अभियंताओं का राष्ट्र , सभ्यता और विकास में अभूतपूर्व योगदान है . अभियंता सचमुच में प्रगति की रीढ़ है .सबसे पहले अभियंता के बेसिक ज्ञान पर प्रकाश डालूँगा .अभियंता विज्ञानं एवम गणित के जानकार होते हैं. विज्ञान का जानकार प्रकृति में उपलब्ध संसाधनों का वैज्ञानिक प्रयोग सैद्धान्तिक एवम व्यवहारिक रूप में लाता है . क्रमवद्ध ज्ञान को विज्ञानं कहते हैं . सभ्यता का क्रमवद्ध विकास इसी ज्ञान से सम्भब है . परन्तु आज के भारत के कई प्रान्तों में प्रगति की भागदौड़ में समाज के सभी वर्गों का सही प्रतिनिधित्व एवम सर्वागीण विकास में अभियंताओं को रोड़ा माना जा रहा है परन्तु ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि भारत में प्रशासनिक एवम राजनैतिक हस्तक्षेप हद से ज्यादा हो गया है .
सबसे पहले प्रशासनिक हस्तक्षेप को समझा जाय . भारत में आई ए स नाम की चिड़ियाँ को स्वतंत्रता के बाद ही ब्रिटेन उड़ जाना चाहिए था . परन्तु इसका घोसला इतना मजबूत था की दृढ़ राजनीति संकल्प के अभाव एवम सत्ता की लोलुपता ने इसके घोसले को और ताकतवर बना दिया है . भारत के विकास में आई ए स के बारे में यही कहावत चरितार्थ होती है " पढ़े फारसी बेचे तेल ". आज भारत के राजनीति को भी इससे निकलने या नाथने की अकुलाहट है .
विकास में भारतीय जाति द्वार विभिन्न पेशा से जुड़े लोगों की भूमिका बेहद महत्तवपूर्ण है . इसे भी अकुशल अभियंता की संज्ञा दी जा सकती है . आज भारत / बिहार इन अकुशल अभियंताओं की वजह से विश्व के आधुनिक निर्माण में अपनी पहचान बनाये हुए है . परन्तु इसे ही आज के विकाश में उपहास के रूप में उद्धृत किया जाता है . बिहारी शब्द राष्ट्र में और भारतीय शब्द विश्ब में गाली के रूप में प्रयुक्त किया जाता है. यही मिसाल अभियंताओं का राष्ट्र में है . सबसे न्यूनतम पगार पदाधिकारियों में इसकी है . सेवा सर्त तो एकदम खराब. अभियंताओं /अकुशल अभियंताओं के शोषण के देश में विकास की कोरी कल्पना ही की जा सकती है .
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