Saturday, November 24, 2012

महापर्व छठ पूजा / आस्था का चार दिन

 महापर्व छठ पूजा /   आस्था का चार दिन


न कोई पंडित न पुरोहित। न पोथी न मंत्रोजाप। न ही कोई आडंबर। सिर्फ और सिर्फ आस्था। आस्था का चार दिनी यह महापर्व छठ खास मायने रखता है। सूर्य की उपासना के इस पर्व के दौरान क्राइम नहीं होता। महिलाएं खुद को कहीं ज्यादा महफूज मानती हैं। मुहल्लों की साफ-सफाई में सार्वजनिक योगदान सामाजिक जीवन में रिश्तों की गरमाहट बिखेर देता है। लोक आस्था का यह अद्भुत नजारा रूढ़ियों पर चोट करता हुआ लगता है।

शनिवार को नहाय-खाय के साथ ही इस महापर्व की शुरुआत हो जाएगी। ऐसी मान्यता थी कि इस पर्व को केवल महिलाएं ही करती हैं पर अब पुरूष भी  करने लगे हैं। हालांकि पौराणिक मान्यता यह भी है कि भगवान सूर्य के पुत्र कर्ण ने सूर्योपासना की थी। वह अंग प्रदेश के राजा था। अंग प्रदेश बिहार के मुंगेर में माना जाता है। इस पर्व को लेकर अनेक तरह की मान्यताएं हैं। सूर्य की उपासना कर उनसे विनती की जाती है कि वे धरती को हमेशा ऊर्जावान व गतिशील बनाये रखें। पेड़-पौधों और सभी तरह के जीव-जंतुओं पर उनकी ऊर्जा का प्रवाह बना रहे। यह भी मान्यता है कि छठ करने वाले सभी प्रकार खासकर सफेद दाग जैसी बीमारियों से मुक्त हो जाते हैं।

चचरी पुल 






छठ पूजा के दौरान मची भगदड़ में मारे गये 14 लोगों की पहचान हो गयी और उनका पोस्टमार्टम भी। एक शव अज्ञात है। शवों को उनके परिजन अपने साथ ले गये। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस बांस के अस्थायी पुल को बनाया गया था, उसे किसने बनवाया था? क्या निर्माण के दौरान उसे अधिकारियों ने उसे देखना भी मुनासिब नहीं समझा? दरअसल, यह पुल सरकार के काम करने के तरीके पर सवाल है।
 
यह जहां हादसा हुआ, उसके अगल-अगल है पीबहोर थाना, बांकीपुर पोस्ट ऑफिस, डेंटल कॉलेज, सिविल कोर्ट, समाहरणालय औैर रेलवे का एक कार्यालय। इन सभी कार्यालयों के ठीक पीछे फिलहाल शहर का गंदा पानी बहता है। करीब सौ फुट की चौड़ाई में। वहीं सीढ़ी बनी हुई है। पर अब चूंकि नाले का गंदा पानी बहता है तो इन सीढिय़ों का कोई मतलब नहीं। नाले के उस पार रेत है और उसके बाद गंगा घाट हैै। रेलवे कार्यालय के ठीक पीछे बांस के दो पुल बने हैं। एक बड़ा है। करीब 15 फुट चौड़ा और दूसरा करीब 5-7 फुट चौड़ा। छोटा वाला पुल ही पूरी तरह पानी में डूब गया है।
 
छठ पूजा को देखते हुए जिला प्रशासन ने दोनों पुल बनवाया था। पुल की बनावट देखने से ही अत्यंत कमजोर लग रही है। हादसे के बाद उसके बांस खोले जा रहे हैं। स्थानीय जुबान में बांस के इसी पुल को चचरी पुल कहा जाता है। शहर हो या गांव एक भाग से दूसरे भाग पर जाने के लिए चचरी पुल का खूब प्रचलन है।

महज बारह घंटे में कितना कुछ बदल गया। कल शाम यहां जिंदगी के गीत गाये जा रहे थे। आज सुबह यहां मातम है। छठ के गीत लोग गाएं तो कैसे? उनका गला रह-रह कर रूंध जा रहा है। महिलाएं छठ मइया से अर्ज करती हैं: हमसे क्या भूल हो गयी?
अदालतगंज घाट हो या इंजीनियरिंग कॉलेज का घाट सब जगह दुख है और संताप है। कोई उत्साह नहीं। कल शाम जितनी भीड़ थी, आज वह कम हो गयी। कई लोगों ने हादसे के बाद अपने घर से ही सूर्य देवता को दूसरा अर्ध्‍य दिया। उन्हें घाट पर आने की हिम्मत नहीं हुई। हालांकि लोगों के इन घाटों पर आने का सिलसिला सुबह चार बजे से ही शुरू हो गया था।

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