अभियंताओं का राष्ट्र , सभ्यता और विकास में अभूतपूर्व योगदान है . अभियंता सचमुच में प्रगति की रीढ़ है .सबसे पहले अभियंता के बेसिक ज्ञान पर प्रकाश डालूँगा .अभियंता विज्ञानं एवम गणित के जानकार होते हैं. विज्ञान का जानकार प्रकृति में उपलब्ध संसाधनों का वैज्ञानिक प्रयोग सैद्धान्तिक एवम व्यवहारिक रूप में लाता है . क्रमवद्ध ज्ञान को विज्ञानं कहते हैं . सभ्यता का क्रमवद्ध विकास इसी ज्ञान से सम्भब है . परन्तु आज के भारत के कई प्रान्तों में प्रगति की भागदौड़ में समाज के सभी वर्गों का सही प्रतिनिधित्व एवम सर्वागीण विकास में अभियंताओं को रोड़ा माना जा रहा है परन्तु ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि भारत में प्रशासनिक एवम राजनैतिक हस्तक्षेप हद से ज्यादा हो गया है .
सबसे पहले प्रशासनिक हस्तक्षेप को समझा जाय . भारत में आई ए स नाम की चिड़ियाँ को स्वतंत्रता के बाद ही ब्रिटेन उड़ जाना चाहिए था . परन्तु इसका घोसला इतना मजबूत था की दृढ़ राजनीति संकल्प के अभाव एवम सत्ता की लोलुपता ने इसके घोसले को और ताकतवर बना दिया है . भारत के विकास में आई ए स के बारे में यही कहावत चरितार्थ होती है " पढ़े फारसी बेचे तेल ". आज भारत के राजनीति को भी इससे निकलने या नाथने की अकुलाहट है .
विकास में भारतीय जाति द्वार विभिन्न पेशा से जुड़े लोगों की भूमिका बेहद महत्तवपूर्ण है . इसे भी अकुशल अभियंता की संज्ञा दी जा सकती है . आज भारत / बिहार इन अकुशल अभियंताओं की वजह से विश्व के आधुनिक निर्माण में अपनी पहचान बनाये हुए है . परन्तु इसे ही आज के विकाश में उपहास के रूप में उद्धृत किया जाता है . बिहारी शब्द राष्ट्र में और भारतीय शब्द विश्ब में गाली के रूप में प्रयुक्त किया जाता है. यही मिसाल अभियंताओं का राष्ट्र में है . सबसे न्यूनतम पगार पदाधिकारियों में इसकी है . सेवा सर्त तो एकदम खराब. अभियंताओं /अकुशल अभियंताओं के शोषण के देश में विकास की कोरी कल्पना ही की जा सकती है .
Friday, May 31, 2013
Sunday, May 26, 2013
कटहल
भारत में सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला फल कटहल विश्व में सबसे बड़ा होता है। कटहल की सब्जी, पकौडे़ या अचार आदि बनाए जाते है। जब यह पक जाता है तब इसके अंदर के मीठे फल को खाया जाता है जो कि बडा़ ही स्वादिष्ट लगता है। कटहल के अंदर कई पौष्टिक तत्व पाये जाते हैं जैसे, विटामिन ए, सी, थाइमिन, पोटैशियम, कैल्शियम, राइबोफ्लेविन, आयरन, नियासिन और जिंक आदि। इस फल में खूब सारा फाइबर पाया जाता है साथ ही इसमें बिल्कुल भी कैलोरी नहीं होती है।
पके हुए कटहल के गूदे को अच्छी तरह से मैश करके पानी में उबाला जाए और इस मिश्रण को ठंडा कर एक गिलास पीने से जबरदस्त स्फ़ूर्ती आती है, यह हार्ट के रोगियों के लिये भी अच्छा माना जाता है।
कटहल के स्वास्थ्य लाभ---
- कटहल में पोटैशियम पाया जाता है जो कि हार्ट की समस्या को दूर करता है क्योंकि यह ब्लड प्रेशर को लो कर देता है।
- इस रेशेदार फल में काफी आयरन पाया जाता है जो कि एनीमिया को दूर करता है और शरीर में ब्लड सर्कुलेशन को बढाता है।
- इसकी जड़ अस्थमा के रोगियो के लिये अच्छी मानी जाती है। इसकी जड़ को पानी के साथ उबाल कर बचा हुआ पानी छान कर पिये तो अस्थमा कंट्रोल हो जाएगा।
- इसमें मौजूद सूक्ष्म खनिज और कॉपर थायराइड चयापचय के लिये प्रभावशाली होता है। खासतौर पर यह हार्मोन के उत्पादन और अवशोषण के लिये अच्छा माना जाता है।
- हड्डियों के लिये भी यह फल बहुत अच्छा होता है। इसमें मौजूद मैग्नीशियम हड्डी में मजबूती लाता है तथा भविष्य में ऑस्टियोपुरोसिस की समस्या से निजात दिलाता है।
- इसमें विटामिन सी और ए पाया जाता है जो कि रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है और बैक्टीरियल और वाइरल इंफेक्शन से बचाता है।
- इसमें मौजूद शर्करा जैसे, फ्रक्टोज़ और सूकरोज़ तुरंत ऊर्जा देते हैं। इस शर्करा में बिल्कुल भी जमी हुई चर्बी और कोलेस्ट्रॉल नहीं होता।
- यह फल अल्सर और पाचन सम्बंधी समस्या को दूर करते हैं। इसमें फाइबर होता है जो कि कब्ज की समस्या को दूर करते हैं।
- इसका स्वास्थ्य लाभ आंखों तथा त्वचा पर भी देखने को मिलता है। इस फल में विटामिन ए पाया जाता है जिससे आंखों की रौशनी बढती है और स्किन अच्छी होती है। यह रतौंधी को भी ठीक करता है।
सावधानी ---
पका कटहल का फल कफवर्धक है, अत: सर्दी-जुकाम, खांसी, अर्जीण आदि रोगों से प्रभावित व्यक्तियों एवं गर्भवती महिलाओं को कटहल का सेवन नहीं करना चाहिए।
कटहल खाने के बाद पान खान से पेट फूल जाता है और अफरा होने का डर रहता है अत: भूल कर भी कटहल के बाद पान न खाएं।दुबले-पतले पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति को पका कटहल दोपहर में खाकर कुछ देर आराम करना चाहिए।
सौजन्य aurveda
खरबूजा
खरबूजा का पका हुआ फल बलवर्धक, वीर्यवर्धक, वात-पित्त और कब्ज नाशक तो होता ही है, इसके कच्चे फल की सब्जी बनाकर खाना भी स्वास्थ्य के लिये फायदेमंद माना गया है।
- खरबूजा में शर्करा के अलावा प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, लोहा, कैलोरी, विटामिन ‘ए’,बी और ‘सी’ भी पर्याप्त मात्रा में है, जो शरीर के पोषण के लिये बहुत जरूरी है।
- यह मूत्र सह-प्रजनन संस्थान के रोगों में भी फायदेमंद है।
- पथरी रोग से परेशान व्यक्ति को भोजन के उपरांत इसके सेवन करना चाहिये, अवश्य लाभ होगा।
- खरबूजे के बीज को पीसकर घी में भूनकर अल्प मात्रा में सुबह-शाम खाने से उन्माद, तन्द्रा, चक्कर आना तथा आलस्य आदि में बहुत लाभ होता है।
- खरबूजे के साथ खरबूजे के बीज भी खाना चाहिये, क्योंकि बीज स्मरण शक्ति बढ़ाने व शरीर का पोषण करने में रामबाण दवा है।
- खरबूजा नियमित खाने से रक्तचाप, हृदय नियमित खाने से रक्तचाप, हृदय रोग आदि में भी लाभ होता है और पेट भी ठीक रहता है। यह आंतों को भी साफ रखता है।
- पीलिया, सूजन व एक्जिमा के रोगी भी खरबूजा का नियमित सेवन कर लाभ उठा सकते हैं।
- मिर्गी एवं पागलपन में भी खरबूजा एक सहायक औषधि से कम नहीं है।
- खरबूजे के बीज मस्तिष्क को शीतलता को प्रदान करते ही है, बीजों में वसा, प्रोटीन जैसे पौष्टिक तत्व भी होते हैं।
- खरबूजा गर्मियों में शरीर को लू के प्रभाव से भी बचाता है, क्योंकि उसे खाने से शरीर में पानी की कमी दूर होती है।
- खरबूज की सब्जी पेट व स्वास्थ्य दोनों के लिये फायदेमंद है।
- खरबूजे में बड़ी मात्रा में आर्गेनिक पिगमेंट केरोटेन्वाइड पाया जाता है, जो कैंसर से बचाने के साथ ही लंग कैंसर की संभावना को भी कम करता है। यह शरीर में पनप रहे कैंसर के मूल को नष्ट कर देता है।
- खरबूजे में एडेनोसीन नामक एंटीकोएगुलेंट पाया जाता है, जो रक्त कोशिओं को जमने से रोकता है। रक्त कोशिकाओं के जमने से ही दौरा और दिल की बीमारी होती है। खरबूजा शरीर में रक्त के बहाव को बनाए रखने में सहायक होता है, जिससे दौरा और दिल की बीमारियों की संभावना कम हो जाती है।
- अगर आप पाचन की समस्या से जूझ रहे हैं, तो खरबूजा खाइए।इससे कब्ज़ दूर होती है. खरबूजे में मौजूद पानी की मात्रा पाचन में सहायक होती है। इसमें पाए जाने वाले मिनरल्स पेट की एसीडीटी को खत्म करते हैं, जिससे पाचन प्रक्रिया दुरुस्त रहती है।
- हमारी त्वचा में कनेक्टिव टिशू पाए जाते हैं। खरबूजे में पाए जाने वाले कोलाजन प्रोटीन इन कनेक्टिव टिशू में कोशिका की संरचना को बनाए रखता है। कोलाजन से जख्म भी जल्दी ठीक होते हैं और त्वचा को मजबूती मिलती है। अगर आप लगातार खरबूजा खाएंगे तो त्वचे में रुखापन नहीं आएगा।
- खूरबूजे में डाइयुरेटिक (मूत्रवर्धक) क्षमता काफी अच्छी होती है। इस कारण इससे किडनी की बीमारियां ठीक होती हैं और यह एकजिमा को कम करता है। अगर खरबूजे में नींबू मिलाकर इसका सेवन किया जाए तो इससे गठिया की बीमारी भी ठीक हो सकती है।
- अधिकतर खरबूज में विटामिन ‘बी' पाया जाता है। विटामिन 'बी' शरीर में ऊर्जा के निर्माण में सहायक होता है। सूगर और कार्बोहाइड्रेट को संसाधित करने में यह ऊर्जा शरीर के लिए आवश्यक होती है।
- अगर आप अपना वजन कम करना चाहते हैं, तो खरबूजा इसके लिए आदर्श जरिया हो सकता है। इसमें काफी कम मात्रा में सोडियम पाया जाता है। साथ ही यह फैट और कोलेस्ट्रोल से भी मुक्त होता है। वहीं इससे काफी कम कैलोरी मिलती है। एक कप खरबूजे में सिर्फ 48 कैलोरी ऊर्जा होती है। खरबूजे में पाए जाने वाले प्रकृतिक मीठेपन से आप उच्च कैलोरी वाली मिठाईयों से भी दूर रहेंगे।
- आंखों को स्वस्थ रखने के लिए विटामिन ‘ए' की आवश्यकता होती है। खरबूजा यह विटामिन बीटा-कारोटीन के रूप में उपलब्ध कराता है। डब्ल्यूएचएफ के अनुसार रोज तीन बार उच्च बीटा-कारोटीन फल खाने से मैकुलर डीजेनेरेशन का खतरा 1.5 बार खाने वालों की तुलना में 36 प्रतिशत कम हो जाता है। मैकुलर डीजेनेरेशन ढलती उम्र के साथ होने वाली समस्या है, जिससे आंखों की रोशनी भी जा सकती है।
- जब आप तनावग्रस्त होते हैं तो खरबूजे में मौजूद पोटेशियम इससे उबरने में सहायक होता है। पोटेशियम दिल को सामान्य रूप से धड़कने में मदद करता है, जिससे मस्तिष्क में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन पहुंचती है और यह सुचारू रूप से कार्य करता है।
- मधुमेह के रोगी को अक्सर भूख लगती रहती है, क्योंकि उनके आहार में शुगर और ऊर्जा की मात्रा कम होती है। ऐसे रोगी के लिए खरबूजे का जूस अच्छा आहार हो सकता है। विशेषज्ञ हमेशा मधुमेह के रोगी को खरबूजे का जूस लेने की सलाह देते हैं, क्योंकि यह रक्त में सूगर के स्तर को कम करता है।
- खरबूजे को कद्दूकस कर के उसमे थोड़ी शकर और निम्बू का रस , इलायची आदि मिलाकर स्वादिष्ट पेय तैयार होता है. इसे बच्चें भी पसंद करते है.
- सावधानी -- इसके अधिक सेवन से पेट और आँतें कमजोर होती हैं। इसे खाने के कम से कम १ से २ घंटे तक पानी और दूध नहीं पीना चाहिए।
सौजन्य - aurveda
सौजन्य - aurveda
Saturday, May 18, 2013
शाकाहार v/s मांसाहार
क्या वृक्षों में जीवन हैं और क्या वृक्ष आदि खाने में पाप
हैं?
आधुनिक समाज में खान पान को लेकर एक विशेष
दुविधा आज
भी बनी हुई हैं जिसमें सभी व्यक्तियों के अलग अलग दृष्टीकौन हैं . इस्लाम और ईसाइयत को मानने
वालों का कहना हैं की ईश्वर ने पेड़ पौधे पशु आदि सब खाने
के लिए ही उत्पन्न किये हैं,नास्तिक
लोगों का मानना हैं
की ईश्वर जीवात्मा आदि कुछ भी नहीं होता इसलिए
चाहे शाक खाओ ,चाहे मांस खाओ, कोई पाप नहीं लगता. अहिंसा का समर्थन करने वाले लोगों का एक मत यह भी हैं
की केवल पशु ही नहीं अपितु पेड़ पौधे में
भी जीवात्मा होने के कारण उनको खाने में हिंसा हैं और
वृक्ष को काटकर खाने से हम भी मांसाहारी हैं क्यूंकि हम
उनके शरीर के अवयवों को खाते हैं.यह भी एक प्रकार
की जीव हत्या हैं.निष्पक्ष होकर हम धर्म शास्त्रों पर विचार करे हमे इस समस्या का समाधान आसानी से मिल
सकता हैं. संसार में दो प्रकार के जगत हैं जड़ और चेतन.
चेतन
जगत में दो विभाग हैं एक चर और एक अचर. वृक्ष
आदि अचर
कोटि में आते हैं जबकि मानव पशु आदि चर कोटि में आते हैं.
मनु स्मृति के अनुसार जो मनुष्य अत्यंत
तमोगुणी आचरण
करते हैं या अत्यंत तमोगुणी प्रवृति के होते हैं तो उसके
फल
स्वरुप वे अगले जन्म में स्थावर = वृक्ष, पतंग, कीट ,मत्स्य ,
सर्प, कछुआ, पशु और मृग के जन्म को प्राप्त होते हैं.
(सन्दर्भ- १२.४२) आगे मनु महाराज स्पष्ट रूप में
घोषणा करते हैं की पूर्वजन्मों के अधम कर्मों के कारण
वृक्ष
आदि स्थावर जीव अत्यंत तमोगुण से अवेषटित होते हैं. इस
कारण ये अंत: चेतना वाले होते हुए आन्तरिक रूप से
ही कर्म
फल रूप सुख दुःख की अनुभूति करते हैं.वाह्य सुख सुख
की अनुभूति इनको नगण्य रूप से होती हैं
अथवा बिलकुल नहीं होती. आधुनिक विज्ञान में वृक्षों में जीव
विषयक मत
की पुष्टि डॉ जगदीश चन्द्र बसु जीवात्मा के रूप में न
करके चेतनता के रूप में करते हैं. देखा जाये तो दोनों में
मूलभूत रूप से कोई अंतर नहीं होता क्यूंकि चेतनता जीव
का लक्षण हैं. भारतीय दर्शन सिद्धांत के अनुसार जहाँ चेतनता हैं वही जीव हैं और जहाँ जीव हैं
वही चेतनता हैं. आधुनिक विज्ञान वृक्षों में जीव
इसलिए
नहीं मानता हैं क्यूंकि वो केवल उसी बात को मानता हैं
जिसे प्रयोगशाला में सिद्ध किया गया हैं और
जीवात्मा को कभी भी प्रयोगशाला में सिद्ध नहीं किया जा सकता. डॉ जगदिश चन्द्र बसु पहले
वैज्ञानिक थे जिन्होंने ऐसे यंत्रों का अविष्कार
किया वृक्षों पौधों में वायु, निद्रा,भोजन, स्पर्श
आदि के
जैविक प्रभावों का अध्यनन किया जा सकता हैं. यहाँ तक
शास्त्रों के आधार पर यह सिद्ध किया गया हैं की वृक्ष आदि में आत्मा होती हैं.अब शास्त्रों के आधार पर यह
सिद्ध करेंगे की वृक्ष आदि के काटने में
अथवा पौधों आदि को जड़ से उखारने में
हिंसा नहीं होती हैं. संख्या दर्शन ५.२७ में लिखा हैं
की पीड़ा उसी जीव को पहुँचती हैं जिसकी वृति सब
अवयवों के साथ विद्यमान हो अर्थात सुख दुःख की अनुभूति इन्द्रियों के माध्यम से होती हैं. जैसे अंधे
को कितना भी चांटा दिखाए , बहरे को कितने
भी अपशब्द बोले तो उन्हें दुःख नहीं पहुँचता वैसे ही वृक्ष
आदि भी इन्द्रियों से रहित हैं अत: उन्हें दुःख
की अनुभूति नहीं होती. इसी प्रकार
बेहोशी की अवस्था में दुःख का अनुभव नहीं होता उसी प्रकार वृक्ष आदि में
भी आत्मा को मूर्च्छा अवस्था के कारण दर्द अथवा कष्ट
नहीं होता हैं. और यहीं कारण हैं की दुःख
की अनुभूति नहीं होने से वृक्ष आदि को काटने, छिलने,
खाने
से कोई पाप नहीं होता और इससे जीव हत्या का कोई भी सम्बन्ध नहीं बनता. भोजन का ईश्वर कृत विकल्प
केवल
और केवल शाकाहार हैं और इस व्यस्था में कोई पाप
नहीं होता. जबकि मांसाहार पाप का कारण हैं.
प्राणियों के वध से मांस उपलब्ध होता हैं,
बिना प्राणिवध किये मांस नहीं मिलता और प्राणियों का वध करना दुःख भोग का कारण हैं, अत: मांस
का सेवन नहीं करना चाहिए.
courtsry by - aurveda Admin-anshuman
Thursday, May 16, 2013
चाय
नाम सुनत बहुत मस्त लागेला लेकिन आपके पता बा गुरु की चाय अपने देश में कभी केहू नाही पियलेस राजा महाराजा, ऋषि मुनि, जब हमार भारत परतंत्र रहल त ओहि टाइम भारत में अंग्रेज लोग लेके अयिलन अपने बदे
क्योकि वो रक्त दबाव (ब्लड प्रेशर ) के बढ़वेला रक्त बढ़ने के कारन से कभी कभी जब खून तेज़ी से चले शुरू हो जाला त हार्ट अटैक (ह्रदय घात) के खतरा भी आम हो जला चाय में चीनी जो है सबसे खतरनाक हाउ चीनी से मधुमेह होला और जेकरे एक बार हो गयल ओकर कल्याल हो जाई इसलिए चीनी छोड़कर गुड लेई
और चाय के का का नुक्सान बा
ज्यादा दिन तक चक्कर चलल
१. खून में मिलकर खून के अम्लता बढ़ाई त खून ख़राब होने से रोग से लड़ने की क्षमता ख़त्म
२. पेट की एसिडिटी बढ़ाएगा क्योकि पेट में पहले से ही अम्ल रहता है चाय से वो और अम्लीय होता है तो रोग :- कच्ची डकार, मिचली, पेट दर्द, ज्यादा अगर हुआ तो गैस,कब्ज, गैस के कारन मल बांध, बवासीर, भगन्दर, लास्ट में कैंसर,
३. आँखों पर असर करेगा तो अखो से कम दिखाना, धुधला दिखना, आंखें लाल होना,
और भी बहुत कुछ तो आप क्यों पिटे है
यह उपयोग करें घर में बनाएं जो घर में बनेगा लाभ देगा आप लोगन के
दालचीनी + हल्दी+ सोंठ + तेजपत्ता + तुलसी के पत्ते (सूखे) + पुदीने के पत्ते (सूखे) +इलायची
इन सबको आपस में मिलायिके डिब्बा में रख ला जब चाय पीये के मन करे त चाय के जगह इसे डाले और चीनी के जगह गुड या मिश्री का उपयोग करें
फायदा : शारीर से हानिकारक तत्व बहार निकाली और जवन पुराना रोग रही ओहू के ठीक करी
त बतावा
चाय ठीक बा की अपने ऋषि मुनि के जड़ी बूटी बस हमने के भटकल दिमाग पहले के भारत में पहुच जाय त हम सब स्वस्थ हो सकेली बतावा के के इ इस्तेमाल करी
COURTSEY BY बिहारी का चौपाल
Wednesday, May 8, 2013
रासायनिक दावा कम्पनियां और कमीशन-खोर व उसके दुष्प्रभाव
मौत का खुला व्यापार
हमारे भारत सरकार में एक मंत्रालय है जो परिवार कल्याण एवं स्वास्थ्य मंत्रालय कहलाता है। हमारी भारत सरकार प्रति वर्ष करीब 23700 करोड़ रुपये लोगों के स्वस्थ्य पर खर्च करती है। फिर भी हमारे देश में ये बीमारियाँ बढ़ रही है। आइये कुछ आंकड़ों पर नजर डालते है -
01 आबादी (जनसँख्या) - भारत सरकार के आंकड़े बताते है कि सन 1951 में भारत की आबादी करीब 33 करोड़ थी जो सन 2010 तक 118 करोड़ हो गई।
02 सन 1951 में पूरे भारत में 4780 डॉक्टर थे, जो सन 2010 तक बढ़कर करीब 18,00,000 (18 लाख) हो गए।
03 सन 1947 में भारत में एलोपेथी दवा बनाने वाली कम्पनियाँ करीब 10-12 कंपनिया थी जो आज बढ़कर करीब 20 हजार हो गई है।
04 सन 1951 में पूरे भारत में करीब 70 प्रकार की दवाइयां बिका करती थी और आज ये दवाइयां बढ़कर करीब 84000 (84 हजार) हो गई है।
05 सन 1951 में भारत में बीमार लोगों की संख्या करीब 5 करोड़ थी आज बीमार लोगों की तादाद करीब 100 करोड़ हो गई है।
हमारी भारत सरकार ने पिछले 64 सालों में अस्पताल पर, दवाओ पर, डॉक्टर और नर्सों पर, ट्रेनिंग आदि में सरकार ने जितना खर्च किया उसका 5 गुना यानी करीब 50 लाख करोड़ रूपया खर्च कर चुकी है। आम आदमी जो अपने इलाज के लिए पैसे खर्च करता है वो अलग है। इलाज के नाम पर पिछलें 64 वर्षों में आदमी की खून पासीनें की कमाई का लगभग 50 लाख करोड़ रूपया बर्बाद हुवा। इतनी बड़ी रकम खर्च करने के बाद भी भारत में रोग और बीमारियाँ बढ़ रही है।
01) हमारे देश में आज करीब 5 करोड़ 70 लाख लोग Diabeties (मधुमेह) के मरीज है। (भारत सरकार के आंकड़े बताते है कि करीब 3 करोड़ लोगों को Diabeties (मधुमेह) होने वाली है।
02) हमारे देश में आज करीब 4 करोड़ 80 लाख लोग हृदय रोग की विभिन्न रोगों से ग्रसित है।
03) करीब 8 करोड़ लोग केंसर जैसी खतरनाक बीमारी रोगी है। भारत सरकार के अनुसार 25 लाख लोग हर साल केंसर से मरते है।
04) 12 करोड़ लोगों को आँखों की विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ है।
05) 14 करोड़ लोगों को छाती की बीमारियाँ है।
06) 14 करोड़ लोग गठिया रोग से पीड़ित है।
07) 20 करोड़ लोग उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure) और निम्न रक्तचाप (Low
Blood Pressure ) से पीड़ित है।
08) 27 करोड़ लोगों को हर समय 12 महीने सर्दी, खांसी, झुकाम, कोलेरा, हेजा आदि सामान्य बीमारियाँ लगी ही रहती है।
09) 30 करोड़ भारतीय महिलाएं अनीमिया की शिकार है। एनीमिया यानी शरीर में खून की कमी। महिलाओं में खून की कमी के कारण पैदा होने वाले करीब 56 लाख बच्चे जन्म लेने के पहले साल में ही मर जाते है। यानी पैदा होने के एक साल के अन्दर-अन्दर उनकी मृत्यु हो जाती है। क्यों कि खून की कमी के कारण महिलाओं में दूध प्रयाप्त मात्र में नहीं बन पाता। प्रति वर्ष 70 लाख बच्चे कुपोषण के शिकार होते है। कुपोषण के मायने उनमे खून की कमी, फास्फोरस की कमी, प्रोटीन की कमी, वसा की कमी आदि आदि.......
ऊपर बताये गए सारे आंकड़ों से एक बात साफ तौर पर साबित होती है कि भारत में एलोपेथी का इलाज कारगर नहीं हुवा है। एलोपेथी का इलाज सफल नहीं हो पाया है। इतना पैसा खर्च करने के बाद भी बीमारियाँ कम नहीं हुई बल्कि और बढ़ गई है। यानी हम बीमारी को ठीक करने के लिए जो एलोपेथी दवा खाते है उससे और नई तरह की
बीमारियाँ सामने आने लगी है।
पहले मलेरिया हुवा करता था। मलेरिया को ठीक करने के लिए हमने जिन दवाओ का इस्तेमाल किया उनसे डेंगू, चिकनगुनिया और न जाने क्या क्या नई नई तरह की बिमारियों पैदा हो गई है। किसी जमाने में सरकार दावा करती थी की हमने चिकंपोक्ष (छोटी माता और बड़ी माता) और टी बी जैसी घातक बिमारियों पर विजय प्राप्त कर ली है लेकिन हाल ही में ये बीमारियाँ फिर से अस्तित्व में आ गई है, फिर से लौट आई है। यानी एलोपेथी दवाओं ने बीमारियाँ कम नहीं की और ज्यादा बड़ाई
है।
एक खास बात आपको बतानी है की ये एलोपेथी दवाइयां पहले पूरे संसार में चलती थी जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, जर्मनी, फ्रांस, आदि हमारे देश में ये एलोपेथी इलाज अंग्रेज लाये थे। हम लोगों पर जबरदस्ती अंग्रेजो द्वारा ये इलाज थोपा गया। द्वितीय विश्व युद्ध जब हुवा था तक रसायनों का इस्तेमाल घोला बारूद बनाने में और रासायनिक हथियार बनाने में हुवा करता था। जब द्वितीय विश्वयुध में जापान
पर परमाणु बम गिराया गया तो उसके दुष्प्रभाव को देख कर विश्व के कई प्रमुख देशों में रासायनिक हथियार बनाने वाली कम्पनियाँ को बंद करवा दी गई। बंद होने के कगार पर खड़ी इन कंपनियों ने देखा की अब तो युद्ध खत्म हो गया है। अब इनके हथियार कौन खरीदेगा। तो इनको किसी बाजार की तलाश थी। उस समय सन 1947 में भारत को नई नई आजादी मिली थी और नई नई सरकार बनी थी। यहाँ उनको मौका मिल गया और आप जानते है की हमारे देश को आजाद हुवे एक साल ही गुजरा था की भारत का सबसे पहला घोटाला सन 1948 में हुवा था सेना की लिए जीपे खरीदी जानी थी। उस समय घोटाला हुवा था 80 लाख का। यांनी धीरे धीरे ये दावा कम्पनियां भारत में व्यापार बढाने लगी और इनके व्यापार को बढ़ावा दिया हमारी सरकारों ने। ऐसा इसलिए हुवा क्यों की हमारे नेताओं को इन दावा कंपनियों ने खरीद लिया। हमारे नेता लालच में आ गए और अपना व्यापार धड़ल्ले से शुरू करवा दिया। इसी के चलते जहाँ हमारे देश में सन 1951 में 10 -12 दवा कंपनिया हुवा करती थी वो आज बढ़कर 20000 से ज्यादा हो गई है। 1951 में जहाँ लगभग 70 कुल दवाइयां हुवा करती थी आज की तारीख में ये 84000 से भी ज्यादा है। फिर भी रोग कम नहीं हो रहे है, बीमारियों से पीछा नहीं छूट रहा है।
आखिर सवाल खड़ा होता है कि इतनी सारे जतन करने के बाद भी बीमारियाँ कम क्यों नहीं हो रही है। इसकी गहराई में जाए तो हमे पता लगेगा कि मानव के द्वारा निर्मित ये दवाए किसी भी बीमारी को जड़ से समाप्त नहीं करती बल्कि उसे कुछ समय के लिए रोके रखती है। जब तक दवा का असर रहता है तब तक ठीक, दवा का असर खत्म बीमारियाँ फिर से हावी हो जाती है। दूसरी बात इन दवाओं के साइड एफ्फेक्ट बहुत ज्यादा हैै। यानी एक बीमारी को ठीक करने के लिए दवा खाओ तो एक दूसरी बीमारी पैदा हो जाती है। एलोपैथ में एक भी ऐसी दवा नही बनी हैं जिसका कोई साइड एफ्फेक्ट ना हों।
आपको कुछ उदहारण दे के समझाता हु -
01) Entipiratic बुखार को ठीक करने के लिए हम एन्तिपैरेतिक दवाएं खाते है
जैसे - पेरासिटामोल, आदि द्य बुखार की ऐसी सेकड़ो दवाएं बाजार में बिकती है। ये
एन्तिपिरेटिक दवाएं हमारे गुर्दे खराब करती है। गुर्दा खराब होने का सीधा मतलब है की पेशाब से सम्बंधित कई बीमारियाँ पैदा होना लगाती जैसे पथरी, मधुमेह, और न जाने क्या क्या। एक गुर्दा खराब होता है उसके बदले में नया गुर्दा लगाया जाता है तो ऑपरेशन का खर्चा करीब 3.50 लाख रुपये का होता है।
02 ) Antidirial इसी तरह से हम लोग दस्त की बीमारी में Antidirial दवाए खाते है। ये एन्तिदिरल दवाएं हमारी आँतों में घाव करती है जिससे केंसर, अल्सर, आदि भयंकर बीमारियाँ पैदा होती है।
03) Enaljesic इसी तरह हमें सरदर्द होता है तो हम एनाल्जेसिक दवाए खाते है जैसे एस्प्रिन , डिस्प्रिन , कोल्द्रिन और भी सेकड़ों दवाए है। ये एनाल्जेसिक दवाए हमारे खून को पतला करती है। आप जानते है की खून पतला हो जाये तो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और कोई भी बीमारी आसानी से हमारे ऊपर हमला बोल सकती है।
आप आये दिन अखबारों में या टी वी पर सुना होगा की किसी का एक्सिडेंट हो जाता है तो उसे अस्पताल ले जाते ले जाते रस्ते में ही उसकी मौत हो जाती है द्य समझ में नहीं आता कि अस्पताल ले जाते ले जाते मौत कैसे हो जाती है ? होता क्या है कि जब एक्सिडेंट होता है तो जरा सी चोट से ही खून शरीर से बहार आने लगता है और क्योंकि खून पतला हो जाता है तो खून का थक्का नहीं बनता जिससे खून का बहाव रुकता नहीं है और खून की कमी लगातार होती जाती है और कुछ ही देर में उसकी मौत हो जाती है।
पिछले करीब 30 से 40 सालों में कई सारे देश है जहाँ पे ऊपर बताई गई लगभग सारी दवाएं बंद हो चुकी है। जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, और भी कई देश में जहा ये दवाए न तो बनती और न ही बिकती है। लेकिन हमारे देश में ऐसी दवाएं धड़ल्ले से बन रही है, बिक रही है। इन 84000 दवाओं में अधिकतर तो ऐसी है जिनकी हमारे शरीर को जरुरत ही नहीं है। आपने विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO का नाम सुना होगा। ये दुनिया कि सबसे बड़ी स्वास्थ्य संस्था है। WHO कहता है कि भारत में ज्यादा से ज्यादा केवल 350 दवाओं की आवश्यकता है। अधितम केवल 350 दवाओं की जरुरत है, और हमारे देश में बिक रही है 84000 दवाएं। यानी जिन दवाओं कि जरूरत ही नहीं है वो डॉक्टर हमे खिलते है क्यों कि दवाए जितनी ज्यादा बिकेगी डॉक्टर का कमीशन उतना ही बढेगा।
इसीलिए डॉक्टर इस तरह की दवाए खिलते है। मजेदार बात ये है की डॉक्टर कभी भी इन दवाओं का खुद इस्तेमाल नहीं करता और न अपने बच्चो को खिलाता है। ये सारी दवाएं आम लोगों को खिलाई जाती है। वो ऐसा इसलिए करते है क्यों कि उनको इन दवाओं के साइड एफ्फेक्ट पता होता है। और कोई भी डॉक्टर इन दवाओं के साइड एफ्फेक्ट के बारे में कभी किसी मरीज को नहीं बताता। अगर भूल से पूछ बैठो तो डॉक्टर कहता है कि तुम ज्यादा जानते हो या मैं?
दूसरी और चैकाने वाली बात ये है कि ये दवा कंपनिया बहुत बड़ा कमीशन देती है डॉक्टर को। इसी कारण से डॉक्टर कमीशनखोर हो गए है या यूँ कहे की डॉक्टर दवा कम्पनियों के एजेंट हो गए है तो गलत ना होगा।
आपने एक नाम सुना होगा M.R. यानि मेडिकल Represetative ये नाम अभी हाल ही के कुछ वर्षो से ही अस्तित्व में आया है। ये M.R. नाम का बड़ा विचित्र प्राणी है। ये दवा कम्पनी की कई तरह की दवाएं डॉक्टर के पास ले जाते है और इन दवाओं को बिकवाते है। ये दवा कंपनिया 40 40% तक कमीशन डॉक्टर को सीधे तौर पर देती है। जो बड़े बड़े शहरों में दवा कंपनिया है नकद में डॉक्टर को कमीशन देती है। ऑपरेशन करते है तो उसमे कमीशन खाते है, एक्सरे में कमीशन, विभिन्न प्रकार की जांचे करवाते है डॉक्टर उमने कमीशन। सबमे इनका कमीशन फिक्स रहता है। जिन बिमारियों में जांचों की कोई जरुरत ही नहीं होती उनमे भी डॉक्टर जाँच करवाने के लिए लिख देते है ये जाँच कराओ वो जाँच करो आदि आदि। कई बीमारियाँ ऐसी है जिसमे दवाएं जिंदगी भर खिलाई जाती है। जैसे हाईब्लड प्रेसर या लोब्लड प्रेसर, Dibities (मधुमेह) आदि। यानी जब तक दवा खाओगे आपकी धड़कन चलेगी दवाएं बंद तो धड़कन बंद। जितने भी डॉक्टर है उनमे से 99: डॉक्टर कमीशखोर है। केवल 1: ईमानदार डॉक्टर है जो सही मायने में मरीजो का सही इलाज करते है।
पूरी दुनिया में केवल 2 देश है जहाँ आयुर्वेदिक दवाएं भरपूर मात्र में मिलती है
(1) भारत (2) चीन
Courtsey by aurveda
हमारे भारत सरकार में एक मंत्रालय है जो परिवार कल्याण एवं स्वास्थ्य मंत्रालय कहलाता है। हमारी भारत सरकार प्रति वर्ष करीब 23700 करोड़ रुपये लोगों के स्वस्थ्य पर खर्च करती है। फिर भी हमारे देश में ये बीमारियाँ बढ़ रही है। आइये कुछ आंकड़ों पर नजर डालते है -
01 आबादी (जनसँख्या) - भारत सरकार के आंकड़े बताते है कि सन 1951 में भारत की आबादी करीब 33 करोड़ थी जो सन 2010 तक 118 करोड़ हो गई।
02 सन 1951 में पूरे भारत में 4780 डॉक्टर थे, जो सन 2010 तक बढ़कर करीब 18,00,000 (18 लाख) हो गए।
03 सन 1947 में भारत में एलोपेथी दवा बनाने वाली कम्पनियाँ करीब 10-12 कंपनिया थी जो आज बढ़कर करीब 20 हजार हो गई है।
04 सन 1951 में पूरे भारत में करीब 70 प्रकार की दवाइयां बिका करती थी और आज ये दवाइयां बढ़कर करीब 84000 (84 हजार) हो गई है।
05 सन 1951 में भारत में बीमार लोगों की संख्या करीब 5 करोड़ थी आज बीमार लोगों की तादाद करीब 100 करोड़ हो गई है।
हमारी भारत सरकार ने पिछले 64 सालों में अस्पताल पर, दवाओ पर, डॉक्टर और नर्सों पर, ट्रेनिंग आदि में सरकार ने जितना खर्च किया उसका 5 गुना यानी करीब 50 लाख करोड़ रूपया खर्च कर चुकी है। आम आदमी जो अपने इलाज के लिए पैसे खर्च करता है वो अलग है। इलाज के नाम पर पिछलें 64 वर्षों में आदमी की खून पासीनें की कमाई का लगभग 50 लाख करोड़ रूपया बर्बाद हुवा। इतनी बड़ी रकम खर्च करने के बाद भी भारत में रोग और बीमारियाँ बढ़ रही है।
01) हमारे देश में आज करीब 5 करोड़ 70 लाख लोग Diabeties (मधुमेह) के मरीज है। (भारत सरकार के आंकड़े बताते है कि करीब 3 करोड़ लोगों को Diabeties (मधुमेह) होने वाली है।
02) हमारे देश में आज करीब 4 करोड़ 80 लाख लोग हृदय रोग की विभिन्न रोगों से ग्रसित है।
03) करीब 8 करोड़ लोग केंसर जैसी खतरनाक बीमारी रोगी है। भारत सरकार के अनुसार 25 लाख लोग हर साल केंसर से मरते है।
04) 12 करोड़ लोगों को आँखों की विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ है।
05) 14 करोड़ लोगों को छाती की बीमारियाँ है।
06) 14 करोड़ लोग गठिया रोग से पीड़ित है।
07) 20 करोड़ लोग उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure) और निम्न रक्तचाप (Low
Blood Pressure ) से पीड़ित है।
08) 27 करोड़ लोगों को हर समय 12 महीने सर्दी, खांसी, झुकाम, कोलेरा, हेजा आदि सामान्य बीमारियाँ लगी ही रहती है।
09) 30 करोड़ भारतीय महिलाएं अनीमिया की शिकार है। एनीमिया यानी शरीर में खून की कमी। महिलाओं में खून की कमी के कारण पैदा होने वाले करीब 56 लाख बच्चे जन्म लेने के पहले साल में ही मर जाते है। यानी पैदा होने के एक साल के अन्दर-अन्दर उनकी मृत्यु हो जाती है। क्यों कि खून की कमी के कारण महिलाओं में दूध प्रयाप्त मात्र में नहीं बन पाता। प्रति वर्ष 70 लाख बच्चे कुपोषण के शिकार होते है। कुपोषण के मायने उनमे खून की कमी, फास्फोरस की कमी, प्रोटीन की कमी, वसा की कमी आदि आदि.......
ऊपर बताये गए सारे आंकड़ों से एक बात साफ तौर पर साबित होती है कि भारत में एलोपेथी का इलाज कारगर नहीं हुवा है। एलोपेथी का इलाज सफल नहीं हो पाया है। इतना पैसा खर्च करने के बाद भी बीमारियाँ कम नहीं हुई बल्कि और बढ़ गई है। यानी हम बीमारी को ठीक करने के लिए जो एलोपेथी दवा खाते है उससे और नई तरह की
बीमारियाँ सामने आने लगी है।
पहले मलेरिया हुवा करता था। मलेरिया को ठीक करने के लिए हमने जिन दवाओ का इस्तेमाल किया उनसे डेंगू, चिकनगुनिया और न जाने क्या क्या नई नई तरह की बिमारियों पैदा हो गई है। किसी जमाने में सरकार दावा करती थी की हमने चिकंपोक्ष (छोटी माता और बड़ी माता) और टी बी जैसी घातक बिमारियों पर विजय प्राप्त कर ली है लेकिन हाल ही में ये बीमारियाँ फिर से अस्तित्व में आ गई है, फिर से लौट आई है। यानी एलोपेथी दवाओं ने बीमारियाँ कम नहीं की और ज्यादा बड़ाई
है।
एक खास बात आपको बतानी है की ये एलोपेथी दवाइयां पहले पूरे संसार में चलती थी जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, जर्मनी, फ्रांस, आदि हमारे देश में ये एलोपेथी इलाज अंग्रेज लाये थे। हम लोगों पर जबरदस्ती अंग्रेजो द्वारा ये इलाज थोपा गया। द्वितीय विश्व युद्ध जब हुवा था तक रसायनों का इस्तेमाल घोला बारूद बनाने में और रासायनिक हथियार बनाने में हुवा करता था। जब द्वितीय विश्वयुध में जापान
पर परमाणु बम गिराया गया तो उसके दुष्प्रभाव को देख कर विश्व के कई प्रमुख देशों में रासायनिक हथियार बनाने वाली कम्पनियाँ को बंद करवा दी गई। बंद होने के कगार पर खड़ी इन कंपनियों ने देखा की अब तो युद्ध खत्म हो गया है। अब इनके हथियार कौन खरीदेगा। तो इनको किसी बाजार की तलाश थी। उस समय सन 1947 में भारत को नई नई आजादी मिली थी और नई नई सरकार बनी थी। यहाँ उनको मौका मिल गया और आप जानते है की हमारे देश को आजाद हुवे एक साल ही गुजरा था की भारत का सबसे पहला घोटाला सन 1948 में हुवा था सेना की लिए जीपे खरीदी जानी थी। उस समय घोटाला हुवा था 80 लाख का। यांनी धीरे धीरे ये दावा कम्पनियां भारत में व्यापार बढाने लगी और इनके व्यापार को बढ़ावा दिया हमारी सरकारों ने। ऐसा इसलिए हुवा क्यों की हमारे नेताओं को इन दावा कंपनियों ने खरीद लिया। हमारे नेता लालच में आ गए और अपना व्यापार धड़ल्ले से शुरू करवा दिया। इसी के चलते जहाँ हमारे देश में सन 1951 में 10 -12 दवा कंपनिया हुवा करती थी वो आज बढ़कर 20000 से ज्यादा हो गई है। 1951 में जहाँ लगभग 70 कुल दवाइयां हुवा करती थी आज की तारीख में ये 84000 से भी ज्यादा है। फिर भी रोग कम नहीं हो रहे है, बीमारियों से पीछा नहीं छूट रहा है।
आखिर सवाल खड़ा होता है कि इतनी सारे जतन करने के बाद भी बीमारियाँ कम क्यों नहीं हो रही है। इसकी गहराई में जाए तो हमे पता लगेगा कि मानव के द्वारा निर्मित ये दवाए किसी भी बीमारी को जड़ से समाप्त नहीं करती बल्कि उसे कुछ समय के लिए रोके रखती है। जब तक दवा का असर रहता है तब तक ठीक, दवा का असर खत्म बीमारियाँ फिर से हावी हो जाती है। दूसरी बात इन दवाओं के साइड एफ्फेक्ट बहुत ज्यादा हैै। यानी एक बीमारी को ठीक करने के लिए दवा खाओ तो एक दूसरी बीमारी पैदा हो जाती है। एलोपैथ में एक भी ऐसी दवा नही बनी हैं जिसका कोई साइड एफ्फेक्ट ना हों।
आपको कुछ उदहारण दे के समझाता हु -
01) Entipiratic बुखार को ठीक करने के लिए हम एन्तिपैरेतिक दवाएं खाते है
जैसे - पेरासिटामोल, आदि द्य बुखार की ऐसी सेकड़ो दवाएं बाजार में बिकती है। ये
एन्तिपिरेटिक दवाएं हमारे गुर्दे खराब करती है। गुर्दा खराब होने का सीधा मतलब है की पेशाब से सम्बंधित कई बीमारियाँ पैदा होना लगाती जैसे पथरी, मधुमेह, और न जाने क्या क्या। एक गुर्दा खराब होता है उसके बदले में नया गुर्दा लगाया जाता है तो ऑपरेशन का खर्चा करीब 3.50 लाख रुपये का होता है।
02 ) Antidirial इसी तरह से हम लोग दस्त की बीमारी में Antidirial दवाए खाते है। ये एन्तिदिरल दवाएं हमारी आँतों में घाव करती है जिससे केंसर, अल्सर, आदि भयंकर बीमारियाँ पैदा होती है।
03) Enaljesic इसी तरह हमें सरदर्द होता है तो हम एनाल्जेसिक दवाए खाते है जैसे एस्प्रिन , डिस्प्रिन , कोल्द्रिन और भी सेकड़ों दवाए है। ये एनाल्जेसिक दवाए हमारे खून को पतला करती है। आप जानते है की खून पतला हो जाये तो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और कोई भी बीमारी आसानी से हमारे ऊपर हमला बोल सकती है।
आप आये दिन अखबारों में या टी वी पर सुना होगा की किसी का एक्सिडेंट हो जाता है तो उसे अस्पताल ले जाते ले जाते रस्ते में ही उसकी मौत हो जाती है द्य समझ में नहीं आता कि अस्पताल ले जाते ले जाते मौत कैसे हो जाती है ? होता क्या है कि जब एक्सिडेंट होता है तो जरा सी चोट से ही खून शरीर से बहार आने लगता है और क्योंकि खून पतला हो जाता है तो खून का थक्का नहीं बनता जिससे खून का बहाव रुकता नहीं है और खून की कमी लगातार होती जाती है और कुछ ही देर में उसकी मौत हो जाती है।
पिछले करीब 30 से 40 सालों में कई सारे देश है जहाँ पे ऊपर बताई गई लगभग सारी दवाएं बंद हो चुकी है। जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, और भी कई देश में जहा ये दवाए न तो बनती और न ही बिकती है। लेकिन हमारे देश में ऐसी दवाएं धड़ल्ले से बन रही है, बिक रही है। इन 84000 दवाओं में अधिकतर तो ऐसी है जिनकी हमारे शरीर को जरुरत ही नहीं है। आपने विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO का नाम सुना होगा। ये दुनिया कि सबसे बड़ी स्वास्थ्य संस्था है। WHO कहता है कि भारत में ज्यादा से ज्यादा केवल 350 दवाओं की आवश्यकता है। अधितम केवल 350 दवाओं की जरुरत है, और हमारे देश में बिक रही है 84000 दवाएं। यानी जिन दवाओं कि जरूरत ही नहीं है वो डॉक्टर हमे खिलते है क्यों कि दवाए जितनी ज्यादा बिकेगी डॉक्टर का कमीशन उतना ही बढेगा।
इसीलिए डॉक्टर इस तरह की दवाए खिलते है। मजेदार बात ये है की डॉक्टर कभी भी इन दवाओं का खुद इस्तेमाल नहीं करता और न अपने बच्चो को खिलाता है। ये सारी दवाएं आम लोगों को खिलाई जाती है। वो ऐसा इसलिए करते है क्यों कि उनको इन दवाओं के साइड एफ्फेक्ट पता होता है। और कोई भी डॉक्टर इन दवाओं के साइड एफ्फेक्ट के बारे में कभी किसी मरीज को नहीं बताता। अगर भूल से पूछ बैठो तो डॉक्टर कहता है कि तुम ज्यादा जानते हो या मैं?
दूसरी और चैकाने वाली बात ये है कि ये दवा कंपनिया बहुत बड़ा कमीशन देती है डॉक्टर को। इसी कारण से डॉक्टर कमीशनखोर हो गए है या यूँ कहे की डॉक्टर दवा कम्पनियों के एजेंट हो गए है तो गलत ना होगा।
आपने एक नाम सुना होगा M.R. यानि मेडिकल Represetative ये नाम अभी हाल ही के कुछ वर्षो से ही अस्तित्व में आया है। ये M.R. नाम का बड़ा विचित्र प्राणी है। ये दवा कम्पनी की कई तरह की दवाएं डॉक्टर के पास ले जाते है और इन दवाओं को बिकवाते है। ये दवा कंपनिया 40 40% तक कमीशन डॉक्टर को सीधे तौर पर देती है। जो बड़े बड़े शहरों में दवा कंपनिया है नकद में डॉक्टर को कमीशन देती है। ऑपरेशन करते है तो उसमे कमीशन खाते है, एक्सरे में कमीशन, विभिन्न प्रकार की जांचे करवाते है डॉक्टर उमने कमीशन। सबमे इनका कमीशन फिक्स रहता है। जिन बिमारियों में जांचों की कोई जरुरत ही नहीं होती उनमे भी डॉक्टर जाँच करवाने के लिए लिख देते है ये जाँच कराओ वो जाँच करो आदि आदि। कई बीमारियाँ ऐसी है जिसमे दवाएं जिंदगी भर खिलाई जाती है। जैसे हाईब्लड प्रेसर या लोब्लड प्रेसर, Dibities (मधुमेह) आदि। यानी जब तक दवा खाओगे आपकी धड़कन चलेगी दवाएं बंद तो धड़कन बंद। जितने भी डॉक्टर है उनमे से 99: डॉक्टर कमीशखोर है। केवल 1: ईमानदार डॉक्टर है जो सही मायने में मरीजो का सही इलाज करते है।
पूरी दुनिया में केवल 2 देश है जहाँ आयुर्वेदिक दवाएं भरपूर मात्र में मिलती है
(1) भारत (2) चीन
Courtsey by aurveda
Saturday, May 4, 2013
PAN (PERMANENT ACCOUNT NO.)
PAN is a 10 digit alpha numeric number, where the first 5 characters are letters, the next 4 numbers and the last one a letter again. These 10 characters can bedivided in five parts as can be seen below. The meaning of each number has been explained further.
1. First three characters are alphabetic series running from AAA to ZZZ
2. Fourth character of PAN represents the status of the PAN holder.
• C — Company
• P — Person
• H — HUF(Hindu Undivided Family)
• F — Firm
• A — Association of Persons (AOP)
• T — AOP (Trust)
• B — Body of Individuals (BOI)
• L — Local Authority
• J — Artificial Juridical Person
• G — Government
3. Fifth character represents first character of the PAN holder’s last name/surname.
4. Next four characters are sequential number running from 0001 to 9999.
5. Last character in the PAN is an alphabetic check digit.
Nowadays, the DOI (Date of Issue) of PAN card is mentioned at the right (vertical) hand side of the photo on the PAN card. .........!!!Courtsey by UPSC Quiz
लहसुन
लहसुन में 6 प्रकार के रसों में से 5 रस पाये जाते हैं, केवल अम्ल नामक रस नहीं पाया जाता है।
निम्न रस - मधुर - बीजों में, लवण - नाल के अग्रभाग में, कटु - कन्दों में, तिक्त - पत्तों में, कषाय - नाल में। ""रसोनो बृंहणो वृष्य: स्गिAधोष्ण:पाचर: सर:।"" अर्थात् लहसुन वृहण (सप्तधातुओं को बढ़ाने वाला, वृष्य - वीर्य को बढ़ाने वाला), रस, रक्त, माँस, मेद, अस्थि, म”ाा, शुक्र स्निग्धाकारक, उष्ण प्रकृत्ति वाला, पाचक (भोजन को पचाने वाला) तथा सारक (मल को मलाशय की ओर धकेलने वाला) होता है।
""भग्नसन्धानकृत्"" - टूटी हुई हçड्डयों को जो़डने वाला, कुष्ठ के लिए हितकर, शरीर में बल, वर्ण कारक, मेधा और नेत्र शक्ति वर्धक होता है।
लहसुन सेवन योग्य व्यक्ति के लिए पथ्य - अपथ्य: पथ्य : मद्य, माँस तथा अम्ल रस युक्त भक्ष्य पदार्थ हितकर होते हैं - ""मद्यंमांसं तथाडमल्य्य हितं लसुनसेविनाम्""।
अहितकर : व्यायाम, धूप का सेवन, क्रोध करना, अधिक जल पीना, दूध एवं गु़ड का सेवन निषेध माना गया है।
रासायनिक संगठन : इसके केन्द्रों में एक बादामी रंग का उ़डनशील तेल पाया जाता है, जिसमें प्रधान रूप से Allyl disulphible and Allyl propyldisulphide और अल्प मात्रा में Polysulphides पाये जाते हैं। इन सभी की क्रिया Antibacterial होती है तथा ये एक तीव्र प्रतिजैविक Antibiotics का भी काम करते हैं।
श्वसन संस्थान पर लहसनु के उपयोग:
1. लहसुन के रस की 1 से 2 चम्मच मात्रा दिन में 2-3 बार यक्ष्मा दण्डाणुओं (T.B.) से उत्पन्न सभी विकृत्तियों जैसे - फुफ्फुस विकार, स्वर यन्त्रशोथ में लाभदायक होती है। इससे शोध कम होकर लाभ मिलता है।
2. स्वर यन्त्रशोथ में इसका टिंक्चर 1/2 - 1 ड्राप दिन में 2-3 बार देने पर लाभ होता है।
3. पुराने कफ विकार जैसे - कास, श्वास, स्वरभङग्, (Bronchitis) (Bronchiectasis) एवं श्वासकृच्छता में इसका अवलेह बनाकर उपयोग करने से लाभ होता है।
4. चूंकि लहसुन में जो उ़डनशील तैलीय पदार्थ पाया जाता है, उसका उत्सर्ग त्वचा, फुफ्फुस एवं वृक्क द्वारा होता है, इसी कारण ज्वर में उपयोगी तथा जब इसका उत्सर्ग फुफ्फुसों (श्वास मार्ग) के द्वारा होता है, तो कफ ढ़ीला होता है तथा उसके जीवाणुओं को नाश होकर कफ की दुर्गन्ध दूर हो जाती है।
5.(Gangerene of lungs) तथा खण्डीय (Lobar pneumonia) में इसके टिंक्चर 2-3 बूंद से आरंभ कर धीरे-धीरे बूंदों की मात्रा बढ़ाकर 20 तक ले जाने से लाभ होता है।
6. खण्डीय फुफ्फुस पाक में इसके टिंक्चर की 30 बूंदें हर 4 घण्टे के उपरान्त जल के साथ देने से 48 घण्टे के अन्दर ही लाभ मालूम होता है तथा 5-6 दिन में ज्वर दूर हो जाता है।
7. बच्चों में कूकर खांसी, इसकी कली के रस की 1 चम्मच में सैंधव नमक डालकर देने से दूर होती है। 8. अधिक दिनों तक लगातार चलने वाली खाँसी में इसकी 3-4 कलियों (छोटे टुक़डों) को अग्नि में भूनकर, नमक लगाकर खाने से में लाभ मिलता है।
9. लहसुन की 5-7 कलियों को तेल में भूनें, जब कलियाँ काली हो जाएं, तब तेल को अग्नि पर से उतार कर जिन बच्चों या वृद्ध लोगों को जिनके Pneumoia (निमोनिया) या छाती में कफ जमा हो गया है, उनमें छाती पर लेप करके ऊपर से सेंक करने पर कफ ढीला होकर खाँसी के द्वारा बाहर निकल जाता है।
तंत्रिका संस्थान के रोगों में उपयोग:
1. (Histeria) रोग में दौरा आने पर जब रोगी बेहोश हो जाए, तब इसके रस की 1-2 बूंद नाक में डालें या सुंघाने से रोगी का संज्ञानाश होकर होश आ जाता है।
2. अपस्मार (मिर्गी) रोग में लहसुन की कलियों के चूर्ण की 1 चम्मच मात्रा को सायँकाल में गर्म पानी में भिगोकर भोजन से पूर्व और पश्चात् उपयोग कराने से लाभ होता है। यही प्रक्रिया दिन में 2 बार करनी चाहिए।
3. लहसुन वात रोग नाशक होता है अत: सभी वात विकारों साईटिका (Sciatica), कटिग्रह एवं मन्याग्रह (Lumber & Cirvical spondalitis) और सभी लकवे के रोगियों में लहसुन की 7-9 कलियाँ एवं वायविडगं 3 ग्राम मात्रा को 1 गिलास दूध में, 1 गिलास पानी छानकर पिलाने से सत्वर लाभ मिलता है।
4. सभी वात विकार, कमर दर्द, गर्दन दर्द, लकवा इत्यादि अवस्थाओं में सरसों या तिल्ली के 50 ग्राम तेल में लहसुन 5 ग्राम, अजवाइन 5 ग्राम, सोंठ 5 ग्राम और लौंग 5-7 नग डालकर तब तक उबालें जब ये सभी काले हो जाएं। इन्हें छानकर तेल को काँच के मर्तबान में भर लें व दर्द वाले स्थान पर मालिश करने से पी़डा दूर होती है।
5. जीर्णआमवात, सन्धिशोथ में इसे पीसकर लेप करने से शोथ और पी़डा का नाश होता है।
6. बच्चों के वात विकारों में ऊपर निर्दिष्ट तेल की मालिश विशेष लाभदायक होती है।
पाचन संस्थान में उपयोग:
1. अजीर्ण की अवस्था और जिन्हें भूख नहीं लगती है, उन्हें लहसुन कल्प का उपयोग करवाया जाता है। आरंभ में 2-3 कलियाँ खिलाएं, फिर प्रतिदिन 2-2 कलियाँ बढ़ाते हुए शरीर के शक्तिबल के अनुसार 15 कलियों तक ले जाएं। फिर पुन: घटाते हुए 2-3 कलियों तक लाकर बंद कर कर दें। इस कल्प का उपयोग करने से भूख खुलकर लगती है। आंतों में (Atonic dyspepsia) में शिथिलता दूर होकर पाचक रसों का ठीक से स्राव होकर आंतों की पुर: सरण गति बढ़ती है और रोगी का भोजन पचने लगता है।
2. आंतों के कृमि (Round Worms) में इसके रस की 20-30 बूंदें दूध के साथ देने से कृमियों की वृद्धि रूक जाती है तथा मल के साथ निकलने लगते हैं।
3. वातगुल्म, पेट के अफारे, (Dwodenal ulcer) में इसे पीसकर, कर घी के साथ खिलाने से लाभ होता है।
ज्वर (Fever) रोग में उपयोग:
1. विषम ज्वर (मलेरिया) में इसे (3-5 कलियों को) पीस कर या शहद में मिलाकर कुछ मात्रा में तेल या घी साथ सुबह खाली पेट देने से प्लीहा एवं यकृत वृद्धि में लाभ मिलता है।
2. आंत्रिक ज्वर/मियादी बुखार/मोतीझरा (Typhoid) तथा तन्द्राभज्वर (Tuphues) में इसके टिंक्चर की 8-10 बूंदे शर्बत के साथ 4-6 घण्टे के अन्तराल पर देने से लाभ मिलता है। यदि रोग की प्रारंभिक अवस्था में दे दिया जाये तो ज्वर बढ़ ही नहीं पाता है।
3. इसके टिंक्चर की 5-7 बूंदें शर्बत के साथ (Intestinal antiseptic) औषध का काम करती है। ह्वदय रोग में: 1. ह्वदय रोग की अचूक दवा है।
2. लहसुन में लिपिड (Lipid) को कम करने की क्षमता या Antilipidic प्रभाव होने के कारण कोलेस्ट्रॉल और ट्राईग्लिसराइडस की मात्रा को कम करता है।
3. लहसुन की 3-4 कलियों का प्रतिदिन सेवन करने से कोलेस्ट्रॉल का बढ़ा हुआ लेवल कम होकर ह्वदयघात (Heartattack) की संभावनाओं को कम करता है।
1. लहसुन की तीक्ष्णता को कम करने के लिए इनकी कलियों को शाम को छाछ या दही के पानी में भिगो लें तथा सुबह सेवन करने से इसकी उग्र गन्ध एवं तीक्ष्णता दोनों नष्ट हो जाती हैं।
2. लहसुन की 5 ग्राम मात्रा तथा अर्जुन छाल 3 ग्राम मात्रा को दूध में उबाल कर (क्षीरपाक बनाकर) लेने से मायोकार्डियल इन्फेक्शन ((M.I.) ) तथा उच्चा कॉलेस्ट्रॉल (Hight Lipid Profile) दोनों से बचा जा सकता है।
3. ह्वदय रोग के कारण उदर में गैस भरना, शरीर में सूजन आने पर, लहसुन की कलियों का नियमित सेवन करने से मूत्र की प्रवृत्ति बढ़कर सूजन दूर होता है तथा वायु निकल कर ह्वदय पर दबाव भी कम होता है।
4. (Diptheria) नामक गले के उग्र विकार में इसकी 1-1 कली को चूसने पर विकृत कला दूर होकर रोग में आराम मिलता है, बच्चों को इसके रस (आधा चम्मच) में शहद या शर्बत के साथ देना चाहिए।
5. पशुओं में होने वाले Anthrax रोग में इसे 10-15 ग्राम मात्रा में आभ्यान्तर प्रयोग तथा गले में लेप के रूप में प्रयोग करते हैं।
Note : लहसुन के कारण होने वाले उपद्रवों में हानिनिवारक औषध के रूप में मातीरा, धनियाँ एवं बादाम के तेल में उपयोग में लाते हैं।
Note : गर्भवती स्त्रयों तथा पित्त प्रकृत्ति वाले पुरूषों को लहसुन का अति सेवन निषेध माना गया है।
Collection by aurveda
Subscribe to:
Posts (Atom)