*भारतीय जलवायु में स्वास्थ्य के प्रकृति के अचूक नियम*
○चैते गुङ ○बैशाखे तेल, ○जेठे पंथ ○असाढै बेल ।
○सावन साग ○भादो दही , ○क्वार करेला ○कातिक मही,
○अगहन जीरा ○पुष धनिया, ○माघे मिसरी ○फागुण चना ।।।
○ ईं बारह से देह बचाय तो घर वैद्य कबहूँ ना आय ।।
(ग्रामीण कहावत)
●हिन्दी भावार्थ
*बारह महीनों में अलग अलग वो ऐसी चीजें जिनका हम परहेज करके निरोगी रह सकते हैं।*
*१) चैत - गुङ नहीं खाना चाहिए, क्योंकि इस महीने का नया गुङ पथ्य नहीं होता।*
*२) वैशाख - तेल नहीं खायें क्योंकि वैशाख में जो पसीना निकलता हैं उन छिद्रों को तेल अवरूद्ध कर देती हैं।*
*३) ज्येष्ठ - पंथ यानी पथ - रास्ता पर पैदल नहीं चलना चाहिए क्योंकि इस महिने गर्मी बहुत ज्यादा होने से शरीर डिहाइड्रेशन में आ जायेगा।*
*४) आसाढ - बेल फल बहुत गुणकारी होकर भी आसाढ में खाने योग्य नहीं होता।*
*५) श्रावण - सावण में पत्ते वाले आहार न लें क्योंकि इस मास में बरसात के समय पृथ्वी गर्भीणी होकर अदृश्य असंख्य जीव पैदा करती हैं जिनके अंडज पत्तों पर भी होते हैं।*
*६) भादो - इस महिने में दही के जो पथ्य बैक्टीरिया होते हैं वो ह्युमिडिटी के चलते जल्दी जल्दी बढ़कर खतरनाक हो जाते हैं।*
*७) आसीन- करेला आसीन में पकाकर खाने योग्य नहीं रहता। करेला पितकारक होता हैं।*
*८) कार्तिक - कार्तिक में मही यानी मट्ठा ना खायें क्योंकि कार्तिक से हमें ठंडा नहीं गरम आहार शुरू कर देना चाहिए।*
*९) अगहन - जीरा ना खायें क्योंकि जीरा प्रकृतिगत ठंडा होता हैं। जबकि अगहन में ठंड ही होती हैं।*
*१०) पौष - पौष में धनिया ना खायें क्योंकि धनिये की प्रकृति ठंडी होती हैं। सर्दियों के इन दिनों में गर्म प्रकृतिगत व्यंजन खाना चाहिए ।गर्मियों में सिर्फ धनिये के लड्डू बनाकर खावें।*
*११) माघ - माघ में मिश्री ना खायें । मिश्री की तासीर भी ठंडी होती हैं जो गरम ऋतू में धनिये के लड्डुओं के साथ खावें हैं।*
*१२) फाल्गुन- फाल्गुन में चना ना खावें । एकदम नया चना गैस कारक होता हैं। फाल्गुन में वायुमंडल में भी इधर-उधर की बिना ठिकाने की हवा चलती रहती हैं। मौसम भी कभी कैसा तो कभी कैसा रहता हैं। चना वैसे भी गैस कारक होता है ।*
*इस प्रकार अगर आप अपथ्य का पालन करेंगे तो शरीर को जरूर सुरक्षित रख पायेंगे।*