अडानी अरहर मोदी के लिए तुरूप का पत्ता-+++++
देश में अना वृष्टि के कारण दलहनी फसल के उत्पादन में कमी के आकलन को ससमय केंद्र सरकार द्वारा नहीं किये जाने एवं दाल की कमी के आयात के लिए एकमात्र व्यवसायी अडानी ग्रुप को सौंपने एवम् आयात के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में अडानी के नजदीक के व्यवसायी द्वारा जमाखोरी कर दाल की किल्लत कर आम जनता से अधिक मूल्य में दाल की कालाबाज़ारी का सत्य श्री अरहर मोदी को स्पष्ट करना चाहिए और न खाऊँगा न खाने दूँगा का सत्य देश को बतलाना चाहिए ।
मित्रों की समीक्षा
दीपक जयसवालजी:- Sir Price rise of Pulses is failure of Governance... it was already predicted about 10 % fall in production due to scanty rainfall this year.. how could price rise 200%???... Hoarders mostly from BJP ruled states took it as opportunity due to softness of state governments towards them....
जीतेन्द्र कुमारजी :- इंडिया पल्सेज ग्रेंस एसोसिएशन के साथ अदाणी ग्रुप ने अपने पोर्ट्स पर दाल और दलहन के रखरखाव के लिये एक समझौता किया है। दरअसल यह समझौता जब दालों में तेजी का दौर चल रहा है और इस समझौते की वजह से देश भर में दालों की लागत के अनुसार प्रभावी आपूर्ति सुनिश्चित करना है।
यह समझौता आदाणी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनामिक जोन यानि एपीएसईजेड ने आईपीजीए के साथ समझौता कर लिया है। इसके साथ ही अदाणी के पोर्ट्स पर दाल दलहन के रखरखाव के लिये ही यह समझौता हुआ है। वास्तव में यह समझौता हो जाने के बाद पोर्ट्स की सुविधाओं के इस्तेमाल से दाल दलहन की आपूर्ति को विकसित किये जाने में और सहायता हो सकेगी और इससे दाल व दलहनों की आपूर्ति में बढोत्तरी सुविधाजनक तरीके से हो सकेगी।
(भलाई का जमाना ही नहीं रहा।डूबते को बचाना भी गुनाह है)
लेखक:- भलाई के लिए देश में अडानी हीं एकदेश भक्त नज़र आते हैं । आयातित दाल में विलम्ब या देश में कालाबाज़ारी के लिए कौन जवाबदेह है क़ि यह कालाबाज़ारी भी जनता की भलाई में किया गया है । अच्छी कहावत आपने बताई डूबते को बचाना.... डूबते को बचाने के नाम पर डूबने वाले व्यक्ति की पूरी जमीन रजिस्ट्री करवा डाली और देश भक्त होने का प्रमाण भी ठोकवा लिया ।
जीतेन्द्र कुमार :- अपना सब समस्या अडानी अम्बानी पर! उद्योगपत्तियों और व्यवसयायियों पर कम्युनिस्टि सोंच से बिहार का विकास होगा क्या ?
लेखक :- अडानी सोंच से विकास होगा ? देश के सबसे शुभचिंतक 125 करोड़ में अडानी हीं हैं । मैं जन्म से व्यवसायी के यहाँ रोजमर्रा के सामानों की आपुर्ति हेतु पन्सारी की दूकान में जाता था । तौल में पन्सारी आँख बंद डिब्बा गायब कर देते थे ।फेरीवाला/ समानो की अदलाबदली वाला ....किस किस का नाम गिनाऊँ । अरे भाई बिहार में एक कहावत है दही के अगोरिया बिलाई ।
जीतेन्द्र कुमार :- जी ! 60 साल के रूल में यही दो-चार बना पाये हैं...क्या करें! हम पर भरोसा न हो तो पप्पू से पूछ लीजिए..साथ ही बैठा होगा।
लेखक:- पप्पू से क्यों पूंछे? हर बात में पप्पू जुमला कब तक? जवाबदेही लेना सिखो भाई । कल बच्चा पैदा होगा उसके लिए भी पप्पू ।बहस को सार्थक तर्क के साथ । 60 साल तक जनता पप्पू के साथ थी इस बार जनादेश आपकी है । आप तो पूर्व में आपके वंशज जो जनादेश दिए उसको भी गाली दे रहे हैं ।
जनक कुमार सिंह जी :- किन्तु कृषि राज्य का विषय है। फसलों के उत्पादन का आकलन राज्य सरकारों का दायित्व है।
लेखक :-क्या कांग्रेस के ज़माने में सामानों की किल्लत और उसका आकलन राज्य सरकारों का नहों था ? दूसरा देश के कितने प्रदेशों में बीजेपी शाषित राज्य हैं । उन राज्यों के आकलन से औसत निष्कर्ष के आधार पर मांग आपूर्ति के सिद्धान्त पर ससमय यथोचित कारवाई करनी चाहिये थी । कार्यवाई भी की गयी परंतु चहेते अडानी ग्रुप के साथ जो दाल लाकर भी सरकार के मुफीद जमाखोरों को कलवाज़री में प्रत्यक्ष रूप में मदद तो नहीं कहूँगा लेकिन सरकार के सांठगाठ या संलिप्तता के बिना मात्र 10% उत्पादन में कमी के नाम पर दाल की कीमत 200% ऐतिहासिक मूल्य तक नहीं पहुँचता ।
देश में अना वृष्टि के कारण दलहनी फसल के उत्पादन में कमी के आकलन को ससमय केंद्र सरकार द्वारा नहीं किये जाने एवं दाल की कमी के आयात के लिए एकमात्र व्यवसायी अडानी ग्रुप को सौंपने एवम् आयात के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में अडानी के नजदीक के व्यवसायी द्वारा जमाखोरी कर दाल की किल्लत कर आम जनता से अधिक मूल्य में दाल की कालाबाज़ारी का सत्य श्री अरहर मोदी को स्पष्ट करना चाहिए और न खाऊँगा न खाने दूँगा का सत्य देश को बतलाना चाहिए ।
मित्रों की समीक्षा
दीपक जयसवालजी:- Sir Price rise of Pulses is failure of Governance... it was already predicted about 10 % fall in production due to scanty rainfall this year.. how could price rise 200%???... Hoarders mostly from BJP ruled states took it as opportunity due to softness of state governments towards them....
जीतेन्द्र कुमारजी :- इंडिया पल्सेज ग्रेंस एसोसिएशन के साथ अदाणी ग्रुप ने अपने पोर्ट्स पर दाल और दलहन के रखरखाव के लिये एक समझौता किया है। दरअसल यह समझौता जब दालों में तेजी का दौर चल रहा है और इस समझौते की वजह से देश भर में दालों की लागत के अनुसार प्रभावी आपूर्ति सुनिश्चित करना है।
यह समझौता आदाणी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनामिक जोन यानि एपीएसईजेड ने आईपीजीए के साथ समझौता कर लिया है। इसके साथ ही अदाणी के पोर्ट्स पर दाल दलहन के रखरखाव के लिये ही यह समझौता हुआ है। वास्तव में यह समझौता हो जाने के बाद पोर्ट्स की सुविधाओं के इस्तेमाल से दाल दलहन की आपूर्ति को विकसित किये जाने में और सहायता हो सकेगी और इससे दाल व दलहनों की आपूर्ति में बढोत्तरी सुविधाजनक तरीके से हो सकेगी।
(भलाई का जमाना ही नहीं रहा।डूबते को बचाना भी गुनाह है)
लेखक:- भलाई के लिए देश में अडानी हीं एकदेश भक्त नज़र आते हैं । आयातित दाल में विलम्ब या देश में कालाबाज़ारी के लिए कौन जवाबदेह है क़ि यह कालाबाज़ारी भी जनता की भलाई में किया गया है । अच्छी कहावत आपने बताई डूबते को बचाना.... डूबते को बचाने के नाम पर डूबने वाले व्यक्ति की पूरी जमीन रजिस्ट्री करवा डाली और देश भक्त होने का प्रमाण भी ठोकवा लिया ।
जीतेन्द्र कुमार :- अपना सब समस्या अडानी अम्बानी पर! उद्योगपत्तियों और व्यवसयायियों पर कम्युनिस्टि सोंच से बिहार का विकास होगा क्या ?
लेखक :- अडानी सोंच से विकास होगा ? देश के सबसे शुभचिंतक 125 करोड़ में अडानी हीं हैं । मैं जन्म से व्यवसायी के यहाँ रोजमर्रा के सामानों की आपुर्ति हेतु पन्सारी की दूकान में जाता था । तौल में पन्सारी आँख बंद डिब्बा गायब कर देते थे ।फेरीवाला/ समानो की अदलाबदली वाला ....किस किस का नाम गिनाऊँ । अरे भाई बिहार में एक कहावत है दही के अगोरिया बिलाई ।
जीतेन्द्र कुमार :- जी ! 60 साल के रूल में यही दो-चार बना पाये हैं...क्या करें! हम पर भरोसा न हो तो पप्पू से पूछ लीजिए..साथ ही बैठा होगा।
लेखक:- पप्पू से क्यों पूंछे? हर बात में पप्पू जुमला कब तक? जवाबदेही लेना सिखो भाई । कल बच्चा पैदा होगा उसके लिए भी पप्पू ।बहस को सार्थक तर्क के साथ । 60 साल तक जनता पप्पू के साथ थी इस बार जनादेश आपकी है । आप तो पूर्व में आपके वंशज जो जनादेश दिए उसको भी गाली दे रहे हैं ।
जनक कुमार सिंह जी :- किन्तु कृषि राज्य का विषय है। फसलों के उत्पादन का आकलन राज्य सरकारों का दायित्व है।
लेखक :-क्या कांग्रेस के ज़माने में सामानों की किल्लत और उसका आकलन राज्य सरकारों का नहों था ? दूसरा देश के कितने प्रदेशों में बीजेपी शाषित राज्य हैं । उन राज्यों के आकलन से औसत निष्कर्ष के आधार पर मांग आपूर्ति के सिद्धान्त पर ससमय यथोचित कारवाई करनी चाहिये थी । कार्यवाई भी की गयी परंतु चहेते अडानी ग्रुप के साथ जो दाल लाकर भी सरकार के मुफीद जमाखोरों को कलवाज़री में प्रत्यक्ष रूप में मदद तो नहीं कहूँगा लेकिन सरकार के सांठगाठ या संलिप्तता के बिना मात्र 10% उत्पादन में कमी के नाम पर दाल की कीमत 200% ऐतिहासिक मूल्य तक नहीं पहुँचता ।
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