बिहार का चुनाव 2015 यौवन अवस्था से बुढ़ापे की और दस्तक दे रहा है । अगर चुनाव की आगाज़ का विश्लेषण करेगें तो आप हीं क्यों दुनिया का प्रत्येक व्यक्ति यह मानने को मजबूर हो जायेगा कि सारी अमर्यादित आचरणों, व्यक्तव्यों का प्रयोग विशेषकर भारत के नव निर्माता अच्छे दिन लायेगें के प्रणेता के सदस्यों द्वारा किया गया । बिहार की राजनीति की उर्वरा मिटटी को अमित शाह की नियत, नेतागिरी, विश्वशनियता और भाषा प्रयोग जो उनके द्वारा बिहारी अस्मिता पर उठाई गयी सभी गले की हड्डी ही नहीं बल्कि दिन रात नश्तर की भांति चुभोता होगा ।संयम तो भारत के नए प्रशासक में भी नहीं दिखी । भाषा की शालीनता और डी न ए, दलित, पिछड़ा, बीफ, बीमारू राज्य, इंफ्रास्ट्रक्चर , सम्प्रदाय, आरक्षण में कमी को उजागर करना और बिहार हीं क्यों पूरे भारत वर्ष मेंबिहार को विकाश की पटरी पर लाने वाले नेता का नाम घोषित न करना इस समर बदरंग दिक्गदीखने लगा ।लेकिन अब तो media पत्रकारिता सभी दो मजबूर गुजराती की स्पस्ट हार देख रहे हैं ।
बिहार के दुसरे गठवन्धन के नेता के रूप में नितीश का चयन, उनकी प्रसिंगकता, भाषा का उच्चारण, वर्गों के बीच अपनापन, विकाश की सोंच और खाका, बिहार को राष्ट्र के कई मापदंडों पर नयी ईवारत का सफल प्रयोग उनके विरोधियों को भी विस्मित करता है और जनता के चहेता तो हैं हीं ।10 साल के शासन में इन्होंने वर्ग विहीन जमात पैदा किया जिसके कारण चुनाव पूर्व संगठित बीजेपी से लड़ने के लिए लालू जी के संगठन वाली जमात के साथ महागठवन्धन बनाकर चुनाव के कुरुक्षेत्र में धैर्य के साथ भारत के पूरे मंत्रिपरिषद, बीजेपी के भारत के नेता एवं आरएसएस के कुटिल क्षद्म भारतीयता का आवरण वाले नेताओं के साथ शालीन भाषा से बचाव करते रहे । इस गठवंधन के नेता लालूजी जनता जमात के बिहार हीं नहीं भारत में अपनी वाकपटुता और शैली से मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के माहिर खिलाडी को बीजेपी /आरस स ने पिछड़ा, अभद्र भाषा, बीफ, दलित, आरक्षण, संप्रदाय जैसे मुद्दे देकर लालू जी के अमोघ अस्त्रों में शान चढ़ा दिया । सचमुच में बीजेपी में कोई भी नेता में भाषाई वाकपटुता लालू जी से अच्छी नहीं है ।लालू जी अपनी शैली में बीजेपी की नाकारा राजनीति पर शब्दभेदी बाण चलाये ।
अभी चुनाव का तीन चरण अवशेष है । सरकार बनने के कयास हीं लगाये जा सकते हैं । भारत के प्रधानमंत्री को चुनाव प्रचार में बिहार की अस्मिता, दुर्गति, पिछड़ापन, अशिक्षा, रोजगार में कमी, इंफ्रास्ट्रक्चर में कमी, बिहार को बीमारू राज्य की उपाधि देने आदि विभूषणों से अलंकृत करने के बाद कोई व्यवसायी बिहार में पूँजी लगाएगा क्या? मोदीजी गला फाड़ फाड़ कर भारत में निवेश की बात करते हैं, विदेशी कहाँ निवेश करे? बीजेपी भारत को अमीर और गरीब राज्य की दलदल में धकेलकर कौन सी नयी संस्कृति पैदा करना चाहता है ।अब तो संदेह हो रहा है कि न बिहार को विशेष राज्य का दर्ज़ा मिलेगा और ना हीं...
बिहार के दुसरे गठवन्धन के नेता के रूप में नितीश का चयन, उनकी प्रसिंगकता, भाषा का उच्चारण, वर्गों के बीच अपनापन, विकाश की सोंच और खाका, बिहार को राष्ट्र के कई मापदंडों पर नयी ईवारत का सफल प्रयोग उनके विरोधियों को भी विस्मित करता है और जनता के चहेता तो हैं हीं ।10 साल के शासन में इन्होंने वर्ग विहीन जमात पैदा किया जिसके कारण चुनाव पूर्व संगठित बीजेपी से लड़ने के लिए लालू जी के संगठन वाली जमात के साथ महागठवन्धन बनाकर चुनाव के कुरुक्षेत्र में धैर्य के साथ भारत के पूरे मंत्रिपरिषद, बीजेपी के भारत के नेता एवं आरएसएस के कुटिल क्षद्म भारतीयता का आवरण वाले नेताओं के साथ शालीन भाषा से बचाव करते रहे । इस गठवंधन के नेता लालूजी जनता जमात के बिहार हीं नहीं भारत में अपनी वाकपटुता और शैली से मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के माहिर खिलाडी को बीजेपी /आरस स ने पिछड़ा, अभद्र भाषा, बीफ, दलित, आरक्षण, संप्रदाय जैसे मुद्दे देकर लालू जी के अमोघ अस्त्रों में शान चढ़ा दिया । सचमुच में बीजेपी में कोई भी नेता में भाषाई वाकपटुता लालू जी से अच्छी नहीं है ।लालू जी अपनी शैली में बीजेपी की नाकारा राजनीति पर शब्दभेदी बाण चलाये ।
अभी चुनाव का तीन चरण अवशेष है । सरकार बनने के कयास हीं लगाये जा सकते हैं । भारत के प्रधानमंत्री को चुनाव प्रचार में बिहार की अस्मिता, दुर्गति, पिछड़ापन, अशिक्षा, रोजगार में कमी, इंफ्रास्ट्रक्चर में कमी, बिहार को बीमारू राज्य की उपाधि देने आदि विभूषणों से अलंकृत करने के बाद कोई व्यवसायी बिहार में पूँजी लगाएगा क्या? मोदीजी गला फाड़ फाड़ कर भारत में निवेश की बात करते हैं, विदेशी कहाँ निवेश करे? बीजेपी भारत को अमीर और गरीब राज्य की दलदल में धकेलकर कौन सी नयी संस्कृति पैदा करना चाहता है ।अब तो संदेह हो रहा है कि न बिहार को विशेष राज्य का दर्ज़ा मिलेगा और ना हीं...
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