Monday, November 12, 2018

हिन्दू - धर्म - परम्परा

हिन्दू - धर्म -  परम्परा

हिंदुस्तान में सभी धर्मों के प्रचलन को गंगा यमुना तहज़ीब या हिन्दुत्व या बिभिन्न पंथ सम्प्रदाय, धर्म, संस्कार , संस्कृति के रुप में माना जा सकता है ।

सनातन धर्म की कोंख से हिंदुस्तान में मूल हिन्दू धर्म की उतपत्ति है जिसके आरम्भिक दौर में सभी पद्वति उस कालखंड, समय की आवश्यकतानुसार ज्ञान अर्थात वैज्ञानिक सोंच और प्रकृति पर आधारित था ।

किसी भी पद्धति में परम्पराओं के बार बार दुहराए जाने पर उसमें विसंगतियों का आना स्वाभाविक है । यही विसंगति समय के कालचक्र के साथ सनातन धर्म पर आधरित हिन्दू धर्म में भी हुआ । फलतः इस धर्म की जातिगत वर्ण व्यवस्था और परम्पराओं में जड़ता (जो समय के अनुसार ज्ञान , वैज्ञानिक सोंच) के कारण बौद्ध और जैन धर्म का उद्भव हुआ ।

बौद्ध धर्म और जैन धर्म समयानुसार अधिक वैज्ञानिक सोंच पर आधारित होने के कारण इन धर्मो को तीव्र गति से विकास हुआ ।परन्तु कालचक्र और परम्परा के कारण कुछ समय के पश्चात यह भी अपने मूलभूत सिद्धांत से भटक गया । नतीजा हिन्दुस्तान में बौद्ध और जैन धर्म के मानने वाले लोगों में कमी आयी और भारत में अनेक प्रकार के धर्म , पंथ, सम्प्रदाय का प्रचलन इन धर्मो की विसंगतियों , अंधविश्वास, वैज्ञानिक सोंच में परिवर्तन के कारण हुआ ।

आज भी भारतवर्ष में प्रचलित अनेक धर्म , सम्प्रदाय, पंथ में परम्परा, संस्कृति, तहज़ीब, तमीज़, अंधविश्वास, रुढ़िवादिता, ढकोसला, पहनावा, खान पीन आदि वर्तमान सोंच, ज्ञान, विज्ञान पर आधारित नहीं रहने के कारण प्रायः सभी धर्मों , पंथों, संप्रदायों में विसंगतियाँ आने से इनमे जड़ता आ गयी है जिसमें उत्तरोत्तर सुधार आवश्यक हो गया है  ।

एक खास तथ्य सनातन से गंगा यमुना तहज़ीब तक हिंदुस्तान की मिट्टी में एक खासियत है कि यहाँ पर फलने फूलने वाला धर्म अपनी विसंगतियों का निराकरण सदैव आधुनिक ज्ञान से करता आया है । आशा है पुनः आज का भारत ऐसा करने में सक्षम साबित होगा अन्यथा अपनी प्रासंगिकता खो देगा ।