याख्या प्रारम्भ कर दी गयी है । पूर्व में दलितों को सामाजिक और आर्थिक रूप में उत्पीड़न के लिए जो शक्ति जवाबदेह थी वही हिंदूवादी मानसिकता पुनः अपनी वर्चस्व को कायम करने के निमित्त सुविधानुसार नयी धर्म निरपेक्ष की परिभाषा गढ़कर देश की 15% आवादी को अलग थलग कर बहुसंख्यक की आँख में धुल झोंककर सत्ता का रसास्वादन करना प्रारम्भ कर दिया है जो एक राजनीतिक और सामाजिक षडयंत्र है । यह नयी षडयंत्र भविष्य में एक ऐसी कुरीति को  जन्म देगी जिसके सोंचने मात्र से शरीर में प्रत्येक संवेदनावान व्यक्ति सिहर उठता है जो देश की एकता अखंडता के लिए घातक तो है ही साथ ही साथ इस कुरीति को उखाड़ने के लिए एक नए डॉ भीम राव अम्बेडकर को भारत में नए रूप में अवतार लेना होगा ।

Wednesday, November 4, 2015

बीजेपी का अभिवयक्ति की स्वतंत्रता का पाखण्ड

बीजेपी का कथानायक फणीश्वरनाथ रेणु के साथ उजागर दोहरा चरित्र एवं अभिव्यक्ति का पाखंड

वैसे तो भा ज पा बात बात में देश में असहिष्णुनता की चर्चा के विरोध में यह कहती है कि देश में इमर्जेंसी के वक्त तथाकथित साहित्यकार राष्ट्रीय पुरस्कार लौटने वाले कहाँ थे । उनकी देशभक्ति मर गयी थी क्या?
इतिहास साक्षी है कि इमर्जेंसी के समय जेल जाने वाले देश के सर्वश्रेष्ठ आंचलिक कथाकार स्वर्गीय फणीश्वरनाथ रेणु जी अपने साहित्य जगत की उपलब्धि का राष्ट्रीय पद्मश्री पुरस्कार को पाप श्री पुरस्कार कहते हुए भारत सरकार को लौटाकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मिशाल देश में की थी । यहाँ यह भी बता दूं क़ि रेणु जी अति पिछड़ा शोषित समाज धानुक कुर्मी जाति के थे ।
श्री रेणु जी के सुपुत्र को गत चुनाव में बीजेपी के प्रत्याशी थे और उनके सुपुत्र श्री पद्म पराग वेणु जी बी जे पी के प्रत्यासी के रूप में अररिया हीं पूरे सीमांचल क्षेत्र पूर्णिया कमिश्नरी में रिकार्ड मत से जीते थे ।
2015 के विधानसभा चुनाव में रिकार्ड मत से निर्वाचित रेणु जी के अतिपिछड़ा वर्ग/शोषित समाज को भाजपा ने उम्मीदवार ही नहीं बनाया ।

यह है शोषित और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का बीजेपी का पाखंड ।

Monday, November 2, 2015

नमो द्वारा सर्वश्रेष्ठ कथानायक फणीश्वरनाथ रेणु का अपमान

Padam Parag Roy Venu की कलम से -----++++++

नमो का सर्वश्रेष्ठ कथाकार स्वर्गीय फणीश्वर नाथ रेणु  हिंदी साहित्यकार के साथ अपमान 

पिछली बार पीएम मोदी एमपी के चुनावी सभा को सम्बोधित करने पुर्णिया और फारबिसगंज आए थे तो उन्होंने महान साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु का नाम लेकर उनका महिमा मंडित किया था और जब इस वर्ष सितम्बर में भोपाल में विश्व हिंदी सम्मेलन को सम्बोधित कर रहे थे तो सबसे पहले रेणु का नाम लेकर कहा था कि रेणु साहित्य को पढे बगैर बिहार को और वहाँ कि गरीबी को नहीं जाना जा सकता।बडे हीं दुख कि बात है कि जब प्रधानमंत्री बनने के बाद कल 2 नवम्बर को जब बिहार चुनाव के आखिरी चरण के लिए रेणु कि धरती फारबिसगंज में चुनावी सभा में एक बार भी उस रेणु का नाम तक नहीं लिया।क्या यह साहित्यकार और साहित्य जगत का अपमान नहीं है? यह एक बहुत हीं बडा सवाल है आखिर क्यों मोदी जी?रेणु कि हीं धरती पर उन्हें भुला दिया।

Saturday, October 31, 2015

प्रधानमंत्री के वक्तव्य सतही या अवसरवादिता

प्रधानमंत्री श्री नमो का वक्तव्य अवसरवादिता या सतही-----+++++++

भारत में कई प्रधानमंत्री हुये । राजनीतिक रूप में आजादी में सक्रियता एवं भागीदारी महात्मा गांधी जी, लौह पुरूष सरदार पटेल जी , चाचा पंडित जवाहरलाल नेहरु, श्री लाल बहादुर शास्त्री से जुड़े राजनीतिक संगठन कोंग्रेस को देश की आजादी के बाद सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री पद को विभिन्न नेताओ द्वारा देश की सेवा करने का अवसर दिया । गैर कांग्रेसवाद की राजनीति के बाद कई दूसरे राजनीतिक दल के नेता को भी प्रधानमंत्री बनने का अवसर प्राप्त हुआ । वर्तमान राजनीतिक कालखंड में गैर बीजेपी बाद की राजनीति की पदचाप सुनायी पड़ती है ।

देश की आज़ादी के समय जो व्यक्ति आर्थिक रुप में जितना अमीर और शैक्षणिक योग्य रहने के वाबजूद सारी भौतिकतावादी सुख को त्याग कर देश की सवतंत्रता के लिए अपना समर्पण किया तब जनता उसके त्याग और बलिदान को आदर्श मानकर उसका अनुकरण करते हुए उसका नेतृत्व में पूर्ण आस्था प्रकट करते थे । इसी कड़ी में महात्मागांधी, पटेल,चाचा नेहरु, राजेन्द्र प्रसाद, शास्त्री जी....आदि नेताओं की गिनती होती है ।

बाद के कालखंड में भी कई नेता अपने विलक्षण राजनीतिक सोंच, ज्ञान, समाज में समर्पण, सौम्यता, सहिष्णुता, तार्किक शक्ति, नेतृत्व क्षमता....आदि गुणों के कारण भी राजनैतिक क्षितिज के शीर्ष तक पहुँच पाये जैसे इन्दिरा गांधीजी, अटल बिहारी वाजपेयी जी, वी पी सिंह, चंद्रशेखर सिंह....। इसी कड़ी में कई और नेता भी हैं जो राजनीतिक क्षितिज पर देश के योगदान एवं सर्वांगीण विकाश में अहम् भूमिका अदा किये ।

उपरोक्त वर्णित सभी राजनेताओं के द्वारा अपने भाषणों में आत्मप्रशंसा के शब्दों का कहीं उल्लेख नहीं मिलता है, मसलन महात्मा गांधीजी , चाचा नेहरू, पटेल...... द्वारा अपनी शैक्षणिक और आर्थिक बलिदानों को जनता के सामने नहीं परोसते थे । कभी किसी ने शास्त्री जी द्वारा स्ट्रीट लैम्प पोस्ट में अपनी पढ़ाई पूरी किये जाने का दृष्टान्त नहीं मिलता है ।ऐसा ही उदहारण बाद के नेताओं जैसे आडवाणी के भाषणों में अपने को शरणार्थी कहते हुए कोई उदहारण नहीं है ।

वर्तमान में बीजेपी के कई नेता तो नेता स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने को चाय बेचनेवाला, कभी ट्रेन में चाय बेचने का जिक्र करना, कभी अपने को पिछड़ा का रहनुमा घोषित करना, कभी सवयं को अति पिछड़ा कहकर जनता की संवेदना के साथ जुड़ना को समाज के कई वर्गों में चुनाव के समय दिया गया वक्तव्य प्रधानमंत्री के पद की मर्यादा के विपरीत मानते हैं ।मेरे मतानुसार इस तरह का वक्तव्य पूर्णतः राजनैतिक स्वार्थ सिद्धि साधने का शार्ट कर्ट जरिया है ।

वर्तमान प्रधानमंत्री नमो के उदबोधन की उपर्युक्त तथ्य पूर्णतः अवसरवादिता एवं सतही सोंच का परिचायक है ।
Ashutosh Atharv :-आग के साथ आग बन मिलो पानी के संग पानी, गरल का उतर है प्रतिगरल यही कहते जग के ग्यानी
  आपके प्रस्तुति से शिकायत नही पर तार्किक परिणति तक पहूचने के लिए सभी रथियो के सिद्धान्त. मन कर्म वचन पर तुलनात्मक विचार होता तो अच्छा होता
लेखक :- विचार तो सिर्फ एक ही संगठन के पास है आर एस एस उसके इतर लिखने बोलने पर मैं देशद्रोही या पाकिस्तानी हो जाऊंगा । मेरी भी संविधान में आस्था है परंतु लगता है या मह्शूश होता है क़ि मैं भी क्या बोलूं क्या लिखूँ क्या खाऊँ लिखने/बोलने/खाने के पहले मेरे चारों ओर कुछ अदृश्य शक्तियाँ हैं उनसे सहमति ले लेनी चाहिए । आज से 18 माह पहले ऐसा वातावरण नहीं था । एक बात और तुमसे( छोटा होने के कारण)  ताकीद करता हूँ, क्या तुमने कभी कुछ लिखने के पहले किसी दूसरे से रॉय या इतिफाक रखते हो क्या ? तुम तो नौजवान हो तुममें कब से फाँसीवाद का गुण आ गया ? चिन्तनीय!

अडाणी अरहर मोदी के लिये तुरुप का पत्ता

अडानी अरहर मोदी के लिए तुरूप का पत्ता-+++++

देश में अना वृष्टि के कारण दलहनी फसल के उत्पादन में कमी के आकलन को ससमय केंद्र सरकार द्वारा नहीं किये जाने एवं दाल की कमी के आयात के लिए एकमात्र व्यवसायी अडानी ग्रुप को सौंपने एवम् आयात के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में अडानी के नजदीक के व्यवसायी द्वारा जमाखोरी कर दाल की किल्लत कर आम जनता से अधिक मूल्य में दाल की कालाबाज़ारी का सत्य श्री अरहर मोदी को स्पष्ट करना चाहिए और न खाऊँगा न खाने दूँगा का सत्य देश को बतलाना चाहिए ।

मित्रों की समीक्षा
दीपक जयसवालजी:- Sir Price rise of Pulses is failure of Governance... it was already predicted about 10 % fall in production due to scanty rainfall this year.. how could price rise 200%???... Hoarders mostly from BJP ruled states took it as opportunity due to softness of state governments towards them....
जीतेन्द्र कुमारजी :- इंडिया पल्सेज ग्रेंस एसोसिएशन के साथ अदाणी ग्रुप ने अपने पोर्ट्स पर दाल और दलहन के रखरखाव के लिये एक समझौता किया है। दरअसल यह समझौता जब दालों में तेजी का दौर चल रहा है और इस समझौते की वजह से देश भर में दालों की लागत के अनुसार प्रभावी आपूर्ति सुनिश्चित करना है।

यह समझौता आदाणी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनामिक जोन यानि एपीएसईजेड ने आईपीजीए के साथ समझौता कर लिया है। इसके साथ ही अदाणी के पोर्ट्स पर दाल दलहन के रखरखाव के लिये ही यह समझौता हुआ है। वास्तव में यह समझौता हो जाने के बाद पोर्ट्स की सुविधाओं के इस्तेमाल से दाल दलहन की आपूर्ति को विकसित किये जाने में और सहायता हो सकेगी और इससे दाल व दलहनों की आपूर्ति में बढोत्तरी सुविधाजनक तरीके से हो सकेगी।
(भलाई का जमाना ही नहीं रहा।डूबते को बचाना भी गुनाह है)
लेखक:- भलाई के लिए देश में अडानी हीं एकदेश भक्त नज़र आते हैं । आयातित दाल में विलम्ब या देश में कालाबाज़ारी के लिए कौन जवाबदेह है क़ि यह कालाबाज़ारी भी जनता की भलाई में किया गया है । अच्छी कहावत आपने बताई डूबते को बचाना.... डूबते को बचाने के नाम पर डूबने वाले व्यक्ति की पूरी जमीन रजिस्ट्री करवा डाली और देश भक्त होने का प्रमाण भी ठोकवा लिया ।
जीतेन्द्र कुमार :- अपना सब समस्या अडानी अम्बानी पर! उद्योगपत्तियों और व्यवसयायियों पर कम्युनिस्टि सोंच से बिहार का विकास होगा क्या ?
लेखक :- अडानी सोंच से विकास होगा ? देश के सबसे शुभचिंतक 125 करोड़ में अडानी हीं हैं । मैं जन्म से व्यवसायी के यहाँ रोजमर्रा के सामानों की आपुर्ति हेतु पन्सारी की दूकान में जाता था । तौल में पन्सारी आँख बंद डिब्बा गायब कर देते थे ।फेरीवाला/ समानो की अदलाबदली वाला ....किस किस का नाम गिनाऊँ । अरे भाई बिहार में एक कहावत है दही के अगोरिया बिलाई ।
जीतेन्द्र कुमार :- जी ! 60 साल के रूल में यही दो-चार बना पाये हैं...क्या करें! हम पर भरोसा न हो तो पप्पू से पूछ लीजिए..साथ ही बैठा होगा।
लेखक:- पप्पू से क्यों पूंछे? हर बात में पप्पू जुमला कब तक? जवाबदेही लेना सिखो भाई । कल बच्चा पैदा होगा उसके लिए भी पप्पू ।बहस को सार्थक तर्क के साथ । 60 साल तक जनता पप्पू के साथ थी इस बार जनादेश आपकी है । आप तो पूर्व में आपके वंशज जो जनादेश दिए उसको भी गाली दे रहे हैं ।
जनक कुमार सिंह जी :- किन्तु कृषि राज्य का विषय है। फसलों के उत्पादन का आकलन राज्य सरकारों का दायित्व है।
लेखक :-क्या कांग्रेस के ज़माने में सामानों की किल्लत और उसका आकलन राज्य सरकारों का नहों था ? दूसरा देश के कितने प्रदेशों में बीजेपी शाषित राज्य हैं । उन राज्यों के आकलन से औसत निष्कर्ष के आधार पर मांग आपूर्ति के सिद्धान्त पर ससमय यथोचित कारवाई करनी चाहिये थी । कार्यवाई भी की गयी परंतु चहेते अडानी ग्रुप के साथ जो दाल लाकर भी सरकार के मुफीद  जमाखोरों को कलवाज़री में प्रत्यक्ष रूप में मदद तो नहीं कहूँगा लेकिन सरकार के सांठगाठ या संलिप्तता के बिना मात्र 10% उत्पादन में कमी के नाम पर दाल की कीमत 200% ऐतिहासिक मूल्य तक नहीं पहुँचता ।

Friday, October 30, 2015

ब्यूरोक्रेसी का सत्य

Rakesh Gupta 80 batchBCE Patna की मर्मस्पर्शी प्रस्तुति.......-----------+
ब्यूरोक्रेसी का सत्य

एक बड़े मुल्क के राष्ट्रपति के बैडरूम की खिड़की सड़क की ओर खुलती थी। रोज़ाना हज़ारों आदमी और वाहन उस सड़क से गुज़रतेथे। राष्ट्रपति इस बहाने जनता की परेशानी और दुःख-दर्द को निकट से जान लेते।राष्ट्रपति ने एक सुबह खिड़की का परदा हटाया। भयंकर सर्दी। आसमान से गिरते रुई के फाहे। दूर-दूर तक फैली सफ़ेद चादर। अचानक उन्हें दिखा कि बेंच पर एक आदमी बैठा है। ठंड से सिकुड़ कर गठरी सा होता।
राष्ट्रपति ने पीए को कहा -उस आदमी के बारे में जानकारी लो और उसकी ज़रूरत पूछो।
दो घंटे बाद।
पीए ने राष्ट्रपति को बताया - सर, वो एक भिखारी है। उसे ठंड से बचने के लिए एक अदद कंबल की ज़रूरत है।राष्ट्रपति ने कहा -ठीक है, उसे कंबल दे दो।अगली सुबह राष्ट्रपति ने खिड़की से पर्दा हटाया। उन्हें घोर हैरानी हुई। वो भिखारी अभी भी वहां जमा है। उसके पास ओढ़ने का कंबल अभी तक नहीं है।
राष्ट्रपति गुस्सा हुए और पीए पूछा -यह क्या है? उस भिखारी को अभी तक कंबल क्यों नहीं दिया गया?
पीए ने कहा -मैंने आपका आदेश सेक्रेटरी होम को बढ़ा दिया था। मैं अभी देखता हूं कि आदेश का पालन क्यों नहीं हुआ।थोड़ी देर बाद सेक्रेटरी होम राष्ट्रपति के सामने पेश हुए और सफाई देते हुए बोले - सर, हमारे शहर में हज़ारों भिखारी हैं। अगर एक भिखारी को कंबल दिया तो शहर के बाकी भिखारियों को भी देना पड़ेगा। और शायद पूरे मुल्क में भी। अगर न दिया तोआम आदमी और मीडिया हम पर भेदभाव का इल्ज़ाम लगायेगा।
राष्ट्रपति को गुस्सा आया -तो फिर ऐसा क्या होना चाहिए कि उस ज़रूरतमंद भिखारी को कंबल मिल जाए।सेक्रेटरी होम ने सुझाव दिया -सर, ज़रूरतमंद तो हर भिखारी है। आपके नाम से एक 'कंबल ओढ़ाओ, भिखारी बचाओ' योजना शुरू की जाये। उसके अंतर्गत मुल्क के सारे भिखारियों को कंबल बांट दिया जाए।
राष्ट्रपति खुश हुए। अगली सुबह राष्ट्रपति ने खिड़की से परदा हटाया तो देखा कि वो भिखारी अभी तक बेंच पर बैठा है।
राष्ट्रपति आग-बबूला हुए।
सेक्रेटरी होम तलब हुए। उन्होंने स्पष्टीकरण दिया -सर, भिखारियों की गिनती की जा रही है ताकि उतने ही कंबल की खरीद हो सके।
राष्ट्रपति दांत पीस कर रह गए। अगली सुबह राष्ट्रपति को फिर वही भिखारी दिखा वहां। खून का घूंट पीकर रहे गए वो।सेक्रेटरी होम की फ़ौरन पेशी हुई। विनम्र सेक्रेटरी ने बताया -सर, ऑडिट ऑब्जेक्शन से बचने के लिए कंबल ख़रीद का शार्ट-टर्म कोटेशन डाला गया है। आज शाम तक कंबल ख़रीद हो जायेगी और रात में बांट भी दिए जाएंगे।राष्ट्रपति ने कहा -यह आख़िरी चेतावनी है।अगली सुबह राष्ट्रपति ने खिड़की पर से परदा हटाया तो देखा बेंच के इर्द-गिर्द भीड़ जमा है। राष्ट्रपति ने पीए को भेज कर पता लगाया। पीए ने लौट कर बताया -कंबल नहीं होने के कारण उस भिखारी की ठंड से मौत हो गयी है।गुस्से से लाल-पीले राष्ट्रपति ने फौरन से पेश्तर सेक्रेटरी होम को तलब किया। सेक्रेटरी होम ने बड़े अदब से सफाई दी -सर,खरीद की कार्यवाही पूरी हो गई थी। आनन-फानन हमने सारे कंबल बांट भी दिए। मगर अफ़सोस कंबल कम पड़ गये।राष्ट्रपति ने पैर पटके -आख़िर क्यों? मुझे अभी जवाब चाहिये।सेक्रेटरी होम ने नज़रें झुका कर कहा -सर, भेदभाव के इलज़ाम से बचने के लिए हमने अल्फाबेटिकल आर्डर से कंबल बांटे। बीच में कुछ फ़र्ज़ी भिखारी आ गए। आख़िर में जब उस भिखारी नंबर आया तो कंबल ख़त्म हो गए।राष्ट्रपति चिंघाड़े -आखिर में ही क्यों?
सेक्रेटरी होम ने भोलेपन से कहा -सर, इसलिये कि उस भिखारी का नाम 'जेड' से शुरू होता था।
Ye he aaj ka system

Thursday, October 29, 2015

राष्ट्रवाद की वर्तमान में राष्ट्रीय अवार्ड के संदर्भ में व्याख्या

अवार्ड INC या BJP के नहीं होते राष्ट्रीय अवार्ड देश के प्रतीक होते हैं । क्या बिहार में विकाश नहीं होने के लिए लोग INC विरोध के कारण श्री बाबू को भी कोसेगें । आर एस एस की कुछ सोचने के तरीके से देश में विघटनकारी तत्वों को बल मिल रहा है । जिस संगठन ने देश की गुलामी के समय अंग्रेजों का साथ दिया, जिसने राजीव गांधी के काल में कम्प्यूटरीकरण एवं FDI का विरोध किया, सत्ता में आने पर Digital India और FDI में % की बढ़ोतरी कर दी । FDI में % बढ़ोत्तरी एवं Digital India का विरोध के रूप में उल्लेख नहीं किया गया है । बीजेपी का दोहरा चरित्र उजागर हो रहा है । सरकार में बैठे लोगों  एवं उनसे जुड़े संगठनों का अर्थात मालिक का दायित्व घर में सभी लीगों को साथ लेकर चलने का दायित्व अधिक होता है और ठीक वैसे समय जब सरकार प्रचंड बहुमत से जीती हो । BJP headed वाजपेयी जी की सरकार के काल में देश में इस तरह की घटना दृष्टिगोचर नहीं हुई थी । बीजेपी के लोगों द्वारा और वह व्यक्ति जिसने पार्टी का निर्माण किया उन्होंने इशारों में देश में इमरजेंसी की आहट की बात कही है, वह तो INC के नहीं थे ।
जब देश में कांग्रेस मुक्त भारत की बात की जाती है तो निश्चित लोग सत्ता में बैठे लोग से अपेक्षा या सत्ता के बारे में आलोचना ज्यादा करेगें । आलोचना रचनात्मक भी हो सकता है और गैररचनात्मक भी । इसमें सत्ता में बैठे लोगों को साहिष्णुता दीखानी होगी लेकिन किसी भी मुद्दों को आर एस एस और इससे जुड़े संगठन और बीजेपी के प्रवक्ता ऐसे react करते हैं कि संप्रदाय या प्रगतिशील विचार के विपरीत की जल्दबाज़ी या समाज में कड़वाहट घोलनेवाला संवाद बन जाता है । बहुत से मुद्दों पर घर के मालिक को चुप्पी साधनी पड़ती है । अरे भाई राजधर्म वाजपेयी से अच्छा किसी ने नहीं निभाया और वह भी देश के बीजेपी के प्रधानमंत्री के रूप में ।
मैं RSS पर आलोचना किये और  कुछ लोग/ संगठन तमतमा जायेगें। मुझे फिरकापरस्त या देशद्रोही बतलाया जायेगा । विचारों की अभिवयक्ति स्वच्छंदता यही तो प्रजातंत्र की खूबसूरती है । देश की आज़ादी के समय यह संगठन कहाँ था । बहुत सारे संगठन देशहित में कार्य कर रहे हैं । थोड़े देर के लिए लोग /संगठन की बात मान भी लें तो यह भी एक संगठन है ।फिर मेरी आलोचना से उद्वेलित क्यों होते हैं । मैं पूरी तरह से RSS को नाकारा है क्या? मैंने कुछ बानगी प्रस्तुत की और आपलोग उद्वेलित हो जायेगें। यही है फाँसीवाद । सहिष्णुन्ता और धैर्य बनाना पड़ेगा ।  मैं आपलोग के किसी भी शब्दों को बुरा नहीं मानता । मैं तो अपना नज़रिया रख रहा हूँ ।
बिहार चुनाव के बाद आपलोग मेरी बात मान लेंगे कि पूरे भारत में बीजेपी बनाम गैर बीजेपी बाद की राजनीति में गैर बीजेपी बाद की राजनीति का केंद्र बिंदु बिहारी नीतीश कुमार होंगे ।
आप अगर बिहार में किसी खास जाति बिशेष के होंगे तब INC की प्रसिंगकता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा नहीं कर देगें । मैं आपके साथ श्री बाबू जी का उदहारण पॉजिटिव रूप में दिए और  मुझे/ बिहार में जाति वाद का मुलम्म्मा मुझ पर मढ़ दिया जायेगा। मांझी बाद/ पासवान बाद/कुश्वाहाबाद/ बीफ बाद / आरक्षणबाद क्या है ? खैर चुनाव बाद आप स्वयं देखेगें । चुनाव में कौन क्या तिकड़म या गठबंधन बनता है यह शुद्ध राजनीतिक विषय है । युद्ध में सब कुछ जायज माना गया है ।

Tuesday, October 27, 2015

भारत का चुनाव आयोग या दंतहीन बिषरहित सांप

बुरा मत मानियेगा, आपलोगों को मेरे शीर्षक में बहुत आस्था है । भारत के चुनाव आयोग को भारत के प्रजातंत्र के प्रहरी के रूप में संविधान में शक्ति प्रदत्त है जो एक निष्पक्ष और स्वतंत्र संस्था है । अब इसके गठन के बारे में जान लें , इसके गठन के लिए मुख्यतः सत्ताधारी जवाबदेह होता है जिसमें तीन सदस्य होते हैं और रोटेशन और वरीयता के आधार पर मुख्य चुनाव आयुक्त का चयन किया जाता है । इसका मुख़्य कार्य निष्पक्ष ढंग से संसदीय और विधानसभा का चुनाब का दायित्व है । चुनाव पूर्व आदर्श चुनाव आचार संघिता के प्रतिपादित सिदांतों पर चुनाव संपन्न कराया जाता है ।

भारत राष्ट्र के 15 अगस्त 1947 में निर्माण और 26 जनबरी 1952 संविधान के लागू होने के तत्पश्चात् भारत में आई ए एस अर्थात प्रशासनिक पद या कर्मी नाम की चिङिया को अंग्रेजों के साथ सात समन्दर पार फुर्र उड़ जाना चाहिए था , परंतु राजनीतिक दृढ ईच्छा शक्ति की कमी ने इसकी जडें और मजबूत कर दिया है ।इसकी जड़ के मजबूत होने का प्रमुख कारण चुनाव रुपी पर्व में जनता रुपी मतदाताओं के मताधिकार का निष्पक्ष होने नहीं देना ।राज्य से लेकर देश तक प्रजातंत्र के पालक के रूप में प्रशासनिक पदाधिकारी को अमोघ अस्त्र दे दिए जाते हैं । इनकी विश्वसनीयता कितनी निष्पक्ष है इसकी वानगी चुनाव पूर्व इनके स्थानांतरण/पदस्थापन से स्पष्ट परिलक्षित हो जाता है । चुनाव पूर्व बोली लगती है और दैनिक समाचार पत्र के प्रत्येक पृष्ठ पर स्थानांतरण पदस्थापन का समाचार प्रकाशित रहता है । प्रत्येक  जिला में जिला निर्वाचन पदाधिकारी सह जिला दंडाधिकारी की नियुक्ति के साथ गुंडा तंत्र के रूप में डंडे की चोट से जिससे आम आदमी घबराता है चुनाव का क्लिष्ट कार्य जिसमें अगर शिक्षक , तकनीकी और अभियंत्रण संवर्ग के पदाधिकारी को नहीं सलंग्न किया जाये तो धन्य हो इस चुनाव और इसकी निष्पक्षता ।तकनीकी में प्रगति के उपकरण इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की चर्चा और इसकी प्रासंगिकता का जिक्र किये बिना तो चुनाव कराने की कल्पना भी बेमानी होगी । इन सभी कार्यों में प्रशासनिक पदाधिकारी तमाशबीन बने रहते हैं।

चुनाव कार्य के संपादन में दंडाधिकारी के रूप में किसी भी प्रशासनिक पदाधिकारी की सामान्यतः प्रतिनियुक्ति  नहीं की जाती है इन्हें अनुश्रवण का खानापूर्ति कार्य सौंपा जाता है । ग्रेड पे या पे बैंड या किस श्रेणी के पदाधिकारी हैं इन मापदंडों के आधार पर प्रतिनुक्ति चुनाव कार्य में करना जिला निर्वाचन पदाधिकारी तौहिनी समझते हैं । नया नया SDC हुकुम फरमाता है । सबसे पहले यह समझ लें JDC नाम का प्रशासनिक पद हैं हीं नहीं, लेकिन  SDC नाम से जन्म के साथ पद पर आ जाता है ।नए नए जिन्हें IPC की धारा का सामान्य ज्ञान और प्रशिक्षण नहीं प्राप्त होता है उन्हें अमोघ शस्त्रों के साथ बिना इस्तेमाल की जानकारी  के साथ चुनाव रुपी कुरुक्षेत्र में अस्त्र शस्त्र भांजने भेज दिया जाता है ।लेकिन प्रशासनिक पदाधिकारी एक कार्य बहुत निपुणता से करते हैं कि किसी भी संवर्ग या कार्यालय का कोई पदाधिकारी या कर्मचारी को आकस्मिक रूप में किसी भी अवकाश या मुख्यालय छोड़ने की आवश्यकता मह्शूश हो तो वह प्रशासनिक नियमके हवाले से अनुशासनहीनता समझा जाएगा ।अमूमन तो जिला निर्वाचन पदाधिकारी अर्थात जिला का प्रशासनिक पद का मुखिया ऐसे गैर पत्रों को प्राप्त ही न करेगा।

आजकल आदर्श चुनाव आचार संहिता के नाम पर 50000रू से अधिक कैश  साक्ष्य के आभाव में ले जाने  पर रोक है । RBI के नियमानुसार यह 365 दिन सामान्य दिवस में बिना साक्ष्य के गैर कानूनी है । लेकिन 365 दिन सामान्यतः अपने कार्यों को सही रूप में सम्पादित नहीं करने के कारण अपराधियों का धर पकड़ भी दिखावे के स्वरुप इसी समय किया जाता है ।सामान्य या आम जनता में भय का वातावरण पैदा कर देना सबसे उत्तम चुनाव कराने का मापदंड है । जनप्रतिनिधि नियमों के हवाले से किसी भी प्रकार के वाहन को चुनाव कार्य में seize किये जाने की परंपरा है और जिले के कुख्यात पेट्रोल पंप के मालिक जो तेल में मिलावट के साथ साथ मीटर में छेड़ छाड़ किये रहता है वहीं से फ्यूल दिए जाने की परंपरा है ।सड़क पर कोई भी वाहन को पकड़कर भ्रष्टाचार की गंगोत्री में जापानी पुलिस पदाधिकारी अधिक वाहन क्षमता तक माल ढुलाई के नाम पर छक के पीता है । इसलिए राजमार्गों पर वाहन का परिचालन ठप हो जाता है । जबकि अधिक वाहन क्षमता से अधिक सामान ढ़ुलाई सब दिन गैर कानूनी है ।चुनाव में सामान्यतः प्रयोग के सभी स्टेशनरी, कैंडल, सुतली, कागज, pen, इंडिबले इंक ,छुरी, पॉलिथीन शीट , मेडिकल कीट, लाह, एनवलप.... आदि सामग्री की गुणवत्ता की जाँच कर दी जाय तो सामग्री के उत्पादनकर्ता / सप्लायर भी यह कह बैठेगा कि ऐसी सामग्री मैं बनाता हीं नहीँ हूँ, अगर विश्वास न हो तो मेरे फैक्ट्री का स्वयं निरीक्षण कर लीजिये । जिला में पदस्थापित सभी कर्मी चुनाव में प्रशिक्षण के दिन सुबह सुबह ब्रह्म मुहुर्त में स्नान ध्यान कर प्रशिक्षण शिविर में हस्ताक्षरवाली पंजी पर अपनी उपस्थिती दर्ज़ कर देना उस दिन का सबसे बड़ा कार्य पुनीत कार्य समझते  है । प्रशिक्षु भी लचर, लाचार आम कर्मी समय काटता है । प्रशिक्षण शिविर की सामान्यतः व्यवस्था का जिक्र कर दूं तो आप को व्यवस्था से घिन्न आ जायेगी ।आदर्श चुनाव आचार संहिता के एक माह पूर्व से स्थानान्तरण/ पदस्थापन से लेकर सरकार गठन के एक सप्ताह तक जिले के सारे विकास कार्य पूर्णतः ठप्प कर देना चुनाव की सफलता का मापदंड है ।

सबसे कड़वा सत्य यह है कि किसी भी जिला निर्वाचन पदाधिकारी को आदर्श चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप में उसे कठोर प्रशासनिक दंड मसलन् निलंबन/ वर्खास्तगी.... बेतन से कटौती, बेतन के न्यूनतम प्रकरम  पर ला देने जैसे या अपराधिक मुकदमा  जैसे कठोर प्शाशास  दंड का प्रावधान है भी है या अब तक नहीं देने की   परम्परा है । हाँ आरोपित प्रशासनिक पदाधिकारियों को एक बात जरूर है भविष्य में किसी चुनाव कार्य में संलग्न या दायित्व नहीं सौंपा जाता  है, यही सबसे बड़ा दंड है   या दिये जाने की अब तक परंपरा है ।

अरे भाई मैं तो राज्य निर्वाचन आयोग के कार्यालय में पदस्थापित कर्मी / प्रशासनिक पदाधिकारी का जिक्र ही नहीं किया । ये महान आत्मा हैँ ये सभी येन केन प्रकारेण प्रतिनियुक्ति पर यहीं कार्यरत रहते हैं ।असल इनके बिना चुनाव संपादन कार्य  जो संभव नहीं है । They are indispensable.








Monday, October 26, 2015

#निगरानी/विजिलेंस सप्ताह

#vigilence_week 

ख़ुदा झूठ न बुलबाये कुछ अंश जीतेन्द्र भाई के चुराए हुए-----

सरकार भी हद करती है।साल में एक बार विजिलेन्स के नाम पर अपने कर्मचारियों को कसम खिलाती है कि अब से ईमानदार हो जायेंगे ! एक बड़ा वाला अफसर अपने छोटे-छोटे अफसरों-कर्मचारियों को शपथ दिलाता है कि अब से शुद्ध तरीके से ‘सत्यनिष्ठा’रखेंगे।
        ऊपर से पर्व-त्यौहार के इस खर्चे वाले मौसम में ऐसा धर्म का किस्सा सुनाना ठीक है क्या !वैसे शपथ की भाषा इतनी क्लिष्ट होती है कि समझने में दिल खपाने से अच्छा है बुदबुदा लें । काम भी शपथ का हो जायेगा और शपथ नहीं खाये रहने के कारण साल भर ईमानदारी से चांदी के चम्मच से चाँदी काटते रहेगें
    अरे भाई !ये तो देखो कि जिसको शपथ दिला रहे हो,वो शपथ लेने के लिए अधिकृत भी है कि नही।कोई भला आदमी अगर शपथ को सीरियसली ले ले तो पता नही बीबी-बच्चे क्या करें उसका...सोंच के ही दिल दहल जाता है..

नौकर शपथ हमेशा गंगा माँ की कसमें खाकर लेता है लेकिन मालिक से ओझल होते हीं नौकर हेराफ़ेरी, तुमाफेरि, चोरी, डकैती.... तक की फिराक में रहता है ।
 सरकारी नौकरी में सभी सेवक हैं। दुर्भाग्य तो यह है कि सेवक का असल मालिक पूरी सेवा में मिलता हीं नहीं है । यहाँ नौकर नौकर को शपथ दिलाता है । जिस दिन नौकर को मालिक शपथ दिला दिया, माँ कसम बीबी तालाक ले लेगी, साली तो रहेगी लेकिन रोज़ नया पति ढूंढते फिरेगी ।माँ आधा निवाला खिला देगी ।

Sunday, October 25, 2015

धर्म युद्ध

2014 का भारत का कुरुक्षेत्र धर्मयुद्ध नहीं था ।2014 का संसदीय चुनाव कोंग्रेस की जड़ता ,लगातार 10 वर्षों के शासनकाल में हुयी गलतियों के आधार पर नयी संचार क्रांति के वाहन पर सवार भारत के नवयुवक अपना अक्श विश्व के रूप में सजाने केउद्देश्य एवं केजरीवाल द्वारा पनपाया गया केंद्र के प्रति असंतोष के साथ साथ अन्ना हज़ारे एवं रामदेव द्वारा जनता में सरकार के विपक्ष में बनाये गए माहौल पर स्वर्णिम किरण धवल ओज के साथ बीजेपी द्वारा नमो की अगुवाई में सारे असन्तोष के परिणाम को मुट्ठी में कैद करने की चाहत ने बीजेपी/ आर एस एस  द्वारा छोड़ा गया नरेंद्र मोदी का अश्वमेघ यज्ञ का घोडा सरपट दौड़ता हस्तिनापुर फतह कर डाला ।

अब शुरू होती है चुनौती ।आर एस एस का देश स्वतंत्रता के समय के इतिहास से तो आपलोग वाकिफ होंगे । सभी प्रवुद्ध राजनैतिक दल अपनी विचारधारा में सतत् परिवर्तन करती है और यही संसार रुपी जीवन का मूल मन्त्र है ।हमलोग भी आशान्वित थे की प्रचंड बहुमत पर विराजमान केंद्रीय सरकार राजधर्म निभाकर भारत की नयी कहानी गढेगें ।अब तक सरकार आत्मविभोर होकर self appriasal एवं पूर्ववर्ती सरकारों की प्रत्येक पालिसी पर आक्रोश उगलने के अलावा कुछ नहीं कर रही है ।घर के मुखिया की जवाबदेही सामान्य लोगों से हज़ारों गुणा अधिक होता है । यह सरकार देश के विकास को छोड़कर राज्यों के चुनाव में अपना ध्यान राष्ट्रवाद पनपाने में केंद्रित कर दिया है । षडयंत्र/ सत्ता की लोलुपता ने इसे देश के राज्यों में किसी प्रकार से सरकार बनाने में अपनी ऊर्जा को नष्ट करना शुरू कर दिया है मसलन जम्मू कश्मीर और महाराष्ट्र की सरकार ।

इस सरकार के शासनकाल में गिरते पेट्रोडॉलर ने देश की अर्थव्यवस्था में दैवी योगदान दिया है ।वर्तमान में देश के प्रणेता को Controversy policies क़ो छोड़कर या  विवादित विषयों पर पारिचर्चा   कर देश की अर्थव्यवस्था को समतल जमीन पर सरपट दौड़ाने का वक़्त है ।लेकिन यहाँ पर खड़ा है आर एस एस जिसकी देश स्वतंत्रता में देश भक्ति से तो राष्ट्र वाकिफ हैं ही , वर्तमान में प्रथम पंचवर्षीय योजना से लेकर अब तक राष्ट्र द्वारा बनाये गए हर नियम कानून को विवादित विषय कर उसमें या तो संशोधन करना या उसका आर एस एस करण करना यही वर्तमान सरकार का लक्ष्य है । याद करे दोस्तों श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी का काल , उनके द्वारा बिना विवाद के देश की प्रगति में राजधर्म और शालीनता से जो विकास के कार्य किये गए हैं उसे राष्ट्र का बहुभाषी, बहुधर्मी, बहुसंप्रदाय, विविधविचार, विविध व्यंजन.........वाले जनमानस भी कायल हैं ।

विविध विचारों/ जातियों/ अर्थव्यवस्था/प्रजातंत्र की जननी/गरीबी/भूखमरी/बाढ़/ सुखाड़/जमातवाद/सम्प्रदायवाद/ सामंतवाद आदि से ग्रसित
बिहार में आर एस एस/बीजेपी द्वारा राज्य के चुनाव में प्रारम्भ से चुनाव प्रपंच से जीतने में केंद्र की पूरी हूकूमत गत 4 माह से हस्तिनापुर छोड़कर
पाटलिपुत्र केसम्राट चन्द्रगुप्त के साथ दो दो हाथ करने मगध पहुँची  है ।वाल्मीकि/ लव-कुश/कर्ण/बुद्ध /महावीर/अशोक/चन्द्रगुप्त/चाणक्य/लिच्छवि/मुंडन मिश्र /बिन्दुसार/विम्विसार/शेरशाह/विद्यापति/गुरु गोविन्द सिंह/ बीर कुंवर सिंह//बटुकेश्वर दत्त/ दिनकर / राजेंद्र प्रसाद / जय प्रकाश नारायण जैसे महान सपूतों वाले राज्य में हस्तिनापुर में अपनाये गए जुआ के सभी अमर्यादित प्रपंच जैसे  दलित कार्ड रामविलास पासवान/ महादलित कार्ड जीतन मांझी/ देश में सबसे ज्यादा OBC मुख्यमंत्री बनाये जाने का कार्ड/प्रधानमंत्री को पिछड़ा जाति का बताया जाना /देश में दलित कार्ड का हरियाणा में व्याख्या/बीफ के रूप में संप्रदाय कार्ड आदि आदि का प्रयोग कर बीजेपी भारत में देशभक्ति का कौन सा रष्ट्र वाद अपनाना चाहती है ।

वर्तमान में  बीजेपी के दो प्रवक्ता अपनी विचारधारा को जिस असहिष्णुता से शब्दों को मीडिया में रखते हैं उससे उग्रता फैलने का भय है ।विचारक की बात से मतभिन्नता या मनभिन्नता होने पर वाचक की वाणी और सयंमित और मर्यादित होनी चाहिए । बाजपेयी जी के ज़माने में जो प्रवक्ता थे उनकी भाषा शालीन थी । हमें सदैव याद रखनी चाहिए कि भारत में सनातन काल से अनेकता में एकता है । विविधता हमारे देश की तिजौरी है जिसे बीजेपी के कुछ प्रवक्ता और आर एस एस के अनुयायी दोनों हाथों से गंगा यमुनी तहजीब को लुटाने पर पड़ी है ।

Friday, October 23, 2015

कर्म का मर्म

प्रो . आशुतोष कुमार सिन्हा, भौतिकी, कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स, पटना के सौजन्य से :-----
कर्म का मर्म

कर्म की नारन-जोति
कर्म के बैल
कर्म के हल से
जीवन के खेत को जोता
बोआ उसमे कर्म के बीज।
कर्म ऊगा,कर्म फला।
कर्म का पका अन्न
कर्म का कपास पाया।
कर्म खाया खिलाया
पहना पहनाया।
कर्म से ही जीवन
की बगिया सजाया।
कर्म ही बिछाया
कर्म ही पहना
कर्म ही ओढ़ा।
कर्म ही जिया
कर्म ही पिया।
कर्म के झील में
डूब-डूब छककर नहाया।
खुद और खुदा
दोनों को ही कर्म समझा
कर्म ही जीवन है
कर्म ही है दर्शन
जीवन का।
कर्म का मर्म समझा
तो जीवन में रस आया।
न कोई दुबिधा
न कोई द्वेष
न कोई लोभ
न कोई माया
न कोई ईर्ष्या
न कोई डर
नहीं किसी से घृणा
बस प्यार ही प्यार ।
न कर्म के आगे
न कर्म के पीछे
हरदम कर्म के साथ।
न कही खिंचाव
न कही तनाव।

बिहार का चुनाव 2015 और चुनाव के बाद का परिदृष्य

बिहार का चुनाव 2015 यौवन अवस्था से बुढ़ापे की और दस्तक दे रहा है । अगर चुनाव की आगाज़ का विश्लेषण करेगें तो आप हीं क्यों  दुनिया का प्रत्येक व्यक्ति यह मानने को मजबूर हो जायेगा कि सारी अमर्यादित आचरणों, व्यक्तव्यों का प्रयोग विशेषकर भारत के नव निर्माता अच्छे दिन लायेगें के प्रणेता  के सदस्यों द्वारा किया गया । बिहार की राजनीति की उर्वरा मिटटी को अमित शाह की नियत, नेतागिरी, विश्वशनियता और भाषा प्रयोग जो उनके द्वारा बिहारी अस्मिता पर उठाई गयी सभी गले की हड्डी ही नहीं बल्कि दिन रात नश्तर की भांति चुभोता होगा ।संयम तो भारत के नए प्रशासक में भी नहीं दिखी । भाषा की शालीनता और डी न ए, दलित, पिछड़ा, बीफ, बीमारू राज्य, इंफ्रास्ट्रक्चर , सम्प्रदाय, आरक्षण में कमी को उजागर करना और बिहार हीं क्यों पूरे भारत वर्ष मेंबिहार को विकाश की पटरी पर लाने वाले नेता का नाम घोषित न करना इस  समर बदरंग दिक्गदीखने लगा ।लेकिन अब तो media पत्रकारिता सभी दो मजबूर गुजराती की स्पस्ट हार देख रहे  हैं ।

बिहार के दुसरे गठवन्धन के नेता के रूप में नितीश का चयन, उनकी प्रसिंगकता, भाषा का उच्चारण, वर्गों के बीच अपनापन, विकाश की सोंच और खाका, बिहार को राष्ट्र के कई मापदंडों पर नयी ईवारत का सफल प्रयोग उनके विरोधियों को भी विस्मित करता है और जनता के चहेता तो हैं हीं ।10 साल के शासन में इन्होंने वर्ग विहीन जमात पैदा किया जिसके कारण चुनाव पूर्व संगठित बीजेपी से लड़ने के लिए लालू जी के संगठन वाली जमात के साथ महागठवन्धन बनाकर चुनाव के कुरुक्षेत्र में धैर्य के साथ भारत के पूरे मंत्रिपरिषद, बीजेपी के भारत के नेता एवं आरएसएस के कुटिल क्षद्म भारतीयता का आवरण वाले नेताओं के साथ शालीन भाषा से बचाव करते रहे । इस गठवंधन के  नेता लालूजी जनता जमात के बिहार हीं नहीं भारत में अपनी वाकपटुता और शैली से मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के माहिर खिलाडी को बीजेपी /आरस स  ने पिछड़ा, अभद्र भाषा, बीफ, दलित, आरक्षण, संप्रदाय जैसे मुद्दे देकर लालू जी के अमोघ अस्त्रों में शान चढ़ा दिया । सचमुच में बीजेपी में कोई भी नेता में भाषाई वाकपटुता लालू जी से अच्छी नहीं है ।लालू जी अपनी शैली में बीजेपी की नाकारा राजनीति पर शब्दभेदी बाण चलाये ।

अभी चुनाव का तीन चरण अवशेष है । सरकार बनने के कयास हीं लगाये जा सकते हैं । भारत के प्रधानमंत्री को चुनाव प्रचार में बिहार की अस्मिता, दुर्गति, पिछड़ापन, अशिक्षा, रोजगार में कमी, इंफ्रास्ट्रक्चर में कमी, बिहार को बीमारू राज्य की उपाधि देने आदि विभूषणों से अलंकृत करने के बाद कोई व्यवसायी बिहार में पूँजी लगाएगा क्या? मोदीजी गला फाड़ फाड़ कर भारत में निवेश की बात करते हैं, विदेशी कहाँ निवेश करे? बीजेपी भारत को अमीर और गरीब राज्य की दलदल में धकेलकर कौन सी नयी संस्कृति पैदा करना चाहता है ।अब तो संदेह हो रहा है कि न बिहार को विशेष राज्य का दर्ज़ा मिलेगा और ना हीं...

Monday, June 22, 2015

गांठ , कमर, घुटना, जोड़ का आर्युवेदिक उपचार /सलाह


आर्युवेदिक पद्दति में वायु, पित्त, विकार, आहार को बिमारियों का जड़ माना गया है । भोजन/ आहार की अशुद्धता से पाचन तंत्र में गड़बड़ी पैदा होती है । आहार में संयम नहीं करने से वायु/ गैस पैदा होता है जो गांठ के पास जमा हो जाता है एवं रक्त के प्रवाह में रोड़ा पैदा करता है । परिणामस्वरूप शरीर के जोड़ों में असहनीय दर्द पैदा होता है । बढ़ते उम्र के कारण जोड़ों में तैलीय द्रव्य की कमी भी दर्द का कारण है ।
आहार
1. सुबह नियमित रूप में टहलें अवधि 45 मिनट .
2. दिन भर में कभी पेट को खली न रखें .
3. कम से कम 24 घंटे में 3 से 4 बार अल्प सुपाच्य ताजा पका खाना खाएं । गरिष्ठ एवं बासी/फ्रिज में रखे खाना तथा पैक्ड फूड न खाएं ।सब्जी में भिन्डी, लौकी, नेनुआ, झिंगिनी का सेवन करें । खाने में कड़े या पचने में विलम्ब से बचें । खट्टा किसी भी प्रकार का even दही, जूस, आचार, निम्बू , टमाटर ..अदि से परहेज करें । गर्म पदार्थ का सेवन न करें ।गाय का दूध सेवन करें । खाली पेट रहने पर जल का सेवन कर लें ।
औषधीय उपचार
1. दिन- रात में दो बार तीन spoon गाय के दूध में एक spoon अरंडी का तेल मिक्स कर भोजन के उपरांत लें ।
2.तीन -तीन स्पून दसमूलारिष्ट में एक spoon अशोकारिष्ट मिक्स कर प्रति दिन तीन बार सेवन करें

2015 के भारत के नायक की व्यथा या कुटिलता


इसमें कोई शक नहीं है कि भारत का नया सम्राट भारतीयों का हरदिल अजीज है, कारण जोभी हो..... कुछ विश्लेषक पूर्ववर्ती सरकार की हार के लिए निर्णय लेने की अक्षमता, power का दो केन्द्र का होना, नए नेता में कुशलता की कमी, लोकतन्त्र में खानदानी हुकूमत, घोटाले से विस्वशनियता में ह्राष्, भ्रस्टाचार, antiincombancy...... आदि ।मेरी सोंच में अन्ना आंदोलन, केजरीवाल मूवमेंट, रामदेव बाबा का आन्दोलन आदि से उपजी सरकार के प्रति विद्रोही स्वर को राष्ट्र में एकमात्र राजनीतिक राष्ट्रीय दल BJP द्वारा .....मुफ्त में पॉजिटिव प्रचार और सत्ता में नहीं रहनेके कारण भ्रस्टाचार के कोई आरोपी नहीं के कारण सत्ता में प्रवेश की । सर्व सम्मति से श्री नरेंद्र मोदी का चुनाव नेता के रूप में किया जाना भी सफलता का कारण बना ।
सत्ता में आने के बाद नमो द्वारा विदेशों का भ्रमण , देशवासीओं में राष्ट्र् भक्ति का प्रवाह पैदा करना, भारतीयों में आत्मबल पैदा करने का जज्वा....आदि तो एक तरफ मोदी को कुशल सक्षम नायक बनाता है तो दूसरी ओर जनसंघी मानसिकता अर्थात हिन्दु तुष्टीकरण की ओर इशारा करते साक्षी महाराज, कटियार, माधव, गिरिराज,...आदि जैसे नेता द्वारा अमर्यादित टिपण्णी के बिरोध में कोई कारवाई नहीं करना साथ में सत्ता हासिल करने के लिए अनैतिक राजनीतिक गठजोड़.. मोदी को कुटिल राजनेता होने का भ्रम पैदा करता है ।
नमो के कई आयाम दीखते हैं ।मुझे पूर्ण आशा है कि मोदी का शाषण भारत के लिए मील का पत्थर होगा । परंतू अगर मौन मोहन की तरह या अपने राजनीतिक मित्रों जो विरोध या अलगाव पैदा करनेवाले हैं ..उन लोगों के प्रति सहानुभूति रखे जाने पर या कोई कडा निर्णय नहीं लेने के चलते भविष्य में माननीय मोदी जी को लोग किस रूप में याद रखेगा यह समय तय करेगा ।

Thursday, March 5, 2015

होली



Memory of 2013 is repeated once again due to same situation.
होली की आहट पर सभी दोस्तो को नमस्कार, जोगी रा .......... सरररर ............
होली मुबारक
बिहार में भी हमलोगों ने पारम्परिक होली मनाने का तरीका छोड़ दियें हैं. सुबह सुबह कादो माटी वाली होली की महक( सुगन्ध/दूर्गन्ध सहित) सबको पता नहीं प्यारा लगता था या नहीं पर इस में सब अपने को सरावोर कर लेते /देते थे. जो दोस्त जितना कोदो से भागते थे कादो उसको उतना ही पिछा करता था . रंग से ज्यादा गहरा दाग हमलोग प्रकृति की बनी कादो से लोगों के मन मंदिर में पूरे वर्ष भर के लिए डाल देते थे . नाली में सना कीचड़युक्त गन्दगी जब दोस्तोँ के बदन पर गुनगुना सर्दी में अर्थात होली में डालते थे तब असल होली की गरमाहट सुरु होती थी. कीचड के तुरंत बाद  अर्थात उसके साथ रंग की मिलन अह्ह्ह्ह ... अदभुत...अद्वितीय .
अगर इनसब में शुरुआत बसिऔर झोर- भात बजका, बजका में फूलगोभी, कद्दू, कचरी/प्याजी, बैगन, हरा चना ,टमाटर,हरा मिर्च .......हरा चना का बजका अगर साल भर मिले तो मैं अपने आप को धन्य समझूंगा . लिखने समय मेरी अर्धांगिनी जिसके लिए यह कंप्यूटर उनको सौतन की तरह सालती है आपने भाई के यहाँ जाने के लिए उतावली हो रही है इसलिए दोस्तोँ बाकी कल ....माफ कीजिये अभी तो लय - सुर- ताल धरा ही था ..यही होता है जब आपलोगों से मिलने का मौका मिलता है तब ...... अब क्या बताऊँ फिर मुखातिब हुआ हूँ आप से अगजा के बहाने . अरे भाई, अब तो समझे न ...
"हे ज़ज्मानी, तोरा सोने के किवाड़ी , एक गन्डा गोइठा दे द....."
भूल गए क्या.......क्या बात है अब तो इस माहौल को खोजना भी सम्भव नहीं है . उकवारी, याद आया न . अरे भाई, उकवारी भांजने और उसको दूसरे ग्राम के खंधे के सीमाने में नचाते हुए फेंकने और अगजा में गेहूँ की वाली और चना का होरहा का मज़ा ...आया मूहं में पानी ... हमलोग इस पश्चात्य संस्कृति में अपना वजूद और दालान संस्कृति भी भूल ही नहीं गए वल्कि आनेवाले बंशजो को शायद इन सब यथार्थ को समझा भी पाए तो बहुत है.
सोचा किसी अपने से बात करें;
अपने किसी ख़ास को याद करें;
तो दिल ने कहा क्यों ना अपने आपसे शुरुआत करें।
होली मुबारक।
पुनः मुखातिब हुआ हूँ . होली के रंग में प्रवेश करने में थोडा समय लगता है , परन्तु एक बार अगर रंग लगा तो वह दाग वहीँ तक सीमित नहीं रहेगा वल्कि उस रंग में और डूबना शुरु कर दीजिएगा. आपलोगों से आग्रह है / नम्र निवेदन है की आप भी इस पारम्परिक भारतीय संस्कृति को पूरे मन से अपनाएं / मनाएं .
महिलाओं की होली...अह्ह्ह्हह्ह . भारतीय संस्कृति में सबसे पिछड़ा अगर कोई जाति/वर्ग/ समाज है तो वह है महिला समाज . महिलाओं के साथ अत्याचार/ दुर्व्यवहार /सौतेलापन /प्रताड़ना ....इस पुरुष वर्ग द्वारा सदियों काल से चलता आ रहा है . कहते तो नारी को शक्ति हैं लेकिन व्यवहार ......जनम से अंत अर्थात मरण तक इस अबला की पीड़ा को कोई बखान नहीं कर सकता है. खैर मैं किस पचड़े में उलझ रहा हूँ . कहीं इस अभिव्यक्ति पर पुरुष का वर्त्तमान अहंकारी / दमनकारी समाज दूसरे रूप में न ले .ऐसी बात नहीं है की मैं उससे अलग हूँ .
अब लीजिए महिलाओं की होली ........महिला का भी दिल होता है ...जो मचलता भी होगा . पर अभिव्यक्ति की कोई स्वछंदता नहीं. कुलटा कहलाने का भय है . पर मेरी होली का आगाज़ /शुरु जहाँ से हो अंत तो प्रेयसी से ही होना है ....कुछ लोग नीचे लिखे गाने के बोध लेकर होली मानते हैं,
"रंग बरसे भीगे चुनरवाली, रंग बरसे
अरे कैने मारी पिचकारी तोरी भीगी अंगिया
ओ रंगरसिया रंगरसिया, हो................"
तो कुछ लोग (एकतरफा प्रेमी) गम के सहारे
"तनहाई ले जाती है जहाँ तक याद तुम्हारी;
वहीँ से शुरू होती है जिंदगी हमारी;
नहीं सोचा था हम चाहेंगे तुम्हें इस कदर;
पर अब तो बन गए हो तुम किसमत हमारी।"
जैसे मेरा होली के नाम बोध से दिल में गुदगुदी होती है वैसी ही गुदगुदी तमाम भौजाईओं / सालियों /माशूकाओं /ननदों /देवरों .....को भी होता होगा . अंग / प्रत्यंग में सिहरन होता होगा . अरे भाई बचपन से जवानी तक के किस्से अगर सुनाऊँ तो या तो आप विश्वास नहीं करेंगे अगर करेगें तो समाज को दिखलाने वास्ते मेरी भावना को निर्लज्जता की चादर में लपेट कर मेरी थोड़ी बहुत बची हुई इज्ज़त का फालूदा निकालेंगे .
पिताजी की होली...............
"होली आई रे कन्हाई रंग भर दे
सुना दे जरा बांसुरी , होली आई रे कन्हाई ..."
मेरी होली ..........
"आज न छोड़ेगें बस हम होली ,
खेलेगें हम होली होली रे ,
खेलेगें हम होली......"
चुनरी, अंगिया, यौवन ...और सबसे बड़ा होली तो यह है कि "अन्तः मन को भिंगो कर पूरी ज़िन्दगी उन ख्यालों / ख्वावों के आशियाने को निहारते रहेंगे जिसमे जिस्म को मन के साथ डबोने के बाद मानस पटल पर एक स्मृति चिन्ह जीवनपर्यंत रेखांकित करेगी .
सुप्रभात