Sunday, November 29, 2015

भारत में धर्म/पंथ की व्याख्या

भारत में धर्म /पंथ की व्याख्या

वर्णवादी या हिन्दूवादी धर्म व्यवस्था भारत में सहिष्णुन्ता के रूप में सनातन काल से जिस जीवनपद्धति से जीवन यापन की पद्धति अपनाई है वह वर्ण व्यवस्था भारत में समूहों को जन्म दिया जिसमे एक समूह हरिजन और दलित को आज तक छुआछूत के दंश से अभिशप्त जीवन यापन करने को मजबूर है जिसके चलते आधुनिक भारत के निर्माता डॉ भीम राव अम्बेडकर तक को हिन्दू धर्म को छोड़ना पड़ा था और विडम्बना यह है कि इस कुचक्र में हिन्दू धर्म के बहुसंख्यक वैश्य वर्ण भी सम्मिलित था जबकि वह भी कई सामाजिक कुरीतियों का शिकार था । आजाद भारत में देश की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखने हेतु हिन्दू धर्म की इस वर्ण कुरीति के कारण संविधान में सामाजिक , आर्थिक एवं राजनीतिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए आरक्षण की व्यवस्था करनी पड़ी । पता नहीं इस आरक्षण की व्यवस्था कितनी सदियों तक लागू किया जायेगा तब हिन्दू वादी वर्ण व्यवस्था द्वारा उपजा असमानता का शिकार वर्ण समानता का अधिकार प्राप्त करेगा ।

पुनः संसद भवन में हिन्दू जीवन पद्धति का हवाला देकर एक सम्प्रदाय बिशेष को देश के सर्व धर्म समभाव की परिभाषा के विपरीत धर्म निरपेक्ष की सुविधानसुसार व्याख्या प्रारम्भ कर दी गयी है । पूर्व में दलितों को सामाजिक और आर्थिक रूप में उत्पीड़न के लिए जो शक्ति जवाबदेह थी वही हिंदूवादी मानसिकता पुनः अपनी वर्चस्व को कायम करने के निमित्त सुविधानुसार नयी धर्म निरपेक्ष की परिभाषा गढ़कर देश की 15% आवादी को अलग थलग कर बहुसंख्यक की आँख में धुल झोंककर सत्ता का रसास्वादन करना प्रारम्भ कर दिया है जो एक राजनीतिक और सामाजिक षडयंत्र है । यह नयी षडयंत्र भविष्य में एक ऐसी कुरीति को  जन्म देगी जिसके सोंचने मात्र से शरीर में प्रत्येक संवेदनावान व्यक्ति सिहर उठता है जो देश की एकता अखंडता के लिए घातक तो है ही साथ ही साथ इस कुरीति को उखाड़ने के लिए एक नए डॉ भीम राव अम्बेडकर को भारत में नए रूप में अवतार लेना होगा ।

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