2014 का भारत का कुरुक्षेत्र धर्मयुद्ध नहीं था ।2014 का संसदीय चुनाव कोंग्रेस की जड़ता ,लगातार 10 वर्षों के शासनकाल में हुयी गलतियों के आधार पर नयी संचार क्रांति के वाहन पर सवार भारत के नवयुवक अपना अक्श विश्व के रूप में सजाने केउद्देश्य एवं केजरीवाल द्वारा पनपाया गया केंद्र के प्रति असंतोष के साथ साथ अन्ना हज़ारे एवं रामदेव द्वारा जनता में सरकार के विपक्ष में बनाये गए माहौल पर स्वर्णिम किरण धवल ओज के साथ बीजेपी द्वारा नमो की अगुवाई में सारे असन्तोष के परिणाम को मुट्ठी में कैद करने की चाहत ने बीजेपी/ आर एस एस द्वारा छोड़ा गया नरेंद्र मोदी का अश्वमेघ यज्ञ का घोडा सरपट दौड़ता हस्तिनापुर फतह कर डाला ।
अब शुरू होती है चुनौती ।आर एस एस का देश स्वतंत्रता के समय के इतिहास से तो आपलोग वाकिफ होंगे । सभी प्रवुद्ध राजनैतिक दल अपनी विचारधारा में सतत् परिवर्तन करती है और यही संसार रुपी जीवन का मूल मन्त्र है ।हमलोग भी आशान्वित थे की प्रचंड बहुमत पर विराजमान केंद्रीय सरकार राजधर्म निभाकर भारत की नयी कहानी गढेगें ।अब तक सरकार आत्मविभोर होकर self appriasal एवं पूर्ववर्ती सरकारों की प्रत्येक पालिसी पर आक्रोश उगलने के अलावा कुछ नहीं कर रही है ।घर के मुखिया की जवाबदेही सामान्य लोगों से हज़ारों गुणा अधिक होता है । यह सरकार देश के विकास को छोड़कर राज्यों के चुनाव में अपना ध्यान राष्ट्रवाद पनपाने में केंद्रित कर दिया है । षडयंत्र/ सत्ता की लोलुपता ने इसे देश के राज्यों में किसी प्रकार से सरकार बनाने में अपनी ऊर्जा को नष्ट करना शुरू कर दिया है मसलन जम्मू कश्मीर और महाराष्ट्र की सरकार ।
इस सरकार के शासनकाल में गिरते पेट्रोडॉलर ने देश की अर्थव्यवस्था में दैवी योगदान दिया है ।वर्तमान में देश के प्रणेता को Controversy policies क़ो छोड़कर या विवादित विषयों पर पारिचर्चा कर देश की अर्थव्यवस्था को समतल जमीन पर सरपट दौड़ाने का वक़्त है ।लेकिन यहाँ पर खड़ा है आर एस एस जिसकी देश स्वतंत्रता में देश भक्ति से तो राष्ट्र वाकिफ हैं ही , वर्तमान में प्रथम पंचवर्षीय योजना से लेकर अब तक राष्ट्र द्वारा बनाये गए हर नियम कानून को विवादित विषय कर उसमें या तो संशोधन करना या उसका आर एस एस करण करना यही वर्तमान सरकार का लक्ष्य है । याद करे दोस्तों श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी का काल , उनके द्वारा बिना विवाद के देश की प्रगति में राजधर्म और शालीनता से जो विकास के कार्य किये गए हैं उसे राष्ट्र का बहुभाषी, बहुधर्मी, बहुसंप्रदाय, विविधविचार, विविध व्यंजन.........वाले जनमानस भी कायल हैं ।
विविध विचारों/ जातियों/ अर्थव्यवस्था/प्रजातंत्र की जननी/गरीबी/भूखमरी/बाढ़/ सुखाड़/जमातवाद/सम्प्रदायवाद/ सामंतवाद आदि से ग्रसित
बिहार में आर एस एस/बीजेपी द्वारा राज्य के चुनाव में प्रारम्भ से चुनाव प्रपंच से जीतने में केंद्र की पूरी हूकूमत गत 4 माह से हस्तिनापुर छोड़कर
पाटलिपुत्र केसम्राट चन्द्रगुप्त के साथ दो दो हाथ करने मगध पहुँची है ।वाल्मीकि/ लव-कुश/कर्ण/बुद्ध /महावीर/अशोक/चन्द्रगुप्त/चाणक्य/लिच्छवि/मुंडन मिश्र /बिन्दुसार/विम्विसार/शेरशाह/विद्यापति/गुरु गोविन्द सिंह/ बीर कुंवर सिंह//बटुकेश्वर दत्त/ दिनकर / राजेंद्र प्रसाद / जय प्रकाश नारायण जैसे महान सपूतों वाले राज्य में हस्तिनापुर में अपनाये गए जुआ के सभी अमर्यादित प्रपंच जैसे दलित कार्ड रामविलास पासवान/ महादलित कार्ड जीतन मांझी/ देश में सबसे ज्यादा OBC मुख्यमंत्री बनाये जाने का कार्ड/प्रधानमंत्री को पिछड़ा जाति का बताया जाना /देश में दलित कार्ड का हरियाणा में व्याख्या/बीफ के रूप में संप्रदाय कार्ड आदि आदि का प्रयोग कर बीजेपी भारत में देशभक्ति का कौन सा रष्ट्र वाद अपनाना चाहती है ।
वर्तमान में बीजेपी के दो प्रवक्ता अपनी विचारधारा को जिस असहिष्णुता से शब्दों को मीडिया में रखते हैं उससे उग्रता फैलने का भय है ।विचारक की बात से मतभिन्नता या मनभिन्नता होने पर वाचक की वाणी और सयंमित और मर्यादित होनी चाहिए । बाजपेयी जी के ज़माने में जो प्रवक्ता थे उनकी भाषा शालीन थी । हमें सदैव याद रखनी चाहिए कि भारत में सनातन काल से अनेकता में एकता है । विविधता हमारे देश की तिजौरी है जिसे बीजेपी के कुछ प्रवक्ता और आर एस एस के अनुयायी दोनों हाथों से गंगा यमुनी तहजीब को लुटाने पर पड़ी है ।
अब शुरू होती है चुनौती ।आर एस एस का देश स्वतंत्रता के समय के इतिहास से तो आपलोग वाकिफ होंगे । सभी प्रवुद्ध राजनैतिक दल अपनी विचारधारा में सतत् परिवर्तन करती है और यही संसार रुपी जीवन का मूल मन्त्र है ।हमलोग भी आशान्वित थे की प्रचंड बहुमत पर विराजमान केंद्रीय सरकार राजधर्म निभाकर भारत की नयी कहानी गढेगें ।अब तक सरकार आत्मविभोर होकर self appriasal एवं पूर्ववर्ती सरकारों की प्रत्येक पालिसी पर आक्रोश उगलने के अलावा कुछ नहीं कर रही है ।घर के मुखिया की जवाबदेही सामान्य लोगों से हज़ारों गुणा अधिक होता है । यह सरकार देश के विकास को छोड़कर राज्यों के चुनाव में अपना ध्यान राष्ट्रवाद पनपाने में केंद्रित कर दिया है । षडयंत्र/ सत्ता की लोलुपता ने इसे देश के राज्यों में किसी प्रकार से सरकार बनाने में अपनी ऊर्जा को नष्ट करना शुरू कर दिया है मसलन जम्मू कश्मीर और महाराष्ट्र की सरकार ।
इस सरकार के शासनकाल में गिरते पेट्रोडॉलर ने देश की अर्थव्यवस्था में दैवी योगदान दिया है ।वर्तमान में देश के प्रणेता को Controversy policies क़ो छोड़कर या विवादित विषयों पर पारिचर्चा कर देश की अर्थव्यवस्था को समतल जमीन पर सरपट दौड़ाने का वक़्त है ।लेकिन यहाँ पर खड़ा है आर एस एस जिसकी देश स्वतंत्रता में देश भक्ति से तो राष्ट्र वाकिफ हैं ही , वर्तमान में प्रथम पंचवर्षीय योजना से लेकर अब तक राष्ट्र द्वारा बनाये गए हर नियम कानून को विवादित विषय कर उसमें या तो संशोधन करना या उसका आर एस एस करण करना यही वर्तमान सरकार का लक्ष्य है । याद करे दोस्तों श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी का काल , उनके द्वारा बिना विवाद के देश की प्रगति में राजधर्म और शालीनता से जो विकास के कार्य किये गए हैं उसे राष्ट्र का बहुभाषी, बहुधर्मी, बहुसंप्रदाय, विविधविचार, विविध व्यंजन.........वाले जनमानस भी कायल हैं ।
विविध विचारों/ जातियों/ अर्थव्यवस्था/प्रजातंत्र की जननी/गरीबी/भूखमरी/बाढ़/ सुखाड़/जमातवाद/सम्प्रदायवाद/ सामंतवाद आदि से ग्रसित
बिहार में आर एस एस/बीजेपी द्वारा राज्य के चुनाव में प्रारम्भ से चुनाव प्रपंच से जीतने में केंद्र की पूरी हूकूमत गत 4 माह से हस्तिनापुर छोड़कर
पाटलिपुत्र केसम्राट चन्द्रगुप्त के साथ दो दो हाथ करने मगध पहुँची है ।वाल्मीकि/ लव-कुश/कर्ण/बुद्ध /महावीर/अशोक/चन्द्रगुप्त/चाणक्य/लिच्छवि/मुंडन मिश्र /बिन्दुसार/विम्विसार/शेरशाह/विद्यापति/गुरु गोविन्द सिंह/ बीर कुंवर सिंह//बटुकेश्वर दत्त/ दिनकर / राजेंद्र प्रसाद / जय प्रकाश नारायण जैसे महान सपूतों वाले राज्य में हस्तिनापुर में अपनाये गए जुआ के सभी अमर्यादित प्रपंच जैसे दलित कार्ड रामविलास पासवान/ महादलित कार्ड जीतन मांझी/ देश में सबसे ज्यादा OBC मुख्यमंत्री बनाये जाने का कार्ड/प्रधानमंत्री को पिछड़ा जाति का बताया जाना /देश में दलित कार्ड का हरियाणा में व्याख्या/बीफ के रूप में संप्रदाय कार्ड आदि आदि का प्रयोग कर बीजेपी भारत में देशभक्ति का कौन सा रष्ट्र वाद अपनाना चाहती है ।
वर्तमान में बीजेपी के दो प्रवक्ता अपनी विचारधारा को जिस असहिष्णुता से शब्दों को मीडिया में रखते हैं उससे उग्रता फैलने का भय है ।विचारक की बात से मतभिन्नता या मनभिन्नता होने पर वाचक की वाणी और सयंमित और मर्यादित होनी चाहिए । बाजपेयी जी के ज़माने में जो प्रवक्ता थे उनकी भाषा शालीन थी । हमें सदैव याद रखनी चाहिए कि भारत में सनातन काल से अनेकता में एकता है । विविधता हमारे देश की तिजौरी है जिसे बीजेपी के कुछ प्रवक्ता और आर एस एस के अनुयायी दोनों हाथों से गंगा यमुनी तहजीब को लुटाने पर पड़ी है ।
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