मैं पुनः आज दांत निपोरे हाथ खींचकर निर्लज्जों की तरह खड़ा हूँ .मैं तुम्हारा भाग्य विधाता अपनी निर्लजता पर अट्टाहस कर रहा हूँ . तुम नपुंसकों में कोई दम है . आजमा लो . तुम क्या चाहते हो ....आज मैं सब कसमें खा रहा हूँ . लेकिन मेरी भी जात है जमात है . देखा है तुमने किसी भी मेरी जात जमात वालों को की कोई भी तुम्हारी बेहतरी के कोई कसम खाने की बाकी राखी है क्या ? आज तुमलोगों ने मेरी जमातवाले लोगों से कौन कौन कसमें नहीं खिला रहे हो . मेरा वक़्त घूमेगा बहुत दिन नहीं है बाकी ..फिर दिखा दूंगा असल में मैं कौन हूँ ? हर वार मैं तुमलोगों को सबक सिखाता रहा हूँ ...कसमें खता रहा हूँ ..फिर बाद में देख लूँगा . क्या कर सकते हो तुम नपुंसकों . हमको चिढाते हो ..मैं वही करूंगा जो करता आया हूँ .
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