*मानवता, मर्यादा और चरित्र ( सनातन = सदा अनन्त)*
*बहुत हर्ष हुआ । हम विकसित भारत बनायेगें । आजादी के पूर्व के सेनानी की संख्या नभ जल अग्नि धरा में अधिकांश विलीन हो गई । कुछ बचे हैं जो विलीन होने की वाट जोह रहे हैं । स्मृतियाँ धुँधली है थोड़ी बहुत बची है उसे अल्ज़ाइमर्स नामक रोग ने शिथिल कर दिया है ।*
* …पर इतिहास है । इतिहास के भी कई रंग है … जो मौसम की तरह रंग बदलता है । क्या सनातन, सदा अंत न होने का यही बदलाव है जो एक दूसरे को कटुता के भाव से किया जाने लगा है ? क्या मर्यादा, नैतिकता, शालीनता में अमर्यादा, अनैतिकता, नफ़रत की चादर ओढ़ ली है । इसे ही सनातनी बदलाव कहते हैं ।*
*माफ़ करना मित्रों मुझे तो ऐसा दिखता या लगता है कि मैं अब हम नहीं हो सकता है । यह अंतर हम का मैं में बदलाव के कारण हुआ है ।*
*लगा था नया इंडिया न बाबा न …. भारत का नया संसद कई मायनों में अच्छा क्या उत्तम न …न श्रेष्ठ होगा । मानो हम लोकतंत्र संविधान से ऊपर हो गये हैं ! *
*बदलते भारत के नए नूतन विराट भवन में अशोक स्तंभ के स्थान पर सेंगोल ने जगह बना डाली ।मैंने सेंगोल को पहली बार नाम सुना था । हो सकता है, मेरा इतिहास का सामान्य ज्ञान बहुत कम हो , पर मुझे आशा है कि आप यह जरुर जान रहे होंगें कि सेंगोल प्रतीक का साम्राज्य अशोक स्तम्भ प्रतीक से कई गुणा अधिक होगा । वैसे तो अशोक स्तम्भ दक्षिण भारत के थोड़े बहुत क्षेत्र को छोड़कर वर्मा, भूटान, नेपाल से हिन्दूकुश पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान तक फैला हुआ था । आधुनिक भारत के नाम से पहला बदलाव सेंगोल के साम्राज्य की संरचना ने कर डाली *।
*नये भारत के नये संसद में भले प्रथम कार्यदिवस स्थानांतरण के समय प्रथम आदिवासी वंचित विधवा महिला राष्ट्रपति का प्रवेश नहीं हुआ पर यह कार्य एक विशेष सत्र के आमंत्रण से आनन फ़ानन में हिन्दी के भादो माह में विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के लोकतंत्र के प्रतीक प्रधानमंत्री के अभिभाषण (आख्यान) से प्रारंभ हुआ ।*
*भाषण आपसी सद्भाव , भाईचारा, संसदीय मर्यादा, आचरण, नैतिकता बनाए रखने के बदलाव ने मन मश्तिष्क पर ऐसा प्रभाव डाला कि भारत सचमुच में बदल गया । संसदीय इतिहास में आधी आबादी उपेक्षित जनसंख्या के विल से भी सम्बन्धित था जो अचम्भित कर रहा था कि भले किसी कारणवश प्रधानमंत्री अपनी धर्मपत्नी का कई चुनावी हलफ़नामों में नाम न अंकित किया हो पर नारी शक्ति की कीड़ा उन्हें उद्विग्न कर रहा है ।*
*पर मुझे पुरुषों की मानसिकता पर संदेह रहता है कि क्या हम पुरुष नारी सशक्तिकरण में विश्वास रखते हैं भी क्या ? या ख़ाली दिखावटीपन ! संदेह मेरा उसी समय जड़वत हो गया; जब प्रथम महिला आदिवासी राष्ट्रपति का विशेष सत्र हेतु नये भवन में आगमन नहीं हुआ । मुझे सनातन में हो रहे बदलाव ने अचंभित कर रखा था पर यह भी जानता था कि सनातन में नारी शक्ति की ईश्वर के रुप में सर्वप्रथम आराधना पूजा होती है पर भौतिक रुप में अब तक उसे मौलिक रूप में अधिकार से वंचित किए जाने के सारे नियम विद्यमान हैं । मैं सोंच में था कि मुझमें भी वास्तविक रुप में कई बदलाव करने पड़ेंगें ।*
*ऐसा महसूस हो रहा था कि अब मुझे सही सनातन का ज्ञान हुआ है । बदलाव ! ….भादो माह में विशेष सत्र ! …..विशेष सत्र की कार्यमंत्रना में गोपनीयता ! …..हिंदू प्रथम महिला आदिवासी राष्ट्रपति का नये सत्र के नये भारत के नये संसद भवन में प्रथम दिवस पर आगमन का न होना ! …. प्रधानमंत्री जिसकी पत्नी होते हुए महिला के रुप में भी निर्वासित रहने पर महिला सशक्तिकरण आरक्षण विल पर चर्चा !*
*अंत में विल दोनों सदनों में लगभग सर्वसम्मति से पारित हो गया परन्तु लागु कब होगा …. धरातल पर कब उतरेगा उसमें दो कील है । प्रथम परिसीमन और दूसरा सेन्सस अर्थात वर्तमान “क्या १० वर्षों में भी राधा को न तो नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी” । जय हो सनातनी बदलाव !*
*अरे भाई ! यह क्या हो गया सनातनी प्रवर्तक के नेता बदलाव में इतिहास बनाये जाने के उद्देश्य से आज तक संसदीय इतिहास में जो नहीं हुआ बिदुरी जी ने संसद में ही ऐसा ही सदाचार, ज्ञान, आचरण, नैतिकता, मर्यादा रुपी ओज से ओतप्रोत आख्यान दिया कि हर्षवर्धन और रविशंकर सरीखे भूतपूर्व मंत्रियों ने मंद मंद मुस्कान से अपनी सहमति भी दे दी । जिस पर सदन के अध्यक्ष भी गौर से सुने।*
*सनातन बदलाव का प्रतीक …. यह है नयी मर्यादा! नई संस्कृति! नया सेंगोल! नया संसद! नया बिल!*