शिक्षा
भारत की सभ्यता, साहित्य,सहिष्णुता, संस्कृति, ज्ञान, विज्ञान, परम्परा, विविधता...... शताब्दियों से चली आ रही है । शिक्षा के अभाव में देश की विकास और तरक्की निर्भर करता है । बौद्धिक सम्पदा ही आधुनिक हथियार है जिससे देश के नागरिकों को आधुनिकता के साथ सर्वांगीण विकास सम्भव है । देश की संप्रभुता को अच्छूण रखने के लिए शिक्षा एक अतिमहत्वपूर्ण कारक है । देश के मूल्य, लोकतंत्र, संविधान, अखंडता .... शिक्षा के अभाव में सम्भव है ही नहीं ।
उपयुक्त तथ्यों को ध्यान में रखकर संविधान में शिक्षा को मौलिक अधिकार के रुप में परिभाषित किया है ।
भारतीय संस्कृति, सभ्यता, सम्प्रभुता, भईचारा, सम्पन्नता..... की चकाचौंध को देखकर सदियों से विदेशी आक्रांता द्वारा भारत पर राज्य करने की लिप्सा के कारण कई मर्तबा विदेशी हमला का सामना करते हुए परतंत्र होना इतिहासकार द्वारा विश्लेषित तथ्य माना गया है ।
आजादी के पूर्व अंग्रेजो द्वारा दीर्घकालिक रुप से भारत को अंग्रेजों के उपनिवेश के रुप में शोषण के उद्देश्य से योजनाबद्ध तरीके से अंग्रेजों के द्वारा भारतीय विविधताओं के विभिन्न पहलुओं पर विश्लेषण किया गया था । विश्लेषण में लार्ड मैकाले के अध्ययन को सर्वकालिक सटीक पाया गया । मैकाले के अनुसार भारत को लंबे अरसे तक गुलाम बनाये रखने के लिए भारत के अपनेपन, भाईचारा, समृद्धि, सांस्कृतिक बनावट, देशभक्ति, सहिष्णुता, विविधता, सर्वधर्मसमभाव के पीछे मात्र एक कारण बुनियादी शिक्षा से लेकर सामाजिक, धार्मिक, आयुर्वेदिक, उच्च, शिक्षा को जवाबदेह माना था । फिर शुरु किया भारतीय शिक्षा पद्धति में अंग्रेजी पद्धति की मिलावट और राष्ट्रीयता में अंग्रेजियत अर्थात भौतिकतावाद की मिलावट की शुरुआत । जो अंग्रेजी सूट बूट या अंग्रेजी बोलेगा वह अधिक योग्य कहलायेगा । इससे भारतीयों में हीन भावना विकसित होने लगा साथ ही साथ शिक्षा पद्धति में बदलाव के प्रति भारतीयों की रुचि धीरे धीरे बढ़ने लगी ।
आजाद भारत में संविधान ने सभी नागरिकों को शिक्षा का मौलिक अधिकार माना है । परन्तु खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि, आज भी भारतीय शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित है । यहाँ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए जब तक बुनियादी शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक प्रत्येक नागरिकों को मुफ्त सामान अवसर से सुसज्जित नहीं की जाएगी तबतक देश की अखंडता को अच्छूण बनाया जाना एक दुरूह कार्य ही रहेगा । अंग्रेजों के उपनिवेशवाद की समाप्ति के पश्चात भी निजी शिक्षा का प्रसार देश की राष्ट्रीय शिक्षा नीति की कलई खोलता है । आज भी आर्थिक रुप में विपणन और सामर्थ्यवान की शिक्षा का मापदंड अलग अलग है । इस सोंच ने शिक्षा को एक व्यवसाय के रुप में उद्योग के रुप में फलना फूलना गंभीर संकट की तरफ इशारा करता है । अब सामर्थ्यवान शिक्षा पर किये जानेवाले खर्च को सही ठहराने लगे हैं जो पुनः अंग्रेजी मानसिकता की याद दिलाता है ।
भारत की सभ्यता, साहित्य,सहिष्णुता, संस्कृति, ज्ञान, विज्ञान, परम्परा, विविधता...... शताब्दियों से चली आ रही है । शिक्षा के अभाव में देश की विकास और तरक्की निर्भर करता है । बौद्धिक सम्पदा ही आधुनिक हथियार है जिससे देश के नागरिकों को आधुनिकता के साथ सर्वांगीण विकास सम्भव है । देश की संप्रभुता को अच्छूण रखने के लिए शिक्षा एक अतिमहत्वपूर्ण कारक है । देश के मूल्य, लोकतंत्र, संविधान, अखंडता .... शिक्षा के अभाव में सम्भव है ही नहीं ।
उपयुक्त तथ्यों को ध्यान में रखकर संविधान में शिक्षा को मौलिक अधिकार के रुप में परिभाषित किया है ।
भारतीय संस्कृति, सभ्यता, सम्प्रभुता, भईचारा, सम्पन्नता..... की चकाचौंध को देखकर सदियों से विदेशी आक्रांता द्वारा भारत पर राज्य करने की लिप्सा के कारण कई मर्तबा विदेशी हमला का सामना करते हुए परतंत्र होना इतिहासकार द्वारा विश्लेषित तथ्य माना गया है ।
आजादी के पूर्व अंग्रेजो द्वारा दीर्घकालिक रुप से भारत को अंग्रेजों के उपनिवेश के रुप में शोषण के उद्देश्य से योजनाबद्ध तरीके से अंग्रेजों के द्वारा भारतीय विविधताओं के विभिन्न पहलुओं पर विश्लेषण किया गया था । विश्लेषण में लार्ड मैकाले के अध्ययन को सर्वकालिक सटीक पाया गया । मैकाले के अनुसार भारत को लंबे अरसे तक गुलाम बनाये रखने के लिए भारत के अपनेपन, भाईचारा, समृद्धि, सांस्कृतिक बनावट, देशभक्ति, सहिष्णुता, विविधता, सर्वधर्मसमभाव के पीछे मात्र एक कारण बुनियादी शिक्षा से लेकर सामाजिक, धार्मिक, आयुर्वेदिक, उच्च, शिक्षा को जवाबदेह माना था । फिर शुरु किया भारतीय शिक्षा पद्धति में अंग्रेजी पद्धति की मिलावट और राष्ट्रीयता में अंग्रेजियत अर्थात भौतिकतावाद की मिलावट की शुरुआत । जो अंग्रेजी सूट बूट या अंग्रेजी बोलेगा वह अधिक योग्य कहलायेगा । इससे भारतीयों में हीन भावना विकसित होने लगा साथ ही साथ शिक्षा पद्धति में बदलाव के प्रति भारतीयों की रुचि धीरे धीरे बढ़ने लगी ।
आजाद भारत में संविधान ने सभी नागरिकों को शिक्षा का मौलिक अधिकार माना है । परन्तु खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि, आज भी भारतीय शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित है । यहाँ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए जब तक बुनियादी शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक प्रत्येक नागरिकों को मुफ्त सामान अवसर से सुसज्जित नहीं की जाएगी तबतक देश की अखंडता को अच्छूण बनाया जाना एक दुरूह कार्य ही रहेगा । अंग्रेजों के उपनिवेशवाद की समाप्ति के पश्चात भी निजी शिक्षा का प्रसार देश की राष्ट्रीय शिक्षा नीति की कलई खोलता है । आज भी आर्थिक रुप में विपणन और सामर्थ्यवान की शिक्षा का मापदंड अलग अलग है । इस सोंच ने शिक्षा को एक व्यवसाय के रुप में उद्योग के रुप में फलना फूलना गंभीर संकट की तरफ इशारा करता है । अब सामर्थ्यवान शिक्षा पर किये जानेवाले खर्च को सही ठहराने लगे हैं जो पुनः अंग्रेजी मानसिकता की याद दिलाता है ।
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