*कार्तिक पूर्णिमा २०२३ का गंगा स्नान का यथार्थ*
*आज संयोग से मैंने कार्तिक पूर्णिमा के दिन पटना से बख़्तियारपुर सुबह ६ बजे गंगा दर्शन के लिए सपत्नीक , बहन संग अतीत मंजर हेतु स्नान आदि से निवृत्त होकर ७ बजे गंगा घाट पहुँचने के बाद घाट भ्रमण एवम दर्शन कर पुनः छठ का ठेकुआ चाय लिट्टी खाने के बाद पटना लौटकर गाय घाट से दीघा घाट तक कई घाटों के गंगा दर्शन के पश्चात दोपहर बाद अटल पथ से पटना निवास पहुँचा ।*
*बचपन के गंगा दर्शन से यह दर्शन मुझे कौतुहल किया ।*
*१९७० के समय में गंगा स्नान में किसानों की ही बाहुल्यता होती थी । घाट पर खिलौने, बांसुरी, औरतों के शृंगार प्रसाधन की वस्तु, लट्ठो, तिलकतरी, दही, गुड, सत्तू, चुरा बिकता था । ढोल, मंदार के साथ औघाड़ का तांडव भय पैदा करता था । गंगा में कल कल ध्वनि के साथ जल प्रवाहित होता था । मंदिर में आने जाने का ताँता लगा रहता था । मुंडन कार्यक्रम के साथ ओझा, भगत का खेल अचंभित करता था ।वैसे मैं स्पष्ट कर दूँ कि बचपन के तीन वर्ष माता पिता और तीन बहनों के साथ मैंने अपने बख़्तियारपुर अवस्थित घर में समय बिताया था ।*
*इस वर्ष के गंगा दर्शन में सिर्फ़ कामगार मज़दूर वह भी पहले की तुलना में बहुत ही कम देखने को मिला । घाट पर दही, गुड, चूड़ा बिकते नहीं देखा और शृंगार प्रसाधन और साँख, लट्ठों, तिलकतरी के इक्का दुक्का ठेले को देखा वहाँ भी बिक्री न के बराबर । गंगा का पानी गंदा रंग के साथ ठहराव लिए था जो चीख चीख़ कर प्रकृति के विलुप्त होने की व्यथा बतला रहा था । सबसे विचित्र बात अल्प भीड़, इक्का दुक्का मुंडन मंजर के साथ कोई ओझा भगत का डांस तांडव का मंजर नहीं था । इस अंधविश्वास का स्वतः विलुप्त होना ग़रीबों में जागरुकता का अहसास करा रहा था जबकि सम्भ्रांत की ऊँगली में रत्न जड़ित अंगूठी भारत के विषैले नाग की सज्जा को सुशोभित कर रहा है ।मंदिर में आंशिक भीड़ कार्तिक पूर्णिमा या गंगा स्नान में ख़त्म होती आस्था का पहचान है या प्रदूषित गंगा का होना । अगर गंगा का प्रदूषण कारण होता तब छठ पर्व में गंगा घाट में भीड़ क्यों बढ़ते जाती! हिंदू के सोशल मिडिया पर ध्वजवाहक का गंगा स्नान में सर्वथा अभाव था । था तो सिर्फ़ गंदे पुराने कपड़े पहने मोटरी गठ्ठर के साथ आये आंशिक BPL सूची वाले लोग ।*
*आज कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान में मेरे जैसे और हिन्दू धर्म के क्षदम सोशल मीडिया के संभ्रांत सिर्फ़ राजनीतिक लवादा ओढ़े अपनी पत्नी पुत्र के साथ गाढ़ी निद्रा में लोगों को जाति धर्म के नाम पर आपस में लड़ाने में लगे थे और वास्तविकता से कोसों दूर रहकर सही सनातन वाहक के शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार से वंचित रखकर पीज़ा, बर्गर, केक, पेस्ट्री, मटन, चिकन, मछली, प्रोन, क्रैब की तैयारी में ऑनलाइन ऑर्डर के लिए मोबाईल से नूरा कुश्ती कर रहे थे ।*