वैश्विक आर्थिक युध्द या कोविड 19 महामारी
इतिहास में इतना बड़ा व्यापार और वह भी मौत की भयावहता के नाम पर, जब विज्ञान इतना तरक्की कर गया है तब; सचमुच दुनिया में मनुष्य ने पुनः अपने को बन्दर प्रजाति से मानसिक रुप मे आगे नहीं होना साबित किया है ।
यह सत्य है कि यह एक नया वायरस है जिसका संक्रमण droplets और मनुष्य का शरीर ही है । इसका transmission वुहान, चीन में अक्टूबर 19 से होने का अनुमान है । हद तो तब हो गई कि आज तक अर्थात मई 20 के उत्तरार्द्ध में भी WHO या अमेरिका या इंग्लैंड या अन्य कोई देश इस बीमारी को horror movie की तरह deadly ही बताकर एक सोझी समझी तर्क शक्ति से आर्थिक युद्ध में विश्व को झोंक दिया है । इससे सबसे बुरा असर गरीब देश, असंगठित मज़दूर, किसान, रेहड़ी, ठेला, फुटपाथ, रिक्शा या कार चालक, मज़दूर, विद्यार्थी, बेरोजगार युवक युवती, सेवा से जुड़े लोग जैसे नाई, बढई, मिस्त्री, कुटीर उद्योगआदि - आदि में संलग्न लोग हुए ।
कई उद्योग की कमर ही नहीं उद्योग ही ध्वस्त हो गई वल्कि लाख चाहकर भी उन उजड़े उद्योग को पुनः चालू करना असंभव है । भारत ऐसे देश की कुल जनसंख्या का 98% जनसंख्या या परिवार को नए सिरे से शुरुआत करनी होगी जिसमें आर्थिक नुकसान लोअर आय या मध्यम लोअर आय वर्ग पर आश्रित परिवार होंगें ।
Lockdown या मौत के नाम पर भय का व्यापार हर मनुष्य के मानस पटल पर देने की सुनियोजित साजिश की एक व्यूहरचना की गई । हर इंसान मौत से डरता है जो सत्य है , पर इसके आने का डर सबको मानसिक रुप से रुग्ण कर देता है । प्रश्न यह है कि विश्व इस समय बिना किसी समीक्षा निर्णय के lockdown कर सभी विद्यार्थी, असंगठित मजदूर, कॉन्ट्रैक्ट मज़दूर, कुटीर उद्योग, किसान, गम्भीर या आकस्मिक बीमारी से प्रभावित या रुटीन चेक अप के लिए आवश्यक सेवा को पूरी तरह ठप करने पर आमसहमति या परिचर्चा आवश्यक था या नहीं । प्रशासनिक एवम स्वास्थ्य महकमा को कोविड 19 के रोगी के लिए परामर्श जारी कर सभी निजी स्वास्थ्य संस्थानों को भय दिखाकर बन्द करने का क्यों निर्णय लिया गया ।
इस बीमारी से मृत्यु अधिकांश कम इम्युनिटी क्षमता वाले हैं, जैसे औसत आयु 65 से अधिक और पूरी जनसंख्या का अनुमानित अनुपात 0.1 है । अब अगर किसी देश में 65 वर्ष से अधिक उम्र की जनसंख्या अधिक है तब उस देश में मृत्यु दर भी अधिक होगा । अगर किसी देश की जीवन पद्धति में फ़ूड हैविट ऐसी है कि लोगों का इम्युनिटी लेवल अधिक है या क्षेत्रीय मौसम का प्रभाव इम्युनिटी लेवल का अधिक करना है तब मृत्यु दर कम होगा । इस बीमारी से सबसे अधिक मृत्यु क्रिटिकल रोगी की होती है जैसे , किडनी, दमा, उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग,उच्च ग्लूकोज़ आदि से ग्रसित मनुष्य । क्रिटिकल रोगी या अधिक आयु वाले मनुष्य की मौत दुख का कारण है परन्तु इस नाम पर पूरी आवादी को अनिर्णय और मानसिक रोगी बनाया जाना एक रणनीति का हिस्सा है या समाज की अज्ञानता ।
कुछ रोगी ऐसे हैं जिन्हें बीमारी का कोई लक्षण नहीं है; पूरी तरह स्वस्थ हैं और समाज में इसका फैलाव कर स्वयं ठीक हो रहे हैं; इस प्रकार के रोगी से सामुदायिक संक्रमण हो रहा है । अंत में 80 % लोगों को प्रभावित कर शरीर में एन्टी बॉडीज और हेर्ड इम्युनिटी के फैलाव के साथ हमें इस बीमारी के साथ 0.1 % मृत्यु दर के साथ रहना ही होगा ।
भारत में एकमात्र टी बी जैसे रोग से प्रतिवर्ष अनुमानित 5 लाख लोगों की मृत्यु का कारण है । प्रतिवर्ष फ्लू या इन्फ्लूएंजा संक्रमण से प्रतिवर्ष औसत मृत्यु कहीं कोविड से अधिक होने का अनुमान है ।
WHO की गलत एडवाइजरी और भारत द्वारा WHO के एडवाइजरी को आँख मूंद कर मानने का परिणाम इस विविधता पूर्ण देश में lockdown का यह दुष्परिणाम है । कई लोगों का यह भी मत है कि 4 घंटा की मोहलत देकर 140 करोड़ के देश में पूर्णतया lockdown में नागरिकों की दिक्कतों का विश्लेषण बिना ही किया गया है । जिसका दुष्परिणाम 27, 28 मार्च से ही देश के नागरिक, अप्रवासी मज़दूर द्वारा lockdown में व्यक्तिगत दूरी की अवधारणा को पूरी तरह नकार का दृश्य उजागर हुआ । लगातार 45- 50 दिनों से लाखों करोड़ों मजदूरों की यातायात व्यवस्था ठप करने से 2000 से 2500 किलोमीटर की दूरी पैदलों आदिम जीवन शैली में भूखे प्यासे, प्रशासन के डंडों के प्रहार को झेलकर, पांव में फोलों-छालों के साथ वेवसी में घर आने का दृश्य उजागर होना सरकार की तैयारियों की कमी की तरफ इशारा है । कम से कम नंगे या पैदल या साइकिल से चलनेवाले अप्रवासी मज़दूर को राज्योँ के द्वारा वाहन से राज्यों की सीमा तक यातायात व्यवस्था जारी रखा जाना चाहिए ।
अप्रवासी की सैकड़ों मौतों ने आम मानस के मन मिजाज को कई आनेवाले दुष्परिणामो की बात सोंचने पर मजबूर करता है । मजदूरों के परिवारों को जीविका के लिए अग्रिम एक मुश्त राशि सहायता जिन्दगी बचाने के लिए कारगर सम्भव है । जिसके लिए तैयारी में विलम्ब पुनः लाखो नागरिकों की मौत के रुप में आएगा ।
पूर्व से किसी रोग से ग्रस्त या आकस्मिक बीमार या स्वास्थ्य सहायता का lockdown में किसी निजी अस्पताल या डॉक्टर द्वारा नहीं सेवा देना या यातायात के अभाव या विधिवत पास का निर्गत न होना प्रशासनिक अक्षमता का दुष्परिणाम है ।
Lockdown के स्वरुप में तीन बदलाव के पश्चात भी अगर अप्रवासी मज़दूर या किसी नागरिक की मनुष्य जनित त्रासदो से मौत होना पूरी विश्व मानक नियम और देश से लेकर लोकल प्रशासन की क्षमता और तैयारी के परिदृश्य को उजागर करता है ।
इतिहास में इतना बड़ा व्यापार और वह भी मौत की भयावहता के नाम पर, जब विज्ञान इतना तरक्की कर गया है तब; सचमुच दुनिया में मनुष्य ने पुनः अपने को बन्दर प्रजाति से मानसिक रुप मे आगे नहीं होना साबित किया है ।
यह सत्य है कि यह एक नया वायरस है जिसका संक्रमण droplets और मनुष्य का शरीर ही है । इसका transmission वुहान, चीन में अक्टूबर 19 से होने का अनुमान है । हद तो तब हो गई कि आज तक अर्थात मई 20 के उत्तरार्द्ध में भी WHO या अमेरिका या इंग्लैंड या अन्य कोई देश इस बीमारी को horror movie की तरह deadly ही बताकर एक सोझी समझी तर्क शक्ति से आर्थिक युद्ध में विश्व को झोंक दिया है । इससे सबसे बुरा असर गरीब देश, असंगठित मज़दूर, किसान, रेहड़ी, ठेला, फुटपाथ, रिक्शा या कार चालक, मज़दूर, विद्यार्थी, बेरोजगार युवक युवती, सेवा से जुड़े लोग जैसे नाई, बढई, मिस्त्री, कुटीर उद्योगआदि - आदि में संलग्न लोग हुए ।
कई उद्योग की कमर ही नहीं उद्योग ही ध्वस्त हो गई वल्कि लाख चाहकर भी उन उजड़े उद्योग को पुनः चालू करना असंभव है । भारत ऐसे देश की कुल जनसंख्या का 98% जनसंख्या या परिवार को नए सिरे से शुरुआत करनी होगी जिसमें आर्थिक नुकसान लोअर आय या मध्यम लोअर आय वर्ग पर आश्रित परिवार होंगें ।
Lockdown या मौत के नाम पर भय का व्यापार हर मनुष्य के मानस पटल पर देने की सुनियोजित साजिश की एक व्यूहरचना की गई । हर इंसान मौत से डरता है जो सत्य है , पर इसके आने का डर सबको मानसिक रुप से रुग्ण कर देता है । प्रश्न यह है कि विश्व इस समय बिना किसी समीक्षा निर्णय के lockdown कर सभी विद्यार्थी, असंगठित मजदूर, कॉन्ट्रैक्ट मज़दूर, कुटीर उद्योग, किसान, गम्भीर या आकस्मिक बीमारी से प्रभावित या रुटीन चेक अप के लिए आवश्यक सेवा को पूरी तरह ठप करने पर आमसहमति या परिचर्चा आवश्यक था या नहीं । प्रशासनिक एवम स्वास्थ्य महकमा को कोविड 19 के रोगी के लिए परामर्श जारी कर सभी निजी स्वास्थ्य संस्थानों को भय दिखाकर बन्द करने का क्यों निर्णय लिया गया ।
इस बीमारी से मृत्यु अधिकांश कम इम्युनिटी क्षमता वाले हैं, जैसे औसत आयु 65 से अधिक और पूरी जनसंख्या का अनुमानित अनुपात 0.1 है । अब अगर किसी देश में 65 वर्ष से अधिक उम्र की जनसंख्या अधिक है तब उस देश में मृत्यु दर भी अधिक होगा । अगर किसी देश की जीवन पद्धति में फ़ूड हैविट ऐसी है कि लोगों का इम्युनिटी लेवल अधिक है या क्षेत्रीय मौसम का प्रभाव इम्युनिटी लेवल का अधिक करना है तब मृत्यु दर कम होगा । इस बीमारी से सबसे अधिक मृत्यु क्रिटिकल रोगी की होती है जैसे , किडनी, दमा, उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग,उच्च ग्लूकोज़ आदि से ग्रसित मनुष्य । क्रिटिकल रोगी या अधिक आयु वाले मनुष्य की मौत दुख का कारण है परन्तु इस नाम पर पूरी आवादी को अनिर्णय और मानसिक रोगी बनाया जाना एक रणनीति का हिस्सा है या समाज की अज्ञानता ।
कुछ रोगी ऐसे हैं जिन्हें बीमारी का कोई लक्षण नहीं है; पूरी तरह स्वस्थ हैं और समाज में इसका फैलाव कर स्वयं ठीक हो रहे हैं; इस प्रकार के रोगी से सामुदायिक संक्रमण हो रहा है । अंत में 80 % लोगों को प्रभावित कर शरीर में एन्टी बॉडीज और हेर्ड इम्युनिटी के फैलाव के साथ हमें इस बीमारी के साथ 0.1 % मृत्यु दर के साथ रहना ही होगा ।
भारत में एकमात्र टी बी जैसे रोग से प्रतिवर्ष अनुमानित 5 लाख लोगों की मृत्यु का कारण है । प्रतिवर्ष फ्लू या इन्फ्लूएंजा संक्रमण से प्रतिवर्ष औसत मृत्यु कहीं कोविड से अधिक होने का अनुमान है ।
WHO की गलत एडवाइजरी और भारत द्वारा WHO के एडवाइजरी को आँख मूंद कर मानने का परिणाम इस विविधता पूर्ण देश में lockdown का यह दुष्परिणाम है । कई लोगों का यह भी मत है कि 4 घंटा की मोहलत देकर 140 करोड़ के देश में पूर्णतया lockdown में नागरिकों की दिक्कतों का विश्लेषण बिना ही किया गया है । जिसका दुष्परिणाम 27, 28 मार्च से ही देश के नागरिक, अप्रवासी मज़दूर द्वारा lockdown में व्यक्तिगत दूरी की अवधारणा को पूरी तरह नकार का दृश्य उजागर हुआ । लगातार 45- 50 दिनों से लाखों करोड़ों मजदूरों की यातायात व्यवस्था ठप करने से 2000 से 2500 किलोमीटर की दूरी पैदलों आदिम जीवन शैली में भूखे प्यासे, प्रशासन के डंडों के प्रहार को झेलकर, पांव में फोलों-छालों के साथ वेवसी में घर आने का दृश्य उजागर होना सरकार की तैयारियों की कमी की तरफ इशारा है । कम से कम नंगे या पैदल या साइकिल से चलनेवाले अप्रवासी मज़दूर को राज्योँ के द्वारा वाहन से राज्यों की सीमा तक यातायात व्यवस्था जारी रखा जाना चाहिए ।
अप्रवासी की सैकड़ों मौतों ने आम मानस के मन मिजाज को कई आनेवाले दुष्परिणामो की बात सोंचने पर मजबूर करता है । मजदूरों के परिवारों को जीविका के लिए अग्रिम एक मुश्त राशि सहायता जिन्दगी बचाने के लिए कारगर सम्भव है । जिसके लिए तैयारी में विलम्ब पुनः लाखो नागरिकों की मौत के रुप में आएगा ।
पूर्व से किसी रोग से ग्रस्त या आकस्मिक बीमार या स्वास्थ्य सहायता का lockdown में किसी निजी अस्पताल या डॉक्टर द्वारा नहीं सेवा देना या यातायात के अभाव या विधिवत पास का निर्गत न होना प्रशासनिक अक्षमता का दुष्परिणाम है ।
Lockdown के स्वरुप में तीन बदलाव के पश्चात भी अगर अप्रवासी मज़दूर या किसी नागरिक की मनुष्य जनित त्रासदो से मौत होना पूरी विश्व मानक नियम और देश से लेकर लोकल प्रशासन की क्षमता और तैयारी के परिदृश्य को उजागर करता है ।