Thursday, October 2, 2014

विजयादशमी का पर्व अर्थात दशहरा



पुरातनकाल से भरतवंशी दशहरा का पर्व हर्सोल्लास से मनाये जाने की धार्मिक और सामजिक परम्परा का निर्वहन कर रहे हैं . यह पूर्व , पश्चिम , उत्तर और दक्षिण भारत में समग्र रूप में अलग - अलग परम्परा , रीति, रिवाज़ ...से मनाया जाता है . पूर्व राज्यों में आराध्य देवी माँ की विशाल प्रतिमा बनाकर परम्परा का निर्वहन करते हैं . कहीं कहीं रामलीला के रूप में तो कहीं डांडियाके रूप में और कहीं रावण की मूर्ति को जलाकर दशहरा पर्व को मनाया जाता है .
आधुनिक भारत के नागरिक का स्वरुप - स्कूल और कॉलेज के बच्चे को दशहरा की छुट्टीमें मौज मस्ती का अवसर मिलता है .अपने अपने पैतृक स्थानों पर सभी परिवार के लोगों से मिलने का सुखद संयोग बनता है .मीठे मीठे पकवान , लजीज व्यंजनों से क्षुधा तृप्त हो जाती है . छुट्टी में मध्यम आय वाले व्यक्ति सैर - सपाटे के लिए निकल जाते हैं . कुल मिलाकर दशहरा पर्व को मौज - मस्ती के रूप में आधिकांश भारतीय वर्तमान में मनाते हैं .
धार्मिक स्वरुप - धर्म और आस्था का भारत अजीब देश है . दशहरा में लोग दस दिन शुद्ध शाकाहारी , निर्जल्ला , एक शाम उपवास , मूर्ति की आराधना, अनाज रहित व्यंजन , फलाहार आदि अनेक हठयोग के स्वरुप को अपनी - अपनी दिनचर्या या आस्था या धर्म या परंपरा या रीति - रिवाज़ के हिसाब से मनाते हैं . इतना तो तय है कि आधुनिक स्वास्थ्य विज्ञान इस स्वरुप को माने या न माने पर यह तो मान ही लेता है कि तन की शुद्धि हो जाती है . मन कि शुद्धि में कुछ संशय रह जाता है . और वह वाजिव भी है . दशहरा के बाद भारत में रहनेवाले मुर्गे - मुर्गी , बकरे आदि को दस दिन का आराम मिल जाता है फिर तो हम छूटे दिनों का हिसाब कड़े सूद के साथ वसूल लेने की परंपरा का निर्वहन आजकल किया जा रहा है . अब यह बताना बहुत दुष्कर है कि कौन सि परम्परा श्रेष्ठ है . आखिर जान सबकी प्यारी है . बलि कि कुप्रथा को यहाँ पर नहीं ही जिक्र होता तो अच्छा रहता . बलि प्रथा को काली माँ से जोड़कर कुछ लोगों को मानसिक शान्ति मिलती है . लगता है यही विविधता भारत को अनेकता में एकता का सन्देश देता है .
वैज्ञानिक स्वरुप - भारत का जलवायु समशीतोष्ण है . दशहरा के वाद ऋतू परिवर्तन का आगाज़ हो जाता है . भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण छोटी - मोटी बीमारियाँ होती रहती है . इस दृष्टिकोन से उपवास या फलाहार या शारीरिक हटयोग उचित प्रतीत होता है .तन की शुद्धि से कभी - कभी मन की भी शुद्धि हो जाती है .
सही स्वरूप - असल में दशहरा मर्यादा पुरूषोतम राम अर्थात अच्छाई के प्रतीक को पूरे जीवनकाल में अन्तकरण में बनाये रखने के रूप में मनाया जाना चाहिए न कि बुराई के प्रतीक रावण के वध के रूप में याद किया जाना चाहिए .हमें शिक्षा / ज्ञान / उपकार / सेवा /समर्पण / परिश्रम ...आदि के रूप में दशहरा को मनना चाहिए न कि मूर्ति पूजा / बलि प्रथा / मांसाहारी आदि के विस्तार के रूप में .

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