Saturday, April 20, 2019

राजनीति की मजबूरी

राजनीति की मजबूरी

राजनीति एक चौसर का खेल है चाहे राजतंत्र हो या लोकशाही या अराजकशाही ।

कुछ लोग भ्रम पाल रखे हैं कि लोकशाही में चौसर का खेल नहीं खेला जाता है और टकटकी लगाए बैठे इस उम्मीद में है कि लोकशाही में हम कामयाब होंगे ।

कुछ लोग यह भी मान बैठे हैं कि फ़लाँ व्यक्ति लोकशाही के लिए एक ईमानदार, आदर्श, देशभक्त, सर्वकालिक महान जन नेता है ।

मैं मान चुका हूँ कि राजनीति और कूटनीति में चोली दामन का सम्बंध है । इसे मजबूरी कह सकते हैं अर्थात मजबूरी की राजनीति ।

पर मेरी समझ से आजकल राजनीति के लिए सत्ता प्राप्त करने के लिए राजनीति की मजबूरी बन गयी है । राजनीति की इस मजबूरी में लोकशाही, संस्था, न्याय, विकास, देशभक्ति, राष्ट्रीयता, बेरोजगारी, गरीबी सभी  इस प्रकार के शब्दों का मायने हर कोई अपने हिसाब से गढ़ना शुरु कर देता है ।

कोई व्यक्ति कभी भी देश हो सकता है क्या ? कितना ही महान कोई एक व्यक्ति क्यों न हो जाये वह देश या उससे राष्ट्रीय मूल्य या राष्ट्र की पहचान नहीं होती है ।
राष्ट्र की पहचान नागरिकों की संस्कृति, सभ्यता, रहन सहन, रीति रिवाज, धर्म, पूजा पद्धति आदि के साथ साथ विभिन्न संस्थानों के मूल्य, न्यायिक प्रणाली, प्रशासनिक निर्णय आदि की संवैधानिक निष्पक्षता पर निर्भर करती है ।

हर कोई राजनीति की इस मजबूरी में अपने लिए एक व्यक्ति को प्रतीक  मानकर लोकशाही में भगवान मान लेता है । पर प्रश्न है कि देश की कोई तो संस्कृति होगी, कोई तो एक चीज़ देश के लिए आदर्श होगा जिससे प्रतीक माना जायेगा ।

वर्तमान में कई गांधी तक को आलोचना करते नहीं थकता है । आलोचना तो छोड़िए अपशव्दों की भी एक सीमा होती है , सरेआम सार्वजनिक रुप में शव्दों का प्रयोग करना शुरू हो गया है । हम अपने को श्रेष्ठ समझ बैठे हैं और कोई भी फैसला लेकर थोप देते हैं और दल के भीतर कोई अन्य को कोई की अभिव्यक्ति तो दूर परिचर्चा करना भी मुनासिब नहीं समझते हैं । निर्णय सुनाने वालों का अनुयायी इस लोकशाही में तरह तरह के तर्क-कुतर्क से अपने अराध्यस्वरूप नेता को सत्य प्रमाणित कराने में सारी ऊर्जा लगाते जाता है ।

कोई व्यक्ति कभी भी देश हो सकता है क्या ? कितना ही महान कोई एक व्यक्ति क्यों न हो जाये वह देश या उससे राष्ट्रीय मूल्य या राष्ट्र की पहचान नहीं होती है ।
राष्ट्र की पहचान नागरिकों की संस्कृति, सभ्यता, रहन सहन, रीति रिवाज, धर्म, पूजा पद्धति आदि के साथ साथ विभिन्न संस्थानों के मूल्य, न्यायिक प्रणाली, प्रशासनिक निर्णय आदि की संवैधानिक निष्पक्षता पर निर्भर करती है ।

इस प्रकार की राजनीति, जिसमें राजनीति की मजबूरी बन गयी है, जिसमे राष्ट्र को आनेवाले समय में कुछ भी अवशेष बचाना मुश्किल हो जाएगा, के लिए सिर्फ राजनेता ही दोषी नहीं है बल्कि हम भी इस धर्मयुद्द में कौरवों का पक्ष के लिए बराबर का दोषी हैं ।

Wednesday, April 10, 2019

भारतीय जीवन पद्धति के वैज्ञानिक दृष्टिकोण

हिंदू धर्म की इन 10 खास परंपराओं को तो विज्ञान भी करता है सलाम !

हमारे देश में जितनी विविधता देखने को मिलती है उतनी ही खास है यहां की अलग-अलग संस्कृति और परंपराएं. जी हां, हिंदू धर्म में कई ऐसी परंपराएं है जिनका पालन सदियों से होता आ रहा है.

हिंदू धर्म की परंपराओं का पालन करते हुए आज भी लोग अपने से बड़ों के पैर छूते हैं और शादीशुदा महिलाएं आज भी अपने मांग में सिंदूर जरूर लगाती हैं. इन परंपराओं के पीछे वैज्ञानिक तर्क भी मौजूद है.

चलिए हम आपको हिंदू धर्म की 10 ऐसी परंपराओं के बारे में बताते हैं जिनके पीछे छुपे तर्क को विज्ञान भी सलाम करता है.



1- पैर छूना

हिंदू धर्म की परंपराओं में अपने से बड़ों के पैर छूना भी शामिल है.

आज के इस आधुनिक युग में भी अधिकांश लोग अपने से बड़ों से मिलने पर उनके चरण स्पर्श करते हैं. इस परंपरा को विज्ञान भी सलाम करता है क्योंकि चरण स्पर्श करने से दिमाग से निकलनेवाली एनर्जी हाथों और सामने वाले पैरों से होते हुए एक चक्र पूरा करती है.

 2- नमस्ते करना

जब भी हम किसी से मिलते हैं अपने हाथ जोड़कर उसे नमस्ते जरूर करते हैं. नमस्ते करने के लिए जब हम हाथ जोड़ते हैं तो हमारी उंगलियां एक-दूसरे को स्पर्श करती हैं जिससे पैदा होनेवाले एक्यूप्रेशर से हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

इसके अलावा हाथ मिलाने की जगह नमस्ते करने से हम सामने वाले व्यक्ति के संपर्क में नहीं आते हैं, जिसकी वजह से उसके हाथों के बैक्टीरिया हमारे संपर्क में नहीं आते हैं.

 3- मांग भरना

शादीशुदा महिलाएं अपने मांग में सिंदूर भरती हैं और इस परंपरा के पीछे भी वैज्ञानिक तर्क छुपा हुआ है. बताया जाता है कि सिंदूर में हल्दी,चूना और मरकरी होता है जो शरीर के ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करता है. सिंदूर महिलाओं में यौन उत्तेजना बढ़ाता है जिसके चलते विधवा औरतों के सिंदूर लगाने पर पाबंदी होती है.

4- तिलक लगाना

किसी भी मांगलिक कार्य के दौरान महिलाएं और पुरुष अपने माथे पर तिलक लगाते हैं. इसके पीछे वैज्ञानिक मान्यता है कि कुमकुम या तिलक लगाने से हमारी आंखों के बीच माथे तक जानेवाली नस में एनर्जी बनी रहती है. तिलक लगाने से चेहरे की कोशिकाओं में ब्लड सर्कुलेशन बना रहता है.

 5- जमीन पर बैठकर खाना

आज भी अधिकांश घरों में लोग अपने परिवार के सदस्यों के साथ जमीन पर बैठकर खाना खाते हैं. जमीन पर पालथी मारकर बैठने को एक योग आसन माना गया है. इस आसन में बैठकर खाने से दिमाग शांत रहता है और पाचन क्रिया दुरुस्त होती है.

6- कान छिदवाना

कान छिदवाना भारतीय परंपराओं में शामिल है. सदियो पुरानी इस परंपरा के पीछे जो तर्क बताया गया है उसके मुताबिक कान छिदवाने से इंसान की सोचने की शक्ति बढ़ती है. वैज्ञानिक तर्क के अनुसार कान छिदवाने से बोली अच्छी होती है और कानों से होकर दिमाग तक जानेवाली नस में ब्लड सर्कुलेशन बना रहता है.

7- सिर पर चोटी

हिंदू धर्म में आज भी अधिकांश ब्राह्मण अपने सिर पर शिखा रखते हैं. इस शिखा के बारे में कहा जाता है कि सिर पर जिस जगह पर चोटी रखी जाती है उस जगह पर दिमाग की सारी नसें आकर मिलती हैं. जो एकाग्रता बढ़ाने, गुस्से को कंट्रोल करने और सोचने की शक्ति को बढ़ाने में मदद करती हैं.

 8- उपवास रखना

हिंदू धर्म में उपवास रखने की परंपरा बहुत पुरानी है. आयुर्वेद के अनुसार व्रत से पाचन क्रिया अच्छी होती है. एक रिसर्च के अनुसार व्रत रखने से कैंसर का खतरा भी कम होता है. इसके साथ ही दिल की बीमारियां और डायबिटीज जैसी बीमारियों का खतरा कम होता है.

9- तुलसी की पूजा

आज भी अधिकांश घरों में तुलसी का पौधा लगाकर उसकी पूजा की जाती है. वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार तुलसी का पौधा इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने में मदद करता है. यह एक आयुर्वेदिक औषधि भी है जिसका इस्तेमाल कई बीमारियों के इलाज में किया जाता है.

10- मूर्ति की पूजा

हिंदू धर्म में लोग देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए मूर्ति पूजा करते हैं. मूर्ति पूजा के पीछे छुपे वैज्ञानिक तर्क के अनुसार मूर्ति दिमाग को एक जगह पर स्थिर रखने में मदद करती है.

गौरतलब है कि हिंदू धर्म में इन परंपराओं को काफी महत्व दिया गया है जिसका लोग सदियों से पालन करते आ रहे हैं और विज्ञान भी इन परंपराओं के आगे नतमस्तक है.