जात अर्थात जमात की राजनीति वर्षो से भारत में हो रही है . कबीला के सरदार से लेकर अब तक हर पांच वर्षों में नए नए समीकरण के रूप में समाज की राजनीतिक जागृति की वजह से एक जमात तैयार होता है . जो पूर्व से शासक वर्ग में थे उन्हें नए जमातों को बनते देख घृणा की दृष्टि से जातिवाद की संज्ञा दी जाति है . यही सामंतवाद का द्योतक है . क्या समाज का पिछड़ा वर्ग(महिला ,अशिक्षित , दलित , पिछड़ा , शोषित ...) को राजनीति में आने का हक़ नहीं है . आजाद भारत में सता पर समानुपातिक रूप में सभी का प्रतिनिधि होना चाहिए . तभी सभी वर्गों में राष्ट्र वाद की भावना , विकाश , ......आदि सम्भव हो सकेगा .आजादी के वाद प्रथम चुनाव का विश्लेषण कर लें . मधेपुरा का पहला सांसद ब्राह्मण जाति से था एवम मसौढ़ी का प्रथम विधायक भी ब्रह्मन था .प्रजातन्त्र जब जनता के बहुमत के आधार पर होता है तो कब तक अधिक आबादी वाली जनता को ठेंगा दिखा पायेंगे .मनु वादी सामंतवादी सोच इसी को जातिवादी की संज्ञा देकर भ्रम फैलाते हैं ..............
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