कहाँ से शुरू करूं और कहाँ अन्त .मैं भी उलझन में फंसा हूँ आज की भारतीय राजनिती की मिजाज़ से . फिर भी मैं itellectual अर्थार्त लाचार हूँ, लिखे बिना रह भी नहीं सकता . बहुत फख्र करता हूँ की मैं भारतीय हूँ . परन्तु आज की राजनिती से हताश हूँ उनकी छलावा से . सभी वोट की जुगाड़ में हैं . इसे आज के परिपेछ्य में ऐसा समझे की सिर्फ राजनीतीज्ञ हीं भारत के नागरिक के रखवाले हैं . यह हैं हमारे संविधान के रखवाले . भाई तुम्हे इन सभी राजनीतिज्ञ को nota बटन दिखाना होगा .नहीं तो तुम अपना भविष्य दूसरो के हाथ में देकर पांच साल क्यों निश्चिन्त हो जाते हो .किसी ने ठीक ही कहा है जिन्दा व्यक्ति बार बार नहीं मरती . शाहाश तो जूटाओ ...एक बार तो समझ से काम लो . गोली.. बन्दूक किसी चीज की जरूरत नहीं है, सिर्फ अभिव्यक्ति की जरूरत है . जागो ..उठो निशाना nota से साधो .
Tuesday, January 28, 2014
Thursday, December 26, 2013
नई दिल्ली की राजनीति
आज की राजनीति निश्चित रूप में नए तरीके से गढ़ी जा रही है . अगर कोई राजनीति के हिसाब से आदर्श विचार लेकर राजनीति कर रहा है तो हम सबको प्रशंशा करनी चाहिए . बैसे भारतीय राजनीति में कई विचारक हैं मसलन लोहिया , मधु दंडवते .........अगर केजरीवाल की राजनीति में कोई बड़ा खाका है तो उसे सराहनी चाहिए लेकिन अगर उसका कोई दूसरा उद्देश्य है तो उसे परखने का वक्त है . अगर समाज सेवा भावना है तो उद्देश्य सही है . विचारक के रूप में अगर भारतीय राजनीति में केजरीवाल के कुछ भी योजना धरा पर लहराने की है तो सार्थक प्रयास को हमलोगों को मदद करनी चाहिए.
डर इस बात का है की कहीं परोक्ष रूप से intelectual सोंच तो नहीं है कुछ नौजवानों का फिर भी इसे विचार के रूप में भी हम भारतीय सदियो इसे याद करेगें . लेकिन अगर भार्तियूं की भावनाओं से क्रीडा करने की बात है तो यह सदी का सबसे बड़ा क्रूर मजाक होगा.
हम भगवन से प्रार्थना करते हैं की आने बाला समय भारतीय के लिए बहूत शुभ - शुभ सन्देश लेकर आएगा .
Tuesday, November 5, 2013
27 अक्टूबर कि घटना
27 अक्टूबर कि घटना को माननीय मुख्यमन्त्री , बिहार को राजगीर कि jdu की अधिवेशन शिविर में कि गयी नमो पर प्रत्य़क्ष अभिव्यक्ति सही समय पर इतिहास से तुलना करने का नहीं था।
साथ ही साथ नमो द्वारा पुनः बिहार आकर आतंकी घटना को राजनितिक रंग देने के लिए पीड़ित परिवारों से मिलना एकदम अस्वस्थ परंपरा है।
देश / राज्य के सभी राजनीतिज्ञ दल को २७ अक्टूबर कि घटना पर मिलकर डटकर मुकाबला करने का वक्त है।
सुशील मोदी की घटना पर अबतक राजनीति स्वार्थ के लिए निहितार्थ निकलना एकदम अनुपयोगी है।
क्या भारत के रानीतिज्ञ इन सबसे कब सबक लेंगें।
साथ ही साथ नमो द्वारा पुनः बिहार आकर आतंकी घटना को राजनितिक रंग देने के लिए पीड़ित परिवारों से मिलना एकदम अस्वस्थ परंपरा है।
देश / राज्य के सभी राजनीतिज्ञ दल को २७ अक्टूबर कि घटना पर मिलकर डटकर मुकाबला करने का वक्त है।
सुशील मोदी की घटना पर अबतक राजनीति स्वार्थ के लिए निहितार्थ निकलना एकदम अनुपयोगी है।
क्या भारत के रानीतिज्ञ इन सबसे कब सबक लेंगें।
Sunday, October 27, 2013
27 october को भाजपा की रैली में बम बिस्फोट
यह बिहार के लिए शर्मनाक , चिंताजनक , अपमानजनक ...घटना है . इसके लिए किसी दुसाह्सी व्यक्ति की कृति की संज्ञा है . मैं हतप्रभ हूँ . सीता , कर्ण , बुद्ध , महावीर , चन्द्रगुप्त - चाणक्य, गाँधी , जयप्रकाश .... की पावन धरा को कलुषित करने की पुनः कोशिश की गयी है .इसमें किसी राजनीतिज्ञ ओछी हरकत की गुंजाईश नहीं है . परन्तु सरकारी नौकरशाहों का सही दयीत्वों का सही से नहीं निर्वहन का परिणाम है . अगर बोधगया की घटना से सबक लेकर पुलिश प्रशाशन कार्य करती तो समय रहते इस दुखद घटना से बचा जा सकता था या इतनी बड़ी घटना नहीं घटती .
हालांकि नीतीश कुमार द्वारा अपना पूर्व से नियोजित कार्यक्रम को रद्द कर शाम में प्रेस विज्ञप्ति से उनके धर्य एवम राजनीतिज्ञ विद्वेष की साजिश परकी आशंका को विफल कर कुशल प्रशाशक की झलक मिलती है . साथ ही साथ नरेन्द्र मोदी की शान्ति की अपील भी राजनिती में साजिश को पूर्णतः विफल करता है .
हमलोगों को इस दुःख की घडी में मृत परिवार एवम घायल व्यक्ति को सान्तवना देते हुए पुनः नयी उर्जा के साथ बिहार का नाम स्वर्णिम इतिहास में जोड़ने का समय है .
आये हमलोग मिलजुलकर नया बिहार जो पूर्व से जाना जाता है उसमें कुछ कड़ी जोडें .
हालांकि नीतीश कुमार द्वारा अपना पूर्व से नियोजित कार्यक्रम को रद्द कर शाम में प्रेस विज्ञप्ति से उनके धर्य एवम राजनीतिज्ञ विद्वेष की साजिश परकी आशंका को विफल कर कुशल प्रशाशक की झलक मिलती है . साथ ही साथ नरेन्द्र मोदी की शान्ति की अपील भी राजनिती में साजिश को पूर्णतः विफल करता है .
हमलोगों को इस दुःख की घडी में मृत परिवार एवम घायल व्यक्ति को सान्तवना देते हुए पुनः नयी उर्जा के साथ बिहार का नाम स्वर्णिम इतिहास में जोड़ने का समय है .
आये हमलोग मिलजुलकर नया बिहार जो पूर्व से जाना जाता है उसमें कुछ कड़ी जोडें .
Saturday, September 21, 2013
उर्जा बिभाग में बिजली एवम नौकरशाह की आँख मिचौली
क्या बिहार सरकार के नौकरशाह अपनी सारी मर्यादायों को ताक पर रख दिया है ? बिहार सरकार की इस विषय पर बहुत फजीहत उठानी पड़ी .
माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी शाषण में आते ही बिहार सरकार के सभी कर्मी को मर्यादित आचरण का व्यवहार , अनुशाशन , संयम, कानून आदि में रहने का पाठ पढाया था .जिसका नाम कालांतर में सुशाशन पड़ा. यही मूल शब्द पुरे देश में फैली और बिहार का यह पहचान बना .बुद्ध के देश में जहाँ सारे राजनीतिज्ञ बिष- वमन कर नौकरशाहों के क्ष्दम बाजीगिरी से सता का स्वाद चख रहे थे उसी समय एक राजनीतिज्ञ की यह सोंच वनी की सत्य , अहिन्षा, सयंमित आचरण, लोकतान्त्रिक मर्यादा और सद्विचार से बिहार रुपी बिमारू प्रदेश को पहचान मिलेगी एवम देश में हो रही विकाश की मुख्या धारा से जुड़ेगा.इसमें कोई शक नहीं की इस अवधारणा से बिहार का नवनिर्माण हुआ.
नौकरशाह के चलते ही भारत जिस प्रकार संसार में विकाश , भ्रस्टाचार , लॉ and आर्डर में बिमारू देश की गणना में की जाती है ठीक उसी प्रकार बिहार भी संजय अग्रवाल जैसे नौकरशाहों की वजह से बिमारू प्रदेश से कभी भी नहीं उबरेगा .
हमलोगों को इन नौकरशाहों को मर्यादित आचरण में रहकर कानून के सहारे सबक सिखाने की जरूरत है . जो बिधुत भवन में घटना घटी यह सभ्य समाज को तार - तार कर रख देता है . अगर संजय अग्रवाल एवम कुछ भ्रष्ट पूलिसतन्त्र के चलते पूरे बिहार को अंधकार युग की याद आयी इसमें बिधुत कर्मी के दोष को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता है .परन्तु सबसे ज्यादा जिसे ठेंस लगी वह है बिहार के सुशाशन के संकेत को .
यदपि इस तरह के नौकरशाह के द्वारा गैर संसदीय / अलोकतान्त्रिक / अमर्यादित / अशोभनीय हरकत से उत्पन्न परिस्थिति से सरकार उबर चूकी . बिहार का नौकरशाह इसके लिए सांकेतिकरूप में बिहारवासी से माफी मांग कर पथप्रदर्शक का काम कर सकता था . परन्तु नौकरशाह तो अव्वल दर्जे का घमंडी / मिथ्याचारी / भ्रष्ट / अनुशाशंहीन है इससे इस तरह की मिसाल मिल ही नहीं सकती है .
बिहार के मुखिया को अब सचेत होकर इस घटना से सबक लेकर भविष्य में संजय अग्रवाल जैसे नौकरशाह से निजात लेने का समय आ गया है . यह घटना की पुनरावृति न हो इसके लिए कुछ नौकरशाह को नाथने / सवक सिखाने का वक्त आ गया है . समय ही शिक्षा देता है और इस मुहावरे को चरितार्थ करने का समय आ गया है ..
क्या बिहार सरकार के नौकरशाह अपनी सारी मर्यादायों को ताक पर रख दिया है ? बिहार सरकार की इस विषय पर बहुत फजीहत उठानी पड़ी .
माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी शाषण में आते ही बिहार सरकार के सभी कर्मी को मर्यादित आचरण का व्यवहार , अनुशाशन , संयम, कानून आदि में रहने का पाठ पढाया था .जिसका नाम कालांतर में सुशाशन पड़ा. यही मूल शब्द पुरे देश में फैली और बिहार का यह पहचान बना .बुद्ध के देश में जहाँ सारे राजनीतिज्ञ बिष- वमन कर नौकरशाहों के क्ष्दम बाजीगिरी से सता का स्वाद चख रहे थे उसी समय एक राजनीतिज्ञ की यह सोंच वनी की सत्य , अहिन्षा, सयंमित आचरण, लोकतान्त्रिक मर्यादा और सद्विचार से बिहार रुपी बिमारू प्रदेश को पहचान मिलेगी एवम देश में हो रही विकाश की मुख्या धारा से जुड़ेगा.इसमें कोई शक नहीं की इस अवधारणा से बिहार का नवनिर्माण हुआ.
नौकरशाह के चलते ही भारत जिस प्रकार संसार में विकाश , भ्रस्टाचार , लॉ and आर्डर में बिमारू देश की गणना में की जाती है ठीक उसी प्रकार बिहार भी संजय अग्रवाल जैसे नौकरशाहों की वजह से बिमारू प्रदेश से कभी भी नहीं उबरेगा .
हमलोगों को इन नौकरशाहों को मर्यादित आचरण में रहकर कानून के सहारे सबक सिखाने की जरूरत है . जो बिधुत भवन में घटना घटी यह सभ्य समाज को तार - तार कर रख देता है . अगर संजय अग्रवाल एवम कुछ भ्रष्ट पूलिसतन्त्र के चलते पूरे बिहार को अंधकार युग की याद आयी इसमें बिधुत कर्मी के दोष को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता है .परन्तु सबसे ज्यादा जिसे ठेंस लगी वह है बिहार के सुशाशन के संकेत को .
यदपि इस तरह के नौकरशाह के द्वारा गैर संसदीय / अलोकतान्त्रिक / अमर्यादित / अशोभनीय हरकत से उत्पन्न परिस्थिति से सरकार उबर चूकी . बिहार का नौकरशाह इसके लिए सांकेतिकरूप में बिहारवासी से माफी मांग कर पथप्रदर्शक का काम कर सकता था . परन्तु नौकरशाह तो अव्वल दर्जे का घमंडी / मिथ्याचारी / भ्रष्ट / अनुशाशंहीन है इससे इस तरह की मिसाल मिल ही नहीं सकती है .
बिहार के मुखिया को अब सचेत होकर इस घटना से सबक लेकर भविष्य में संजय अग्रवाल जैसे नौकरशाह से निजात लेने का समय आ गया है . यह घटना की पुनरावृति न हो इसके लिए कुछ नौकरशाह को नाथने / सवक सिखाने का वक्त आ गया है . समय ही शिक्षा देता है और इस मुहावरे को चरितार्थ करने का समय आ गया है ..
Friday, June 7, 2013
पहली प्रोन्नति..शुकून या परेशानी
पहली प्रोन्नति..शुकून या परेशानी "महल्ले में बुढा की शादी पडोसी के घर में बंटी मिठाई ""दही के अगोरिया बिल्ली "उपर्युक्त दोनों मुहावरे मेरी सरकारी प्रोन्नति पर चरितार्थ हो रही है . कुछ दर्द ऐसे भी होते हैं जो परेशान कम और ख़ुशी ज्यादा देते हैं .जैसे खुजली ..नहीं खुजलाने पर अकबकाहट होगी और खुज्लाईये तो शुकून और जन्नत महशूस होगा .कई दोस्तो ने मेरी सरकारी प्रोन्नति के बाद बधाईयाँ दी . सभी दोस्तो को मेरे तरफ से धन्यवाद .
लेकिन सचमुच में ५० वर्ष के बाद मिली पहली प्रोन्नति ने सोचने को मजबूर कर दिया .अब जरा सोचिये प्रोन्नति के बाद का पदनाम है कार्यपालक अभियंता .कार्यपालक शब्द का सन्धि विच्छेद है कार्य + पालक . कार्य अर्थात काम और पालक पालना अथवा कामकरने वाला व्यक्ति . मेरी उम्र जिस दहलीज़ पर कुलांचे मार रही है इस उम्र में प्रत्येक व्यक्ति की मनः एवम शारीरिक स्थिति निम्न प्रकार की होती है ...
१) ५० वर्ष के बाद कोई भी व्यक्ति श्रम के लायक शारीरिक रूप में क्षीण होना प्रारम्भ कर देता है साथ ही साथ ८० % आदमी कोई न कोई गम्भीर बिमारी का शिकार हो जाता है . स्वास्थ्य अगर साथ नहीं दिया तो आदमी काम क्या करेगा ?और पद का नाम है कामकरने वाला .
२) इस उम्र में सभी के माता - पिता वृद्ध हो जाते है .उनकी सेवा का दायित्व बेटे के कंधे पर सामान्य रूप में होना चाहिए . अब सोचिये जो खुद लाचार है उसको सेवा की मजबूरी भी है .
३) भारत में ८० वर्ष के माता पिता के साथ साथ खुद एवम अर्धंगिनी के ईलाज का खर्च का अनुमान लगा लें .
४) ५० वर्ष के आदमी के दो सन्तानों पर होने वाला आधुनिक शिक्षा का खर्च का अनुमान लगा लें .
५) इस उम्र में अगर बच्ची हो तो उसकी शादी पर होनेवाला खर्च का अनुमान लगा लें .
६) कार्यपालक अभियंता को सरकार द्वारा तिजौरी की चाभी गुच्छे सहित थमा दी जाती है .
७)शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति काम की सही रूप में देख रेख कर सकता है क्या ?
८) सुरसा की मुह की तरह बाए पैसों की आवश्यकता वाला व्यक्ति अगर सत्य हरिश्चन्द्र की औलाद होगा तो ही सरकारी खजाना सुरक्षित रह सकता है अन्यथा भ्रस्ट शाषण व्यवस्था में खुद चान्दी के चम्मच से पेटभर खायेगा .
९) सम्वेदकों को चान्दी ही चान्दी हो जाएगी .
लेकिन सचमुच में ५० वर्ष के बाद मिली पहली प्रोन्नति ने सोचने को मजबूर कर दिया .अब जरा सोचिये प्रोन्नति के बाद का पदनाम है कार्यपालक अभियंता .कार्यपालक शब्द का सन्धि विच्छेद है कार्य + पालक . कार्य अर्थात काम और पालक पालना अथवा कामकरने वाला व्यक्ति . मेरी उम्र जिस दहलीज़ पर कुलांचे मार रही है इस उम्र में प्रत्येक व्यक्ति की मनः एवम शारीरिक स्थिति निम्न प्रकार की होती है ...
१) ५० वर्ष के बाद कोई भी व्यक्ति श्रम के लायक शारीरिक रूप में क्षीण होना प्रारम्भ कर देता है साथ ही साथ ८० % आदमी कोई न कोई गम्भीर बिमारी का शिकार हो जाता है . स्वास्थ्य अगर साथ नहीं दिया तो आदमी काम क्या करेगा ?और पद का नाम है कामकरने वाला .
२) इस उम्र में सभी के माता - पिता वृद्ध हो जाते है .उनकी सेवा का दायित्व बेटे के कंधे पर सामान्य रूप में होना चाहिए . अब सोचिये जो खुद लाचार है उसको सेवा की मजबूरी भी है .
३) भारत में ८० वर्ष के माता पिता के साथ साथ खुद एवम अर्धंगिनी के ईलाज का खर्च का अनुमान लगा लें .
४) ५० वर्ष के आदमी के दो सन्तानों पर होने वाला आधुनिक शिक्षा का खर्च का अनुमान लगा लें .
५) इस उम्र में अगर बच्ची हो तो उसकी शादी पर होनेवाला खर्च का अनुमान लगा लें .
६) कार्यपालक अभियंता को सरकार द्वारा तिजौरी की चाभी गुच्छे सहित थमा दी जाती है .
७)शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति काम की सही रूप में देख रेख कर सकता है क्या ?
८) सुरसा की मुह की तरह बाए पैसों की आवश्यकता वाला व्यक्ति अगर सत्य हरिश्चन्द्र की औलाद होगा तो ही सरकारी खजाना सुरक्षित रह सकता है अन्यथा भ्रस्ट शाषण व्यवस्था में खुद चान्दी के चम्मच से पेटभर खायेगा .
९) सम्वेदकों को चान्दी ही चान्दी हो जाएगी .
Friday, May 31, 2013
अभियंताओं का राष्ट्र , सभ्यता और विकास में प्रासिंगकता
अभियंताओं का राष्ट्र , सभ्यता और विकास में अभूतपूर्व योगदान है . अभियंता सचमुच में प्रगति की रीढ़ है .सबसे पहले अभियंता के बेसिक ज्ञान पर प्रकाश डालूँगा .अभियंता विज्ञानं एवम गणित के जानकार होते हैं. विज्ञान का जानकार प्रकृति में उपलब्ध संसाधनों का वैज्ञानिक प्रयोग सैद्धान्तिक एवम व्यवहारिक रूप में लाता है . क्रमवद्ध ज्ञान को विज्ञानं कहते हैं . सभ्यता का क्रमवद्ध विकास इसी ज्ञान से सम्भब है . परन्तु आज के भारत के कई प्रान्तों में प्रगति की भागदौड़ में समाज के सभी वर्गों का सही प्रतिनिधित्व एवम सर्वागीण विकास में अभियंताओं को रोड़ा माना जा रहा है परन्तु ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि भारत में प्रशासनिक एवम राजनैतिक हस्तक्षेप हद से ज्यादा हो गया है .




सबसे पहले प्रशासनिक हस्तक्षेप को समझा जाय . भारत में आई ए स नाम की चिड़ियाँ को स्वतंत्रता के बाद ही ब्रिटेन उड़ जाना चाहिए था . परन्तु इसका घोसला इतना मजबूत था की दृढ़ राजनीति संकल्प के अभाव एवम सत्ता की लोलुपता ने इसके घोसले को और ताकतवर बना दिया है . भारत के विकास में आई ए स के बारे में यही कहावत चरितार्थ होती है " पढ़े फारसी बेचे तेल ". आज भारत के राजनीति को भी इससे निकलने या नाथने की अकुलाहट है .


विकास में भारतीय जाति द्वार विभिन्न पेशा से जुड़े लोगों की भूमिका बेहद महत्तवपूर्ण है . इसे भी अकुशल अभियंता की संज्ञा दी जा सकती है . आज भारत / बिहार इन अकुशल अभियंताओं की वजह से विश्व के आधुनिक निर्माण में अपनी पहचान बनाये हुए है . परन्तु इसे ही आज के विकाश में उपहास के रूप में उद्धृत किया जाता है . बिहारी शब्द राष्ट्र में और भारतीय शब्द विश्ब में गाली के रूप में प्रयुक्त किया जाता है. यही मिसाल अभियंताओं का राष्ट्र में है . सबसे न्यूनतम पगार पदाधिकारियों में इसकी है . सेवा सर्त तो एकदम खराब. अभियंताओं /अकुशल अभियंताओं के शोषण के देश में विकास की कोरी कल्पना ही की जा सकती है .



सबसे पहले प्रशासनिक हस्तक्षेप को समझा जाय . भारत में आई ए स नाम की चिड़ियाँ को स्वतंत्रता के बाद ही ब्रिटेन उड़ जाना चाहिए था . परन्तु इसका घोसला इतना मजबूत था की दृढ़ राजनीति संकल्प के अभाव एवम सत्ता की लोलुपता ने इसके घोसले को और ताकतवर बना दिया है . भारत के विकास में आई ए स के बारे में यही कहावत चरितार्थ होती है " पढ़े फारसी बेचे तेल ". आज भारत के राजनीति को भी इससे निकलने या नाथने की अकुलाहट है .


विकास में भारतीय जाति द्वार विभिन्न पेशा से जुड़े लोगों की भूमिका बेहद महत्तवपूर्ण है . इसे भी अकुशल अभियंता की संज्ञा दी जा सकती है . आज भारत / बिहार इन अकुशल अभियंताओं की वजह से विश्व के आधुनिक निर्माण में अपनी पहचान बनाये हुए है . परन्तु इसे ही आज के विकाश में उपहास के रूप में उद्धृत किया जाता है . बिहारी शब्द राष्ट्र में और भारतीय शब्द विश्ब में गाली के रूप में प्रयुक्त किया जाता है. यही मिसाल अभियंताओं का राष्ट्र में है . सबसे न्यूनतम पगार पदाधिकारियों में इसकी है . सेवा सर्त तो एकदम खराब. अभियंताओं /अकुशल अभियंताओं के शोषण के देश में विकास की कोरी कल्पना ही की जा सकती है .
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