Saturday, December 12, 2015

माँ मुंडेश्वरी (भवानी मंदिर) कैमूर , भभुआ, बिहार

मुण्डेश्वरी भवानी मंदिर-एक संक्षिप्त परिचय

ऐतिहासिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक विशिष्टता के लिए विख्यात मुण्डेश्वरी शक्तिपीठ देश की प्रागैतिहासिक धरोहर है। मंदिर परिसर से प्राप्त शिलालेख (108) ई0 एवं चतुर्दिक बिखरे पुरावशेषों के आधार पर यह निर्विवाद रुप से प्रमाणित हो चुका है कि यह देश का प्राचीनतम हिन्दू मंदिर है। जहाँ दो हजार वर्षों से पूजन की प्रक्रिया लगातार जारी है।

ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी द्वारा कराये गये सर्वेक्षण के दौरान सन् 1891-92 ई0 में यहाँ से प्राप्त एक शिलालेख खण्ड ने सर्वप्रथम मंदिर की ओर इतिहासकारों का ध्यान आकृष्ट किया। शिलालेख का दूसरा खण्ड सन् 1902 ई0 में प्राप्त हुआ जिस पर शिलालेख की तिथि खुदी है। शिलालेख के दोनों खण्डों को जोड़ने पर संस्कृत भाषा और ब्राहमी लिपि में उत्र्कीण 18 पंक्तियाँ मिलीं। शिलालेख का वाचन प्रसिद्ध इतिहासकार आ0डी0 बनर्जी एवं एन0जी0 मजूमदार द्वारा किया गया। जिससे पता चला कि यहाँ नारायणदेवकुल (विष्णु) के मंदिर का एक समूह था। उस समय महाराज उदयसेन का शासन था। दण्डनायक गोमीभट्ट ने कुलपति भागुदलन की आज्ञा से विनितेश्वर मठ का निर्माण कराया। विभिन्न विद्धानों द्वारा शिलालेख की तिथि 635-36 ई0 से 350 ई0 तक बतायी गयी किन्तु वर्ष 2003 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा मंदिर परिसर से महान श्रीलंकाई सम्राट महाराजु दुतिगामिनी (101-77 ईसा पूर्व) की राजमुद्रा प्राप्त करने के बाद स्थिति बदल गयी। बिहार राज्य धार्मिक न्यास पर्षद द्वारा 2008 ई0 में पटना में देश भर के इतिहासकारों एवं पुरातत्वविदों का सम्मेलन कराया गया। जिन्होनें गहन शोध एवं विमर्श के बाद शिलालेख की तिथि 108 ई0 निर्धारित की। उन्होनें यह भी घोषित किया कि मुण्डेश्वरी भवानी मंदिर देश का प्राचीनतम हिन्दू मंदिर है। वर्तमान में मुण्डेश्वरी शिलालेख नेशनल म्यूजियम कोलकाता में संरक्षित है।

प्राकृतिक परिवेश

बिहार प्रदेश के कैमूर जिलान्तर्गत भगवानपुर प्रखण्ड में 182.8 मीटर उँची प्रवरा पहाड़ी के शिखर पर मुण्डेश्वरी भवानी का मनोहारी मंदिर स्थित है। शिखर से देखने पर दक्षिण तथा पश्चिम में कैमूर पहाड़ी श्रृंखला लता- गुल्मों से पूरित, वन्य पुष्पों से अलंकृत एवं शीतल सुगंधित वायु के झोकों से प्रकंपित अपनी दूरस्थ बाहें फैलाये देवी के चरणों में सर्वस्व समर्पण के भाव में प्रतिश्रुत दिखायी देती है। वहीं उत्तर और पूर्व के खुले मैदानों में नहरों की पंक्तियाँ, लहलहाती हरी -सुनहली फसल,ें सुरभित आम्रकुंज, बगीचे एवं कूप श्रद्धालुओं पर्यटकों की सारी थकान दूर कर उन्हें तृप्त कर देते हैं। लगता है प्रकृति ने पूरे मनोयोग से जगद्जननी के लिए इस अप्रतिम परिवेश की रचना की है।

बगल की पहाडि़यों में स्थित तेल्हाड़ कुंड, करकटगढ़ आदि जल प्रपात (झरने), अद्भुत जंगल, वन्य-पशु पक्षी एवं तमाम रमणीय प्राकृतिक सुषमा से परिपूर्ण स्थल हैं, जिनका भ्रमण एवं दर्शन अलौकिक आनंद से भर देता है।

धार्मिक न्यास पर्षद द्वारा धाम परिसर में एक सुसज्जित उपवन (पार्क) लाल पत्थरों वाला अतिथि गृह, धर्मशाला, पुष्करणी (तालाब) सहित स्तरीय पर्यटक सुविधाएँ उपलब्ध करायी गयी हैं। प्रबन्ध समिति श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों की सेवा में सदैव तत्पर रहती है।

अहिंसक/रक्तहीन बलि

मुण्डेश्वरी भवानी सात्विक श्रद्धा का पुंज हैं। जगद्जननी की ऐसा वात्सल्यपूर्ण मूर्ति अन्यत्र कहीं नहीं है। इस बात का प्रमाण यहाँ संपन्न होने वाली अनूठी बलि प्रक्रिया है। अनेक लोग इसे आश्चर्यपूर्ण एवं रहस्यात्मक भी मानते हैं। बलि के लिए माँ की मूर्ति के समक्ष लाए गए बकरे पर पुजारी मंत्रपूत अक्षत-पुष्प छिड़कते हैं और बकरा बेहोश सा होकर शांत पड़ जाता है। पुनः पुजारी द्वारा अक्षत पुष्प छिड़कते हीं जागृत होकर बकरा डगमगाते कदमों से स्वयं मुख्य द्वार से बाहर चला जाता है। इस प्रकार रक्तहीन बलि संपूर्ण होती है। सचमुच यहाँ जगद्माता साक्षात विराजती हैं तभी तो अपनी संतान का वध नहीं चाहती बल्कि उसके सर्वस्व समर्पण से पुलकित होकर चिरजीवन का वरदान देती हंै। ब्रहमांड नियंता एवं सर्जक मातृशक्ति के इस अपूर्व विग्रह के दर्शन मात्र से हीं मनुष्य के सारे कष्ट समाप्त हो जाते हैं और उसे दीर्घ जीवन प्राप्त होता है।

रंग बदलता शिवलिंग

मुण्डेश्वरी भवानी मंदिर के गर्भगृह के मध्य में स्थित काले पत्थर का पंचमुखी शिव लिंग भी अत्यंत प्रभावकारी एवं अद्वितीय है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार यह सुबह, दोपहर एवं शाम को सूर्य की स्थिति परिवर्तन के साथ विभिन्न आभाओं में दिखायी देता है। यह अनंत जागृत शिव लिंग इस स्थान की रहस्यात्मकता एवं पारलौकिक प्रभाव का अद्भुत नमूना है।

                                                                                                                                           

श्री यन्त्र के स्वरुप में निर्मित

माँ मुण्डेश्वरी का मंदिर पूर्णतः श्री यन्त्र पर निर्मित है। इसके अष्टकोणीय आधार एवं चतुर्दिक अवस्थित भग्नावशेषों के पुरातात्विक अध्ययन के पश्चात् यह तथ्य प्रमाणित हो चुका है। प्राचीन भारतीय वास्तु शिल्प की चरम उपलब्धि है- श्री यन्त्र। श्री यन्त्र पर निर्मित मंदिर अष्टकोणीय आधार पर स्थित त्रिविमीय(Three Dimensional) होता है। जो मुण्डेश्वरी मंदिर के देखने से स्पष्ट है। धार्मिक आध्यात्मिक दृष्टिकोण से श्री यन्त्र आधारित मंदिर में अष्ट सिद्धियाँ तथा संपूर्ण देवी देवता विराजमान होते हैं। इस मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करते हीं व्यक्ति तनाव, थकान तथा विभिन्न मनोविकारों से तत्काल मुक्ति प्राप्त करता है। चित शांत एवं एकाग्र हो जाता है। शास्त्रों में उल्लिखित है कि श्री यन्त्र के प्रभाव से मनुष्य के सारे दुखः समाप्त हो जाते हंै एवं उसे सुख, समृद्धि, आरोग्य एवं दीर्घ जीवन प्राप्त होता है। साधकों के लिए यह स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है जहाँ आसनस्थ होने पर ध्यान तत्काल ईष्ट की ओर उन्मुख होता है और यहाँ स्थित विशिष्ट उर्जा उन्हें विभिन्न बाधाओं से मुक्त कर शीघ्र वांछित फल प्रदान करती है। यही कारण है कि नवरात्र काल ,श्रावण एवं माघ महीनों में लाखों श्रद्धालुओं के साथ-साथ सैंकड़ों साधक देश के विभिन्न क्षेत्रों से यहाँ साधना हेतु पहँुचते हंै। श्री यंत्र पर निर्मित मुण्डेश्वरी मंदिर पहुँचकर कोई व्यक्ति इस विशिष्ट प्रभाव को सहजता से अनुभव कर सकता है।

तांत्रिक महत्व

प्राचीन मनीषी तथा आधुनिक वैज्ञानिक भी यह मानते हैं कि प्रत्येक भूखण्ड (स्थान) की एक विशिष्ट चुम्बकीय शक्ति होती है। इसी शक्ति के अनुपात से वास्तुशास्त्री किसी भूखण्ड की विशिष्ट अवस्थाओं का निरुपण एवं निर्धारण करते हैं। इसी शक्ति से संपन्न वारामूला त्रिकोण आज भी विज्ञान के लिए एक रहस्य बना हुआ है। प्रवरा पहाड़ी के उपर स्थित श्री यन्त्र पर निर्मित मुण्डेश्वरी भवानी मंदिर भी अपनी अनंत उर्जा प्रवाहिनी शक्ति के कारण श्रद्धालुओं एवं साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। अधोमुख त्रिकोणीय प्रवरा पहाड़ी पर स्थित अष्टकोणीय आधार वाला मंदिर तथा गर्भगृह में स्थापित मूर्तियां विशिष्ट भू-चुम्बकीय एवं तांत्रिक स्थिति का सृजन करती हैं। जहाँ सकारात्मक उर्जा का अजस्त्र प्रवाह निरंतर जारी रहता है। इस प्रवाह में व्यक्ति के समस्त भौतिक-शारीरिक दुखों का समाधान करने की शक्ति है। साथ हीं उसकी आध्यात्मिक उन्नति होती है। जीवन संपूर्णता को प्राप्त होता है। अनंत उर्जा प्रवाह से परिपूरित मुण्डेश्वरी भवानी मंदिर बाह्य रुप से जड़ दिखायी देने के बावजूद स्पंदित-सजीव है और यही कारण है कि यहाँ हजारों वर्षों से पूजन एवं साधना की प्रक्रिया लगातार जीवंत है। यहाँ एक अपूर्व शांति है, श्मशान की नहीं, उल्लासपूर्ण, अवसादहीन तपोवन की शांति। सात्विक सरलता से पूरित यह परिवेश चिंतन , मनन एवं आध्यात्मिक उत्थान की प्रेरक भूमि है।

                                                                                                                                             

धार्मिक एवं सामुदायिक समन्वय का प्रतीक

बिहार धार्मिक न्यास पर्षद द्वारा प्राप्त ऐतिहासिक पुरातात्विक प्रमाणों से यह सिद्ध हो चुका है कि पहली सदी ईसा पूर्व तक यह मंदिर अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुका था। सन् 2003 ई0 में शोधकर्ताओं द्वारा मंदिर परिसर से प्राप्त महान श्री लंकाई सम्राट महाराजु दुतिगामिनी की राजमुद्रा से इस तथ्य की पुष्टि हुयी है।

मंदिर परिसर से प्राप्त शिलालेख (108 ई0) के अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि यहाँ नारायणकुल (विष्णु) के मंदिरों का समूह था। जिसके प्रधान देवता मण्डलेश्वर स्वामी थे। बाद में शैव मत की प्रधानता के काल में विनितेश्वर (शिव) यहाँ प्रधान देवता के रुप में पूजित हुए। कालांतर में शाक्त मत की प्रबलता होने पर मण्डलेश्वर की अद्र्धांगिनी मण्डलेश्वरी (मुण्डेश्वरी अपभ्रंश ) प्रमुखता से सुपूजित हुयीं। संभवतः यह परिवर्तन मातृ्पूजक चेरों राजाओं के शासन काल में हुआ। एक हीं गर्भगृह में सूर्य (विष्णु), शिव एवं वैष्णवी देवी की उपासना अद्भुत एवं समन्वयकारी है। जो निर्माताओं के धर्म के शास्वत स्वरुप से निकटता का परिचायक है और तत्कालीन परिस्थतियों में अद्भुत है।

आज जब धार्मिक एवं सांप्रदायिक विवाद देश और समाज के लिए गहन चिन्ता के कारण बने हुए हंै, मुण्डेश्वरी के निर्माताओं ने हजारो वर्ष पूर्व हीं शांति और सहिष्णुता का मार्ग दिखा दिया था। यहाँ प्राप्ति की नहीं त्याग की शास्वत परंपरा है जो मनुष्यता का आधार है।

                                                                                                                                                     

व्यवस्था

मंदिर एवं परिसर के संरक्षण, विकास एवं पर्यटक सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए बिहार सरकार के अधीन धार्मिक न्यास पर्षद द्वारा समुचित व्यवस्था की गयी है। प्रबंध समिति के पदेन अध्यक्ष जिला पदाधिकारी, कैमूर, सह-सचिव प्रखण्ड विकास पदाधिकारी, भगवानपुर तथा समिति के सदस्यगण निरंतर पर्यटकों की सुविधाओं का ख्याल रखते हैं। पर्यटक उनसे संपर्क कर अपनी किसी प्रकार की कठिनाई से अवगत कराकर तत्काल निदान पा सकते है।

संपर्क हेतु फोन नम्बर-

1. जिला पदाधिकारी - 06189-223250-223241

2. प्रखण्ड विकास पदाधिकारी - 06189-264237

3. केयर टेकर, पर्यटक भवन ,मुण्डेश्वरी धाम - 09955237430

कैसे पहुँचें----

निकटतम हवाई अड्डा- वाराणसी, गया तथा पटना

रेलमार्ग- ग्रैण्ड कार्ड रेल लाईन पर मुगलसराय एवं सासाराम रेलवे स्टेशन के बीच स्थित भभुआ रोड रेलवे स्टेशन से उतरकर वहाँ से सड़क मार्ग द्वारा मुण्डेश्वरी मंदिर पहुँचा जा सकता है।

वाराणसी से गया रेल मार्ग पर भभुआ रोड रेलवे स्टेशन से उतरकर सड़क मार्ग से मंदिर पहुँच सकते हैं।

वाराणसी से गया सड़क मार्ग से जानेवाले पर्यटक मोहनियाँ होते हुए मुण्डेश्वरी मंदिर का भ्रमण कर सकते हैं।

सौजन्य:- माँ मुंडेश्वरी फेसबुक पेज द्वारा