Sunday, September 5, 2021
Sunday, July 25, 2021
जीवन सहचरी के साथ संस्मरण
जीवन सहचरी संग संस्मरण (अपने पर रूपांतरित)
(कोविड संक्रमण काल में सभी पति पत्नी को समर्पित)
तुम जब मेरे जीवन -बंधन में बंधी तो मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि मैं तुम्हारी पहली पसंद था क्योंकि पसंद बनाने की भी एक न्यूनतम उम्र होती हैं और तुम उस उम्र में प्रवेश करने के पूर्व ही मेरे जीवन में प्रवेश कर गई थी । हां, लेकिन इतना जरूर कहूँगा कि तुम्हारे पहले भी मेरे कई पसंद सृजित हुए थे परंतु यह पता नहीं चल सका था कि जिन जिन को पसंद किया था वो मुझे पसंद करते थे या नहीं । एकतरफा पसंद भी कोई पसंद थोड़े ही होता है । यह जब दो तरफा हो तभी तो मुकम्मल होगा न । खैर! जो भी हो आज विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि तुम मेरी पहली पसंद बन चुकी हो बल्कि ज्यादा उपयुक्त तो यह मानना होगा कि तुम ही ने अपने प्यार स्नेह सेवा से तूने अपने को मेरी पहली पसंद बना दिया अर्थात दो तरफा यानि एक मुकम्मल पसंद ।
मुझे तुम्हारे प्यार से ज्यादा तुम्हारा तकरार पसंद है। तक़रार न हो तो फिर रूठे कौन और मनाये कौन। तक़रार ही तो प्यार को प्रगाढ़ बनाता है परस्पर क्षमा करने की शक्ति पैदा करता है। मेरा, तुम्हें उकसाना, फिर तुम्हारा चिल्लाना, घर को सर पर उठाना,कभी कभी बच्चों से कसम दिलवाने के लिए चिल्लाना, कठोर वचन बोलना, दुबारा नहीं बात करने की कसमे खाना, कभी कभार अप्रिय शब्दों से मेरा संबोधन करना, सब एक मनोहारी छवि प्रस्तुत करता है। अंततः सारे क्रोध को तुम्हारे आंखों से प्रवाहित होते देखते ही एक तड़प महसूस करना, फिर तुम्हारे पास जाना, तुम्हें मनाना और तुम्हारे द्वारा, नहीं मानने का झूठा अभिनय करना, मेरे साॅरी कहने पर अंदर अंदर ही गर्व से इठलाना, फिर तुम बिना श्रृंगार के ही संसार की अनुपम सुंदरी दिखने लगती हो। ऐसे भी तुम्हें कृत्रिम श्रृंगार पसंद नहीं है इसीलिए मैं जब कभी कहीं बाहर गया हूँ तो कभी भी चूडियां, विंदी, सौंदर्य प्रसाधन का कोई सामान उपहार के रूप में तुम्हारे लिए नहीं लाया हूँ और तुमने कभी मुझसे ऐसी अपेक्षा भी नहीं की। तुमने अपने आचरण से मेरे मन में कब का संदेश दे दिया था कि "मैं "ही तुम्हारे लिए भगवान का दिया हुआ अनुपम और सर्वोत्कृष्ट उपहार हूँ ।
मालूम है तुमको कि मुझे तुम्हारी तक़रार ही क्यों पसंद है? ताकि तुम अपना भरपूर प्यार घर के अन्य सभी सदस्यों और सगे संबंधियों पर न्योछावर कर सको। तुमने आजतक ऐसा किया भी है। कोई भी मेरा सगा संबंधी ऐसा नहीं है जो तुम्हारे प्यार और स्नेह से सिंचित न हुआ हो, थोड़ी सास पूतोह में .. घर के बाहर की मेरी छवि को चार चाँद लगाने या अन्य विशेषण का श्रेय सिर्फ तुमको ही तो जाता है इसमें मेरा कोई योगदान नहीं। जब बाहर में सगे संबंधियों से तुम्हारी तारीफ सुनता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हारा व्यक्तित्व हमारे व्यक्तित्व से कई गुणा अधिक ऊँचा है। सबों की पहली पसंद कोई यूँ ही थोड़े बन जाता है।
तुम्हारा किचेन अद्भुत है कौन सा ऐसा व्यंजन है जिसका रसास्वादन तूने हमसबों को नहीं कराया है वह भी पल झपकते ही। आगंतुकों ने भी इसका भरपूर आनंद उठाया है ।
आजकल कोविड के संक्रमण काल में मैं घर में हरदम साथ हूँ तुम्हारे हर आदेश निदेश का पालन कर रहा हूँ थोड़ी बहुत आपत्ति के साथ। घर के बाहर वगैर मास्क नहीं जाने, सेनिटाईजर साथ में रखने, सावधानियां /दुरियां रखने की , भीड़ भाड़ में नहीं जाने की सख्त हिदायतें, बारबार हाथ धोने की तुम्हारी सलाह और उसका सख्ती से पालन कराना, अफसोस पहली टीका के बाद भी तुम कोविड संक्रमित हो गई। इसका सही सही कारण ढूँढ नहीं पाया। तुम्हारे बिमारी के समय एक समय ऐसा आया कि कहीं मैं तम्हें खो न दूं । आज भी सारी घटनाएँ आंखों में तैर रही है । कुदरत ने आखिर मेरी या तुम्हारी या अपनी सुन ली जिसका परिणाम है कि तुम धीरे धीरे स्वस्थ हो रही है । मैं अपने चाहनेवालों का शुक्रगुजार हूं जिन्होंने विपदा के समय साथ या दुआ मांगी ।
टहलता हूँ व्यायाम भी करता हूँ, नहीं करने पर तुम्हारी डांट भी सुनता हूँ। शायद तुम्हें लगता होगा कि मैं तुम्हारी डांट से तथा कोरोना से डर गया हूँ ; नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है। मुझे कोरोना से उतना डर नहीं है जितना कि तुमसे अलग होने का डर, तुम्हें अकेले छोड़ जाने का डर।
मेरा स्वस्थ रहना, तुम्हें साथ देने के लिए, सहयोग देने के लिए, एक अपरिहार्य आवश्यकता है ऐसा ही मैं सोचने लगा हूँ ।
मुझे स्वस्थ रहना है तुम्हारे लिए, तुम से तकरार करने के लिए, रार करने के लिए, तुम्हारे लिए। तुम हमारे जीवन की निरंतरता को बनाये रखने की अनमोल प्रेरणा और अभिप्राय हो। सदा सहायक रही हो, सदा सहायक रहना, यही तुमसे मेरी अपेक्षा है । जैसे सभी संकट टल गए, यह भी टल ही जाएगा। फिर वही राग, वही दिनचर्या ,वही रफ्तार वापस आएगी ।
शायद मेरी पसंद तुम्हें अब समझ में आ गया होगा कि तेरे साथ से अधिक कोई भी वस्तु मुझे प्रिय नहीं हो सकती ।
और नापसंद की जहाँ तक बात है तो तेरी आंखों में आंसू बिल्कुल अच्छे नहीं लगते, फिर भी कभी-कभी आंसू आने भी चाहिए इससे हृदय को पिघलने में मदद मिलती है मगर इसको अधिकांश वक्त में जब्त ही रखने की कोशिश करना ।मुस्कान देने की गारंटी मैं लेता हूँ ।
एक बात मुझे आजतक समझ में नहीं आयी कि तुम्हारी पसंद क्या है? एक बार नई नई शादी के बाद एक साड़ी लाया था जिसे तुमने नापसंद कर दी थी और कभी कभार बहुत मन्नत पर तुम साड़ी पहन लिया करती थी । इसके बाद मैंने कसम खा ली कि मैं तुम्हारे लिए कोई उपहार नहीं लूँगा । पर इधर देश या विदेश में अकेले सरकारी बैठकों या प्रशिक्षण में सम्मिलित होने पर कुछ उपहार ले लेता हूँ पर अभी भी खराब लाने के उलाहना से नहीं उबरा हूँ ।
तुम्हारे साथ कई देशों के सुन्दर सुन्दर जगहों का भ्रमण किया हूँ वहां भी तुम्हें अपने लिए जो कुछ पसंद आया था उसमें कुछ को मैंने यह कहकर टाल दिया था कि यही सामान पटना में भी मिलता है । फिर क्या लौटने के समय घर पहुँचते पहुँचते कोल्ड वार । कई देशी यात्रा मुझे इसलिए पसंद आया था कि वहां तुम्हें हरदम बहुत खुश, आनंदित, और मुस्कुराते हुए देखा था। हां ,एक बात जरूर है कि वहां एक बात की कमी अवश्य रह गई कि यात्रा इतनी व्यस्त रही कि तकरार के लिए वक्त ही नहीं मिल पाया ( हा हा हा ) रूठने मनाने की नौबत ही नहीं आई। तुम्हारी खुशी ने ही तो उस देशी यात्रा को अविस्मरणीय बना दिया है ।
चिल्लाना भी जोर जोर से और हंसना भी गला फाड़ फाड़ कर कि पड़ोसी भी अक्सर अचंभित हो जाते खासकर ठठा कर हँसने में तुम्हारा कोई जोड़ नहीं है और नाही कोई नकल ही कर सकता है ।
अब यह स्पष्ट हो चुका ही होगा कि
" मुझे सिर्फ तुम और तुम ही पसंद हो"
"तुम्हें सिर्फ मैं और मैं ही पसंद हूँ "
और तुम्हारी खुशी के लिए मुझे
एक स्वस्थ जीवन जीना बहुत जरूरी है।
(परिवार से अगर प्यार है तो अपने को भी सुरक्षित रखिए और दूसरों को भी )
Saturday, May 16, 2020
वैश्विक आर्थिक युध्द या कोविड 19 महामारी
इतिहास में इतना बड़ा व्यापार और वह भी मौत की भयावहता के नाम पर, जब विज्ञान इतना तरक्की कर गया है तब; सचमुच दुनिया में मनुष्य ने पुनः अपने को बन्दर प्रजाति से मानसिक रुप मे आगे नहीं होना साबित किया है ।
यह सत्य है कि यह एक नया वायरस है जिसका संक्रमण droplets और मनुष्य का शरीर ही है । इसका transmission वुहान, चीन में अक्टूबर 19 से होने का अनुमान है । हद तो तब हो गई कि आज तक अर्थात मई 20 के उत्तरार्द्ध में भी WHO या अमेरिका या इंग्लैंड या अन्य कोई देश इस बीमारी को horror movie की तरह deadly ही बताकर एक सोझी समझी तर्क शक्ति से आर्थिक युद्ध में विश्व को झोंक दिया है । इससे सबसे बुरा असर गरीब देश, असंगठित मज़दूर, किसान, रेहड़ी, ठेला, फुटपाथ, रिक्शा या कार चालक, मज़दूर, विद्यार्थी, बेरोजगार युवक युवती, सेवा से जुड़े लोग जैसे नाई, बढई, मिस्त्री, कुटीर उद्योगआदि - आदि में संलग्न लोग हुए ।
कई उद्योग की कमर ही नहीं उद्योग ही ध्वस्त हो गई वल्कि लाख चाहकर भी उन उजड़े उद्योग को पुनः चालू करना असंभव है । भारत ऐसे देश की कुल जनसंख्या का 98% जनसंख्या या परिवार को नए सिरे से शुरुआत करनी होगी जिसमें आर्थिक नुकसान लोअर आय या मध्यम लोअर आय वर्ग पर आश्रित परिवार होंगें ।
Lockdown या मौत के नाम पर भय का व्यापार हर मनुष्य के मानस पटल पर देने की सुनियोजित साजिश की एक व्यूहरचना की गई । हर इंसान मौत से डरता है जो सत्य है , पर इसके आने का डर सबको मानसिक रुप से रुग्ण कर देता है । प्रश्न यह है कि विश्व इस समय बिना किसी समीक्षा निर्णय के lockdown कर सभी विद्यार्थी, असंगठित मजदूर, कॉन्ट्रैक्ट मज़दूर, कुटीर उद्योग, किसान, गम्भीर या आकस्मिक बीमारी से प्रभावित या रुटीन चेक अप के लिए आवश्यक सेवा को पूरी तरह ठप करने पर आमसहमति या परिचर्चा आवश्यक था या नहीं । प्रशासनिक एवम स्वास्थ्य महकमा को कोविड 19 के रोगी के लिए परामर्श जारी कर सभी निजी स्वास्थ्य संस्थानों को भय दिखाकर बन्द करने का क्यों निर्णय लिया गया ।
इस बीमारी से मृत्यु अधिकांश कम इम्युनिटी क्षमता वाले हैं, जैसे औसत आयु 65 से अधिक और पूरी जनसंख्या का अनुमानित अनुपात 0.1 है । अब अगर किसी देश में 65 वर्ष से अधिक उम्र की जनसंख्या अधिक है तब उस देश में मृत्यु दर भी अधिक होगा । अगर किसी देश की जीवन पद्धति में फ़ूड हैविट ऐसी है कि लोगों का इम्युनिटी लेवल अधिक है या क्षेत्रीय मौसम का प्रभाव इम्युनिटी लेवल का अधिक करना है तब मृत्यु दर कम होगा । इस बीमारी से सबसे अधिक मृत्यु क्रिटिकल रोगी की होती है जैसे , किडनी, दमा, उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग,उच्च ग्लूकोज़ आदि से ग्रसित मनुष्य । क्रिटिकल रोगी या अधिक आयु वाले मनुष्य की मौत दुख का कारण है परन्तु इस नाम पर पूरी आवादी को अनिर्णय और मानसिक रोगी बनाया जाना एक रणनीति का हिस्सा है या समाज की अज्ञानता ।
कुछ रोगी ऐसे हैं जिन्हें बीमारी का कोई लक्षण नहीं है; पूरी तरह स्वस्थ हैं और समाज में इसका फैलाव कर स्वयं ठीक हो रहे हैं; इस प्रकार के रोगी से सामुदायिक संक्रमण हो रहा है । अंत में 80 % लोगों को प्रभावित कर शरीर में एन्टी बॉडीज और हेर्ड इम्युनिटी के फैलाव के साथ हमें इस बीमारी के साथ 0.1 % मृत्यु दर के साथ रहना ही होगा ।
भारत में एकमात्र टी बी जैसे रोग से प्रतिवर्ष अनुमानित 5 लाख लोगों की मृत्यु का कारण है । प्रतिवर्ष फ्लू या इन्फ्लूएंजा संक्रमण से प्रतिवर्ष औसत मृत्यु कहीं कोविड से अधिक होने का अनुमान है ।
WHO की गलत एडवाइजरी और भारत द्वारा WHO के एडवाइजरी को आँख मूंद कर मानने का परिणाम इस विविधता पूर्ण देश में lockdown का यह दुष्परिणाम है । कई लोगों का यह भी मत है कि 4 घंटा की मोहलत देकर 140 करोड़ के देश में पूर्णतया lockdown में नागरिकों की दिक्कतों का विश्लेषण बिना ही किया गया है । जिसका दुष्परिणाम 27, 28 मार्च से ही देश के नागरिक, अप्रवासी मज़दूर द्वारा lockdown में व्यक्तिगत दूरी की अवधारणा को पूरी तरह नकार का दृश्य उजागर हुआ । लगातार 45- 50 दिनों से लाखों करोड़ों मजदूरों की यातायात व्यवस्था ठप करने से 2000 से 2500 किलोमीटर की दूरी पैदलों आदिम जीवन शैली में भूखे प्यासे, प्रशासन के डंडों के प्रहार को झेलकर, पांव में फोलों-छालों के साथ वेवसी में घर आने का दृश्य उजागर होना सरकार की तैयारियों की कमी की तरफ इशारा है । कम से कम नंगे या पैदल या साइकिल से चलनेवाले अप्रवासी मज़दूर को राज्योँ के द्वारा वाहन से राज्यों की सीमा तक यातायात व्यवस्था जारी रखा जाना चाहिए ।
अप्रवासी की सैकड़ों मौतों ने आम मानस के मन मिजाज को कई आनेवाले दुष्परिणामो की बात सोंचने पर मजबूर करता है । मजदूरों के परिवारों को जीविका के लिए अग्रिम एक मुश्त राशि सहायता जिन्दगी बचाने के लिए कारगर सम्भव है । जिसके लिए तैयारी में विलम्ब पुनः लाखो नागरिकों की मौत के रुप में आएगा ।
पूर्व से किसी रोग से ग्रस्त या आकस्मिक बीमार या स्वास्थ्य सहायता का lockdown में किसी निजी अस्पताल या डॉक्टर द्वारा नहीं सेवा देना या यातायात के अभाव या विधिवत पास का निर्गत न होना प्रशासनिक अक्षमता का दुष्परिणाम है ।
Lockdown के स्वरुप में तीन बदलाव के पश्चात भी अगर अप्रवासी मज़दूर या किसी नागरिक की मनुष्य जनित त्रासदो से मौत होना पूरी विश्व मानक नियम और देश से लेकर लोकल प्रशासन की क्षमता और तैयारी के परिदृश्य को उजागर करता है ।
Sunday, May 10, 2020
मातृ दिवस या MOTHER'S DAY
प्रत्येक प्राणी का अस्तित्व और उसके शरीर का एक- एक कण या रोयां माँ की ही देन है । कोई भी प्राणी अपने पूरे आयु काल में अपने वजूद तक रहने के लिए माँ की देन मात्र है; जिस ऋण से आयुकाल तक कोई जीव उबर नहीं सकता है ।
एक अमेरिकन महिला *अन्ना जारविश* अपनी पूरी आयु बिना शादी के माँ की सेवा में जीवन अर्पित कर दी, परन्तु जो आया है उसे तो जाना भी तय ही है; अर्थात मृत्यु अटल सत्य है । अपनी माँ की मृत्यु के पश्चात अमेरिकन महिला प्रति वर्ष याद में पुण्यतिथि Mother'sday के रुप में मनाने /याद करने लगी ।
*अमेरिकन काँग्रेस ने वर्ष 2014 में मई माह के द्वितीय रविवार को मातृदिवस के रुप में मनाए जाने का फैसला लिया । तब से आज तक पूरे विश्व में मई माह के दूसरे रविवार को मातृदिवस मनाया जाने लगा ।*
Saturday, December 14, 2019
नागरिकता संशोधन विधेयक
Saturday, November 16, 2019
भारतीय शिक्षा पद्धति एक विवेचना
भारत की सभ्यता, साहित्य,सहिष्णुता, संस्कृति, ज्ञान, विज्ञान, परम्परा, विविधता...... शताब्दियों से चली आ रही है । शिक्षा के अभाव में देश की विकास और तरक्की निर्भर करता है । बौद्धिक सम्पदा ही आधुनिक हथियार है जिससे देश के नागरिकों को आधुनिकता के साथ सर्वांगीण विकास सम्भव है । देश की संप्रभुता को अच्छूण रखने के लिए शिक्षा एक अतिमहत्वपूर्ण कारक है । देश के मूल्य, लोकतंत्र, संविधान, अखंडता .... शिक्षा के अभाव में सम्भव है ही नहीं ।
उपयुक्त तथ्यों को ध्यान में रखकर संविधान में शिक्षा को मौलिक अधिकार के रुप में परिभाषित किया है ।
भारतीय संस्कृति, सभ्यता, सम्प्रभुता, भईचारा, सम्पन्नता..... की चकाचौंध को देखकर सदियों से विदेशी आक्रांता द्वारा भारत पर राज्य करने की लिप्सा के कारण कई मर्तबा विदेशी हमला का सामना करते हुए परतंत्र होना इतिहासकार द्वारा विश्लेषित तथ्य माना गया है ।
आजादी के पूर्व अंग्रेजो द्वारा दीर्घकालिक रुप से भारत को अंग्रेजों के उपनिवेश के रुप में शोषण के उद्देश्य से योजनाबद्ध तरीके से अंग्रेजों के द्वारा भारतीय विविधताओं के विभिन्न पहलुओं पर विश्लेषण किया गया था । विश्लेषण में लार्ड मैकाले के अध्ययन को सर्वकालिक सटीक पाया गया । मैकाले के अनुसार भारत को लंबे अरसे तक गुलाम बनाये रखने के लिए भारत के अपनेपन, भाईचारा, समृद्धि, सांस्कृतिक बनावट, देशभक्ति, सहिष्णुता, विविधता, सर्वधर्मसमभाव के पीछे मात्र एक कारण बुनियादी शिक्षा से लेकर सामाजिक, धार्मिक, आयुर्वेदिक, उच्च, शिक्षा को जवाबदेह माना था । फिर शुरु किया भारतीय शिक्षा पद्धति में अंग्रेजी पद्धति की मिलावट और राष्ट्रीयता में अंग्रेजियत अर्थात भौतिकतावाद की मिलावट की शुरुआत । जो अंग्रेजी सूट बूट या अंग्रेजी बोलेगा वह अधिक योग्य कहलायेगा । इससे भारतीयों में हीन भावना विकसित होने लगा साथ ही साथ शिक्षा पद्धति में बदलाव के प्रति भारतीयों की रुचि धीरे धीरे बढ़ने लगी ।
आजाद भारत में संविधान ने सभी नागरिकों को शिक्षा का मौलिक अधिकार माना है । परन्तु खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि, आज भी भारतीय शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित है । यहाँ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए जब तक बुनियादी शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक प्रत्येक नागरिकों को मुफ्त सामान अवसर से सुसज्जित नहीं की जाएगी तबतक देश की अखंडता को अच्छूण बनाया जाना एक दुरूह कार्य ही रहेगा । अंग्रेजों के उपनिवेशवाद की समाप्ति के पश्चात भी निजी शिक्षा का प्रसार देश की राष्ट्रीय शिक्षा नीति की कलई खोलता है । आज भी आर्थिक रुप में विपणन और सामर्थ्यवान की शिक्षा का मापदंड अलग अलग है । इस सोंच ने शिक्षा को एक व्यवसाय के रुप में उद्योग के रुप में फलना फूलना गंभीर संकट की तरफ इशारा करता है । अब सामर्थ्यवान शिक्षा पर किये जानेवाले खर्च को सही ठहराने लगे हैं जो पुनः अंग्रेजी मानसिकता की याद दिलाता है ।