Saturday, December 12, 2015

माँ मुंडेश्वरी (भवानी मंदिर) कैमूर , भभुआ, बिहार

मुण्डेश्वरी भवानी मंदिर-एक संक्षिप्त परिचय

ऐतिहासिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक विशिष्टता के लिए विख्यात मुण्डेश्वरी शक्तिपीठ देश की प्रागैतिहासिक धरोहर है। मंदिर परिसर से प्राप्त शिलालेख (108) ई0 एवं चतुर्दिक बिखरे पुरावशेषों के आधार पर यह निर्विवाद रुप से प्रमाणित हो चुका है कि यह देश का प्राचीनतम हिन्दू मंदिर है। जहाँ दो हजार वर्षों से पूजन की प्रक्रिया लगातार जारी है।

ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी द्वारा कराये गये सर्वेक्षण के दौरान सन् 1891-92 ई0 में यहाँ से प्राप्त एक शिलालेख खण्ड ने सर्वप्रथम मंदिर की ओर इतिहासकारों का ध्यान आकृष्ट किया। शिलालेख का दूसरा खण्ड सन् 1902 ई0 में प्राप्त हुआ जिस पर शिलालेख की तिथि खुदी है। शिलालेख के दोनों खण्डों को जोड़ने पर संस्कृत भाषा और ब्राहमी लिपि में उत्र्कीण 18 पंक्तियाँ मिलीं। शिलालेख का वाचन प्रसिद्ध इतिहासकार आ0डी0 बनर्जी एवं एन0जी0 मजूमदार द्वारा किया गया। जिससे पता चला कि यहाँ नारायणदेवकुल (विष्णु) के मंदिर का एक समूह था। उस समय महाराज उदयसेन का शासन था। दण्डनायक गोमीभट्ट ने कुलपति भागुदलन की आज्ञा से विनितेश्वर मठ का निर्माण कराया। विभिन्न विद्धानों द्वारा शिलालेख की तिथि 635-36 ई0 से 350 ई0 तक बतायी गयी किन्तु वर्ष 2003 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा मंदिर परिसर से महान श्रीलंकाई सम्राट महाराजु दुतिगामिनी (101-77 ईसा पूर्व) की राजमुद्रा प्राप्त करने के बाद स्थिति बदल गयी। बिहार राज्य धार्मिक न्यास पर्षद द्वारा 2008 ई0 में पटना में देश भर के इतिहासकारों एवं पुरातत्वविदों का सम्मेलन कराया गया। जिन्होनें गहन शोध एवं विमर्श के बाद शिलालेख की तिथि 108 ई0 निर्धारित की। उन्होनें यह भी घोषित किया कि मुण्डेश्वरी भवानी मंदिर देश का प्राचीनतम हिन्दू मंदिर है। वर्तमान में मुण्डेश्वरी शिलालेख नेशनल म्यूजियम कोलकाता में संरक्षित है।

प्राकृतिक परिवेश

बिहार प्रदेश के कैमूर जिलान्तर्गत भगवानपुर प्रखण्ड में 182.8 मीटर उँची प्रवरा पहाड़ी के शिखर पर मुण्डेश्वरी भवानी का मनोहारी मंदिर स्थित है। शिखर से देखने पर दक्षिण तथा पश्चिम में कैमूर पहाड़ी श्रृंखला लता- गुल्मों से पूरित, वन्य पुष्पों से अलंकृत एवं शीतल सुगंधित वायु के झोकों से प्रकंपित अपनी दूरस्थ बाहें फैलाये देवी के चरणों में सर्वस्व समर्पण के भाव में प्रतिश्रुत दिखायी देती है। वहीं उत्तर और पूर्व के खुले मैदानों में नहरों की पंक्तियाँ, लहलहाती हरी -सुनहली फसल,ें सुरभित आम्रकुंज, बगीचे एवं कूप श्रद्धालुओं पर्यटकों की सारी थकान दूर कर उन्हें तृप्त कर देते हैं। लगता है प्रकृति ने पूरे मनोयोग से जगद्जननी के लिए इस अप्रतिम परिवेश की रचना की है।

बगल की पहाडि़यों में स्थित तेल्हाड़ कुंड, करकटगढ़ आदि जल प्रपात (झरने), अद्भुत जंगल, वन्य-पशु पक्षी एवं तमाम रमणीय प्राकृतिक सुषमा से परिपूर्ण स्थल हैं, जिनका भ्रमण एवं दर्शन अलौकिक आनंद से भर देता है।

धार्मिक न्यास पर्षद द्वारा धाम परिसर में एक सुसज्जित उपवन (पार्क) लाल पत्थरों वाला अतिथि गृह, धर्मशाला, पुष्करणी (तालाब) सहित स्तरीय पर्यटक सुविधाएँ उपलब्ध करायी गयी हैं। प्रबन्ध समिति श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों की सेवा में सदैव तत्पर रहती है।

अहिंसक/रक्तहीन बलि

मुण्डेश्वरी भवानी सात्विक श्रद्धा का पुंज हैं। जगद्जननी की ऐसा वात्सल्यपूर्ण मूर्ति अन्यत्र कहीं नहीं है। इस बात का प्रमाण यहाँ संपन्न होने वाली अनूठी बलि प्रक्रिया है। अनेक लोग इसे आश्चर्यपूर्ण एवं रहस्यात्मक भी मानते हैं। बलि के लिए माँ की मूर्ति के समक्ष लाए गए बकरे पर पुजारी मंत्रपूत अक्षत-पुष्प छिड़कते हैं और बकरा बेहोश सा होकर शांत पड़ जाता है। पुनः पुजारी द्वारा अक्षत पुष्प छिड़कते हीं जागृत होकर बकरा डगमगाते कदमों से स्वयं मुख्य द्वार से बाहर चला जाता है। इस प्रकार रक्तहीन बलि संपूर्ण होती है। सचमुच यहाँ जगद्माता साक्षात विराजती हैं तभी तो अपनी संतान का वध नहीं चाहती बल्कि उसके सर्वस्व समर्पण से पुलकित होकर चिरजीवन का वरदान देती हंै। ब्रहमांड नियंता एवं सर्जक मातृशक्ति के इस अपूर्व विग्रह के दर्शन मात्र से हीं मनुष्य के सारे कष्ट समाप्त हो जाते हैं और उसे दीर्घ जीवन प्राप्त होता है।

रंग बदलता शिवलिंग

मुण्डेश्वरी भवानी मंदिर के गर्भगृह के मध्य में स्थित काले पत्थर का पंचमुखी शिव लिंग भी अत्यंत प्रभावकारी एवं अद्वितीय है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार यह सुबह, दोपहर एवं शाम को सूर्य की स्थिति परिवर्तन के साथ विभिन्न आभाओं में दिखायी देता है। यह अनंत जागृत शिव लिंग इस स्थान की रहस्यात्मकता एवं पारलौकिक प्रभाव का अद्भुत नमूना है।

                                                                                                                                           

श्री यन्त्र के स्वरुप में निर्मित

माँ मुण्डेश्वरी का मंदिर पूर्णतः श्री यन्त्र पर निर्मित है। इसके अष्टकोणीय आधार एवं चतुर्दिक अवस्थित भग्नावशेषों के पुरातात्विक अध्ययन के पश्चात् यह तथ्य प्रमाणित हो चुका है। प्राचीन भारतीय वास्तु शिल्प की चरम उपलब्धि है- श्री यन्त्र। श्री यन्त्र पर निर्मित मंदिर अष्टकोणीय आधार पर स्थित त्रिविमीय(Three Dimensional) होता है। जो मुण्डेश्वरी मंदिर के देखने से स्पष्ट है। धार्मिक आध्यात्मिक दृष्टिकोण से श्री यन्त्र आधारित मंदिर में अष्ट सिद्धियाँ तथा संपूर्ण देवी देवता विराजमान होते हैं। इस मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करते हीं व्यक्ति तनाव, थकान तथा विभिन्न मनोविकारों से तत्काल मुक्ति प्राप्त करता है। चित शांत एवं एकाग्र हो जाता है। शास्त्रों में उल्लिखित है कि श्री यन्त्र के प्रभाव से मनुष्य के सारे दुखः समाप्त हो जाते हंै एवं उसे सुख, समृद्धि, आरोग्य एवं दीर्घ जीवन प्राप्त होता है। साधकों के लिए यह स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है जहाँ आसनस्थ होने पर ध्यान तत्काल ईष्ट की ओर उन्मुख होता है और यहाँ स्थित विशिष्ट उर्जा उन्हें विभिन्न बाधाओं से मुक्त कर शीघ्र वांछित फल प्रदान करती है। यही कारण है कि नवरात्र काल ,श्रावण एवं माघ महीनों में लाखों श्रद्धालुओं के साथ-साथ सैंकड़ों साधक देश के विभिन्न क्षेत्रों से यहाँ साधना हेतु पहँुचते हंै। श्री यंत्र पर निर्मित मुण्डेश्वरी मंदिर पहुँचकर कोई व्यक्ति इस विशिष्ट प्रभाव को सहजता से अनुभव कर सकता है।

तांत्रिक महत्व

प्राचीन मनीषी तथा आधुनिक वैज्ञानिक भी यह मानते हैं कि प्रत्येक भूखण्ड (स्थान) की एक विशिष्ट चुम्बकीय शक्ति होती है। इसी शक्ति के अनुपात से वास्तुशास्त्री किसी भूखण्ड की विशिष्ट अवस्थाओं का निरुपण एवं निर्धारण करते हैं। इसी शक्ति से संपन्न वारामूला त्रिकोण आज भी विज्ञान के लिए एक रहस्य बना हुआ है। प्रवरा पहाड़ी के उपर स्थित श्री यन्त्र पर निर्मित मुण्डेश्वरी भवानी मंदिर भी अपनी अनंत उर्जा प्रवाहिनी शक्ति के कारण श्रद्धालुओं एवं साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। अधोमुख त्रिकोणीय प्रवरा पहाड़ी पर स्थित अष्टकोणीय आधार वाला मंदिर तथा गर्भगृह में स्थापित मूर्तियां विशिष्ट भू-चुम्बकीय एवं तांत्रिक स्थिति का सृजन करती हैं। जहाँ सकारात्मक उर्जा का अजस्त्र प्रवाह निरंतर जारी रहता है। इस प्रवाह में व्यक्ति के समस्त भौतिक-शारीरिक दुखों का समाधान करने की शक्ति है। साथ हीं उसकी आध्यात्मिक उन्नति होती है। जीवन संपूर्णता को प्राप्त होता है। अनंत उर्जा प्रवाह से परिपूरित मुण्डेश्वरी भवानी मंदिर बाह्य रुप से जड़ दिखायी देने के बावजूद स्पंदित-सजीव है और यही कारण है कि यहाँ हजारों वर्षों से पूजन एवं साधना की प्रक्रिया लगातार जीवंत है। यहाँ एक अपूर्व शांति है, श्मशान की नहीं, उल्लासपूर्ण, अवसादहीन तपोवन की शांति। सात्विक सरलता से पूरित यह परिवेश चिंतन , मनन एवं आध्यात्मिक उत्थान की प्रेरक भूमि है।

                                                                                                                                             

धार्मिक एवं सामुदायिक समन्वय का प्रतीक

बिहार धार्मिक न्यास पर्षद द्वारा प्राप्त ऐतिहासिक पुरातात्विक प्रमाणों से यह सिद्ध हो चुका है कि पहली सदी ईसा पूर्व तक यह मंदिर अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुका था। सन् 2003 ई0 में शोधकर्ताओं द्वारा मंदिर परिसर से प्राप्त महान श्री लंकाई सम्राट महाराजु दुतिगामिनी की राजमुद्रा से इस तथ्य की पुष्टि हुयी है।

मंदिर परिसर से प्राप्त शिलालेख (108 ई0) के अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि यहाँ नारायणकुल (विष्णु) के मंदिरों का समूह था। जिसके प्रधान देवता मण्डलेश्वर स्वामी थे। बाद में शैव मत की प्रधानता के काल में विनितेश्वर (शिव) यहाँ प्रधान देवता के रुप में पूजित हुए। कालांतर में शाक्त मत की प्रबलता होने पर मण्डलेश्वर की अद्र्धांगिनी मण्डलेश्वरी (मुण्डेश्वरी अपभ्रंश ) प्रमुखता से सुपूजित हुयीं। संभवतः यह परिवर्तन मातृ्पूजक चेरों राजाओं के शासन काल में हुआ। एक हीं गर्भगृह में सूर्य (विष्णु), शिव एवं वैष्णवी देवी की उपासना अद्भुत एवं समन्वयकारी है। जो निर्माताओं के धर्म के शास्वत स्वरुप से निकटता का परिचायक है और तत्कालीन परिस्थतियों में अद्भुत है।

आज जब धार्मिक एवं सांप्रदायिक विवाद देश और समाज के लिए गहन चिन्ता के कारण बने हुए हंै, मुण्डेश्वरी के निर्माताओं ने हजारो वर्ष पूर्व हीं शांति और सहिष्णुता का मार्ग दिखा दिया था। यहाँ प्राप्ति की नहीं त्याग की शास्वत परंपरा है जो मनुष्यता का आधार है।

                                                                                                                                                     

व्यवस्था

मंदिर एवं परिसर के संरक्षण, विकास एवं पर्यटक सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए बिहार सरकार के अधीन धार्मिक न्यास पर्षद द्वारा समुचित व्यवस्था की गयी है। प्रबंध समिति के पदेन अध्यक्ष जिला पदाधिकारी, कैमूर, सह-सचिव प्रखण्ड विकास पदाधिकारी, भगवानपुर तथा समिति के सदस्यगण निरंतर पर्यटकों की सुविधाओं का ख्याल रखते हैं। पर्यटक उनसे संपर्क कर अपनी किसी प्रकार की कठिनाई से अवगत कराकर तत्काल निदान पा सकते है।

संपर्क हेतु फोन नम्बर-

1. जिला पदाधिकारी - 06189-223250-223241

2. प्रखण्ड विकास पदाधिकारी - 06189-264237

3. केयर टेकर, पर्यटक भवन ,मुण्डेश्वरी धाम - 09955237430

कैसे पहुँचें----

निकटतम हवाई अड्डा- वाराणसी, गया तथा पटना

रेलमार्ग- ग्रैण्ड कार्ड रेल लाईन पर मुगलसराय एवं सासाराम रेलवे स्टेशन के बीच स्थित भभुआ रोड रेलवे स्टेशन से उतरकर वहाँ से सड़क मार्ग द्वारा मुण्डेश्वरी मंदिर पहुँचा जा सकता है।

वाराणसी से गया रेल मार्ग पर भभुआ रोड रेलवे स्टेशन से उतरकर सड़क मार्ग से मंदिर पहुँच सकते हैं।

वाराणसी से गया सड़क मार्ग से जानेवाले पर्यटक मोहनियाँ होते हुए मुण्डेश्वरी मंदिर का भ्रमण कर सकते हैं।

सौजन्य:- माँ मुंडेश्वरी फेसबुक पेज द्वारा

Sunday, November 29, 2015

भारत में धर्म/पंथ की व्याख्या

भारत में धर्म /पंथ की व्याख्या

वर्णवादी या हिन्दूवादी धर्म व्यवस्था भारत में सहिष्णुन्ता के रूप में सनातन काल से जिस जीवनपद्धति से जीवन यापन की पद्धति अपनाई है वह वर्ण व्यवस्था भारत में समूहों को जन्म दिया जिसमे एक समूह हरिजन और दलित को आज तक छुआछूत के दंश से अभिशप्त जीवन यापन करने को मजबूर है जिसके चलते आधुनिक भारत के निर्माता डॉ भीम राव अम्बेडकर तक को हिन्दू धर्म को छोड़ना पड़ा था और विडम्बना यह है कि इस कुचक्र में हिन्दू धर्म के बहुसंख्यक वैश्य वर्ण भी सम्मिलित था जबकि वह भी कई सामाजिक कुरीतियों का शिकार था । आजाद भारत में देश की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखने हेतु हिन्दू धर्म की इस वर्ण कुरीति के कारण संविधान में सामाजिक , आर्थिक एवं राजनीतिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए आरक्षण की व्यवस्था करनी पड़ी । पता नहीं इस आरक्षण की व्यवस्था कितनी सदियों तक लागू किया जायेगा तब हिन्दू वादी वर्ण व्यवस्था द्वारा उपजा असमानता का शिकार वर्ण समानता का अधिकार प्राप्त करेगा ।

पुनः संसद भवन में हिन्दू जीवन पद्धति का हवाला देकर एक सम्प्रदाय बिशेष को देश के सर्व धर्म समभाव की परिभाषा के विपरीत धर्म निरपेक्ष की सुविधानसुसार व्याख्या प्रारम्भ कर दी गयी है । पूर्व में दलितों को सामाजिक और आर्थिक रूप में उत्पीड़न के लिए जो शक्ति जवाबदेह थी वही हिंदूवादी मानसिकता पुनः अपनी वर्चस्व को कायम करने के निमित्त सुविधानुसार नयी धर्म निरपेक्ष की परिभाषा गढ़कर देश की 15% आवादी को अलग थलग कर बहुसंख्यक की आँख में धुल झोंककर सत्ता का रसास्वादन करना प्रारम्भ कर दिया है जो एक राजनीतिक और सामाजिक षडयंत्र है । यह नयी षडयंत्र भविष्य में एक ऐसी कुरीति को  जन्म देगी जिसके सोंचने मात्र से शरीर में प्रत्येक संवेदनावान व्यक्ति सिहर उठता है जो देश की एकता अखंडता के लिए घातक तो है ही साथ ही साथ इस कुरीति को उखाड़ने के लिए एक नए डॉ भीम राव अम्बेडकर को भारत में नए रूप में अवतार लेना होगा ।

Wednesday, November 4, 2015

बीजेपी का अभिवयक्ति की स्वतंत्रता का पाखण्ड

बीजेपी का कथानायक फणीश्वरनाथ रेणु के साथ उजागर दोहरा चरित्र एवं अभिव्यक्ति का पाखंड

वैसे तो भा ज पा बात बात में देश में असहिष्णुनता की चर्चा के विरोध में यह कहती है कि देश में इमर्जेंसी के वक्त तथाकथित साहित्यकार राष्ट्रीय पुरस्कार लौटने वाले कहाँ थे । उनकी देशभक्ति मर गयी थी क्या?
इतिहास साक्षी है कि इमर्जेंसी के समय जेल जाने वाले देश के सर्वश्रेष्ठ आंचलिक कथाकार स्वर्गीय फणीश्वरनाथ रेणु जी अपने साहित्य जगत की उपलब्धि का राष्ट्रीय पद्मश्री पुरस्कार को पाप श्री पुरस्कार कहते हुए भारत सरकार को लौटाकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मिशाल देश में की थी । यहाँ यह भी बता दूं क़ि रेणु जी अति पिछड़ा शोषित समाज धानुक कुर्मी जाति के थे ।
श्री रेणु जी के सुपुत्र को गत चुनाव में बीजेपी के प्रत्याशी थे और उनके सुपुत्र श्री पद्म पराग वेणु जी बी जे पी के प्रत्यासी के रूप में अररिया हीं पूरे सीमांचल क्षेत्र पूर्णिया कमिश्नरी में रिकार्ड मत से जीते थे ।
2015 के विधानसभा चुनाव में रिकार्ड मत से निर्वाचित रेणु जी के अतिपिछड़ा वर्ग/शोषित समाज को भाजपा ने उम्मीदवार ही नहीं बनाया ।

यह है शोषित और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का बीजेपी का पाखंड ।

Monday, November 2, 2015

नमो द्वारा सर्वश्रेष्ठ कथानायक फणीश्वरनाथ रेणु का अपमान

Padam Parag Roy Venu की कलम से -----++++++

नमो का सर्वश्रेष्ठ कथाकार स्वर्गीय फणीश्वर नाथ रेणु  हिंदी साहित्यकार के साथ अपमान 

पिछली बार पीएम मोदी एमपी के चुनावी सभा को सम्बोधित करने पुर्णिया और फारबिसगंज आए थे तो उन्होंने महान साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु का नाम लेकर उनका महिमा मंडित किया था और जब इस वर्ष सितम्बर में भोपाल में विश्व हिंदी सम्मेलन को सम्बोधित कर रहे थे तो सबसे पहले रेणु का नाम लेकर कहा था कि रेणु साहित्य को पढे बगैर बिहार को और वहाँ कि गरीबी को नहीं जाना जा सकता।बडे हीं दुख कि बात है कि जब प्रधानमंत्री बनने के बाद कल 2 नवम्बर को जब बिहार चुनाव के आखिरी चरण के लिए रेणु कि धरती फारबिसगंज में चुनावी सभा में एक बार भी उस रेणु का नाम तक नहीं लिया।क्या यह साहित्यकार और साहित्य जगत का अपमान नहीं है? यह एक बहुत हीं बडा सवाल है आखिर क्यों मोदी जी?रेणु कि हीं धरती पर उन्हें भुला दिया।

Saturday, October 31, 2015

प्रधानमंत्री के वक्तव्य सतही या अवसरवादिता

प्रधानमंत्री श्री नमो का वक्तव्य अवसरवादिता या सतही-----+++++++

भारत में कई प्रधानमंत्री हुये । राजनीतिक रूप में आजादी में सक्रियता एवं भागीदारी महात्मा गांधी जी, लौह पुरूष सरदार पटेल जी , चाचा पंडित जवाहरलाल नेहरु, श्री लाल बहादुर शास्त्री से जुड़े राजनीतिक संगठन कोंग्रेस को देश की आजादी के बाद सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री पद को विभिन्न नेताओ द्वारा देश की सेवा करने का अवसर दिया । गैर कांग्रेसवाद की राजनीति के बाद कई दूसरे राजनीतिक दल के नेता को भी प्रधानमंत्री बनने का अवसर प्राप्त हुआ । वर्तमान राजनीतिक कालखंड में गैर बीजेपी बाद की राजनीति की पदचाप सुनायी पड़ती है ।

देश की आज़ादी के समय जो व्यक्ति आर्थिक रुप में जितना अमीर और शैक्षणिक योग्य रहने के वाबजूद सारी भौतिकतावादी सुख को त्याग कर देश की सवतंत्रता के लिए अपना समर्पण किया तब जनता उसके त्याग और बलिदान को आदर्श मानकर उसका अनुकरण करते हुए उसका नेतृत्व में पूर्ण आस्था प्रकट करते थे । इसी कड़ी में महात्मागांधी, पटेल,चाचा नेहरु, राजेन्द्र प्रसाद, शास्त्री जी....आदि नेताओं की गिनती होती है ।

बाद के कालखंड में भी कई नेता अपने विलक्षण राजनीतिक सोंच, ज्ञान, समाज में समर्पण, सौम्यता, सहिष्णुता, तार्किक शक्ति, नेतृत्व क्षमता....आदि गुणों के कारण भी राजनैतिक क्षितिज के शीर्ष तक पहुँच पाये जैसे इन्दिरा गांधीजी, अटल बिहारी वाजपेयी जी, वी पी सिंह, चंद्रशेखर सिंह....। इसी कड़ी में कई और नेता भी हैं जो राजनीतिक क्षितिज पर देश के योगदान एवं सर्वांगीण विकाश में अहम् भूमिका अदा किये ।

उपरोक्त वर्णित सभी राजनेताओं के द्वारा अपने भाषणों में आत्मप्रशंसा के शब्दों का कहीं उल्लेख नहीं मिलता है, मसलन महात्मा गांधीजी , चाचा नेहरू, पटेल...... द्वारा अपनी शैक्षणिक और आर्थिक बलिदानों को जनता के सामने नहीं परोसते थे । कभी किसी ने शास्त्री जी द्वारा स्ट्रीट लैम्प पोस्ट में अपनी पढ़ाई पूरी किये जाने का दृष्टान्त नहीं मिलता है ।ऐसा ही उदहारण बाद के नेताओं जैसे आडवाणी के भाषणों में अपने को शरणार्थी कहते हुए कोई उदहारण नहीं है ।

वर्तमान में बीजेपी के कई नेता तो नेता स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने को चाय बेचनेवाला, कभी ट्रेन में चाय बेचने का जिक्र करना, कभी अपने को पिछड़ा का रहनुमा घोषित करना, कभी सवयं को अति पिछड़ा कहकर जनता की संवेदना के साथ जुड़ना को समाज के कई वर्गों में चुनाव के समय दिया गया वक्तव्य प्रधानमंत्री के पद की मर्यादा के विपरीत मानते हैं ।मेरे मतानुसार इस तरह का वक्तव्य पूर्णतः राजनैतिक स्वार्थ सिद्धि साधने का शार्ट कर्ट जरिया है ।

वर्तमान प्रधानमंत्री नमो के उदबोधन की उपर्युक्त तथ्य पूर्णतः अवसरवादिता एवं सतही सोंच का परिचायक है ।
Ashutosh Atharv :-आग के साथ आग बन मिलो पानी के संग पानी, गरल का उतर है प्रतिगरल यही कहते जग के ग्यानी
  आपके प्रस्तुति से शिकायत नही पर तार्किक परिणति तक पहूचने के लिए सभी रथियो के सिद्धान्त. मन कर्म वचन पर तुलनात्मक विचार होता तो अच्छा होता
लेखक :- विचार तो सिर्फ एक ही संगठन के पास है आर एस एस उसके इतर लिखने बोलने पर मैं देशद्रोही या पाकिस्तानी हो जाऊंगा । मेरी भी संविधान में आस्था है परंतु लगता है या मह्शूश होता है क़ि मैं भी क्या बोलूं क्या लिखूँ क्या खाऊँ लिखने/बोलने/खाने के पहले मेरे चारों ओर कुछ अदृश्य शक्तियाँ हैं उनसे सहमति ले लेनी चाहिए । आज से 18 माह पहले ऐसा वातावरण नहीं था । एक बात और तुमसे( छोटा होने के कारण)  ताकीद करता हूँ, क्या तुमने कभी कुछ लिखने के पहले किसी दूसरे से रॉय या इतिफाक रखते हो क्या ? तुम तो नौजवान हो तुममें कब से फाँसीवाद का गुण आ गया ? चिन्तनीय!

अडाणी अरहर मोदी के लिये तुरुप का पत्ता

अडानी अरहर मोदी के लिए तुरूप का पत्ता-+++++

देश में अना वृष्टि के कारण दलहनी फसल के उत्पादन में कमी के आकलन को ससमय केंद्र सरकार द्वारा नहीं किये जाने एवं दाल की कमी के आयात के लिए एकमात्र व्यवसायी अडानी ग्रुप को सौंपने एवम् आयात के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में अडानी के नजदीक के व्यवसायी द्वारा जमाखोरी कर दाल की किल्लत कर आम जनता से अधिक मूल्य में दाल की कालाबाज़ारी का सत्य श्री अरहर मोदी को स्पष्ट करना चाहिए और न खाऊँगा न खाने दूँगा का सत्य देश को बतलाना चाहिए ।

मित्रों की समीक्षा
दीपक जयसवालजी:- Sir Price rise of Pulses is failure of Governance... it was already predicted about 10 % fall in production due to scanty rainfall this year.. how could price rise 200%???... Hoarders mostly from BJP ruled states took it as opportunity due to softness of state governments towards them....
जीतेन्द्र कुमारजी :- इंडिया पल्सेज ग्रेंस एसोसिएशन के साथ अदाणी ग्रुप ने अपने पोर्ट्स पर दाल और दलहन के रखरखाव के लिये एक समझौता किया है। दरअसल यह समझौता जब दालों में तेजी का दौर चल रहा है और इस समझौते की वजह से देश भर में दालों की लागत के अनुसार प्रभावी आपूर्ति सुनिश्चित करना है।

यह समझौता आदाणी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनामिक जोन यानि एपीएसईजेड ने आईपीजीए के साथ समझौता कर लिया है। इसके साथ ही अदाणी के पोर्ट्स पर दाल दलहन के रखरखाव के लिये ही यह समझौता हुआ है। वास्तव में यह समझौता हो जाने के बाद पोर्ट्स की सुविधाओं के इस्तेमाल से दाल दलहन की आपूर्ति को विकसित किये जाने में और सहायता हो सकेगी और इससे दाल व दलहनों की आपूर्ति में बढोत्तरी सुविधाजनक तरीके से हो सकेगी।
(भलाई का जमाना ही नहीं रहा।डूबते को बचाना भी गुनाह है)
लेखक:- भलाई के लिए देश में अडानी हीं एकदेश भक्त नज़र आते हैं । आयातित दाल में विलम्ब या देश में कालाबाज़ारी के लिए कौन जवाबदेह है क़ि यह कालाबाज़ारी भी जनता की भलाई में किया गया है । अच्छी कहावत आपने बताई डूबते को बचाना.... डूबते को बचाने के नाम पर डूबने वाले व्यक्ति की पूरी जमीन रजिस्ट्री करवा डाली और देश भक्त होने का प्रमाण भी ठोकवा लिया ।
जीतेन्द्र कुमार :- अपना सब समस्या अडानी अम्बानी पर! उद्योगपत्तियों और व्यवसयायियों पर कम्युनिस्टि सोंच से बिहार का विकास होगा क्या ?
लेखक :- अडानी सोंच से विकास होगा ? देश के सबसे शुभचिंतक 125 करोड़ में अडानी हीं हैं । मैं जन्म से व्यवसायी के यहाँ रोजमर्रा के सामानों की आपुर्ति हेतु पन्सारी की दूकान में जाता था । तौल में पन्सारी आँख बंद डिब्बा गायब कर देते थे ।फेरीवाला/ समानो की अदलाबदली वाला ....किस किस का नाम गिनाऊँ । अरे भाई बिहार में एक कहावत है दही के अगोरिया बिलाई ।
जीतेन्द्र कुमार :- जी ! 60 साल के रूल में यही दो-चार बना पाये हैं...क्या करें! हम पर भरोसा न हो तो पप्पू से पूछ लीजिए..साथ ही बैठा होगा।
लेखक:- पप्पू से क्यों पूंछे? हर बात में पप्पू जुमला कब तक? जवाबदेही लेना सिखो भाई । कल बच्चा पैदा होगा उसके लिए भी पप्पू ।बहस को सार्थक तर्क के साथ । 60 साल तक जनता पप्पू के साथ थी इस बार जनादेश आपकी है । आप तो पूर्व में आपके वंशज जो जनादेश दिए उसको भी गाली दे रहे हैं ।
जनक कुमार सिंह जी :- किन्तु कृषि राज्य का विषय है। फसलों के उत्पादन का आकलन राज्य सरकारों का दायित्व है।
लेखक :-क्या कांग्रेस के ज़माने में सामानों की किल्लत और उसका आकलन राज्य सरकारों का नहों था ? दूसरा देश के कितने प्रदेशों में बीजेपी शाषित राज्य हैं । उन राज्यों के आकलन से औसत निष्कर्ष के आधार पर मांग आपूर्ति के सिद्धान्त पर ससमय यथोचित कारवाई करनी चाहिये थी । कार्यवाई भी की गयी परंतु चहेते अडानी ग्रुप के साथ जो दाल लाकर भी सरकार के मुफीद  जमाखोरों को कलवाज़री में प्रत्यक्ष रूप में मदद तो नहीं कहूँगा लेकिन सरकार के सांठगाठ या संलिप्तता के बिना मात्र 10% उत्पादन में कमी के नाम पर दाल की कीमत 200% ऐतिहासिक मूल्य तक नहीं पहुँचता ।

Friday, October 30, 2015

ब्यूरोक्रेसी का सत्य

Rakesh Gupta 80 batchBCE Patna की मर्मस्पर्शी प्रस्तुति.......-----------+
ब्यूरोक्रेसी का सत्य

एक बड़े मुल्क के राष्ट्रपति के बैडरूम की खिड़की सड़क की ओर खुलती थी। रोज़ाना हज़ारों आदमी और वाहन उस सड़क से गुज़रतेथे। राष्ट्रपति इस बहाने जनता की परेशानी और दुःख-दर्द को निकट से जान लेते।राष्ट्रपति ने एक सुबह खिड़की का परदा हटाया। भयंकर सर्दी। आसमान से गिरते रुई के फाहे। दूर-दूर तक फैली सफ़ेद चादर। अचानक उन्हें दिखा कि बेंच पर एक आदमी बैठा है। ठंड से सिकुड़ कर गठरी सा होता।
राष्ट्रपति ने पीए को कहा -उस आदमी के बारे में जानकारी लो और उसकी ज़रूरत पूछो।
दो घंटे बाद।
पीए ने राष्ट्रपति को बताया - सर, वो एक भिखारी है। उसे ठंड से बचने के लिए एक अदद कंबल की ज़रूरत है।राष्ट्रपति ने कहा -ठीक है, उसे कंबल दे दो।अगली सुबह राष्ट्रपति ने खिड़की से पर्दा हटाया। उन्हें घोर हैरानी हुई। वो भिखारी अभी भी वहां जमा है। उसके पास ओढ़ने का कंबल अभी तक नहीं है।
राष्ट्रपति गुस्सा हुए और पीए पूछा -यह क्या है? उस भिखारी को अभी तक कंबल क्यों नहीं दिया गया?
पीए ने कहा -मैंने आपका आदेश सेक्रेटरी होम को बढ़ा दिया था। मैं अभी देखता हूं कि आदेश का पालन क्यों नहीं हुआ।थोड़ी देर बाद सेक्रेटरी होम राष्ट्रपति के सामने पेश हुए और सफाई देते हुए बोले - सर, हमारे शहर में हज़ारों भिखारी हैं। अगर एक भिखारी को कंबल दिया तो शहर के बाकी भिखारियों को भी देना पड़ेगा। और शायद पूरे मुल्क में भी। अगर न दिया तोआम आदमी और मीडिया हम पर भेदभाव का इल्ज़ाम लगायेगा।
राष्ट्रपति को गुस्सा आया -तो फिर ऐसा क्या होना चाहिए कि उस ज़रूरतमंद भिखारी को कंबल मिल जाए।सेक्रेटरी होम ने सुझाव दिया -सर, ज़रूरतमंद तो हर भिखारी है। आपके नाम से एक 'कंबल ओढ़ाओ, भिखारी बचाओ' योजना शुरू की जाये। उसके अंतर्गत मुल्क के सारे भिखारियों को कंबल बांट दिया जाए।
राष्ट्रपति खुश हुए। अगली सुबह राष्ट्रपति ने खिड़की से परदा हटाया तो देखा कि वो भिखारी अभी तक बेंच पर बैठा है।
राष्ट्रपति आग-बबूला हुए।
सेक्रेटरी होम तलब हुए। उन्होंने स्पष्टीकरण दिया -सर, भिखारियों की गिनती की जा रही है ताकि उतने ही कंबल की खरीद हो सके।
राष्ट्रपति दांत पीस कर रह गए। अगली सुबह राष्ट्रपति को फिर वही भिखारी दिखा वहां। खून का घूंट पीकर रहे गए वो।सेक्रेटरी होम की फ़ौरन पेशी हुई। विनम्र सेक्रेटरी ने बताया -सर, ऑडिट ऑब्जेक्शन से बचने के लिए कंबल ख़रीद का शार्ट-टर्म कोटेशन डाला गया है। आज शाम तक कंबल ख़रीद हो जायेगी और रात में बांट भी दिए जाएंगे।राष्ट्रपति ने कहा -यह आख़िरी चेतावनी है।अगली सुबह राष्ट्रपति ने खिड़की पर से परदा हटाया तो देखा बेंच के इर्द-गिर्द भीड़ जमा है। राष्ट्रपति ने पीए को भेज कर पता लगाया। पीए ने लौट कर बताया -कंबल नहीं होने के कारण उस भिखारी की ठंड से मौत हो गयी है।गुस्से से लाल-पीले राष्ट्रपति ने फौरन से पेश्तर सेक्रेटरी होम को तलब किया। सेक्रेटरी होम ने बड़े अदब से सफाई दी -सर,खरीद की कार्यवाही पूरी हो गई थी। आनन-फानन हमने सारे कंबल बांट भी दिए। मगर अफ़सोस कंबल कम पड़ गये।राष्ट्रपति ने पैर पटके -आख़िर क्यों? मुझे अभी जवाब चाहिये।सेक्रेटरी होम ने नज़रें झुका कर कहा -सर, भेदभाव के इलज़ाम से बचने के लिए हमने अल्फाबेटिकल आर्डर से कंबल बांटे। बीच में कुछ फ़र्ज़ी भिखारी आ गए। आख़िर में जब उस भिखारी नंबर आया तो कंबल ख़त्म हो गए।राष्ट्रपति चिंघाड़े -आखिर में ही क्यों?
सेक्रेटरी होम ने भोलेपन से कहा -सर, इसलिये कि उस भिखारी का नाम 'जेड' से शुरू होता था।
Ye he aaj ka system