Saturday, May 18, 2013
शाकाहार v/s मांसाहार
क्या वृक्षों में जीवन हैं और क्या वृक्ष आदि खाने में पाप
हैं?
आधुनिक समाज में खान पान को लेकर एक विशेष
दुविधा आज
भी बनी हुई हैं जिसमें सभी व्यक्तियों के अलग अलग दृष्टीकौन हैं . इस्लाम और ईसाइयत को मानने
वालों का कहना हैं की ईश्वर ने पेड़ पौधे पशु आदि सब खाने
के लिए ही उत्पन्न किये हैं,नास्तिक
लोगों का मानना हैं
की ईश्वर जीवात्मा आदि कुछ भी नहीं होता इसलिए
चाहे शाक खाओ ,चाहे मांस खाओ, कोई पाप नहीं लगता. अहिंसा का समर्थन करने वाले लोगों का एक मत यह भी हैं
की केवल पशु ही नहीं अपितु पेड़ पौधे में
भी जीवात्मा होने के कारण उनको खाने में हिंसा हैं और
वृक्ष को काटकर खाने से हम भी मांसाहारी हैं क्यूंकि हम
उनके शरीर के अवयवों को खाते हैं.यह भी एक प्रकार
की जीव हत्या हैं.निष्पक्ष होकर हम धर्म शास्त्रों पर विचार करे हमे इस समस्या का समाधान आसानी से मिल
सकता हैं. संसार में दो प्रकार के जगत हैं जड़ और चेतन.
चेतन
जगत में दो विभाग हैं एक चर और एक अचर. वृक्ष
आदि अचर
कोटि में आते हैं जबकि मानव पशु आदि चर कोटि में आते हैं.
मनु स्मृति के अनुसार जो मनुष्य अत्यंत
तमोगुणी आचरण
करते हैं या अत्यंत तमोगुणी प्रवृति के होते हैं तो उसके
फल
स्वरुप वे अगले जन्म में स्थावर = वृक्ष, पतंग, कीट ,मत्स्य ,
सर्प, कछुआ, पशु और मृग के जन्म को प्राप्त होते हैं.
(सन्दर्भ- १२.४२) आगे मनु महाराज स्पष्ट रूप में
घोषणा करते हैं की पूर्वजन्मों के अधम कर्मों के कारण
वृक्ष
आदि स्थावर जीव अत्यंत तमोगुण से अवेषटित होते हैं. इस
कारण ये अंत: चेतना वाले होते हुए आन्तरिक रूप से
ही कर्म
फल रूप सुख दुःख की अनुभूति करते हैं.वाह्य सुख सुख
की अनुभूति इनको नगण्य रूप से होती हैं
अथवा बिलकुल नहीं होती. आधुनिक विज्ञान में वृक्षों में जीव
विषयक मत
की पुष्टि डॉ जगदीश चन्द्र बसु जीवात्मा के रूप में न
करके चेतनता के रूप में करते हैं. देखा जाये तो दोनों में
मूलभूत रूप से कोई अंतर नहीं होता क्यूंकि चेतनता जीव
का लक्षण हैं. भारतीय दर्शन सिद्धांत के अनुसार जहाँ चेतनता हैं वही जीव हैं और जहाँ जीव हैं
वही चेतनता हैं. आधुनिक विज्ञान वृक्षों में जीव
इसलिए
नहीं मानता हैं क्यूंकि वो केवल उसी बात को मानता हैं
जिसे प्रयोगशाला में सिद्ध किया गया हैं और
जीवात्मा को कभी भी प्रयोगशाला में सिद्ध नहीं किया जा सकता. डॉ जगदिश चन्द्र बसु पहले
वैज्ञानिक थे जिन्होंने ऐसे यंत्रों का अविष्कार
किया वृक्षों पौधों में वायु, निद्रा,भोजन, स्पर्श
आदि के
जैविक प्रभावों का अध्यनन किया जा सकता हैं. यहाँ तक
शास्त्रों के आधार पर यह सिद्ध किया गया हैं की वृक्ष आदि में आत्मा होती हैं.अब शास्त्रों के आधार पर यह
सिद्ध करेंगे की वृक्ष आदि के काटने में
अथवा पौधों आदि को जड़ से उखारने में
हिंसा नहीं होती हैं. संख्या दर्शन ५.२७ में लिखा हैं
की पीड़ा उसी जीव को पहुँचती हैं जिसकी वृति सब
अवयवों के साथ विद्यमान हो अर्थात सुख दुःख की अनुभूति इन्द्रियों के माध्यम से होती हैं. जैसे अंधे
को कितना भी चांटा दिखाए , बहरे को कितने
भी अपशब्द बोले तो उन्हें दुःख नहीं पहुँचता वैसे ही वृक्ष
आदि भी इन्द्रियों से रहित हैं अत: उन्हें दुःख
की अनुभूति नहीं होती. इसी प्रकार
बेहोशी की अवस्था में दुःख का अनुभव नहीं होता उसी प्रकार वृक्ष आदि में
भी आत्मा को मूर्च्छा अवस्था के कारण दर्द अथवा कष्ट
नहीं होता हैं. और यहीं कारण हैं की दुःख
की अनुभूति नहीं होने से वृक्ष आदि को काटने, छिलने,
खाने
से कोई पाप नहीं होता और इससे जीव हत्या का कोई भी सम्बन्ध नहीं बनता. भोजन का ईश्वर कृत विकल्प
केवल
और केवल शाकाहार हैं और इस व्यस्था में कोई पाप
नहीं होता. जबकि मांसाहार पाप का कारण हैं.
प्राणियों के वध से मांस उपलब्ध होता हैं,
बिना प्राणिवध किये मांस नहीं मिलता और प्राणियों का वध करना दुःख भोग का कारण हैं, अत: मांस
का सेवन नहीं करना चाहिए.
courtsry by - aurveda Admin-anshuman
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