पहली प्रोन्नति..शुकून या परेशानी "महल्ले में बुढा की शादी पडोसी के घर में बंटी मिठाई ""दही के अगोरिया बिल्ली "उपर्युक्त दोनों मुहावरे मेरी सरकारी प्रोन्नति पर चरितार्थ हो रही है . कुछ दर्द ऐसे भी होते हैं जो परेशान कम और ख़ुशी ज्यादा देते हैं .जैसे खुजली ..नहीं खुजलाने पर अकबकाहट होगी और खुज्लाईये तो शुकून और जन्नत महशूस होगा .कई दोस्तो ने मेरी सरकारी प्रोन्नति के बाद बधाईयाँ दी . सभी दोस्तो को मेरे तरफ से धन्यवाद .
लेकिन सचमुच में ५० वर्ष के बाद मिली पहली प्रोन्नति ने सोचने को मजबूर कर दिया .अब जरा सोचिये प्रोन्नति के बाद का पदनाम है कार्यपालक अभियंता .कार्यपालक शब्द का सन्धि विच्छेद है कार्य + पालक . कार्य अर्थात काम और पालक पालना अथवा कामकरने वाला व्यक्ति . मेरी उम्र जिस दहलीज़ पर कुलांचे मार रही है इस उम्र में प्रत्येक व्यक्ति की मनः एवम शारीरिक स्थिति निम्न प्रकार की होती है ...
१) ५० वर्ष के बाद कोई भी व्यक्ति श्रम के लायक शारीरिक रूप में क्षीण होना प्रारम्भ कर देता है साथ ही साथ ८० % आदमी कोई न कोई गम्भीर बिमारी का शिकार हो जाता है . स्वास्थ्य अगर साथ नहीं दिया तो आदमी काम क्या करेगा ?और पद का नाम है कामकरने वाला .
२) इस उम्र में सभी के माता - पिता वृद्ध हो जाते है .उनकी सेवा का दायित्व बेटे के कंधे पर सामान्य रूप में होना चाहिए . अब सोचिये जो खुद लाचार है उसको सेवा की मजबूरी भी है .
३) भारत में ८० वर्ष के माता पिता के साथ साथ खुद एवम अर्धंगिनी के ईलाज का खर्च का अनुमान लगा लें .
४) ५० वर्ष के आदमी के दो सन्तानों पर होने वाला आधुनिक शिक्षा का खर्च का अनुमान लगा लें .
५) इस उम्र में अगर बच्ची हो तो उसकी शादी पर होनेवाला खर्च का अनुमान लगा लें .
६) कार्यपालक अभियंता को सरकार द्वारा तिजौरी की चाभी गुच्छे सहित थमा दी जाती है .
७)शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति काम की सही रूप में देख रेख कर सकता है क्या ?
८) सुरसा की मुह की तरह बाए पैसों की आवश्यकता वाला व्यक्ति अगर सत्य हरिश्चन्द्र की औलाद होगा तो ही सरकारी खजाना सुरक्षित रह सकता है अन्यथा भ्रस्ट शाषण व्यवस्था में खुद चान्दी के चम्मच से पेटभर खायेगा .
९) सम्वेदकों को चान्दी ही चान्दी हो जाएगी .
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