दशहरा के विजयादशमी के रावण वध (गाँधी मैदान ) , पटना की अविश्वसनीय घटना हजारों अवला , निःसहाय की रूदन - क्रंदन क्या सचमुच में प्रशासनिक विफलता का कारण है ? हम सचमुच में गिद्धों , चीलों ...का बिहार बनाते जा रहे हैं . हमारी अशिक्षा , गरीबी , अज्ञानता , दो जून रोटी की जुगाड मेंबरवश आखें सुकून का दो पल निहारता ......... मौत का साक्षात् पटना वध के आलिंगन पर सवार होकर हमलोगों को भविष्य के लिए सचेत कर गया . अक्सर भीड़ , अन्धविश्वास ने कई वार हमारी मौत लिखी है . आधुनिकता की चादर अभी भी हमें दो पल चैन की नींद सोने नहीं देता है . यह आधुनिक तंत्र हमें गहरी नींद में बार -बार सोने को मजबूर करता है ..छठ की काली शाम, मोदी का राजनीतिक मंच और आज पटना का वध ....पता नहीं हम कब जागेगें . अच्छा हुआ कुछ लोग हमेशा के लिए सो गए . मैं भी अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा हूँ .
जात अर्थात जमात की राजनीति वर्षो से भारत में हो रही है . कबीला के सरदार से लेकर अब तक हर पांच वर्षों में नए नए समीकरण के रूप में समाज की राजनीतिक जागृति की वजह से एक जमात तैयार होता है . जो पूर्व से शासक वर्ग में थे उन्हें नए जमातों को बनते देख घृणा की दृष्टि से जातिवाद की संज्ञा दी जाति है . यही सामंतवाद का द्योतक है . क्या समाज का पिछड़ा वर्ग(महिला ,अशिक्षित , दलित , पिछड़ा , शोषित ...) को राजनीति में आने का हक़ नहीं है . आजाद भारत में सता पर समानुपातिक रूप में सभी का प्रतिनिधि होना चाहिए . तभी सभी वर्गों में राष्ट्र वाद की भावना , विकाश , ......आदि सम्भव हो सकेगा .आजादी के वाद प्रथम चुनाव का विश्लेषण कर लें . मधेपुरा का पहला सांसद ब्राह्मण जाति से था एवम मसौढ़ी का प्रथम विधायक भी ब्रह्मन था .प्रजातन्त्र जब जनता के बहुमत के आधार पर होता है तो कब तक अधिक आबादी वाली जनता को ठेंगा दिखा पायेंगे .मनु वादी सामंतवादी सोच इसी को जातिवादी की संज्ञा देकर भ्रम फैलाते हैं ..............