प्रधानमंत्री श्री नमो का वक्तव्य अवसरवादिता या सतही-----+++++++
भारत में कई प्रधानमंत्री हुये । राजनीतिक रूप में आजादी में सक्रियता एवं भागीदारी महात्मा गांधी जी, लौह पुरूष सरदार पटेल जी , चाचा पंडित जवाहरलाल नेहरु, श्री लाल बहादुर शास्त्री से जुड़े राजनीतिक संगठन कोंग्रेस को देश की आजादी के बाद सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री पद को विभिन्न नेताओ द्वारा देश की सेवा करने का अवसर दिया । गैर कांग्रेसवाद की राजनीति के बाद कई दूसरे राजनीतिक दल के नेता को भी प्रधानमंत्री बनने का अवसर प्राप्त हुआ । वर्तमान राजनीतिक कालखंड में गैर बीजेपी बाद की राजनीति की पदचाप सुनायी पड़ती है ।
देश की आज़ादी के समय जो व्यक्ति आर्थिक रुप में जितना अमीर और शैक्षणिक योग्य रहने के वाबजूद सारी भौतिकतावादी सुख को त्याग कर देश की सवतंत्रता के लिए अपना समर्पण किया तब जनता उसके त्याग और बलिदान को आदर्श मानकर उसका अनुकरण करते हुए उसका नेतृत्व में पूर्ण आस्था प्रकट करते थे । इसी कड़ी में महात्मागांधी, पटेल,चाचा नेहरु, राजेन्द्र प्रसाद, शास्त्री जी....आदि नेताओं की गिनती होती है ।
बाद के कालखंड में भी कई नेता अपने विलक्षण राजनीतिक सोंच, ज्ञान, समाज में समर्पण, सौम्यता, सहिष्णुता, तार्किक शक्ति, नेतृत्व क्षमता....आदि गुणों के कारण भी राजनैतिक क्षितिज के शीर्ष तक पहुँच पाये जैसे इन्दिरा गांधीजी, अटल बिहारी वाजपेयी जी, वी पी सिंह, चंद्रशेखर सिंह....। इसी कड़ी में कई और नेता भी हैं जो राजनीतिक क्षितिज पर देश के योगदान एवं सर्वांगीण विकाश में अहम् भूमिका अदा किये ।
उपरोक्त वर्णित सभी राजनेताओं के द्वारा अपने भाषणों में आत्मप्रशंसा के शब्दों का कहीं उल्लेख नहीं मिलता है, मसलन महात्मा गांधीजी , चाचा नेहरू, पटेल...... द्वारा अपनी शैक्षणिक और आर्थिक बलिदानों को जनता के सामने नहीं परोसते थे । कभी किसी ने शास्त्री जी द्वारा स्ट्रीट लैम्प पोस्ट में अपनी पढ़ाई पूरी किये जाने का दृष्टान्त नहीं मिलता है ।ऐसा ही उदहारण बाद के नेताओं जैसे आडवाणी के भाषणों में अपने को शरणार्थी कहते हुए कोई उदहारण नहीं है ।
वर्तमान में बीजेपी के कई नेता तो नेता स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने को चाय बेचनेवाला, कभी ट्रेन में चाय बेचने का जिक्र करना, कभी अपने को पिछड़ा का रहनुमा घोषित करना, कभी सवयं को अति पिछड़ा कहकर जनता की संवेदना के साथ जुड़ना को समाज के कई वर्गों में चुनाव के समय दिया गया वक्तव्य प्रधानमंत्री के पद की मर्यादा के विपरीत मानते हैं ।मेरे मतानुसार इस तरह का वक्तव्य पूर्णतः राजनैतिक स्वार्थ सिद्धि साधने का शार्ट कर्ट जरिया है ।
वर्तमान प्रधानमंत्री नमो के उदबोधन की उपर्युक्त तथ्य पूर्णतः अवसरवादिता एवं सतही सोंच का परिचायक है ।
Ashutosh Atharv :-आग के साथ आग बन मिलो पानी के संग पानी, गरल का उतर है प्रतिगरल यही कहते जग के ग्यानी
आपके प्रस्तुति से शिकायत नही पर तार्किक परिणति तक पहूचने के लिए सभी रथियो के सिद्धान्त. मन कर्म वचन पर तुलनात्मक विचार होता तो अच्छा होता
लेखक :- विचार तो सिर्फ एक ही संगठन के पास है आर एस एस उसके इतर लिखने बोलने पर मैं देशद्रोही या पाकिस्तानी हो जाऊंगा । मेरी भी संविधान में आस्था है परंतु लगता है या मह्शूश होता है क़ि मैं भी क्या बोलूं क्या लिखूँ क्या खाऊँ लिखने/बोलने/खाने के पहले मेरे चारों ओर कुछ अदृश्य शक्तियाँ हैं उनसे सहमति ले लेनी चाहिए । आज से 18 माह पहले ऐसा वातावरण नहीं था । एक बात और तुमसे( छोटा होने के कारण) ताकीद करता हूँ, क्या तुमने कभी कुछ लिखने के पहले किसी दूसरे से रॉय या इतिफाक रखते हो क्या ? तुम तो नौजवान हो तुममें कब से फाँसीवाद का गुण आ गया ? चिन्तनीय!
भारत में कई प्रधानमंत्री हुये । राजनीतिक रूप में आजादी में सक्रियता एवं भागीदारी महात्मा गांधी जी, लौह पुरूष सरदार पटेल जी , चाचा पंडित जवाहरलाल नेहरु, श्री लाल बहादुर शास्त्री से जुड़े राजनीतिक संगठन कोंग्रेस को देश की आजादी के बाद सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री पद को विभिन्न नेताओ द्वारा देश की सेवा करने का अवसर दिया । गैर कांग्रेसवाद की राजनीति के बाद कई दूसरे राजनीतिक दल के नेता को भी प्रधानमंत्री बनने का अवसर प्राप्त हुआ । वर्तमान राजनीतिक कालखंड में गैर बीजेपी बाद की राजनीति की पदचाप सुनायी पड़ती है ।
देश की आज़ादी के समय जो व्यक्ति आर्थिक रुप में जितना अमीर और शैक्षणिक योग्य रहने के वाबजूद सारी भौतिकतावादी सुख को त्याग कर देश की सवतंत्रता के लिए अपना समर्पण किया तब जनता उसके त्याग और बलिदान को आदर्श मानकर उसका अनुकरण करते हुए उसका नेतृत्व में पूर्ण आस्था प्रकट करते थे । इसी कड़ी में महात्मागांधी, पटेल,चाचा नेहरु, राजेन्द्र प्रसाद, शास्त्री जी....आदि नेताओं की गिनती होती है ।
बाद के कालखंड में भी कई नेता अपने विलक्षण राजनीतिक सोंच, ज्ञान, समाज में समर्पण, सौम्यता, सहिष्णुता, तार्किक शक्ति, नेतृत्व क्षमता....आदि गुणों के कारण भी राजनैतिक क्षितिज के शीर्ष तक पहुँच पाये जैसे इन्दिरा गांधीजी, अटल बिहारी वाजपेयी जी, वी पी सिंह, चंद्रशेखर सिंह....। इसी कड़ी में कई और नेता भी हैं जो राजनीतिक क्षितिज पर देश के योगदान एवं सर्वांगीण विकाश में अहम् भूमिका अदा किये ।
उपरोक्त वर्णित सभी राजनेताओं के द्वारा अपने भाषणों में आत्मप्रशंसा के शब्दों का कहीं उल्लेख नहीं मिलता है, मसलन महात्मा गांधीजी , चाचा नेहरू, पटेल...... द्वारा अपनी शैक्षणिक और आर्थिक बलिदानों को जनता के सामने नहीं परोसते थे । कभी किसी ने शास्त्री जी द्वारा स्ट्रीट लैम्प पोस्ट में अपनी पढ़ाई पूरी किये जाने का दृष्टान्त नहीं मिलता है ।ऐसा ही उदहारण बाद के नेताओं जैसे आडवाणी के भाषणों में अपने को शरणार्थी कहते हुए कोई उदहारण नहीं है ।
वर्तमान में बीजेपी के कई नेता तो नेता स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने को चाय बेचनेवाला, कभी ट्रेन में चाय बेचने का जिक्र करना, कभी अपने को पिछड़ा का रहनुमा घोषित करना, कभी सवयं को अति पिछड़ा कहकर जनता की संवेदना के साथ जुड़ना को समाज के कई वर्गों में चुनाव के समय दिया गया वक्तव्य प्रधानमंत्री के पद की मर्यादा के विपरीत मानते हैं ।मेरे मतानुसार इस तरह का वक्तव्य पूर्णतः राजनैतिक स्वार्थ सिद्धि साधने का शार्ट कर्ट जरिया है ।
वर्तमान प्रधानमंत्री नमो के उदबोधन की उपर्युक्त तथ्य पूर्णतः अवसरवादिता एवं सतही सोंच का परिचायक है ।
Ashutosh Atharv :-आग के साथ आग बन मिलो पानी के संग पानी, गरल का उतर है प्रतिगरल यही कहते जग के ग्यानी
आपके प्रस्तुति से शिकायत नही पर तार्किक परिणति तक पहूचने के लिए सभी रथियो के सिद्धान्त. मन कर्म वचन पर तुलनात्मक विचार होता तो अच्छा होता
लेखक :- विचार तो सिर्फ एक ही संगठन के पास है आर एस एस उसके इतर लिखने बोलने पर मैं देशद्रोही या पाकिस्तानी हो जाऊंगा । मेरी भी संविधान में आस्था है परंतु लगता है या मह्शूश होता है क़ि मैं भी क्या बोलूं क्या लिखूँ क्या खाऊँ लिखने/बोलने/खाने के पहले मेरे चारों ओर कुछ अदृश्य शक्तियाँ हैं उनसे सहमति ले लेनी चाहिए । आज से 18 माह पहले ऐसा वातावरण नहीं था । एक बात और तुमसे( छोटा होने के कारण) ताकीद करता हूँ, क्या तुमने कभी कुछ लिखने के पहले किसी दूसरे से रॉय या इतिफाक रखते हो क्या ? तुम तो नौजवान हो तुममें कब से फाँसीवाद का गुण आ गया ? चिन्तनीय!
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