बिहारी मगही में विलुप्त होते शब्दों के प्रस्तुति का एक तुच्छ प्रायस
कोठरी के ओसारा के ताखा पर ढिबरी बरते देखलूह । दालान, चूल्हानी, दूध आऊँटी घर कहाँ होब हई और राम राम के बेरा में किरिंग फ़ुटे से पहले डोल डाल के बाद दतमन से मुँह धोके या बसिये मुँह दोसर दुहारी के ओसरा में तातल तातल चाह पीलू ह ।मुँह जूठा कईले बिन ब्रह्म बाबा के गोड़ लगलहू ह । ढेलवा गोसाईं पर स्कुल जाय के बेर में एक ढेला रोज़ रखहल्हू ! डीह केकरा कहल जा हई । साँझ मयीया या उत्तर तरफ हाथ उठा के किरिया खयीलुह । पीलुआही, बीहुनाठी, मँगजरऊनी, भुईयाँ, भुसुल्ला, बढ़नी, पीरदायीं, तसला, बटलोही, बरगुना केकरा के कहल जा हई । लबर लबर बोले के लूर हो का । हुमच के खटिया पर चेथरी तीतल अंगा पहन के बैठल पर डांटलगेल हल कि बच गेलहू हल ।ओरचनी तरफ़ मुड़ी राहतयी की पैर? केकरो हऊँकल्हू ह कि तू ही हऊँकागेलहु ह । भोथर आमदी और भोथर औज़ार देखल्हू ह की न देखलह । केकरो गर्दा उड़ाते या अपने केकरो हऊंके है और फिर कूटइलह ; ईं भुने भुने न बताहू, किरीया खाए पड़तो । तू बहुत भीतरघुनिया हू जी एकरे चलते तो नीमन तरी से थूरा जाह । बनातरीके आजहनोग ला हमरा बढ़िया तरी से तू नहिये समझलूह । तरकारी खाये से मुँह परपरयीलो ह ? घूँट घूँट पीह न कि गटर गटर । अरे मरदे छाँक लगा के मत पी हो ! एतना गरम हऊ कि तेतरा या सेंका जयितऊ । भकूआ के काहे घूरहें अलबलाल नीयर ? हदसल लगहो ।सवलबा पूछे पर अलवलाहीं हो तब तो परीक्षवा में ख़ाली टीप होतहू । कने बरीअरी ठोकलहू ह । आज अघा के ख़ायीलूँह । बसियाल औराल भात कहीं तरकारी साथे कोई खा हई । अरे गींज मथ मत ।भोथर पिरदायीं जेकरा से रामतोरयी न कटहयी ओकरा से कपड़ा में चीरा या सुतरी कटतई । इम साल एकदम सुतार हई न तो परसाल नियर रहत हल त दमे निकल जयितहोत ।बरियारी मत करहीं । एकदम अघालहू । बकलोल के फेर में मत रह न तो ठेहुना घीस जयीतो, फिन फूटे में देरो न लगतो । केहुनिओ मत न त खीस बरतउ तब केकरो पछाड़ देबऊ । लफ़ूअन सब के घूरे के बेमारी रह हई, एकरे में दू तबडाक़ लग जयितयी न त एकदम निशे फट जईतयी । सीक चकरी,घिरनी, डोल पत्ता, चीक्का…. से पैर में विवायी फटलो ह ? मिज़ाज गरम होलो न त हम केकरो न छोड़वो । हट मरदे! बिना मूँछ के मरदनवा ज़्यादा मटकी मारहो जी । छिनरा नियर लगहो ! सेखारी, अमनीया जानहू कि उलट पुलट करदेभू त मायीया छोलनी से दाग देथून । लंठई करबहू न तब फँसबहू न त घरे लोटा लोटा के थूरईब । अहरी, गहड़ी में मछली मारव न कि बँशी लेके या कादो में से मछरी मारते देखे में बड़ी नीमन लगहयी आऊ मजो अयीतो । होरहा, अलंग, डीह, राहर रेंडी के ख़ेत के बाते कुछ और रहहयी । बग़ीचवा में टिकोलवा चोरावे के और लटायीन से तिलंगी या गुड्डी बू कट्टा करे में बड़ी मजा आयीतो । माटरसाहब भुने भुने छऊँडी से बुरी बुरी बात करे पर सिट्टी तोड़ देलथीन और फिर छऊँड़ा के रेगनी के काँटा पर सुता के हाऊँक देलथीन ।
*नालिन कुमार सिन्हा*