Monday, June 22, 2015

गांठ , कमर, घुटना, जोड़ का आर्युवेदिक उपचार /सलाह


आर्युवेदिक पद्दति में वायु, पित्त, विकार, आहार को बिमारियों का जड़ माना गया है । भोजन/ आहार की अशुद्धता से पाचन तंत्र में गड़बड़ी पैदा होती है । आहार में संयम नहीं करने से वायु/ गैस पैदा होता है जो गांठ के पास जमा हो जाता है एवं रक्त के प्रवाह में रोड़ा पैदा करता है । परिणामस्वरूप शरीर के जोड़ों में असहनीय दर्द पैदा होता है । बढ़ते उम्र के कारण जोड़ों में तैलीय द्रव्य की कमी भी दर्द का कारण है ।
आहार
1. सुबह नियमित रूप में टहलें अवधि 45 मिनट .
2. दिन भर में कभी पेट को खली न रखें .
3. कम से कम 24 घंटे में 3 से 4 बार अल्प सुपाच्य ताजा पका खाना खाएं । गरिष्ठ एवं बासी/फ्रिज में रखे खाना तथा पैक्ड फूड न खाएं ।सब्जी में भिन्डी, लौकी, नेनुआ, झिंगिनी का सेवन करें । खाने में कड़े या पचने में विलम्ब से बचें । खट्टा किसी भी प्रकार का even दही, जूस, आचार, निम्बू , टमाटर ..अदि से परहेज करें । गर्म पदार्थ का सेवन न करें ।गाय का दूध सेवन करें । खाली पेट रहने पर जल का सेवन कर लें ।
औषधीय उपचार
1. दिन- रात में दो बार तीन spoon गाय के दूध में एक spoon अरंडी का तेल मिक्स कर भोजन के उपरांत लें ।
2.तीन -तीन स्पून दसमूलारिष्ट में एक spoon अशोकारिष्ट मिक्स कर प्रति दिन तीन बार सेवन करें

2015 के भारत के नायक की व्यथा या कुटिलता


इसमें कोई शक नहीं है कि भारत का नया सम्राट भारतीयों का हरदिल अजीज है, कारण जोभी हो..... कुछ विश्लेषक पूर्ववर्ती सरकार की हार के लिए निर्णय लेने की अक्षमता, power का दो केन्द्र का होना, नए नेता में कुशलता की कमी, लोकतन्त्र में खानदानी हुकूमत, घोटाले से विस्वशनियता में ह्राष्, भ्रस्टाचार, antiincombancy...... आदि ।मेरी सोंच में अन्ना आंदोलन, केजरीवाल मूवमेंट, रामदेव बाबा का आन्दोलन आदि से उपजी सरकार के प्रति विद्रोही स्वर को राष्ट्र में एकमात्र राजनीतिक राष्ट्रीय दल BJP द्वारा .....मुफ्त में पॉजिटिव प्रचार और सत्ता में नहीं रहनेके कारण भ्रस्टाचार के कोई आरोपी नहीं के कारण सत्ता में प्रवेश की । सर्व सम्मति से श्री नरेंद्र मोदी का चुनाव नेता के रूप में किया जाना भी सफलता का कारण बना ।
सत्ता में आने के बाद नमो द्वारा विदेशों का भ्रमण , देशवासीओं में राष्ट्र् भक्ति का प्रवाह पैदा करना, भारतीयों में आत्मबल पैदा करने का जज्वा....आदि तो एक तरफ मोदी को कुशल सक्षम नायक बनाता है तो दूसरी ओर जनसंघी मानसिकता अर्थात हिन्दु तुष्टीकरण की ओर इशारा करते साक्षी महाराज, कटियार, माधव, गिरिराज,...आदि जैसे नेता द्वारा अमर्यादित टिपण्णी के बिरोध में कोई कारवाई नहीं करना साथ में सत्ता हासिल करने के लिए अनैतिक राजनीतिक गठजोड़.. मोदी को कुटिल राजनेता होने का भ्रम पैदा करता है ।
नमो के कई आयाम दीखते हैं ।मुझे पूर्ण आशा है कि मोदी का शाषण भारत के लिए मील का पत्थर होगा । परंतू अगर मौन मोहन की तरह या अपने राजनीतिक मित्रों जो विरोध या अलगाव पैदा करनेवाले हैं ..उन लोगों के प्रति सहानुभूति रखे जाने पर या कोई कडा निर्णय नहीं लेने के चलते भविष्य में माननीय मोदी जी को लोग किस रूप में याद रखेगा यह समय तय करेगा ।

Thursday, March 5, 2015

होली



Memory of 2013 is repeated once again due to same situation.
होली की आहट पर सभी दोस्तो को नमस्कार, जोगी रा .......... सरररर ............
होली मुबारक
बिहार में भी हमलोगों ने पारम्परिक होली मनाने का तरीका छोड़ दियें हैं. सुबह सुबह कादो माटी वाली होली की महक( सुगन्ध/दूर्गन्ध सहित) सबको पता नहीं प्यारा लगता था या नहीं पर इस में सब अपने को सरावोर कर लेते /देते थे. जो दोस्त जितना कोदो से भागते थे कादो उसको उतना ही पिछा करता था . रंग से ज्यादा गहरा दाग हमलोग प्रकृति की बनी कादो से लोगों के मन मंदिर में पूरे वर्ष भर के लिए डाल देते थे . नाली में सना कीचड़युक्त गन्दगी जब दोस्तोँ के बदन पर गुनगुना सर्दी में अर्थात होली में डालते थे तब असल होली की गरमाहट सुरु होती थी. कीचड के तुरंत बाद  अर्थात उसके साथ रंग की मिलन अह्ह्ह्ह ... अदभुत...अद्वितीय .
अगर इनसब में शुरुआत बसिऔर झोर- भात बजका, बजका में फूलगोभी, कद्दू, कचरी/प्याजी, बैगन, हरा चना ,टमाटर,हरा मिर्च .......हरा चना का बजका अगर साल भर मिले तो मैं अपने आप को धन्य समझूंगा . लिखने समय मेरी अर्धांगिनी जिसके लिए यह कंप्यूटर उनको सौतन की तरह सालती है आपने भाई के यहाँ जाने के लिए उतावली हो रही है इसलिए दोस्तोँ बाकी कल ....माफ कीजिये अभी तो लय - सुर- ताल धरा ही था ..यही होता है जब आपलोगों से मिलने का मौका मिलता है तब ...... अब क्या बताऊँ फिर मुखातिब हुआ हूँ आप से अगजा के बहाने . अरे भाई, अब तो समझे न ...
"हे ज़ज्मानी, तोरा सोने के किवाड़ी , एक गन्डा गोइठा दे द....."
भूल गए क्या.......क्या बात है अब तो इस माहौल को खोजना भी सम्भव नहीं है . उकवारी, याद आया न . अरे भाई, उकवारी भांजने और उसको दूसरे ग्राम के खंधे के सीमाने में नचाते हुए फेंकने और अगजा में गेहूँ की वाली और चना का होरहा का मज़ा ...आया मूहं में पानी ... हमलोग इस पश्चात्य संस्कृति में अपना वजूद और दालान संस्कृति भी भूल ही नहीं गए वल्कि आनेवाले बंशजो को शायद इन सब यथार्थ को समझा भी पाए तो बहुत है.
सोचा किसी अपने से बात करें;
अपने किसी ख़ास को याद करें;
तो दिल ने कहा क्यों ना अपने आपसे शुरुआत करें।
होली मुबारक।
पुनः मुखातिब हुआ हूँ . होली के रंग में प्रवेश करने में थोडा समय लगता है , परन्तु एक बार अगर रंग लगा तो वह दाग वहीँ तक सीमित नहीं रहेगा वल्कि उस रंग में और डूबना शुरु कर दीजिएगा. आपलोगों से आग्रह है / नम्र निवेदन है की आप भी इस पारम्परिक भारतीय संस्कृति को पूरे मन से अपनाएं / मनाएं .
महिलाओं की होली...अह्ह्ह्हह्ह . भारतीय संस्कृति में सबसे पिछड़ा अगर कोई जाति/वर्ग/ समाज है तो वह है महिला समाज . महिलाओं के साथ अत्याचार/ दुर्व्यवहार /सौतेलापन /प्रताड़ना ....इस पुरुष वर्ग द्वारा सदियों काल से चलता आ रहा है . कहते तो नारी को शक्ति हैं लेकिन व्यवहार ......जनम से अंत अर्थात मरण तक इस अबला की पीड़ा को कोई बखान नहीं कर सकता है. खैर मैं किस पचड़े में उलझ रहा हूँ . कहीं इस अभिव्यक्ति पर पुरुष का वर्त्तमान अहंकारी / दमनकारी समाज दूसरे रूप में न ले .ऐसी बात नहीं है की मैं उससे अलग हूँ .
अब लीजिए महिलाओं की होली ........महिला का भी दिल होता है ...जो मचलता भी होगा . पर अभिव्यक्ति की कोई स्वछंदता नहीं. कुलटा कहलाने का भय है . पर मेरी होली का आगाज़ /शुरु जहाँ से हो अंत तो प्रेयसी से ही होना है ....कुछ लोग नीचे लिखे गाने के बोध लेकर होली मानते हैं,
"रंग बरसे भीगे चुनरवाली, रंग बरसे
अरे कैने मारी पिचकारी तोरी भीगी अंगिया
ओ रंगरसिया रंगरसिया, हो................"
तो कुछ लोग (एकतरफा प्रेमी) गम के सहारे
"तनहाई ले जाती है जहाँ तक याद तुम्हारी;
वहीँ से शुरू होती है जिंदगी हमारी;
नहीं सोचा था हम चाहेंगे तुम्हें इस कदर;
पर अब तो बन गए हो तुम किसमत हमारी।"
जैसे मेरा होली के नाम बोध से दिल में गुदगुदी होती है वैसी ही गुदगुदी तमाम भौजाईओं / सालियों /माशूकाओं /ननदों /देवरों .....को भी होता होगा . अंग / प्रत्यंग में सिहरन होता होगा . अरे भाई बचपन से जवानी तक के किस्से अगर सुनाऊँ तो या तो आप विश्वास नहीं करेंगे अगर करेगें तो समाज को दिखलाने वास्ते मेरी भावना को निर्लज्जता की चादर में लपेट कर मेरी थोड़ी बहुत बची हुई इज्ज़त का फालूदा निकालेंगे .
पिताजी की होली...............
"होली आई रे कन्हाई रंग भर दे
सुना दे जरा बांसुरी , होली आई रे कन्हाई ..."
मेरी होली ..........
"आज न छोड़ेगें बस हम होली ,
खेलेगें हम होली होली रे ,
खेलेगें हम होली......"
चुनरी, अंगिया, यौवन ...और सबसे बड़ा होली तो यह है कि "अन्तः मन को भिंगो कर पूरी ज़िन्दगी उन ख्यालों / ख्वावों के आशियाने को निहारते रहेंगे जिसमे जिस्म को मन के साथ डबोने के बाद मानस पटल पर एक स्मृति चिन्ह जीवनपर्यंत रेखांकित करेगी .
सुप्रभात

Sunday, November 30, 2014

भारत की नयी बादशाहत की गाथा

कहाँ से शुरू करूं और कहाँ पर ख़त्म, समझ में नहीं आता है । 2014 का लोकसभा का चुनाव में जनता का स्पष्ट आदेश की नमो के नेतृत्व में हिन्दुस्तान की किस्मत सौंप दी जाय । पूर्ववर्ती सरकार में केजरीवाल, अन्ना  हज़ारे, रामदेव , दिल्ली में बलात्कार, मंहगाई, भ्रस्टाचार आदि से कांग्रेस के प्रति पनपा आक्रोश आज़ादी की इतिहास लिखनेवाली दल की नींव हिलाकर मोदी के नेतृत्व में भारत के भविष्य को सौप दिया ।

यहाँ से भाजपा की दूसरी पाली की शूरूआत हूई । लोगों में भाजपा के नेतृत्व के प्रति आशा जग गयी ।वर्तमान सरकार विदेशो  में celebreties की तरह पॉपुलर हो रही है । देश के अंदर रेल में सुविधा के नाम पर चतुराई से जोर का झटका धीरे से दिया गया । मैं प्रार्थना करता हूँ कि आनेवाले दिनों में भारत की रेल व्यबस्था में सुधार होगा ।

अब भारत स्वच्छता योजना की धूमधाम से हूई शूरूआत भारत में गंगा एवं अन्य स्वच्छता का आने वाले दिनों में कितना लोगों तक पहुँचता है यह आनेवाले समय में समीक्षा की जायेगी । भारत में इस योजना के क्रियान्वयन की अब तक कोई विशेष रूपरेखा नहीं दिखती है । लेकिन इसमें भी स्टारडम एवं प्रचार प्रसार कानफोडू है । आशा करता हूँ कि आनेवाले समय में गंगा प्रदूषण से मुक्ति की तरफ बढ़ेगी और लोगों में स्वछता के प्रति लगाव बढ़ेगा ।

2014 के चुनाव के समय नौजवानो को दिया गया अश्वासन एक वर्ष तक भारत में नौकरी नहीं देने की घोषणा से भविष्य में युवाओं के प्रति स्नेह परिलक्षित होता है ।

कालाधन वह भी विदेशों में जमा ...हम होंगे कामयाब हम होंगे कामयाब एक दिन..परंतु श्रीमान जेटली जो वकील के रूप में अपने एक एक शव्द का कैलकुलेटर से जोड़कर वहस की फीस तय करते थे आज उनहें CRICKET आदि से ज्यादा प्रेम देश की गरीबी उन्मूलन एवं काला धन देश में  बिना फीस के लाने का ज्ञान और समय मिल गया है ।

कुल मिलाकर ऐसा लगता है या मीडिया , TV, समाचार पत्र में दिखता है कि नमो के रूप में महामानव के हाथों में देश की गद्दी सौंप दी गयी है जो भारत को समषय। से निज़ात दिलाएगा । क्या देश में TV, मीडिया, पत्रकारिता को स्पषट लेखनी राहु केतु के द्वारा ग्रह लिया गया है । क्या भारतको एक CELEBRETY, सस्टारडम जैसा नायक चाहिए जो मीडिया की मदद से जनता तक अच्छी सुन्दर प्रवचन देनेवाला प्रशासक की नयी परिभाषा गढ़े। देश में समाज सेवी संस्था या राष्ट्र प्रेम संदेशवाले व्यक्ति की कमी हो गयी है । वैसे भी गुजराती व्यवसाय अर्थात नफा कमानेवाले के रूप में पूरे विश्व में विख्यात है । भाजपा तो आज गुजराती के हाथों  में पूर्णतः फँस ही गया है। देश भी क्या व्यापारवाद के सोंच में उलझ गया है । भारत के काबीना मंत्री की औकात देखने से तो ऐसा ही दिखता है की गुजराती मंत्री की संख्या और शक्ति दोनों अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है ।

समय भारत की इतिहास लिखेगा।

Friday, October 3, 2014

विजयादशमी की निर्मम पटना वध

दशहरा के विजयादशमी के रावण वध (गाँधी मैदान ) , पटना की अविश्वसनीय घटना हजारों अवला , निःसहाय की रूदन - क्रंदन क्या सचमुच में प्रशासनिक विफलता का कारण है ? हम सचमुच में गिद्धों , चीलों ...का बिहार बनाते जा रहे हैं . हमारी अशिक्षा , गरीबी , अज्ञानता , दो जून रोटी की जुगाड मेंबरवश आखें सुकून का दो पल निहारता ......... मौत का साक्षात् पटना वध के आलिंगन पर सवार होकर हमलोगों को भविष्य के लिए सचेत कर गया . अक्सर भीड़ , अन्धविश्वास ने कई वार हमारी मौत लिखी है . आधुनिकता की चादर अभी भी हमें दो पल चैन की नींद सोने नहीं देता है . यह आधुनिक तंत्र हमें गहरी नींद में बार -बार सोने को मजबूर करता है ..छठ की काली शाम, मोदी का राजनीतिक मंच और आज पटना का वध ....पता नहीं हम कब जागेगें . अच्छा हुआ कुछ लोग हमेशा के लिए सो गए . मैं भी अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा हूँ .

Thursday, October 2, 2014

विजयादशमी का पर्व अर्थात दशहरा



पुरातनकाल से भरतवंशी दशहरा का पर्व हर्सोल्लास से मनाये जाने की धार्मिक और सामजिक परम्परा का निर्वहन कर रहे हैं . यह पूर्व , पश्चिम , उत्तर और दक्षिण भारत में समग्र रूप में अलग - अलग परम्परा , रीति, रिवाज़ ...से मनाया जाता है . पूर्व राज्यों में आराध्य देवी माँ की विशाल प्रतिमा बनाकर परम्परा का निर्वहन करते हैं . कहीं कहीं रामलीला के रूप में तो कहीं डांडियाके रूप में और कहीं रावण की मूर्ति को जलाकर दशहरा पर्व को मनाया जाता है .
आधुनिक भारत के नागरिक का स्वरुप - स्कूल और कॉलेज के बच्चे को दशहरा की छुट्टीमें मौज मस्ती का अवसर मिलता है .अपने अपने पैतृक स्थानों पर सभी परिवार के लोगों से मिलने का सुखद संयोग बनता है .मीठे मीठे पकवान , लजीज व्यंजनों से क्षुधा तृप्त हो जाती है . छुट्टी में मध्यम आय वाले व्यक्ति सैर - सपाटे के लिए निकल जाते हैं . कुल मिलाकर दशहरा पर्व को मौज - मस्ती के रूप में आधिकांश भारतीय वर्तमान में मनाते हैं .
धार्मिक स्वरुप - धर्म और आस्था का भारत अजीब देश है . दशहरा में लोग दस दिन शुद्ध शाकाहारी , निर्जल्ला , एक शाम उपवास , मूर्ति की आराधना, अनाज रहित व्यंजन , फलाहार आदि अनेक हठयोग के स्वरुप को अपनी - अपनी दिनचर्या या आस्था या धर्म या परंपरा या रीति - रिवाज़ के हिसाब से मनाते हैं . इतना तो तय है कि आधुनिक स्वास्थ्य विज्ञान इस स्वरुप को माने या न माने पर यह तो मान ही लेता है कि तन की शुद्धि हो जाती है . मन कि शुद्धि में कुछ संशय रह जाता है . और वह वाजिव भी है . दशहरा के बाद भारत में रहनेवाले मुर्गे - मुर्गी , बकरे आदि को दस दिन का आराम मिल जाता है फिर तो हम छूटे दिनों का हिसाब कड़े सूद के साथ वसूल लेने की परंपरा का निर्वहन आजकल किया जा रहा है . अब यह बताना बहुत दुष्कर है कि कौन सि परम्परा श्रेष्ठ है . आखिर जान सबकी प्यारी है . बलि कि कुप्रथा को यहाँ पर नहीं ही जिक्र होता तो अच्छा रहता . बलि प्रथा को काली माँ से जोड़कर कुछ लोगों को मानसिक शान्ति मिलती है . लगता है यही विविधता भारत को अनेकता में एकता का सन्देश देता है .
वैज्ञानिक स्वरुप - भारत का जलवायु समशीतोष्ण है . दशहरा के वाद ऋतू परिवर्तन का आगाज़ हो जाता है . भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण छोटी - मोटी बीमारियाँ होती रहती है . इस दृष्टिकोन से उपवास या फलाहार या शारीरिक हटयोग उचित प्रतीत होता है .तन की शुद्धि से कभी - कभी मन की भी शुद्धि हो जाती है .
सही स्वरूप - असल में दशहरा मर्यादा पुरूषोतम राम अर्थात अच्छाई के प्रतीक को पूरे जीवनकाल में अन्तकरण में बनाये रखने के रूप में मनाया जाना चाहिए न कि बुराई के प्रतीक रावण के वध के रूप में याद किया जाना चाहिए .हमें शिक्षा / ज्ञान / उपकार / सेवा /समर्पण / परिश्रम ...आदि के रूप में दशहरा को मनना चाहिए न कि मूर्ति पूजा / बलि प्रथा / मांसाहारी आदि के विस्तार के रूप में .

Thursday, May 8, 2014

भारत का २०१४ का चुनाव

जात अर्थात जमात की राजनीति वर्षो से भारत में हो रही है . कबीला के सरदार से लेकर अब तक हर पांच वर्षों में नए नए समीकरण के रूप में समाज की राजनीतिक जागृति की वजह से एक जमात तैयार होता है . जो पूर्व से शासक वर्ग में थे उन्हें नए जमातों को बनते देख घृणा की दृष्टि से जातिवाद की संज्ञा दी जाति है . यही सामंतवाद का द्योतक है . क्या समाज का पिछड़ा वर्ग(महिला ,अशिक्षित , दलित , पिछड़ा , शोषित ...) को राजनीति में आने का हक़ नहीं है . आजाद भारत में सता पर समानुपातिक रूप में सभी का प्रतिनिधि होना चाहिए . तभी सभी वर्गों में राष्ट्र वाद की भावना , विकाश , ......आदि सम्भव हो सकेगा .आजादी के वाद प्रथम चुनाव का विश्लेषण कर लें . मधेपुरा का पहला सांसद ब्राह्मण जाति से था एवम मसौढ़ी का प्रथम विधायक भी ब्रह्मन था .प्रजातन्त्र जब जनता के बहुमत के आधार पर होता है तो कब तक अधिक आबादी वाली जनता को ठेंगा दिखा पायेंगे .मनु वादी सामंतवादी सोच इसी को जातिवादी की संज्ञा देकर भ्रम फैलाते हैं ..............