Monday, October 26, 2015

#निगरानी/विजिलेंस सप्ताह

#vigilence_week 

ख़ुदा झूठ न बुलबाये कुछ अंश जीतेन्द्र भाई के चुराए हुए-----

सरकार भी हद करती है।साल में एक बार विजिलेन्स के नाम पर अपने कर्मचारियों को कसम खिलाती है कि अब से ईमानदार हो जायेंगे ! एक बड़ा वाला अफसर अपने छोटे-छोटे अफसरों-कर्मचारियों को शपथ दिलाता है कि अब से शुद्ध तरीके से ‘सत्यनिष्ठा’रखेंगे।
        ऊपर से पर्व-त्यौहार के इस खर्चे वाले मौसम में ऐसा धर्म का किस्सा सुनाना ठीक है क्या !वैसे शपथ की भाषा इतनी क्लिष्ट होती है कि समझने में दिल खपाने से अच्छा है बुदबुदा लें । काम भी शपथ का हो जायेगा और शपथ नहीं खाये रहने के कारण साल भर ईमानदारी से चांदी के चम्मच से चाँदी काटते रहेगें
    अरे भाई !ये तो देखो कि जिसको शपथ दिला रहे हो,वो शपथ लेने के लिए अधिकृत भी है कि नही।कोई भला आदमी अगर शपथ को सीरियसली ले ले तो पता नही बीबी-बच्चे क्या करें उसका...सोंच के ही दिल दहल जाता है..

नौकर शपथ हमेशा गंगा माँ की कसमें खाकर लेता है लेकिन मालिक से ओझल होते हीं नौकर हेराफ़ेरी, तुमाफेरि, चोरी, डकैती.... तक की फिराक में रहता है ।
 सरकारी नौकरी में सभी सेवक हैं। दुर्भाग्य तो यह है कि सेवक का असल मालिक पूरी सेवा में मिलता हीं नहीं है । यहाँ नौकर नौकर को शपथ दिलाता है । जिस दिन नौकर को मालिक शपथ दिला दिया, माँ कसम बीबी तालाक ले लेगी, साली तो रहेगी लेकिन रोज़ नया पति ढूंढते फिरेगी ।माँ आधा निवाला खिला देगी ।

Sunday, October 25, 2015

धर्म युद्ध

2014 का भारत का कुरुक्षेत्र धर्मयुद्ध नहीं था ।2014 का संसदीय चुनाव कोंग्रेस की जड़ता ,लगातार 10 वर्षों के शासनकाल में हुयी गलतियों के आधार पर नयी संचार क्रांति के वाहन पर सवार भारत के नवयुवक अपना अक्श विश्व के रूप में सजाने केउद्देश्य एवं केजरीवाल द्वारा पनपाया गया केंद्र के प्रति असंतोष के साथ साथ अन्ना हज़ारे एवं रामदेव द्वारा जनता में सरकार के विपक्ष में बनाये गए माहौल पर स्वर्णिम किरण धवल ओज के साथ बीजेपी द्वारा नमो की अगुवाई में सारे असन्तोष के परिणाम को मुट्ठी में कैद करने की चाहत ने बीजेपी/ आर एस एस  द्वारा छोड़ा गया नरेंद्र मोदी का अश्वमेघ यज्ञ का घोडा सरपट दौड़ता हस्तिनापुर फतह कर डाला ।

अब शुरू होती है चुनौती ।आर एस एस का देश स्वतंत्रता के समय के इतिहास से तो आपलोग वाकिफ होंगे । सभी प्रवुद्ध राजनैतिक दल अपनी विचारधारा में सतत् परिवर्तन करती है और यही संसार रुपी जीवन का मूल मन्त्र है ।हमलोग भी आशान्वित थे की प्रचंड बहुमत पर विराजमान केंद्रीय सरकार राजधर्म निभाकर भारत की नयी कहानी गढेगें ।अब तक सरकार आत्मविभोर होकर self appriasal एवं पूर्ववर्ती सरकारों की प्रत्येक पालिसी पर आक्रोश उगलने के अलावा कुछ नहीं कर रही है ।घर के मुखिया की जवाबदेही सामान्य लोगों से हज़ारों गुणा अधिक होता है । यह सरकार देश के विकास को छोड़कर राज्यों के चुनाव में अपना ध्यान राष्ट्रवाद पनपाने में केंद्रित कर दिया है । षडयंत्र/ सत्ता की लोलुपता ने इसे देश के राज्यों में किसी प्रकार से सरकार बनाने में अपनी ऊर्जा को नष्ट करना शुरू कर दिया है मसलन जम्मू कश्मीर और महाराष्ट्र की सरकार ।

इस सरकार के शासनकाल में गिरते पेट्रोडॉलर ने देश की अर्थव्यवस्था में दैवी योगदान दिया है ।वर्तमान में देश के प्रणेता को Controversy policies क़ो छोड़कर या  विवादित विषयों पर पारिचर्चा   कर देश की अर्थव्यवस्था को समतल जमीन पर सरपट दौड़ाने का वक़्त है ।लेकिन यहाँ पर खड़ा है आर एस एस जिसकी देश स्वतंत्रता में देश भक्ति से तो राष्ट्र वाकिफ हैं ही , वर्तमान में प्रथम पंचवर्षीय योजना से लेकर अब तक राष्ट्र द्वारा बनाये गए हर नियम कानून को विवादित विषय कर उसमें या तो संशोधन करना या उसका आर एस एस करण करना यही वर्तमान सरकार का लक्ष्य है । याद करे दोस्तों श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी का काल , उनके द्वारा बिना विवाद के देश की प्रगति में राजधर्म और शालीनता से जो विकास के कार्य किये गए हैं उसे राष्ट्र का बहुभाषी, बहुधर्मी, बहुसंप्रदाय, विविधविचार, विविध व्यंजन.........वाले जनमानस भी कायल हैं ।

विविध विचारों/ जातियों/ अर्थव्यवस्था/प्रजातंत्र की जननी/गरीबी/भूखमरी/बाढ़/ सुखाड़/जमातवाद/सम्प्रदायवाद/ सामंतवाद आदि से ग्रसित
बिहार में आर एस एस/बीजेपी द्वारा राज्य के चुनाव में प्रारम्भ से चुनाव प्रपंच से जीतने में केंद्र की पूरी हूकूमत गत 4 माह से हस्तिनापुर छोड़कर
पाटलिपुत्र केसम्राट चन्द्रगुप्त के साथ दो दो हाथ करने मगध पहुँची  है ।वाल्मीकि/ लव-कुश/कर्ण/बुद्ध /महावीर/अशोक/चन्द्रगुप्त/चाणक्य/लिच्छवि/मुंडन मिश्र /बिन्दुसार/विम्विसार/शेरशाह/विद्यापति/गुरु गोविन्द सिंह/ बीर कुंवर सिंह//बटुकेश्वर दत्त/ दिनकर / राजेंद्र प्रसाद / जय प्रकाश नारायण जैसे महान सपूतों वाले राज्य में हस्तिनापुर में अपनाये गए जुआ के सभी अमर्यादित प्रपंच जैसे  दलित कार्ड रामविलास पासवान/ महादलित कार्ड जीतन मांझी/ देश में सबसे ज्यादा OBC मुख्यमंत्री बनाये जाने का कार्ड/प्रधानमंत्री को पिछड़ा जाति का बताया जाना /देश में दलित कार्ड का हरियाणा में व्याख्या/बीफ के रूप में संप्रदाय कार्ड आदि आदि का प्रयोग कर बीजेपी भारत में देशभक्ति का कौन सा रष्ट्र वाद अपनाना चाहती है ।

वर्तमान में  बीजेपी के दो प्रवक्ता अपनी विचारधारा को जिस असहिष्णुता से शब्दों को मीडिया में रखते हैं उससे उग्रता फैलने का भय है ।विचारक की बात से मतभिन्नता या मनभिन्नता होने पर वाचक की वाणी और सयंमित और मर्यादित होनी चाहिए । बाजपेयी जी के ज़माने में जो प्रवक्ता थे उनकी भाषा शालीन थी । हमें सदैव याद रखनी चाहिए कि भारत में सनातन काल से अनेकता में एकता है । विविधता हमारे देश की तिजौरी है जिसे बीजेपी के कुछ प्रवक्ता और आर एस एस के अनुयायी दोनों हाथों से गंगा यमुनी तहजीब को लुटाने पर पड़ी है ।

Friday, October 23, 2015

कर्म का मर्म

प्रो . आशुतोष कुमार सिन्हा, भौतिकी, कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स, पटना के सौजन्य से :-----
कर्म का मर्म

कर्म की नारन-जोति
कर्म के बैल
कर्म के हल से
जीवन के खेत को जोता
बोआ उसमे कर्म के बीज।
कर्म ऊगा,कर्म फला।
कर्म का पका अन्न
कर्म का कपास पाया।
कर्म खाया खिलाया
पहना पहनाया।
कर्म से ही जीवन
की बगिया सजाया।
कर्म ही बिछाया
कर्म ही पहना
कर्म ही ओढ़ा।
कर्म ही जिया
कर्म ही पिया।
कर्म के झील में
डूब-डूब छककर नहाया।
खुद और खुदा
दोनों को ही कर्म समझा
कर्म ही जीवन है
कर्म ही है दर्शन
जीवन का।
कर्म का मर्म समझा
तो जीवन में रस आया।
न कोई दुबिधा
न कोई द्वेष
न कोई लोभ
न कोई माया
न कोई ईर्ष्या
न कोई डर
नहीं किसी से घृणा
बस प्यार ही प्यार ।
न कर्म के आगे
न कर्म के पीछे
हरदम कर्म के साथ।
न कही खिंचाव
न कही तनाव।

बिहार का चुनाव 2015 और चुनाव के बाद का परिदृष्य

बिहार का चुनाव 2015 यौवन अवस्था से बुढ़ापे की और दस्तक दे रहा है । अगर चुनाव की आगाज़ का विश्लेषण करेगें तो आप हीं क्यों  दुनिया का प्रत्येक व्यक्ति यह मानने को मजबूर हो जायेगा कि सारी अमर्यादित आचरणों, व्यक्तव्यों का प्रयोग विशेषकर भारत के नव निर्माता अच्छे दिन लायेगें के प्रणेता  के सदस्यों द्वारा किया गया । बिहार की राजनीति की उर्वरा मिटटी को अमित शाह की नियत, नेतागिरी, विश्वशनियता और भाषा प्रयोग जो उनके द्वारा बिहारी अस्मिता पर उठाई गयी सभी गले की हड्डी ही नहीं बल्कि दिन रात नश्तर की भांति चुभोता होगा ।संयम तो भारत के नए प्रशासक में भी नहीं दिखी । भाषा की शालीनता और डी न ए, दलित, पिछड़ा, बीफ, बीमारू राज्य, इंफ्रास्ट्रक्चर , सम्प्रदाय, आरक्षण में कमी को उजागर करना और बिहार हीं क्यों पूरे भारत वर्ष मेंबिहार को विकाश की पटरी पर लाने वाले नेता का नाम घोषित न करना इस  समर बदरंग दिक्गदीखने लगा ।लेकिन अब तो media पत्रकारिता सभी दो मजबूर गुजराती की स्पस्ट हार देख रहे  हैं ।

बिहार के दुसरे गठवन्धन के नेता के रूप में नितीश का चयन, उनकी प्रसिंगकता, भाषा का उच्चारण, वर्गों के बीच अपनापन, विकाश की सोंच और खाका, बिहार को राष्ट्र के कई मापदंडों पर नयी ईवारत का सफल प्रयोग उनके विरोधियों को भी विस्मित करता है और जनता के चहेता तो हैं हीं ।10 साल के शासन में इन्होंने वर्ग विहीन जमात पैदा किया जिसके कारण चुनाव पूर्व संगठित बीजेपी से लड़ने के लिए लालू जी के संगठन वाली जमात के साथ महागठवन्धन बनाकर चुनाव के कुरुक्षेत्र में धैर्य के साथ भारत के पूरे मंत्रिपरिषद, बीजेपी के भारत के नेता एवं आरएसएस के कुटिल क्षद्म भारतीयता का आवरण वाले नेताओं के साथ शालीन भाषा से बचाव करते रहे । इस गठवंधन के  नेता लालूजी जनता जमात के बिहार हीं नहीं भारत में अपनी वाकपटुता और शैली से मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के माहिर खिलाडी को बीजेपी /आरस स  ने पिछड़ा, अभद्र भाषा, बीफ, दलित, आरक्षण, संप्रदाय जैसे मुद्दे देकर लालू जी के अमोघ अस्त्रों में शान चढ़ा दिया । सचमुच में बीजेपी में कोई भी नेता में भाषाई वाकपटुता लालू जी से अच्छी नहीं है ।लालू जी अपनी शैली में बीजेपी की नाकारा राजनीति पर शब्दभेदी बाण चलाये ।

अभी चुनाव का तीन चरण अवशेष है । सरकार बनने के कयास हीं लगाये जा सकते हैं । भारत के प्रधानमंत्री को चुनाव प्रचार में बिहार की अस्मिता, दुर्गति, पिछड़ापन, अशिक्षा, रोजगार में कमी, इंफ्रास्ट्रक्चर में कमी, बिहार को बीमारू राज्य की उपाधि देने आदि विभूषणों से अलंकृत करने के बाद कोई व्यवसायी बिहार में पूँजी लगाएगा क्या? मोदीजी गला फाड़ फाड़ कर भारत में निवेश की बात करते हैं, विदेशी कहाँ निवेश करे? बीजेपी भारत को अमीर और गरीब राज्य की दलदल में धकेलकर कौन सी नयी संस्कृति पैदा करना चाहता है ।अब तो संदेह हो रहा है कि न बिहार को विशेष राज्य का दर्ज़ा मिलेगा और ना हीं...

Monday, June 22, 2015

गांठ , कमर, घुटना, जोड़ का आर्युवेदिक उपचार /सलाह


आर्युवेदिक पद्दति में वायु, पित्त, विकार, आहार को बिमारियों का जड़ माना गया है । भोजन/ आहार की अशुद्धता से पाचन तंत्र में गड़बड़ी पैदा होती है । आहार में संयम नहीं करने से वायु/ गैस पैदा होता है जो गांठ के पास जमा हो जाता है एवं रक्त के प्रवाह में रोड़ा पैदा करता है । परिणामस्वरूप शरीर के जोड़ों में असहनीय दर्द पैदा होता है । बढ़ते उम्र के कारण जोड़ों में तैलीय द्रव्य की कमी भी दर्द का कारण है ।
आहार
1. सुबह नियमित रूप में टहलें अवधि 45 मिनट .
2. दिन भर में कभी पेट को खली न रखें .
3. कम से कम 24 घंटे में 3 से 4 बार अल्प सुपाच्य ताजा पका खाना खाएं । गरिष्ठ एवं बासी/फ्रिज में रखे खाना तथा पैक्ड फूड न खाएं ।सब्जी में भिन्डी, लौकी, नेनुआ, झिंगिनी का सेवन करें । खाने में कड़े या पचने में विलम्ब से बचें । खट्टा किसी भी प्रकार का even दही, जूस, आचार, निम्बू , टमाटर ..अदि से परहेज करें । गर्म पदार्थ का सेवन न करें ।गाय का दूध सेवन करें । खाली पेट रहने पर जल का सेवन कर लें ।
औषधीय उपचार
1. दिन- रात में दो बार तीन spoon गाय के दूध में एक spoon अरंडी का तेल मिक्स कर भोजन के उपरांत लें ।
2.तीन -तीन स्पून दसमूलारिष्ट में एक spoon अशोकारिष्ट मिक्स कर प्रति दिन तीन बार सेवन करें

2015 के भारत के नायक की व्यथा या कुटिलता


इसमें कोई शक नहीं है कि भारत का नया सम्राट भारतीयों का हरदिल अजीज है, कारण जोभी हो..... कुछ विश्लेषक पूर्ववर्ती सरकार की हार के लिए निर्णय लेने की अक्षमता, power का दो केन्द्र का होना, नए नेता में कुशलता की कमी, लोकतन्त्र में खानदानी हुकूमत, घोटाले से विस्वशनियता में ह्राष्, भ्रस्टाचार, antiincombancy...... आदि ।मेरी सोंच में अन्ना आंदोलन, केजरीवाल मूवमेंट, रामदेव बाबा का आन्दोलन आदि से उपजी सरकार के प्रति विद्रोही स्वर को राष्ट्र में एकमात्र राजनीतिक राष्ट्रीय दल BJP द्वारा .....मुफ्त में पॉजिटिव प्रचार और सत्ता में नहीं रहनेके कारण भ्रस्टाचार के कोई आरोपी नहीं के कारण सत्ता में प्रवेश की । सर्व सम्मति से श्री नरेंद्र मोदी का चुनाव नेता के रूप में किया जाना भी सफलता का कारण बना ।
सत्ता में आने के बाद नमो द्वारा विदेशों का भ्रमण , देशवासीओं में राष्ट्र् भक्ति का प्रवाह पैदा करना, भारतीयों में आत्मबल पैदा करने का जज्वा....आदि तो एक तरफ मोदी को कुशल सक्षम नायक बनाता है तो दूसरी ओर जनसंघी मानसिकता अर्थात हिन्दु तुष्टीकरण की ओर इशारा करते साक्षी महाराज, कटियार, माधव, गिरिराज,...आदि जैसे नेता द्वारा अमर्यादित टिपण्णी के बिरोध में कोई कारवाई नहीं करना साथ में सत्ता हासिल करने के लिए अनैतिक राजनीतिक गठजोड़.. मोदी को कुटिल राजनेता होने का भ्रम पैदा करता है ।
नमो के कई आयाम दीखते हैं ।मुझे पूर्ण आशा है कि मोदी का शाषण भारत के लिए मील का पत्थर होगा । परंतू अगर मौन मोहन की तरह या अपने राजनीतिक मित्रों जो विरोध या अलगाव पैदा करनेवाले हैं ..उन लोगों के प्रति सहानुभूति रखे जाने पर या कोई कडा निर्णय नहीं लेने के चलते भविष्य में माननीय मोदी जी को लोग किस रूप में याद रखेगा यह समय तय करेगा ।

Thursday, March 5, 2015

होली



Memory of 2013 is repeated once again due to same situation.
होली की आहट पर सभी दोस्तो को नमस्कार, जोगी रा .......... सरररर ............
होली मुबारक
बिहार में भी हमलोगों ने पारम्परिक होली मनाने का तरीका छोड़ दियें हैं. सुबह सुबह कादो माटी वाली होली की महक( सुगन्ध/दूर्गन्ध सहित) सबको पता नहीं प्यारा लगता था या नहीं पर इस में सब अपने को सरावोर कर लेते /देते थे. जो दोस्त जितना कोदो से भागते थे कादो उसको उतना ही पिछा करता था . रंग से ज्यादा गहरा दाग हमलोग प्रकृति की बनी कादो से लोगों के मन मंदिर में पूरे वर्ष भर के लिए डाल देते थे . नाली में सना कीचड़युक्त गन्दगी जब दोस्तोँ के बदन पर गुनगुना सर्दी में अर्थात होली में डालते थे तब असल होली की गरमाहट सुरु होती थी. कीचड के तुरंत बाद  अर्थात उसके साथ रंग की मिलन अह्ह्ह्ह ... अदभुत...अद्वितीय .
अगर इनसब में शुरुआत बसिऔर झोर- भात बजका, बजका में फूलगोभी, कद्दू, कचरी/प्याजी, बैगन, हरा चना ,टमाटर,हरा मिर्च .......हरा चना का बजका अगर साल भर मिले तो मैं अपने आप को धन्य समझूंगा . लिखने समय मेरी अर्धांगिनी जिसके लिए यह कंप्यूटर उनको सौतन की तरह सालती है आपने भाई के यहाँ जाने के लिए उतावली हो रही है इसलिए दोस्तोँ बाकी कल ....माफ कीजिये अभी तो लय - सुर- ताल धरा ही था ..यही होता है जब आपलोगों से मिलने का मौका मिलता है तब ...... अब क्या बताऊँ फिर मुखातिब हुआ हूँ आप से अगजा के बहाने . अरे भाई, अब तो समझे न ...
"हे ज़ज्मानी, तोरा सोने के किवाड़ी , एक गन्डा गोइठा दे द....."
भूल गए क्या.......क्या बात है अब तो इस माहौल को खोजना भी सम्भव नहीं है . उकवारी, याद आया न . अरे भाई, उकवारी भांजने और उसको दूसरे ग्राम के खंधे के सीमाने में नचाते हुए फेंकने और अगजा में गेहूँ की वाली और चना का होरहा का मज़ा ...आया मूहं में पानी ... हमलोग इस पश्चात्य संस्कृति में अपना वजूद और दालान संस्कृति भी भूल ही नहीं गए वल्कि आनेवाले बंशजो को शायद इन सब यथार्थ को समझा भी पाए तो बहुत है.
सोचा किसी अपने से बात करें;
अपने किसी ख़ास को याद करें;
तो दिल ने कहा क्यों ना अपने आपसे शुरुआत करें।
होली मुबारक।
पुनः मुखातिब हुआ हूँ . होली के रंग में प्रवेश करने में थोडा समय लगता है , परन्तु एक बार अगर रंग लगा तो वह दाग वहीँ तक सीमित नहीं रहेगा वल्कि उस रंग में और डूबना शुरु कर दीजिएगा. आपलोगों से आग्रह है / नम्र निवेदन है की आप भी इस पारम्परिक भारतीय संस्कृति को पूरे मन से अपनाएं / मनाएं .
महिलाओं की होली...अह्ह्ह्हह्ह . भारतीय संस्कृति में सबसे पिछड़ा अगर कोई जाति/वर्ग/ समाज है तो वह है महिला समाज . महिलाओं के साथ अत्याचार/ दुर्व्यवहार /सौतेलापन /प्रताड़ना ....इस पुरुष वर्ग द्वारा सदियों काल से चलता आ रहा है . कहते तो नारी को शक्ति हैं लेकिन व्यवहार ......जनम से अंत अर्थात मरण तक इस अबला की पीड़ा को कोई बखान नहीं कर सकता है. खैर मैं किस पचड़े में उलझ रहा हूँ . कहीं इस अभिव्यक्ति पर पुरुष का वर्त्तमान अहंकारी / दमनकारी समाज दूसरे रूप में न ले .ऐसी बात नहीं है की मैं उससे अलग हूँ .
अब लीजिए महिलाओं की होली ........महिला का भी दिल होता है ...जो मचलता भी होगा . पर अभिव्यक्ति की कोई स्वछंदता नहीं. कुलटा कहलाने का भय है . पर मेरी होली का आगाज़ /शुरु जहाँ से हो अंत तो प्रेयसी से ही होना है ....कुछ लोग नीचे लिखे गाने के बोध लेकर होली मानते हैं,
"रंग बरसे भीगे चुनरवाली, रंग बरसे
अरे कैने मारी पिचकारी तोरी भीगी अंगिया
ओ रंगरसिया रंगरसिया, हो................"
तो कुछ लोग (एकतरफा प्रेमी) गम के सहारे
"तनहाई ले जाती है जहाँ तक याद तुम्हारी;
वहीँ से शुरू होती है जिंदगी हमारी;
नहीं सोचा था हम चाहेंगे तुम्हें इस कदर;
पर अब तो बन गए हो तुम किसमत हमारी।"
जैसे मेरा होली के नाम बोध से दिल में गुदगुदी होती है वैसी ही गुदगुदी तमाम भौजाईओं / सालियों /माशूकाओं /ननदों /देवरों .....को भी होता होगा . अंग / प्रत्यंग में सिहरन होता होगा . अरे भाई बचपन से जवानी तक के किस्से अगर सुनाऊँ तो या तो आप विश्वास नहीं करेंगे अगर करेगें तो समाज को दिखलाने वास्ते मेरी भावना को निर्लज्जता की चादर में लपेट कर मेरी थोड़ी बहुत बची हुई इज्ज़त का फालूदा निकालेंगे .
पिताजी की होली...............
"होली आई रे कन्हाई रंग भर दे
सुना दे जरा बांसुरी , होली आई रे कन्हाई ..."
मेरी होली ..........
"आज न छोड़ेगें बस हम होली ,
खेलेगें हम होली होली रे ,
खेलेगें हम होली......"
चुनरी, अंगिया, यौवन ...और सबसे बड़ा होली तो यह है कि "अन्तः मन को भिंगो कर पूरी ज़िन्दगी उन ख्यालों / ख्वावों के आशियाने को निहारते रहेंगे जिसमे जिस्म को मन के साथ डबोने के बाद मानस पटल पर एक स्मृति चिन्ह जीवनपर्यंत रेखांकित करेगी .
सुप्रभात